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==कारण==
==कारण==
कुपोषण की समस्या का एक प्रमुख कारण शिशु को सही समय और पर्याप्त मात्र में माँ का दूध न मिल पाना भी है. इस सम्बन्ध में वात्सल्य संस्था की संस्थापिका तथा प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ नीलम सिंह का कहना है कि शिशु के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान की शुरुआत, शिशु और साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु के अनुपात को कम कराने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. जिसके द्वारा उच्च नवजात मृत्यु दर को जबरदस्त ढंग से घटाया जा सकता है और भारत में हर साल करीब दस लाख शिशुओं की जान बचाई जा सकती है . आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में केवल २३% माताएँ ही शिशु के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान करा पाती है . वहीं उत्तर प्रदेश में यह आँकड़ा सिर्फ़ .% है . जो कि भारतीय राज्यों में शिशु स्तन पान के अनुपात में २८ वें स्थान पर आता है. जो महिलायें शिशु को जन्म के पहले एक घंटे में स्तनपान शुरू करा देती हैं उनके पास शिशुओं को पहले ६ महीने तक सफलतापूर्वक और पूर्णतः स्तनपान कराने के व्यापक अवसर बढ़ जाते है. पहले महीनों तक पूर्णतः स्तनपान कराने से शिशु स्वस्थ रहता है और पूर्ण छमता के साथ उसके विकास को भी सुनिश्चित करता है ।
शिशु को सही समय और पर्याप्त मात्रा में माँ का दूध न मिल पाना भी कुपोषण की समस्या का एक प्रमुख कारण है। इस सम्बन्ध में वात्सल्य संस्था की संस्थापिका तथा प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ नीलम सिंह का कहना है कि शिशु के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान की शुरुआत, शिशु और 5 साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु के अनुपात को कम कराने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। जिसके द्वारा उच्च नवजात मृत्यु दर को जबरदस्त ढंग से घटाया जा सकता है और हर साल भारत में करीब दस लाख शिशुओं की जान बचाई जा सकती है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में केवल 23% माताएँ ही शिशु के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान करा पाती हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में यह आँकड़ा सिर्फ़ 7.2% है। जो कि भारतीय राज्यों में शिशु स्तन पान के अनुपात में 28 वें स्थान पर आता है. जो महिलायें शिशु को जन्म के पहले एक घंटे में स्तनपान शुरू करा देती हैं उनके पास शिशुओं को पहले ६ महीने तक सफलतापूर्वक और पूर्णतः स्तनपान कराने के व्यापक अवसर बढ़ जाते हैं। पहले 6 महीनों तक पूर्णतः स्तनपान कराने से शिशु स्वस्थ रहता है और पूर्ण क्षमता के साथ उसके विकास को भी सुनिश्चित करता है।
 
==सुधार==
==सुधार==
पोषण में सुधार लाने के लिया समुदाय स्तर पर पोषण से सम्बंधित व्यवहारों में परिवर्तन लाकर पोषण स्तर में सुधार लाया जा सकता है . उचित पोषण के कुछ प्रमुख व्यवहार को हमें ध्यान रखना चाहिए जैसे – शिशु को गरम रखना एवं किसी भी बाह्य संक्रमण से बचाना , ६ माह के ऊपर के बच्चों को घर में बना हुआ भोजन जैसे गली दाल , घुटा चावल, खिचड़ी, मसला आलू , केला इत्यादि आवश्यक रूप से देना चाहिए . गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को दिन में दो घंटे आराम तथा एक अतिरिक्त खुराक अवश्य लेना चाहिए .उम्र के अनुसार निर्धारित टीकाकरण अवश्य कराना चाहिए .माँ को पोष्टिक आहार लेते रहना चाहिए .खाने में ऐसे खाध्य पदार्थों का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें लोहे की मात्र ज्यादा से ज्यादा हो , इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि माँ और बच्चा दोनों ही हमेशा 'आयोडीन' युक्त नमक का ही प्रयोग करें ।
पोषण में सुधार लाने के लिया समुदाय स्तर पर पोषण से सम्बंधित व्यवहारों में परिवर्तन लाकर पोषण स्तर में सुधार लाया जा सकता है . उचित पोषण के कुछ प्रमुख व्यवहार को हमें ध्यान रखना चाहिए जैसे – शिशु को गरम रखना एवं किसी भी बाह्य संक्रमण से बचाना , ६ माह के ऊपर के बच्चों को घर में बना हुआ भोजन जैसे गली दाल , घुटा चावल, खिचड़ी, मसला आलू , केला इत्यादि आवश्यक रूप से देना चाहिए . गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को दिन में दो घंटे आराम तथा एक अतिरिक्त खुराक अवश्य लेना चाहिए .उम्र के अनुसार निर्धारित टीकाकरण अवश्य कराना चाहिए .माँ को पोष्टिक आहार लेते रहना चाहिए .खाने में ऐसे खाध्य पदार्थों का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें लोहे की मात्र ज्यादा से ज्यादा हो , इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि माँ और बच्चा दोनों ही हमेशा 'आयोडीन' युक्त नमक का ही प्रयोग करें ।

