"सिंहासन बत्तीसी सत्ताईस": अवतरणों में अंतर
('एक बार विक्रमादित्य से किसी ने कहा कि इंद्र के बराबर ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
अगले दिन राजा उसकी ओर गया तो मनमोहनी नाम की अट्ठाईसवीं पुतली ने उसे रोककर यह कहानी सुनायी: | अगले दिन राजा उसकी ओर गया तो मनमोहनी नाम की अट्ठाईसवीं पुतली ने उसे रोककर यह कहानी सुनायी: | ||
{{सिंहासन बत्तीसी}} | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | {{संदर्भ ग्रंथ}} |
18:03, 24 फ़रवरी 2013 का अवतरण
एक बार विक्रमादित्य से किसी ने कहा कि इंद्र के बराबर कोई राजा नहीं है। यह सुनकर विक्रमादित्य ने अपने वीरों को बुलाया और उन्हें साथ लेकर इंद्रपुरी पहुंचा। इंद्र ने उसका स्वागत किया और आने का कारण पूछा।
राजा ने कहा: मैं आपके दर्शन करने आया हूं।
इंद्र ने प्रसन्न होकर उसे अपना मुकुट तथा विमान दिया और कहा: जो तुम्हारे सिंहासन को बुरी निगाह से देखेगा, वह अंधा हो जायगा।
राजा विदा होकर अपने नगर में आया। .......
राजा इन्द्रपुरी पहुंचा।
पुतली कहानी सुना रही थी कि इतने में राजा भोज सिंहासन पर पैर रखकर खड़ा हो गया। खड़े होते ही वह अंधा हो गया और उसके पैर वहीं चिपक गये। उसने पैर हटाने चाहे, पर हटे ही नहीं। इस पर सब पुतलियां खिलखिलाकर हंस पड़ीं। राजा भोज बहुत पछताया।
उसने पुतलियों से पूछा: मुझे बताओ, अब मैं क्या करुं?
उन्होंने कहा: विक्रमादित्य का नाम लो। तब भला होगा।
राजा भोज ने जैसे ही विक्रमादित्य का नाम लिया कि उसे दीखने लगा और पैर भी उखड़ गये।
पुतली बोली; हे राजन्! इसलिए से मैं कहती हूं कि तुम इस सिंहासन पर मत बैठो, नहीं तो मुसीबत में पड़ोगे।
अगले दिन राजा उसकी ओर गया तो मनमोहनी नाम की अट्ठाईसवीं पुतली ने उसे रोककर यह कहानी सुनायी:
|
|
|
|
|