"शीतला मन्दिर गुड़गाँव": अवतरणों में अंतर

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'''शीतला मन्दिर''' [[गुड़गाँव]], [[हरियाणा]] में स्थित प्रसिद्ध [[श्रेणी:हिन्दू धार्मिक स्थल|हिन्दू धार्मिक स्थल]] है। '[[नवरात्रि]]' के पावन दिनों में गुड़गाँव स्थित शीतला माता के मंदिर में भक्तों की भीड़ काफ़ी बढ़ जाती है। देश के सभी प्रदेशों से श्रद्धालु यहाँ मन्नत माँगने आते हैं। मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहाँ [[वर्ष]] में दो बार एक-एक [[माह]] का मेला लगता है। इसके अतिरिक्त 'नवरात्रि' में शीतला माता के दर्शन के लिए कई प्रदेशों से लाखों की तादाद में श्रद्धालु गुड़गाँव पहुँचते हैं।
#REDIRECT [[शीतला माता मन्दिर, गुड़गाँव]]
==पौराणिकता==
गुड़गाँव के शीतला माता मंदिर की कहानी [[महाभारत]] काल से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि महाभारत काल में यहाँ आचार्य [[द्रोणाचार्य]] [[कौरव|कौरवों]] और [[पाण्डव|पाण्डवों]] को [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] आदि का प्रशिक्षण देते थे। कहते हैं कि जब गुरु द्रोण महाभारत के युद्ध में [[द्रुपद]] पुत्र [[धृष्टद्युम्न]] द्वारा वीरगति को प्राप्त हुए, तो उनकी पत्नी [[कृपि]] अपने पति के साथ सती होने के लिए तैयार हुई। कृपि [[शरद्वान गौतम|महर्षि शरद्वान]] की पुत्री तथा [[कृपाचार्य]] की बहन थी। जब कृपि ने 16 शृंगार कर [[सती प्रथा|सती]] होने की प्रथा निभाने के लिए अपने पति की चिता पर बैठना चाहा, तो लोगों ने उनको सती होने से रोका; लेकिन माता कृपि सती होने का निश्चय करके अपने पति की चिता पर बैठ गईं। उन्होंने लोगों को आशीर्वाद दिया कि मेरे इस सती स्थल पर जो भी अपनी मनोकामना लेकर पहुँचेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी।
====ऐतिहासिक तथ्य====
सन 1650 में महाराजा [[भरतपुर]] ने गुड़गाँव में जहाँ माता कृपि सती हुई थीं, मंदिर बनवाया और सवा किलो [[सोना|सोने]] की माता कृपि की मूर्ति बनवाकर वहाँ स्थापित की। इस मंदिर में आज भी [[भारत]] के कोने-कोने से लाखों की संख्या में [[भक्त]] स्त्री-पुरुष अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए आते हैं। [[चैत्र मास]] के [[नवरात्र|नवरात्रों]], [[वैशाख]] और [[आषाढ़]] के सम्पूर्ण मास तथा [[आश्विन]] के नवरात्रों में भारी मेला लगता है, जिसमें कम से कम 50 लाख यात्री दर्शनाथ आते हैं। यह मंदिर 500 गज के क्षेत्र में बना हुआ है।
==मान्यता==
लगभग 500 सालों से यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहाँ पर देश के कोने-कोने से लोग [[पूजा]]-पाठ के लिए आते हैं। लोगों की मान्यता है कि यहाँ पूजा करने से शरीर पर निकलने वाले दाने, जिन्हें स्थानीय बोलचाल की भाषा में 'माता' और विज्ञान में [[चेचक]] कहा जाता है, नहीं निकलते हैं। इसके अलावा नवजात शिशुओं के बालों का प्रथम मुंडन भी यहाँ पर ही होता है। यही कारण है कि हर साल एक [[माह]] तक चलने वाले मेले में मुंडन का ठेका 60 लाख से अधिक में छूटता है। ज़िला प्रशासन की तरफ़ से यहाँ पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खान-पान व सुरक्षा के विशेष बंदोबस्त किए जाते हैं।
==यात्री सुविधा==
हरियाणा प्रशासन ने मेले की सुरक्षा व सुविधाओं के लिए अलग से 'शीतला माता श्राइन बोर्ड' का गठन किया हुआ है, जिसकी देख-रेख में मेले के सभी कार्य होते हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं में सबसे अधिक तादाद [[उत्तर प्रदेश]], [[राजस्थान]] व [[हरियाणा]] के लोगों की होती है। इसके अलावा देश के सभी प्रदेशों से श्रद्धालु यहाँ पर मन्नतें माँगने आते हैं। नवरात्रों में शीतला माता मन्दिर का नजारा कुछ अलग होता है। इन दिनों यहाँ पर दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं में कई प्रदेशों से लोग आते हैं। खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोग सबसे अधिक शीतला माता को मानते हैं।
 
शहर के बीचों-बीच स्थित शीतला माता मंदिर पर जाने के लिए श्रद्धालुओं को अधिक परेशानी का सामना भी नहीं करना पड़ता। मुख्य बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन के बीच स्थित होने की वजह से श्रद्धालु आसानी से मंदिर परिसर तक पहुँच सकते हैं। इसके अलावा अपने वाहनों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मेले परिसर में पार्किंग आदि की विशेष व्यवस्था भी रहती है।
 
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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==संबंधित लेख==
{{हरियाणा के पर्यटन स्थल}}
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11:21, 11 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

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