12:09, 26 जुलाई 2010 का अवतरण

नवजात शिशुओं के लिए माँ का दूध अमृत के समान है। माँ का दूध शिशुओं को कुपोषण व अतिसार जैसी बीमारियों से बचाता है। स्तनपान को बढ़ावा देकर शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है। स्तनपान के प्रति जन जागरूकता लाने के मक़सद से अगस्त माह के प्रथम सप्ताह को पूरे विश्व में स्तनपान सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। स्तनपान सप्ताह के दौरान माँ के दूध के महत्व की जानकारी दी जाती है। शिशुओं को जन्म से छ: माह तक केवल माँ का दूध पिलाने के लिए महिलाओं को इस सप्ताह के दौरान विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाता है ।

स्तनपान

स्‍तनपान शिशु के जन्‍म के पश्‍चात एक स्‍वाभाविक क्रिया है। हमारे देश में अपने शिशुओं का स्‍तनपान सभी माताऐं कराती हैं, परन्‍तु पहली बार मॉं बनने वाली माताओं को शुरू में स्‍तनपान कराने हेतु सहायता की आवश्‍यकता होती है। स्‍तनपान के बारे में सही ज्ञान के अभाव में जानकारी न होने के कारण बच्‍चों में कुपोषण का रोग एवं संक्रमण से दस्‍त हो जाते हैं।

स्तनपान क्यों जरुरी है

शिशु के लिए स्तनपान संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नए जन्मे हुए बच्चे में नहीं होती है। यह शक्ति मां के दूध से शिशु को हासिल होती है। मां के दूध में लेक्टोफोर्मिन नामक तत्व होता है, जो बच्चे की आंत में लौह तत्व को बांध लेता है और लौह तत्व के अभाव में शिशु की आंत में रोगाणु पनप नहीं पाते। मां के दूध से आए साधारण जीवाणु बच्चे की आंत में पनपते हैं और रोगाणुओं से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें पनपने नहीं देते। मां के दूध में रोगाणु नाशक तत्व होते हैं।

मां की आंत में वातावरण से पहुँचे रोगाणु, आंत में स्थित विशेष भाग के संपर्क में आते हैं, जो उन रोगाणु-विशेष के ख़िलाफ़ प्रतिरोधात्मक तत्व बनाते हैं। ये तत्व एक विशेष नलिका थोरासिक डक्ट से सीधे मां के स्तन तक पहुँचते हैं और दूध के द्वारा बच्चे के पेट में। बच्चा इस तरह मां का दूध पीकर सदा स्वस्थ रहता है।

मां का दूध जिन बच्चों को बचपन में पर्याप्त रूप से पीने को नहीं मिलता, उनमें बचपन में शुरू होने वाली डायबिटीज की बीमारी अधिक होती है। बुद्धि का विकास उन बच्चों में दूध पीने वाले बच्चों की अपेक्षाकृत कम होता है। अगर बच्चा समय से पूर्व जन्मा (प्रीमेच्योर) हो, तो उसे बड़ी आंत का घातक रोग, नेक्रोटाइजिंग एंटोरोकोलाइटिस हो सकता है। अगर गाय का दूध पीतल के बर्तन में उबाल कर दिया गया हो, तो उसे लीवर का रोग इंडियन चाइल्डहुड सिरोसिस हो सकता है। इसलिए मां का दूध छह-आठ महीने तक बच्चे के लिए श्रेष्ठ ही नहीं, जीवन रक्षक भी होता है।

