|
|
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
| {| class="bharattable-green" width="100%"
| |
| |-
| |
| | valign="top"|
| |
| {| width="100%"
| |
| |
| |
| <quiz display=simple>
| |
| {[[भारत]] के स्वदेशी आंदोलन के दौरान लिखा गया गीत "आमार सोनार बाँसला" ने [[बांग्लादेश]] को उसके स्वतंत्रता संग्राम में प्रोत्साहित किया और उसे बांग्लादेश ने राष्ट्रीय गान के रूप में अपनाया। यह गीत किसने लिखा था?
| |
| |type="()"}
| |
| -रजनीकांत सेन
| |
| -द्विजेन्द्रलाल रॉय
| |
| -मुकुन्द दास
| |
| +[[रवीन्द्रनाथ टैगोर]]
| |
| ||[[चित्र:Rabindranath-Tagore.gif|right|100px|रवीन्द्रनाथ ठाकुर]]रवीन्द्रनाथ ठाकुर एक बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे। उन्हें [[1913]] में [[साहित्य]] के लिए 'नोबेल पुरस्कार' प्रदान किया गया था। दो-दो राष्ट्रगानों के रचयिता [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] पारंपरिक ढांचे के लेखक नहीं थे। वे एकमात्र ऐसे [[कवि]] थे, जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। [[भारत]] का राष्ट्रगान- "[[जन गण मन]]" और [[बांग्लादेश]] का राष्ट्रीय गान "आमार सोनार बांग्ला" गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। वे वैश्विक समानता और एकांतिकता के पक्षधर थे। [[ब्रह्मसमाज|ब्रह्मसमाजी]] होने के बावज़ूद उनका दर्शन एक अकेले व्यक्ति को समर्पित रहा। चाहे उनकी ज़्यादातर रचनाऐं [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] में लिखी हुई हों।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रवीन्द्रनाथ टैगोर]]
| |
|
| |
|
| {निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही सुमेलित नहीं है?
| |
| |type="()"}
| |
| +[[गुलबदन बेगम]] - [[हुमायूँनामा]]
| |
| -ख्वान्द मीर - क़ानून-ए-हुमायूँनी
| |
| -[[जियाउद्दीन बरनी]] - [[तारीख-ए-फिरोजशाही]]
| |
| -ख्वाजा कला - तज्किर-ए-हुमायूँ एवं अकबर
| |
| ||[[गुलबदन बेगम]] प्रथम [[मुग़ल]] [[बाबर|बादशाह बाबर]] की पुत्री और [[हुमायूँ]] की बहन थी। उसका जन्म 1523 ई. में तथा मृत्यु 1603 ई. में हुई। गुलबदन बेगम बहुत ही प्रतिभाशाली थी। उसने अपने भाई हुमायूँ के जमाने का विवरण एकत्र कर "हुमायूँनामा" नामक पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में हुमायूँ को बहुत ही विनम्र और नेक स्वभाव का बताया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुलबदन बेगम]]
| |
|
| |
| {'[[मत्तविलास प्रहसन]]' नामक नाटक के रचयिता कौन थे?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[हर्षवर्धन|हर्ष]]
| |
| -[[वीर राजेन्द्र]]
| |
| -[[जयदेव]]
| |
| +[[महेन्द्र वर्मन प्रथम|महेन्द्र वर्मन]]
| |
| ||महेन्द्र वर्मन (600-630 ई.) [[पल्लव वंश|पल्लव]] सम्राट [[सिंह विष्णु]] का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। पल्लवराज महेन्द्र वर्मन के साथ [[पुलकेशी द्वितीय]] के अनेक युद्ध हुए, जिनमें पुलकेशी द्वितीय विजयी हुआ। पुलकेशी द्वितीय से परास्त हो जाने पर भी [[महेन्द्र वर्मन प्रथम|महेन्द्र वर्मन]] [[कांची]] में अपनी स्वतंत्र सत्ता क़ायम रखने में सफल रहा। 'कसक्कुडी' ताम्रपत्रों से ज्ञात होता है कि किसी युद्ध में महेन्द्र वर्मन ने भी पुलकेशी को परास्त किया था। उसने 'मत्तविलास प्रहसन' तथा 'भगवदज्जुकीयम' जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की थी। 'मत्तविलास प्रहसन' एक हास्य ग्रंथ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महेन्द्र वर्मन प्रथम|महेन्द्र वर्मन]]
| |
|
| |
| {[[भारत]] में चिश्ती सूफ़ियों ने 'विलायत' नामक संस्था विकसित की, जिसका उद्देश्य निम्नलिखित में से किस एक से था?
