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==अकबर का व्यक्तित्त्व== | |||
'''जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर''' [[भारत]] का महानतम मुग़ल शंहशाह बादशाह था। जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। | '''जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर''' [[भारत]] का महानतम मुग़ल शंहशाह बादशाह था। जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म, शहंशाह अकबर तथा महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। | ||
अकबर का दरबार वैभवशाली था। उसकी लंबी चौड़ी औपचारिकताएं दूसरे लोगों और अकबर के बीच के अंतर को उजागर करती थीं, हालांकि वह दरबारी घेरे के बाहर जनमत विकसित करने के प्रति सजग था। हर सुबह वह लोगों को दर्शन देने व सम्मान पाने के लिए एक खुले झरोखे में खड़ा होता था। अकबर का व्यक्तित्व कितना साहसी था, इस बात का अन्दाज़ा नीचे दिये कुछ प्रसंगों द्वारा आसानी से लगाया जा सकता है। | |||
==पहला प्रसंग== | |||
[[मालवा]] का काम ठीक करके 38 दिनों के बाद अकबर (4 जून, 1561 ई.) को [[आगरा]] वापस लौट आया। गर्मियों का दिन था, लौटते वक़्त रास्ते में नरवर के पास के जंगलों में शिकार करने गया और पाँच बच्चों के साथ एक बाघिन को तलवार के एक वार से मार दिया। | |||
==दूसरा प्रसंग== | |||
इसी समय एक और भी ख़तरा उसने आगरा में मोल लिया। [[हेमू]] का हाथी 'हवाई' बहुत ही मस्त और ख़तरनाक था। एक दिन अकबर को उस पर सवारी करने की धुन सवार हुई। दो-तीन प्याले चढ़ाकर वह उसके ऊपर चढ़ गया। इतने से सन्तोष न होने पर उसने मुकाबले के दूसरे हाथी 'रनबाघा' से भिड़न्त करा दी। रनबाघा, हवाई के प्रहार को बर्दास्त न कर पाने के कारण जान बचाकर भागा। हवाई भी उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। अकबर हवाई के कंधे पर बैठा रहा। रनबाघा के पीछे-पीछे हवाई [[यमुना नदी]] के खड़े किनारे से नीचे की ओर दौड़ा। नावों का पुल पहाड़ों के नीचे कैसे टिक सकता था? पुल डूब गया। यमुना पार आगे-आगे रनबाघा भागा जा रहा था और उसके पीछे-पीछे हवाई। लोग साँस रोककर यह ख़ूनी तमाशा देख रहे थे। अकबर ने अपने ऊपर काबू रखते हुए हवाई को रोकने की कोशिश की और अन्त में वह सफल हुआ। | |||
[[चित्र:Akbar-Supervises-Agra-Fort.jpg|thumb|250px|left|[[अकबरनामा]] के अनुसार [[लाल क़िला आगरा|आगरा क़िले]] का निर्माण होता देखते सम्राट अकबर]] | |||
==तीसरा प्रसंग== | |||