विशेषताएँ

माँ के दूध की विशेषताओं के बारे में महिलाओं को खासतौर पर विश्व स्तनपान सप्ताह के दौरान बताया जा रहा है। कहा जाता है कि माँ के दूध में जरूरी पोषक तत्व, एंटी बाडीज, हार्मोन, प्रतिरोधक कारक और ऐसे आक्सीडेंट मौज़ूद होते हैं, जो नवजात शिशु के बेहतर विकास और स्वास्थ्य के लिए जरूरी होते हैं। शिशु के जन्म से छ: माह तक केवल माँ का दूध देने से बच्चे के साथ-साथ माँ के स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यदि किसी नवजात शिशु ने 6 माह तक सिर्फ माँ का दूध पिया है, तो वह उन बच्चों की तुलना में अधिक तन्दुरूस्त होगा, जिन बच्चों ने स्तनपान नहीं किया है। माँ का दूध छ: माह तक के शिशु को सभी आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति करता है मेडीकल दृष्टि से भी यह साबित हो चुका है प्रसव के बाद माँ का दूध जल्द से जल्द पिलाने से शिशु के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। स्तनों में दूध स्तनपान कराने से बनना शुरू हो जाता है। ब्रेस्ट केंसर की संभावना स्तनपान से भी कम हो जाती है। स्तनपान के इतने फ़ायदों के मद्देनजर न केवल माँ की बल्कि समुदाय व प्रत्येक परिवार की भी यह नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है, कि शिशु को वह जन्म के छ: माह बाद तक केवल माँ का दूध पिलाने के महत्व को समझें और इसे बढ़ावा देने में सहयोग करें। जन्म के बाद शिशु को केवल माँ का दूध ही दिया जाना चाहिए क्योकि यह सुरक्षित, स्वास्थ्यकर एवं शिशु के लिये हर समय उपलब्ध है। छ: माह तक शिशु को माँ का दूध आवश्यक समस्त तत्वों की पूर्ति करता है। यहाँ तक कि माँ का दूध ही शिशु को पानी की आवश्यकता की पूर्ति भी करता है ।  

मां का दूध सर्वोतम आहार

  • एकनिष्‍ठ स्‍तनपान का अर्थ जन्‍म से छः माह तक के बच्‍चे को मां के दूध के अलावा पानी का कोई ठोस या तरल आहार नहीं देना चाहिए।
  • मां के दूध में काफ़ी मात्रा में पानी होता है जिससे छः माह तक के बच्‍चे की पानी की आवश्‍यकताऐं गर्म और शुष्‍क मौसम में भी पूरी हो सकें।
  • मां के दूध के अलावा बच्‍चे को पानी देने से बच्‍चे का दूध पीना कम हो जाता है और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
  • प्रसव के आधे घण्‍टे के अन्‍दर-अन्‍दर बच्‍चे के मुँह में स्‍तन देना चाहिए।
  • ऑपरेशन से प्रसव कराए बच्‍चों को 4- 6 घण्‍टे के अन्‍दर जैसे ही माँ की स्थिति ठीक हो जाए, स्‍तन से लगा देना चाहिए।

प्रथम दूध (कोलोस्‍ट्रम)