| |
| |type="()"}
| |
| +राज्य नियंत्रण से मुक्त आध्यात्मिक क्षेत्र
| |
| -सूफ़ियों का आवास
| |
| -खानकाह अनुशासन
| |
| -सूफ़ियों का अंतिम विश्राम स्थल
| |
|
| |
| {'[[डांडी यात्रा]]' के साथ निम्नलिखित में से क्या प्रारम्भ हुआ?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[होमरूल लीग आंदोलन]]
| |
| -[[असहयोग आंदोलन]]
| |
| +[[सविनय अवज्ञा आंदोलन]]
| |
| -[[भारत छोड़ो आंदोलन]]
| |
| ||[[चित्र:Statue-of-Gandhiji-2.jpg|right|100px|महात्मा गांधी]]सन [[1929]] ई. तक [[भारत]] को [[ब्रिटेन]] के इरादों पर शक़ होने लगा कि वह '[[औपनिवेशिक स्वराज्य]]' प्रदान करने की अपनी घोषणा पर अमल करेगा कि नहीं। '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' ने लाहौर अधिवेशन- 1929 ई. में घोषणा कर दी कि उसका लक्ष्य [[भारत]] के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना है। [[महात्मा गांधी]] ने अपनी इस माँग पर ज़ोर देने के लिए [[6 अप्रैल]], [[1930]] ई. को '[[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]]' छेड़ा। क़ानूनों को जानबूझ कर तोड़ने की इस नीति का कार्यान्वयन औपचारिक रूप से उस समय हुआ, जब महात्मा गांधी ने अपने कुछ चुने हुए अनुयायियों के साथ '[[साबरमती आश्रम]]' से समुद्र तट पर स्थित 'डांडी' नामक स्थान तक कूच किया और वहाँ पर लागू नमक क़ानून को तोड़ा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सविनय अवज्ञा आंदोलन]]
| |
|
| |
| {निम्नलिखित में से कौन-सी प्रथा चतुष्टय वेदोत्तर काल में प्रचलित हुई?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[धर्म]], अर्थ, काम, मोक्ष
| |
| +[[ब्राह्मण]], [[क्षत्रिय]], [[वैश्य]], [[शूद्र]]
| |
| -[[ब्रह्मचर्य]], गृहस्थाश्रम, [[वानप्रस्थ संस्कार|वानप्रस्थ]], संन्यास
| |
| -[[इन्द्र]], [[सूर्य देव|सूर्य]], [[रुद्र|रूद्र]], मरूत्
| |
|
| |
| {'[[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]]' के दौरान '[[रौलेट एक्ट]]' ने किस कारण से सार्वजनिक रोष उत्पन्न किया?
