"साँचा:साप्ताहिक सम्पादकीय": अवतरणों में अंतर
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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय | |+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 26 मई 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font> | ||
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[[भारतकोश सम्पादकीय | [[भारतकोश सम्पादकीय 26 मई 2012|कुछ तो कह जाते]] | ||
सीधी सी बात है अगर आपके पास कुछ 'कहने' को है तो आप बोल सकते हैं। यदि कुछ कहने को नहीं है तो बोलना तो क्या मंच पर खड़ा होना भी मुश्किल है। दुनियाँ में तमाम तरह के फ़ोबिया (डर) हैं जिनमें से सबसे बड़ा फ़ोबिया भाषण देना है, इसे ग्लोसोफ़ोबिया (Glossophobia) कहते हैं। यूनानी (ग्रीक) भाषा में जीभ को 'ग्लोसा' कहते हैं इसलिए इसका नाम भी ग्लोसोफ़ोबिया है। [[भारतकोश सम्पादकीय 26 मई 2012|पूरा पढ़ें]] | |||
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| [[भारतकोश सम्पादकीय | | [[भारतकोश सम्पादकीय 19 मई 2012|दोस्ती-दुश्मनी और मान-अपमान]] · | ||
| [[भारतकोश सम्पादकीय | | [[भारतकोश सम्पादकीय 12 मई 2012|काम की खुन्दक]] | ||
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15:50, 26 मई 2012 का अवतरण
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