  • प्रथम दूध(कोलोस्‍ट्रम) यानी वह गाढ़ा, पीला दूध जो शिशु जन्‍म से लेकर कुछ दिनों (4 से 5 दिन तक) में उत्‍पन्‍न होता है, उसमें विटामिन, एन्‍टीबॉडी, अन्‍य पोषक तत्‍व अधिक मात्रा में होते हैं।
  • यह संक्रमणों से बचाता है, प्रतिरक्षण करता है और रतौंधी जैसे रोगों से बचाता है।
  • स्‍तनपान के लिए कोई भी स्थिति, जो सुविधाजनक हो, अपनायी जा सकती है।
  • कम जन्‍म भार के और समय पूर्व उत्‍पन्‍न बच्‍चे भी स्‍तनपान कर सकते हैं।
  • यदि बच्‍चा स्‍तनपान नहीं कर पा रहा हो तो एक कप और चम्‍मच की सहायता से स्‍तन से निकला हुआ दूध पिलायें।
  • बोतल से दूध पीने वाले बच्‍चों को दस्‍त रोग होने का खतरा बहुत अधिक होता है अतः बच्‍चों को बोतल से दूध कभी नहीं पिलायें।
  • यदि बच्‍चा 6 माह का हो गया हो तो उसे मां के दूध के साथ- साथ अन्‍य पूरक आहर की भी आवश्‍यकता होती हैं।
  • इस स्थिति में स्‍तनपान के साथ-साथ अन्‍य घर में ही बनने वाले खाद्य प्रदार्थ जैसे मसली हुई दाल, उबला हुआ आलू, केला, दाल का पानी, आदि तरल एवं अर्द्व तरल ठोस खाद्य पदार्थ देने चाहिए, लेकिन स्‍तनपान 11/2 वर्ष तक कराते रहना चाहिए।
  • यदि बच्‍चा बीमार हो तो भी स्‍तनपान एवं पूरक आहार जारी रखना चाहिए स्‍तनपान एवं पूरक आहार से बच्‍चे के स्‍वास्‍थ्‍य में जल्‍दी सुधार होता है।

बच्‍चों के लिए आहार (6 से 12 महीनें)

  • बच्‍चों को स्‍तनपान के साथ-साथ अर्धठोस आहार, मिर्च मसाले रहित दलिया, खिचडी, चावल, दालें, दही या दूध में भिगोई रोटी मसल कर दें।
  • एक बार में एक ही प्रकार का भोजन शुरू करें।
  • भोजन की मात्रा व विविधता धीरे-धीरे बढ़ाए।
  • पकाए एवं मसले हुए आलू, सब्जियाँ, केला तथा अन्‍य फल बच्‍चे को दें।
  • बच्चे की शक्ति बढाने के लिए आहार में एक चम्‍मच तेल या घी मिलाएँ।
  • स्‍तनपान से पहले बच्‍चे को पूरक आहार खिलायें।

कुपोषण

हम विकास के लाख दावे कर लें किंतु इसके बावज़ूद भी विश्व में भारत एक अकेला ऐसा देश है जहाँ हर साल नवजात शिशुओं के जन्म दर और मृत्यु दर का अनुपात सबसे अधिक है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण सर्वेक्षण 2005-2006 के अनुसार देश के करीब 46% बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं। उत्तर प्रदेश में यह आँकड़ा लगभग 46% है। भारत में सबसे ज़्यादा कुपोषण से ग्रसित बच्चे मध्य प्रदेश में हैं। उत्तर प्रदेश में लगभग 40% बच्चे औसत दर्जे से कम भार के पैदा होते हैं। प्रत्येक साल 0 से 5 वर्ष तक की आयु वर्ग के बच्चों में होने वाली मृत्यु के अंतर्निहित कारणों में लगभग 60% मृत्यु कुपोषण के कारण होती है। कुपोषण की समस्या ग्रामीण छेत्रों में पिछड़ी जाति के लोगों, तथा अशिक्षित वर्ग के लोगों में अधिक व्याप्त है। कुपोषण की समस्या गर्भवती महिलाओं में व्यापक होने के कारण पैदा होने वाले बच्चे कम भार के होते हैं।

कारण

शिशु को सही समय और पर्याप्त मात्रा में माँ का दूध न मिल पाना भी कुपोषण की समस्या का एक प्रमुख कारण है। इस सम्बन्ध में वात्सल्य संस्था की संस्थापिका तथा प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ नीलम सिंह का कहना है कि शिशु के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान की शुरुआत, शिशु और 5 साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु के अनुपात को कम कराने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। जिसके द्वारा उच्च नवजात मृत्यु दर को जबरदस्त ढंग से घटाया जा सकता है और हर साल भारत में करीब दस लाख शिशुओं की जान बचाई जा सकती है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में केवल 23% माताएँ ही शिशु के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान करा पाती हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में यह आँकड़ा सिर्फ़ 7.2% है। जो कि भारतीय राज्यों में शिशु स्तन पान के अनुपात में 28 वें स्थान पर आता है. जो महिलायें शिशु को जन्म के पहले एक घंटे में स्तनपान शुरू करा देती हैं उनके पास शिशुओं को पहले ६ महीने तक सफलतापूर्वक और पूर्णतः स्तनपान कराने के व्यापक अवसर बढ़ जाते हैं। पहले 6 महीनों तक पूर्णतः स्तनपान कराने से शिशु स्वस्थ रहता है और पूर्ण क्षमता के साथ उसके विकास को भी सुनिश्चित करता है।