| |
| |type="()"}
| |
| -इसने [[धर्म]] की स्वतंत्रता को कम किया।
| |
| -इसने भारतीय परमपरागत शिक्षा को दबाया।
| |
| +इसने लोगों को बिना मुकदमा चलाए जेल भेजने के लिए अधिकृत किया।
| |
| -इसने श्रमिक संघ (ट्रेड यूनियन) की गतिविधियों को नियंत्रित किया।
| |
| ||'[[रौलेट एक्ट]]' [[8 मार्च]], [[1919]] ई. को लागू किया गया था। केन्द्रीय विधानमण्डल में [[फ़रवरी]], [[1919]] ई. में दो विधेयक लाये गये थे। पारित होने के उपरान्त इन विधेयकों को 'रौलेट एक्ट' या 'काला क़ानून' के नाम से जाना गया। भारतीय नेताओं द्वारा कड़ाई से विरोध करने के बाद भी रौलेट एक्ट विधेयक लागू कर दिया गया। इस विधेयक में की गयी व्यवस्था के अनुसार मजिस्ट्रेटों के पास यह अधिकार सुरक्षित था कि वह किसी भी संदेहास्पद स्थिति वाले व्यक्ति को गिरफ्तार करके उस पर मुकदमा चला सकता था। इस प्रकार अपने इस अधिकार के साथ [[अंग्रेज़]] सरकार किसी भी निर्दोष व्यक्ति को दण्डित कर सकती थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रौलेट एक्ट]]
| |
|
| |
| {'अभिनव भारत' नामक संस्था किसके द्वारा संगठित की गयी थी?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[गोपाल कृष्ण गोखले]]
| |
| -[[लाला हरदयाल]]
| |
| -श्यामजी कृष्ण शर्मा
| |
| +[[विनायक दामोदर सावरकर]]
| |
| ||[[चित्र:Vinayak-Damodar-Savarkar.jpg|right|80px|वी. डी. सावरकर]]'विनायक दामोदर सावरकर' न सिर्फ़ एक क्रांतिकारी थे, बल्कि एक भाषाविद, बुद्धिवादी, [[कवि]], राजनेता, समर्पित समाज सुधारक, इतिहासकार और ओजस्वी वक्ता भी थे। उनके इन्हीं गुणों ने उन्हें महानतम लोगों की श्रेणी में उच्च पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया था। [[विनायक दामोदर सावरकर]] साधारणतया 'वीर सावरकर' के नाम से विख्यात थे। [[1940]] ई. में वीर सावरकर ने [[पूना]] में ‘अभिनव भारती’ नामक एक ऐसे क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आवश्यकता पड़ने पर बल-प्रयोग द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करना था। आज़ादी के वास्ते काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी भी बनाई थी, जो 'मित्र मेला' के नाम से जानी गई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विनायक दामोदर सावरकर]]
| |
|
| |
| {'सीरी' नामक नगर की स्थापना किसने की थी?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[कैकुबाद]]
| |
| -[[जलालुद्दीन ख़िलजी]]
| |
| +[[अलाउद्दीन ख़िलजी]]
| |
| -[[ग़यासुद्दीन ख़िलजी]]
| |
| ||अलाउद्दीन ख़िलजी '[[ख़िलजी वंश]]' के संस्थापक [[जलालुद्दीन ख़िलजी]] का भतीजा और दामाद था। सुल्तान बनने से पहले उसे [[इलाहाबाद]] के निकट [[कड़ा]] की जागीर दी गयी थी। उसके बचपन का नाम "अली गुरशास्प" था। [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] के समय में हुए मंगोलों के आक्रमण का उद्देश्य [[भारत]] की विजय और प्रतिशोध की भावना थी। 1306 ई. में [[मंगोल]] सेना का नेतृत्व करने वाला इकबालमन्द, [[ग़यासुद्दीन तुग़लक़]] द्वारा [[रावी नदी]] के किनारे परास्त किया गया। अलाउद्दीन ख़िलजी ने उसे अपना सीमा रक्षक नियुक्त किया। अलाउद्दीन ने अपने शासन काल में मंगोलों के सबसे अधिक एवं भयानक आक्रमण का सामना करते हुए सफलता प्राप्त की। मंगोल आक्रमण से सुरक्षा के लिए उसने 1304 ई. में 'सीरी' को अपनी राजधानी बनाया तथा क़िलेबन्दी की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अलाउद्दीन ख़िलजी]]