1562 ई. की भी अकबर के जीवन की एक घटना है। साकित परगना, ([[एटा ज़िला|ज़िला एटा]]) के आठ गाँवों के लोग बड़े ही सर्कस थे। अकबर ने स्वयं उन्हें दबाने का निश्चय किया। एक दिन शिकार करने के बहाने वह निकला। डेढ़-दो सौ सवारों और कितने ही हाथी उसके साथ थे। बागी चार हज़ार थे, लेकिन अकबर ने उनकी संख्या की परवाह नहीं की। उसने देखा, शाही सवार आगा-पीछा कर रहे हैं। फिर क्या था? अपने हाथी दलशंकर पर चढ़कर वह अकेले परोख गाँव के एक घर की ओर बढ़ा। ज़मीन के नीचे अनाज की [[बखार]] थी, जिस पर हाथी का पैर पड़ा और वह फँसकर लुढ़क गया। दुश्मन बाणों की वर्षा कर रहे थे। पाँच बाण ढाल में लगे। अकबर बेपरवाह होकर हाथी को निकालने में सफल हुआ और मकान की दीवार को तोड़ते हुए भीतर घुसा। घरों में आग लगा दी गई। एक हज़ार बागी उसी में जल मरे। | |||
==अकबर पर घातक आक्रमण== | |||
'''1564 ई. के आरम्भ में अकबर दिल्ली गया'''। 11 जुलाई को [[निज़ामुद्दीन औलिया]] के मक़बरे की ज़ियारत करके लौटते समय माहम अनगा के बनवाये मदरसे के पास गुज़र रहा था। उसी समय मदरसे के कोठे से एक हब्शी ग़ुलाम फ़ौलाद ने तीर मारा। कन्धे के भीतर घुस गए तीर को तुरन्त निकाल लिया गया और हब्शी भी पकड़ा गया। बाद में पता लगा कि, हब्शी फ़ौलाद, शाह अबुल मआली के मित्र मिर्ज़ा शरफ़ुद्दीन का ग़ुलाम है। [[दिल्ली]] के शरीफ़ परिवारों की कुछ सुन्दरियों को अकबर ने अपने अन्त:पुर में डाल लिया। मध्य [[एशिया]] में जिस सुन्दरी पर बादशाह की नज़र पड़ जाती थी, पति उसे तलाक़ देकर बादशाह को प्रदान कर देता था। अकबर ने एक शेख़ को अपनी तरुण पत्नी को तलाक़ देने के लिए मजबूर किया था। इज्जत का सवाल था, इसीलिए फ़ौलाद ने तीर मारा था। लोगों ने फ़ौलाद से पूछताछ करके जानकारी प्राप्त करनी चाही। अकबर ने रोककर कहा, ‘न जाने यह किन-किन के ऊपर झूठी तोहमत लगायेगा।’ फ़ौलाद को मृत्युदण्ड दिया गया। घायल अकबर घोड़े पर सवार होकर महल में लौट आया और दस दिन बाद अच्छा हो जाने पर [[आगरा]] लौटा। 21 साल की आयु में ऐसे घातक आक्रमण के बाद भी अपने विवेक को न खोना यह बतलाता है कि, अकबर असाधारण पुरुष था। | |||
== | ==अकबर के प्रारम्भिक सुधार== | ||
अकबर ने अपने राज्य में कई सुधार किए थे। [[मुग़लकालीन शासन व्यवस्था]] में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। उसके समय में किए गए कुछ सुधार इस प्रकार से हैं- | |||
[[ | #युद्ध में बन्दी बनाये गये व्यक्तियों के [[परिवार]] के सदस्यों को दास बनाने की परम्परा को तोड़ते हुए अकबर ने दास प्रथा पर 1562 ई. से पूर्णतः रोक लगा दी। | ||
[[ | #प्रारंभ में अकबर ‘हरम दल’ के प्रभाव में था। इस दल के प्रमुख सदस्य-धाय माहम अनगा, जीजी अनगा, अदहम ख़ाँ, मुनअम ख़ाँ, शिहाबुद्दीन अहमद ख़ाँ थे। जब तक अकबर ने इस दल के प्रभाव में काम किया, तब तक के शासन को ‘पेटीकोट सरकार’ व ‘पर्दा शासन’ भी कहा जाता है। | ||
[[ | #[[अगस्त]], 1563 ई. में अकबर ने विभिन्न तीर्थ स्थलों पर लगने वाले ‘तीर्थ यात्रा कर’ की वसूली को बन्द करवा दिया। | ||
[[ | #[[मार्च]], 1564 ई. में अकबर ने ‘[[जज़िया कर]]’, जो ग़ैर-मुस्लिम जन से व्यक्ति कर के रूप में वसूला जाता था, को बन्द करवा दिया। | ||
[[ | #1571 ई. में अकबर ने [[फ़तेहपुर सीकरी]] को अपनी राजधानी बनाया। 1583 ई. में अकबर ने एक नया कैलेण्डर इलाही संवत् जारी किया। | ||