सुधार

पोषण में सुधार लाने के लिया समुदाय स्तर पर पोषण से सम्बंधित व्यवहारों में परिवर्तन लाकर पोषण स्तर में सुधार लाया जा सकता है . उचित पोषण के कुछ प्रमुख व्यवहार को हमें ध्यान रखना चाहिए जैसे – शिशु को गरम रखना एवं किसी भी बाह्य संक्रमण से बचाना , ६ माह के ऊपर के बच्चों को घर में बना हुआ भोजन जैसे गली दाल , घुटा चावल, खिचड़ी, मसला आलू , केला इत्यादि आवश्यक रूप से देना चाहिए . गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को दिन में दो घंटे आराम तथा एक अतिरिक्त खुराक अवश्य लेना चाहिए .उम्र के अनुसार निर्धारित टीकाकरण अवश्य कराना चाहिए .माँ को पोष्टिक आहार लेते रहना चाहिए .खाने में ऐसे खाध्य पदार्थों का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें लोहे की मात्र ज्यादा से ज्यादा हो , इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि माँ और बच्चा दोनों ही हमेशा 'आयोडीन' युक्त नमक का ही प्रयोग करें । मातृत्व एवं शिशु विकास तथा उनके उचित पोषण को लेकर ग्रामीण स्तर पर लोगों को जागरूक करना होगा। जिसके लिया हमें डॉक्टर , नर्स , व्यक्तिगत महिला स्वास्थय कर्मी ,आंगनबाडी कार्यकर्तियों, आशा कार्यकर्ताओं,दाइयों इत्यादि को पर्याप्त प्रोत्साहन और प्रशिक्षण देना होगा। कुपोषण की समस्या पर नियंत्रण प्रभावकारी रूप से तभी पाया जा सकता है जब लोगो में इसके प्रति जागरूकता हो. इस सम्बन्ध में केरल का उदाहरण हमारे सामने है जिसने कुपोषण की समस्या पर प्रभावकारी नियंत्रण पाया है। प्रदेश में जहाँ कहीं पर भी सरकारी और गैरसरकारी संगठनों द्वारा जो भी कार्यक्रम कुपोषण की समस्या को दूर कराने के लिया चलाया जा रहा है उन कार्यक्रमो को वहां के स्थानीय लोगो के द्वारा ही मूल्यांकन करवाना चाहिए. लेकिन स्थानीय लोगों द्वारा किसी भी कार्यक्रम का मूल्यांकन तभी किया जा सकता है जब उन लोगों को चलाये जा रहे कार्यक्रमो के बारे में पर्याप्त जानकारी हो . इसके लिए स्थानीय लोगो को, जिनके लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है, इसके प्रति जागरूकता पैदा करना अति आवश्यक है तभी वे अपने अधिकारों के लिए आगे आयेंगे .

स्तनपान के फ़ायदे

स्तनपान के अनेक फ़ायदे हैं| तमाम रिसर्च यही कहते हैं कि नवजात शिशु के लिए मां के दूध से बेहतर और कोई भी दूध नहीं होता है| इससे दोनों मां और बच्चे को अनेक लाभ पहुंचता है| इसके टक्कर में न तो कोई जानवर (गाय, भैंस इत्यादि) का दूध है और न ही कोई कृत्रिम (artificial) दूध है| स्तनपान के अनेक फ़ायदे हैं-