| |
|
| |
| {निम्नलिखित में से किसने [[भारत]] में प्रथम [[अंग्रेज़ी भाषा]] का [[समाचार पत्र]] प्रकाशित किया?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[रवीन्द्रनाथ टैगोर]]
| |
| -गंगाधर भट्टाचार्य
| |
| +मृत्युंजय विद्यालंकार
| |
| -[[राजा राममोहन राय]]
| |
|
| |
| {किसकी पदावधि में महिलाओं तथा बच्चों की कार्यावधि के घंटों को सीमित करने तथा स्थानीय शासन को आवश्यक नियम बनाने और प्राधिकृत करने के लिए प्रथम फ़ैक्टरी अधिनियम का अभिग्रहण किया गया?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[लॉर्ड लिटन]]
| |
| -[[लॉर्ड विलियम बैंटिक|लॉर्ड बैंटिक]]
| |
| +[[लॉर्ड रिपन]]
| |
| -[[लॉर्ड कैनिंग]]
| |
| ||[[चित्र:Lord-Ripon.jpg|right|100px|लॉर्ड रिपन]]लॉर्ड रिपन का पूरा नाम 'जॉर्ज फ़्रेडरिक सैमुअल राबिन्सन' था। वह [[1880]] ई. में [[लॉर्ड लिटन प्रथम]] के बाद [[भारत]] का [[वायसराय]] बनकर आया था। अपने से पहले आये सभी वायसरायों की तुलना में यह अधिक उदार था। अपने सुधार कार्यों के अन्तर्गत [[लॉर्ड रिपन]] ने सर्वप्रथम [[समाचार पत्र|समाचार पत्रों]] की स्वतन्त्रता को बहाल करते हुए [[1882]] ई. में '[[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]]' को समाप्त कर दिया। प्रथम फ़ैक्ट्री अधिनियम-1881 ई. रिपन द्वारा ही लाया गया। अधिनियम के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई कि जिस कारखाने में सौ से अधिक श्रमिक कार्य करते हैं, वहाँ पर 7 वर्ष से कम आयु के बच्चे काम नहीं कर सकेंगे। 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए काम करने के लिए घण्टे तय कर दिये गये और इस क़ानून के पालन के लिए एक निरीक्षक को नियुक्त कर दिया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लॉर्ड रिपन]]
| |
|
| |
| {[[भारत]] में पश्चिमी शिक्षा पद्धति का मैग्नाकार्टा निम्नलिखित में से कौन सा था?
| |
| |type="()"}
| |
| -पब्लिक इंस्ट्रक्शन कमिटी, 1823 की रिपोर्ट
| |
| -1833 का [[चार्टर एक्ट]]
| |
| +[[वुड का घोषणा पत्र|सर चार्ल्स वुड का घोषणा पत्र]]
| |
| -[[हंटर शिक्षा आयोग|हंटर कमीशन की रिपोर्ट]]
| |
| ||वुड का घोषणा पत्र 'बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल' के प्रधान सर चार्ल्स वुड द्वारा [[19 जुलाई]], 1854 को जारी किया गया था। इस घोषणा पत्र में भारतीय शिक्षा पर एक व्यापक योजना प्रस्तुत की गई थी, जिसे 'वुड का डिस्पैच' कहा गया। 100 अनुच्छेदों वाले इस प्रस्ताव में शिक्षा के उद्देश्य, माध्यम, सुधारों आदि पर विचार किया गया था। '[[वुड घोषणा पत्र]]' को शिक्षा का 'मैग्नाकार्टा' भी कहा जाता है। प्रस्ताव में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार को सरकार ने अपना उद्देश्य बनाया। उच्च शिक्षा को [[अंग्रेज़ी भाषा]] के माध्यम से दिये जाने पर बल दिया गया, परन्तु साथ ही देशी भाषा के विकास को भी महत्व दिया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वुड का घोषणा पत्र]]
| |
|
| |
| {मूर्ति पूजा का आरम्भ कब से माना जाता है?
