"महबूब ख़ान": अवतरणों में अंतर
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हिन्दी सिनेमा जगत के युगपुरुष महबूब खान को एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने दर्शकों को लगभग तीन दशक तक क्लासिक फिल्मों का तोहफा दिया। महबूब खान [मूल नाम रमजान खान] का जन्म 1906 में गुजरात के बिलमिरिया में हुआ था। वह युवावस्था में घर से भागकर मुंबई आ गए और एक स्टूडियों में काम करने लगे। भारतीय सिनेमा को आधुनिकतम तकनीकी से सँवारने में अग्रणी निर्माता-निर्देशक महबूब खान का अहं किरदार रहा है। महबूब खान हॉलीवुड के फिल्मों से बहुत अधिक प्रभावित थे और भारत में भी उच्च स्तर के चलचित्रों का निर्माण करने में जुटे रहते थे। उन्होंने अपने सिने कैरियर की शुरुआत 1927 में प्रदर्शित फिल्म अलीबाबा एंड फोर्टी थीफ्स से अभिनेता के रूप में की। इस फिल्म में उन्होंने चालीस चोरों में से एक चोर की भूमिका निभाई थी। | हिन्दी सिनेमा जगत के युगपुरुष महबूब खान को एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने दर्शकों को लगभग तीन दशक तक क्लासिक फिल्मों का तोहफा दिया। महबूब खान [मूल नाम रमजान खान] का जन्म 1906 में गुजरात के बिलमिरिया में हुआ था। वह युवावस्था में घर से भागकर मुंबई आ गए और एक स्टूडियों में काम करने लगे। भारतीय सिनेमा को आधुनिकतम तकनीकी से सँवारने में अग्रणी निर्माता-निर्देशक महबूब खान का अहं किरदार रहा है। महबूब खान हॉलीवुड के फिल्मों से बहुत अधिक प्रभावित थे और भारत में भी उच्च स्तर के चलचित्रों का निर्माण करने में जुटे रहते थे। उन्होंने अपने सिने कैरियर की शुरुआत 1927 में प्रदर्शित फिल्म अलीबाबा एंड फोर्टी थीफ्स से अभिनेता के रूप में की। इस फिल्म में उन्होंने चालीस चोरों में से एक चोर की भूमिका निभाई थी। | ||
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बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा के लिए महबूब खान का अभिनेता के रुप में चयन किया गया था। लेकिन फिल्म निर्माण के समय आर्देशिर ईरानी ने महसूस किया कि फिल्म की सफलता के लिए नए कलाकार को मौका देने के बजाय किसी स्थापित अभिनेता को यह भूमिका देना सही रहेगा। बाद में उन्होंने महबूब खान की जगह मास्टर विट्ठल को इस फिल्म में काम करने का अवसर दिया। इसके बाद महबूब खान सागर मूवीटोन से जुड़ गए और कई फिल्मों में सहायक अभिनेता के रूप में काम किया। | बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा के लिए महबूब खान का अभिनेता के रुप में चयन किया गया था। लेकिन फिल्म निर्माण के समय आर्देशिर ईरानी ने महसूस किया कि फिल्म की सफलता के लिए नए कलाकार को मौका देने के बजाय किसी स्थापित अभिनेता को यह भूमिका देना सही रहेगा। बाद में उन्होंने महबूब खान की जगह मास्टर विट्ठल को इस फिल्म में काम करने का अवसर दिया। इसके बाद महबूब खान सागर मूवीटोन से जुड़ गए और कई फिल्मों में सहायक अभिनेता के रूप में काम किया। | ||
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वर्ष 1962 में प्रदर्शित फिल्म सन ऑफ इंडिया महबूब खान के सिने करियर की अंतिम फिल्म साबित हुई। बड़े बजट से बनी यह फिल्म टिकट खिड़की की पर बुरी तरह नकार दी गई। हांलाकि नौशाद के स्वरबद्ध फिल्म के गीत नन्हा मुन्ना राही हूं... और तुझे दिल ढूंढ रहा है... श्रोताओं के बीच आज भी तन्मयता के साथ सुने जाते है। | वर्ष 1962 में प्रदर्शित फिल्म सन ऑफ इंडिया महबूब खान के सिने करियर की अंतिम फिल्म साबित हुई। बड़े बजट से बनी यह फिल्म टिकट खिड़की की पर बुरी तरह नकार दी गई। हांलाकि नौशाद के स्वरबद्ध फिल्म के गीत नन्हा मुन्ना राही हूं... और तुझे दिल ढूंढ रहा है... श्रोताओं के बीच आज भी तन्मयता के साथ सुने जाते है। | ||