  • मां का दूध सुपाच्य होता है जिससे यह शिशु को पेट सम्बन्धी गड़बड़ियों से बचाती है.
  • स्तनपान शिशु की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक होता है।
  • स्तनपान से दमा और कान सम्बन्धी बीमारियाँ नियंत्रित रहती है,क्योंकि मां का दूध शिशु की नाक और गले में प्रतिरोधी त्वचा बना देता है।
  • स्तनपान से जीवन के बाद के चरणों में उदर व श्वसन तंत्र के रोग,रक्त कैंसर, डाईबितिज तथा उच्च रक्तचाप का खतरा कम हो जाता है।
  • स्तनपान से शिशु की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है क्योंकि स्तनपान करानेवाली मां और उसके शिशु के बीच भावनात्मक रिश्ता प्रगाढ़ होता है।
  • स्तनपान कराने वाली माताओं को स्तन या गर्भाशय के कैंसर का खतरा कम होता है।
  • शोधों से सिद्ध हुआ है कि लम्बे तक स्तनपान करने वाले बच्चे बाद के जीवन में उतने ही अधिक समय तक मोटापे से बचे रह सकते हैं.
  • माँ के दूध में मिलने वाले तत्व मेटाबोलिज्म बेहतर करते है.
  • प्रेगनेंसी (Pregnency ) के समय या स्तनपान के दौरान माँ का जो भी खान-पान रहता है वह बाद में बच्चे के लिए भी पसंदीदा बन जाता है.
  • माँ के दूध में पाए जाने वाले डी.एच.ए.(D.H.A.) व ए.ए.(A.A.) फैटी एसिड मस्तिस्क की कोशिकाओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
  • स्तनपान से बच्चे का आई. क्यू. अच्छी तरह विकसित होता है.

कृत्रिम दूध और मां के दूध में अंतर

कोई भी कृत्रिम दूध, मां के दूध के गुणवत्ता, का अनुकरण करने की कोशिश कर सकता है, लेकिन सही माने में यह अनुकरण हो ही नहीं सकता है| यह इस लिए कि मां के दूध में अनेक गुणधर्म हैं, जिनका अनुकरण करना नामुमकिन है | कृत्रिम दूध में मां के दूध के जैसा सामग्री "कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फेट और विटामिन इत्यादि" डाल दिए जाते हैं, किंतु इनकी मात्रा नियत रहती है| दूसरे तरफ मां के दूध में इनकी मात्रा बदलती रहती है| कभी मां का दूध गाढा रहता है तो कभी पतला, कभी दूध कम होता है तो कभी अधिक, जन्म के तुरंत बाद और जन्म के कुछ हफ्तों बाद या महीनों बाद बदला रहता है| इससे दूध में उपस्थित सामग्री का मात्रा बदलते रहती है, और यह प्रकृति का बनाया गया नियम है कि मां का दूध में बच्चे की उम्र के साथ बदलाव (adjust) होते रहते हैं| उपर लिखे भौतिक गुणवत्ता के अलावे, मां के दूध में अनेक जैविक गुण होते हैं, जो कि कृत्रिम दूध में नहीं होते हैं| उदाहरण के लिए मां के दूध देने से मां-बच्चे के बीच लगाव, मां से बच्चे के रोग से बचने के लिए प्रतिरक्षा मिलना और अन्य। इसके बावजूद जिन मां को अपना दूध नहीं हो पाता है, उनके लिए फ़िर यही जानवर या कृत्रिम दूध का सहारा होता है| इसके बारे में अन्य जगह जिक्र किया गया है|

मां के दूध से बच्चे को लाभ

  • खाना का प्राप्ति
  • बच्चे का पूर्ण विकास
  • प्रतिरक्षा या इम्युनिटी (immunity) में बढाव
  • बुद्धि में विकास
  • संक्रमित बीमारियों (infections) से बचाव, जैसे कि दस्त और चर्म रोग
  • एलर्जी (allergy) से बचाव
  • मोटापा से बचाव
  • मां-बच्चे के बीच लगाव ‌‍

मां को लाभ

  • मां को बच्चे से लगाव
  • संतुष्टि
  • बोतल के दूध को बनाने और साफ करने के झंझट से बचना
  • फ्री- पैसा बचाना
  • सदा उपलब्ध - दिन में या रात में, घर में या बाहर में
  • अपने उपर भरोसा
  • माहवारी को रोकना, जो कि तुरंत फ़िर गर्भ होने को रोक सकता है
  • अपने बच्चे को संक्रमित बीमारियों से बचाना जो कि गंदे बोतल या उसके निप्पल से हो सकता है
  • स्वस्थ बच्चा