| |
| |type="()"}
| |
| +पूर्व आर्य काल
| |
| -[[उत्तर वैदिक काल]]
| |
| -[[मौर्य काल]]
| |
| -[[कुषाण काल]]
| |
|
| |
| {[[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] ने [[गोवा]] पर अधिकार किस वर्ष किया?
| |
| |type="()"}
| |
| -1500 ई.
| |
| -1508 ई.
| |
| +1510 ई.
| |
| -1512 ई.
| |
| ||[[चित्र:Anjuna-Beach-Goa.jpg|right|100px|अंजुना तट, गोवा]]'पुर्तग़ाली' [[पुर्तग़ाल]] देश के निवासियों को कहा जाता है। [[वास्कोडिगामा]] द्वारा की गई [[भारत]] यात्राओं ने पश्चिमी [[यूरोप]] से 'कैप ऑफ़ गुड होप' होकर पूर्व के लिए समुद्री मार्ग खोल दिए थे। जिस स्थान का नाम पुर्तग़ालियों ने [[गोवा]] रखा, वह एक छोटा-सा समुद्र तटीय शहर 'गोअ-वेल्हा' था। कालान्तर में उस क्षेत्र को गोवा कहा जाने लगा, जिस पर [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] ने क़ब्ज़ा किया था। पुर्तग़ाली [[अल्बुकर्क]] ने [[बीजापुर]] से गोआ 1510 में छीनकर अपनी नयी नीति का सूत्रपात किया। गोवा का टापू बहुत अच्छा प्राकृतिक बंदरगाह और क़िला था। इसका सामरिक महत्व भी था, यहाँ से पुर्तग़ाली मालाबार के साथ व्यापार भी सम्भाल सकते थे और दक्षिण के शासकों की नीतियों पर नज़र भी रख सकते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पुर्तग़ाली]]
| |
|
| |
| {[[विजयनगर साम्राज्य]] में पुलिस का वेतन निम्नलिखित किस एक में से दिया जाता था?
| |
| |type="()"}
| |
| +वेश्यालयों से होने वाली आय से
| |
| -सामान पर लगने वाले कर से
| |
| -भू-राजस्व से
| |
| -मदिरा की दुकानों से होने वाली प्राप्ति से
| |
| ||[[चित्र:Hampi-3.jpg|right|120px|हम्पी के अवशेष]]प्राचीन समय में [[विजयनगर साम्राज्य]] की राजधानी [[हम्पी]] थी। शासन व्यवस्था के अंतर्गत राज्य द्वारा वसूल किये जाने वाले विविध करों के नाम थे- 'कदमाई', 'मगमाइ', 'कनिक्कई', 'कत्तनम', 'कणम', 'वरम', 'भोगम', 'वारिपत्तम', 'इराई' और 'कत्तायम'। राज्य की सेना में पैदल, अश्वारोही, [[हाथी]] तथा ऊँट शामिल थे। सैन्य विभाग को 'कन्दाचार' कहा जाता था। इस विभाग का उच्च अधिकारी 'दण्डनायक' या 'सेनापति' होता था। प्रधान न्यायधीश प्राय: राजा ही होता था। भयंकर अपराध के लिए शरीर के अंग विच्छेदन का दंड दिया जाता था। प्रान्तों में प्रान्तपति तथा गाँवों में 'आयंगार' न्याय करता था। पुलिस विभाग का ख़र्च वेश्याओं पर लगाये गये कर से चलता था। न्याय व्यवस्था [[हिन्दू धर्म]] पर आधारित थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विजयनगर साम्राज्य]]
| |
| </quiz>
| |
| |}
| |
| |}
| |
| __NOTOC__
| |