अपने जीवन के आखिरी दौर में महबूब खान 16वीं शताब्दी की कवयित्री हब्बा खातून की जिंदगी पर एक फिल्म बनाना चाहते थे। लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया। | अपने जीवन के आखिरी दौर में महबूब खान 16वीं शताब्दी की कवयित्री हब्बा खातून की जिंदगी पर एक फिल्म बनाना चाहते थे। लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया। <ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/28-28-119523.html |title= चालीस 'चोरों' में एक 'चोर' थे महबूब खान |accessmonthday=[[28 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=हिंदुस्तान |language=हिन्दी }}</ref> | ||
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==मृत्यु== | ==मृत्यु== | ||
अपनी फिल्मों से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाले महान फिल्मकार महबूब ख़ान 28 मई 1964 को इस दुनिया से रूखसत हो गया। | अपनी फिल्मों से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाले महान फिल्मकार महबूब ख़ान 28 मई 1964 को इस दुनिया से रूखसत हो गया। |
07:57, 28 अगस्त 2010 का अवतरण
हिन्दी सिनेमा जगत के युगपुरुष महबूब खान को एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने दर्शकों को लगभग तीन दशक तक क्लासिक फिल्मों का तोहफा दिया। महबूब खान [मूल नाम रमजान खान] का जन्म 1906 में गुजरात के बिलमिरिया में हुआ था। वह युवावस्था में घर से भागकर मुंबई आ गए और एक स्टूडियों में काम करने लगे। भारतीय सिनेमा को आधुनिकतम तकनीकी से सँवारने में अग्रणी निर्माता-निर्देशक महबूब खान का अहं किरदार रहा है। महबूब खान हॉलीवुड के फिल्मों से बहुत अधिक प्रभावित थे और भारत में भी उच्च स्तर के चलचित्रों का निर्माण करने में जुटे रहते थे। उन्होंने अपने सिने कैरियर की शुरुआत 1927 में प्रदर्शित फिल्म अलीबाबा एंड फोर्टी थीफ्स से अभिनेता के रूप में की। इस फिल्म में उन्होंने चालीस चोरों में से एक चोर की भूमिका निभाई थी।
अभिनेता
बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा के लिए महबूब खान का अभिनेता के रुप में चयन किया गया था। लेकिन फिल्म निर्माण के समय आर्देशिर ईरानी ने महसूस किया कि फिल्म की सफलता के लिए नए कलाकार को मौका देने के बजाय किसी स्थापित अभिनेता को यह भूमिका देना सही रहेगा। बाद में उन्होंने महबूब खान की जगह मास्टर विट्ठल को इस फिल्म में काम करने का अवसर दिया। इसके बाद महबूब खान सागर मूवीटोन से जुड़ गए और कई फिल्मों में सहायक अभिनेता के रूप में काम किया।
निर्देशक
वर्ष 1935 में उन्हें जजमेंट आफ अल्लाह फिल्म के निर्देशन का मौका मिला। अरब और रोम के बीच युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित यह फ़िल्म दर्शकों को काफी पसंद आई। महबूब खान को 1936 में मनमोहन और 1937 में जागीरदार फिल्म को निर्देशित करने का मौका मिला, लेकिन ये दोनों फिल्में टिकट खिड़की पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकीं।