स्तनपान सर्वोत्तम उपलब्ध भोजन

बच्चे के लिए स्तनपान सर्वोत्तम उपलब्ध भोजन है और बच्चे की सभी जरूरतों को पूरा करता है। स्तनपान करने वाले बच्चे सर्वाधिक संतुलित आहार प्राप्त कर लेते हैं और उन्हें संक्रमण की संभावना कम होती है। केवल माँ के दूध में ही प्रोटीन, आवश्यक वसायुक्त लवण और बच्चे के मस्तिष्क के विकास के लिए आवश्यक अन्य जरूरी पदार्थ मिलते हैं। छः महीने तक केवल स्तनपान जारी रखना चाहिए। प्रसव पूर्व क्लिनिकों में आने वाली गर्भवती महिलाओं और परिवार के अन्य सदस्यों को स्तनपान के लाभों के बारे में बतलाया जाना चाहिए, ताकि यदि कोई महिला घर में प्रसव करना चाहे तो भी उसे जानकारी न होने के कारण कोई भी बच्चा स्तनपान के लाभों से वंचित न रहे।

केवल स्तनपान कराने से ही बहुत सी जिन्दगियों को कुपोषण और संक्रमण रोककर बचाया जा सकता है। यद्यपि स्तनपान कराने की दर अधिक है, फिर भी दूध पिलाने से पूर्व अन्य भोजन देने, स्तनपान में विलम्ब करने, कोलोस्ट्रम को फेंक देने और भोजन के बीच में बच्चे को पानी पिलाने जैसी संभावित हानिकारक आदतें अभी भी आम बात है। महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद अच्छी तरह भोजन करना चाहिए और आराम करना चाहिए। प्रायः सभी महिलाएँ जिनमें कुपोषण वाली महिलाएँ भी शामिल हैं, अच्छी तरह स्तनपान करा सकती हैं।

बच्चे को प्रसव के आधे घंटे के अंदर स्तनपान कराया जाना चाहिए। सीजेरियन सेक्शन से जन्म लेने वाले बच्चे को माँ की हालत ठीक होते ही 4 से 6 घंटे में स्तनपान कराया जाना चाहिए। जन्म के बाद पहले कुछ दिनों तक पीले गाढ़े दूध कोलेस्ट्रॉम में प्रचुर मात्रा में विटामिन, एंटीवॉडीज और सूक्ष्मपोषक तत्व होते हैं। इससे संक्रमण का प्राकृतिक रूप से बचाव होता है और शिशु का एनीमिया, केराटोमेलासिया जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से होने वाली रोगों से भी बचाव होता है। स्तनपान कराने वाले बच्चे को 6 माह की आयु तक पानी की कोई आवश्यकता नहीं होती। स्तन के दूध में बच्चों की जरूरत को पूरा करने के लिए 4 माह तक पर्याप्त पानी होता है।

बच्चों को भूख लगने पर ही खिलाया जाना चाहिए। ऐसा करने से अधिक दूध बनता है और स्तनों में अधिक दूध होने से दर्द भी नहीं होता है। कम वजन वाले और समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे भी स्तनपान कर सकते हैं। बोतल और पेसीफायर का कभी भी इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। यदि बच्चा अस्वस्थ है, तब भी स्तनपान कराना जारी रखना चाहिए ताकि बच्चे को पर्याप्त पोषण मिलता रहे।

कुपोषणग्रस्त बच्चे को संक्रमण होने का अधिक खतरा होता है। स्तनपान करने से बच्चे को आराम भी मिलेगा। दो वर्ष से कम आयु का बच्चा अपनी माँ पर पूरी तरह निर्भर होता है। यदि वह फिर से गर्भवती हो जाती है तो वह पर्याप्त देखभाल नहीं कर पाएगी। यदि महिला दो वर्ष के अंदर गर्भवती हो जाती है तो उसमें भी आयरन और अनिवार्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो जाएगी।