[[ | #अकबर ने [[सती प्रथा]] पर रोक लगाने का प्रयास किया, [[विधवा विवाह]] को प्रोत्साहित किया। | ||
#लड़कों के विवाह की न्यूनतम आयु 16 वर्ष तथा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष निर्धारित की गई। | |||
07:25, 12 जून 2016 का अवतरण
अकबर का व्यक्तित्त्व
जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर भारत का महानतम मुग़ल शंहशाह बादशाह था। जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म, शहंशाह अकबर तथा महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है।
अकबर का दरबार वैभवशाली था। उसकी लंबी चौड़ी औपचारिकताएं दूसरे लोगों और अकबर के बीच के अंतर को उजागर करती थीं, हालांकि वह दरबारी घेरे के बाहर जनमत विकसित करने के प्रति सजग था। हर सुबह वह लोगों को दर्शन देने व सम्मान पाने के लिए एक खुले झरोखे में खड़ा होता था। अकबर का व्यक्तित्व कितना साहसी था, इस बात का अन्दाज़ा नीचे दिये कुछ प्रसंगों द्वारा आसानी से लगाया जा सकता है।
पहला प्रसंग
मालवा का काम ठीक करके 38 दिनों के बाद अकबर (4 जून, 1561 ई.) को आगरा वापस लौट आया। गर्मियों का दिन था, लौटते वक़्त रास्ते में नरवर के पास के जंगलों में शिकार करने गया और पाँच बच्चों के साथ एक बाघिन को तलवार के एक वार से मार दिया।
दूसरा प्रसंग
इसी समय एक और भी ख़तरा उसने आगरा में मोल लिया। हेमू का हाथी 'हवाई' बहुत ही मस्त और ख़तरनाक था। एक दिन अकबर को उस पर सवारी करने की धुन सवार हुई। दो-तीन प्याले चढ़ाकर वह उसके ऊपर चढ़ गया। इतने से सन्तोष न होने पर उसने मुकाबले के दूसरे हाथी 'रनबाघा' से भिड़न्त करा दी। रनबाघा, हवाई के प्रहार को बर्दास्त न कर पाने के कारण जान बचाकर भागा। हवाई भी उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। अकबर हवाई के कंधे पर बैठा रहा। रनबाघा के पीछे-पीछे हवाई यमुना नदी के खड़े किनारे से नीचे की ओर दौड़ा। नावों का पुल पहाड़ों के नीचे कैसे टिक सकता था? पुल डूब गया। यमुना पार आगे-आगे रनबाघा भागा जा रहा था और उसके पीछे-पीछे हवाई। लोग साँस रोककर यह ख़ूनी तमाशा देख रहे थे। अकबर ने अपने ऊपर काबू रखते हुए हवाई को रोकने की कोशिश की और अन्त में वह सफल हुआ।

तीसरा प्रसंग
1562 ई. की भी अकबर के जीवन की एक घटना है। साकित परगना, (ज़िला एटा) के आठ गाँवों के लोग बड़े ही सर्कस थे। अकबर ने स्वयं उन्हें दबाने का निश्चय किया। एक दिन शिकार करने के बहाने वह निकला। डेढ़-दो सौ सवारों और कितने ही हाथी उसके साथ थे। बागी चार हज़ार थे, लेकिन अकबर ने उनकी संख्या की परवाह नहीं की। उसने देखा, शाही सवार आगा-पीछा कर रहे हैं। फिर क्या था? अपने हाथी दलशंकर पर चढ़कर वह अकेले परोख गाँव के एक घर की ओर बढ़ा। ज़मीन के नीचे अनाज की बखार थी, जिस पर हाथी का पैर पड़ा और वह फँसकर लुढ़क गया। दुश्मन बाणों की वर्षा कर रहे थे। पाँच बाण ढाल में लगे। अकबर बेपरवाह होकर हाथी को निकालने में सफल हुआ और मकान की दीवार को तोड़ते हुए भीतर घुसा। घरों में आग लगा दी गई। एक हज़ार बागी उसी में जल मरे।