वर्ष 1937 में उनकी एक ही रास्ता प्रदर्शित हुई। सामाजिक पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म दर्शकों को काफी पसंद आई। इस फिल्म की सफलता के बाद वह निर्देशक के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। वर्ष 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण फिल्म इंडस्ट्री को काफी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा। इस दौरान सागर मूवीटोन की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो गई और वह बंद हो गई। इसके बाद महबूब खान अपने सहयोगियों के साथ नेशनल स्टूडियों चले गए। जहाँ उन्होंने औरत [1940], बहन [1941] और रोटी 1942 जैसी फिल्मों का निर्देशन किया।
कुछ समय तक नेशनल स्टूडियों में काम करने के बाद महबूब खान को महसूस हुआ कि उनकी विचारधारा और कंपनी की विचारधारा में भिन्नता है। इसे देखते हुए उन्होंने नेशनल स्टूडियों को अलविदा कह दिया और महबूब खान प्रोडक्शन लिमिटेड की स्थापना की। इसके बैनर तले उन्होंने नजमा, तकदीर, और हूमायूं [1945] जैसी फिल्मों का निर्माण किया। वर्ष 1946 मे प्रदर्शित फिल्म अनमोल घड़ी महबूब खान की सुपरहिट फिल्मों में शुमार की जाती है।
इस फिल्म से जुड़ा रोचक तथ्य यह है कि महबूब खान फिल्म को संगीतमय बनाना चाहते थे। इसी उद्देश्य से उन्होंने नूरजहां, सुरैय्या और अभिनेता सुरेन्द्र का चयन किया जो अभिनय के साथ ही गीत गाने में भी सक्षम थे। फिल्म की सफलता से महबूब खान का निर्णय सही साबित हुआ। नौशाद के संगीत से सजे आवाज दे कहां है..., आजा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे... और जवां है मोहब्बत... जैसे गीत श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय हैं।
महत्वपूर्ण फिल्म
वर्ष 1949 में प्रदर्शित फिल्म अंदाज महबूब खान की महत्वपूर्ण फिल्मों में शामिल है। प्रेम त्रिकोण पर बनी दिलीप कुमार, राज कपूर और नर्गिस अभिनीत यह फिल्म क्लासिक फिल्मों में शुमार की जाती है। इस फिल्म में दिलीप कुमार और राजकपूर ने पहली और आखिरी बार एक साथ काम किया था। वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म आन महबूब खान की एक और महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई। इस फिल्म की खास बात यह थी कि यह हिंदुस्तान में बनी पहली टेक्नीकलर फिल्म थी और इसे काफी खर्च के साथ वृहत पैमाने पर बनाया गया था।
दिलीप कुमार, प्रेमनाथ और नादिरा की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह भी है कि भारत में बनी यह पहली फिल्म थी जो पूरे विश्व में एक साथ प्रदर्शित की गई। आन की सफलता के बाद महबूब खान ने अमर फिल्म का निर्माण किया। बलात्कार जैसे संवेदनशील विषय बनी इस फिल्म में दिलीप कुमार, मधुबाला और निम्मी ने मुख्य निभाई। हालांकि फिल्म व्यावसायिक तौर पर सफल नहीं हुई, लेकिन महबूब खान इसे अपनी एक महत्वपूर्ण फिल्म मानते थे।
मदर इंडिया
वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म मदर इंडिया महबूब खान की सर्वाधिक सफल फिल्मों में शुमार की जाती है। उन्होंने मदर इंडिया से पहले भी इसी कहानी पर 1939 मे औरत फिल्म का निर्माण किया था और वह इस फिल्म का नाम भी औरत ही रखना चाहते थे। लेकिन नर्गिस के कहने पर उन्होंने इसका मदर इंडिया जैसा विशुद्व अंग्रेजी नाम रखा। फिल्म की सफलता से उनका यह सुझाव सही साबित हुआ। महान अदाकारा नर्गिस को फिल्म इंडस्ट्री में लाने में महबूब खान की अहम भूमिका रही।