अकबर पर घातक आक्रमण
1564 ई. के आरम्भ में अकबर दिल्ली गया। 11 जुलाई को निज़ामुद्दीन औलिया के मक़बरे की ज़ियारत करके लौटते समय माहम अनगा के बनवाये मदरसे के पास गुज़र रहा था। उसी समय मदरसे के कोठे से एक हब्शी ग़ुलाम फ़ौलाद ने तीर मारा। कन्धे के भीतर घुस गए तीर को तुरन्त निकाल लिया गया और हब्शी भी पकड़ा गया। बाद में पता लगा कि, हब्शी फ़ौलाद, शाह अबुल मआली के मित्र मिर्ज़ा शरफ़ुद्दीन का ग़ुलाम है। दिल्ली के शरीफ़ परिवारों की कुछ सुन्दरियों को अकबर ने अपने अन्त:पुर में डाल लिया। मध्य एशिया में जिस सुन्दरी पर बादशाह की नज़र पड़ जाती थी, पति उसे तलाक़ देकर बादशाह को प्रदान कर देता था। अकबर ने एक शेख़ को अपनी तरुण पत्नी को तलाक़ देने के लिए मजबूर किया था। इज्जत का सवाल था, इसीलिए फ़ौलाद ने तीर मारा था। लोगों ने फ़ौलाद से पूछताछ करके जानकारी प्राप्त करनी चाही। अकबर ने रोककर कहा, ‘न जाने यह किन-किन के ऊपर झूठी तोहमत लगायेगा।’ फ़ौलाद को मृत्युदण्ड दिया गया। घायल अकबर घोड़े पर सवार होकर महल में लौट आया और दस दिन बाद अच्छा हो जाने पर आगरा लौटा। 21 साल की आयु में ऐसे घातक आक्रमण के बाद भी अपने विवेक को न खोना यह बतलाता है कि, अकबर असाधारण पुरुष था।
अकबर के प्रारम्भिक सुधार
अकबर ने अपने राज्य में कई सुधार किए थे। मुग़लकालीन शासन व्यवस्था में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। उसके समय में किए गए कुछ सुधार इस प्रकार से हैं-
- युद्ध में बन्दी बनाये गये व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों को दास बनाने की परम्परा को तोड़ते हुए अकबर ने दास प्रथा पर 1562 ई. से पूर्णतः रोक लगा दी।
- प्रारंभ में अकबर ‘हरम दल’ के प्रभाव में था। इस दल के प्रमुख सदस्य-धाय माहम अनगा, जीजी अनगा, अदहम ख़ाँ, मुनअम ख़ाँ, शिहाबुद्दीन अहमद ख़ाँ थे। जब तक अकबर ने इस दल के प्रभाव में काम किया, तब तक के शासन को ‘पेटीकोट सरकार’ व ‘पर्दा शासन’ भी कहा जाता है।
- अगस्त, 1563 ई. में अकबर ने विभिन्न तीर्थ स्थलों पर लगने वाले ‘तीर्थ यात्रा कर’ की वसूली को बन्द करवा दिया।
- मार्च, 1564 ई. में अकबर ने ‘जज़िया कर’, जो ग़ैर-मुस्लिम जन से व्यक्ति कर के रूप में वसूला जाता था, को बन्द करवा दिया।
- 1571 ई. में अकबर ने फ़तेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया। 1583 ई. में अकबर ने एक नया कैलेण्डर इलाही संवत् जारी किया।
- अकबर ने सती प्रथा पर रोक लगाने का प्रयास किया, विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया।
- लड़कों के विवाह की न्यूनतम आयु 16 वर्ष तथा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष निर्धारित की गई।