नर्गिस अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थी, लेकिन महबूब खान को उनकी अभिनय क्षमता पर पूरा भरोसा था और वह उन्हें अपनी फिल्म में अभिनेत्री के रूप में काम देना चाहते थे। इससे जुड़ा एक रोचक वाकया है। एक बार नर्गिस की मां ने उन्हें स्क्रीन टेस्ट के लिए महबूब खान के पास जाने को कहा। चूंकि नर्गिस अभिनय क्षेत्र में जाने की इच्छुक नहीं थीं, इसलिए उन्होंने सोचा कि यदि वह स्क्रीन टेस्ट में फेल हो जाती हैं तो उन्हें अभिनेत्री नहीं बनना पडे़गा।
स्क्रीन टेस्ट के दौरान नर्गिस ने अनमने ढंग से संवाद बोले और सोचा कि महबूब खान उन्हें स्क्रीन टेस्ट में फेल कर देंगे। लेकिन उनका यह विचार गलत निकला। महबूब खान ने अपनी नई फिल्म तकदीर [1943] के लिए नायिका उन्हें चुन लिया। बाद में नर्गिस ने महबूब खान की कई फिल्मों में अभिनय किया। इसमें 1957 में प्रदर्शित फिल्म मदर इंडिया खास तौर पर उल्लेखनीय है।
सन ऑफ इंडिया
वर्ष 1962 में प्रदर्शित फिल्म सन ऑफ इंडिया महबूब खान के सिने करियर की अंतिम फिल्म साबित हुई। बड़े बजट से बनी यह फिल्म टिकट खिड़की की पर बुरी तरह नकार दी गई। हांलाकि नौशाद के स्वरबद्ध फिल्म के गीत नन्हा मुन्ना राही हूं... और तुझे दिल ढूंढ रहा है... श्रोताओं के बीच आज भी तन्मयता के साथ सुने जाते है।
अपने जीवन के आखिरी दौर में महबूब खान 16वीं शताब्दी की कवयित्री हब्बा खातून की जिंदगी पर एक फिल्म बनाना चाहते थे। लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया। [1]
वर्ष | फ़िल्म |
---|---|
1957 | मदर इण्डिया |
1954 | अमर |
1949 | अंदाज़ |
1946 | अनमोल घड़ी |
1945 | हुमायूँ |
1943 | नज़मा |
पुरस्कार
मदर इंडिया (1957) के निर्माण ने सर्वाधिक ख्याति दिलाई क्योंकि मदर इंडिया को विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिये अकादमी पुरस्कार (Academy Award for Best Foreign Language Film) के लिये नामांकित किया गया तथा इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार भी जीता।
महबूब खान की प्रमुख कृतियाँ
निर्देशक के रूप में
- सन ऑफ इंडिया (1962)
- अ हैंडफुल ऑफ ग्रेन (1959)
- मदर इंडिया (1957)
- अमर (1954)
- आन (1952)
- अंदाज (1949)
- अनोखी अदा (1948)
- ऐलान (1947)
- अनमोल घड़ी (1946)
- हुमायुँ (1945)
- नाज़िमा (1943)
- तकदीर (1943)
- रोटी (1942)
- बहन (1941)
- अलीबाबा (1940/I)
- अलीबाबा (1940/II)
- औरत (1940)
- एक ही रास्ता (1939)
- हम तुम और वो (1938)
- वतन (1938)
- जागीरदार (1937)
- डेक्कन क्वीन (1936)
- मनमोहन (1936)
- जजमेंट ऑफ अल्लाह (1935)
निर्माता के रूप में
- अमर (1954)
- आन (1952)
- अनोखी अदा (1948)
- अनमोल घड़ी (1946)
अभिनेता के रूप में
- दिलावर (1931)
- मेरी जान (1931)[2]
मृत्यु
अपनी फिल्मों से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाले महान फिल्मकार महबूब ख़ान 28 मई 1964 को इस दुनिया से रूखसत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चालीस 'चोरों' में एक 'चोर' थे महबूब खान (हिन्दी) (एच टी एम एल) हिंदुस्तान। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2010।
- ↑ महबूब खान … भारतीय सिनेमा के अग्रणी निर्माता-निर्देशक (हिन्दी) हिन्दी वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2010।