"पटोला": अवतरणों में अंतर
शिल्पी गोयल (वार्ता | योगदान) ('{{पुनरीक्षण}}पटोला गुजरात मूल की एक प्रकार की रेशमी ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{पुनरीक्षण}}पटोला [[गुजरात]] मूल की एक प्रकार की रेशमी साड़ी है जिसे बुनाई के पहले पूर्व निर्धारित नमूने के अनुसार ताने और बाने को गांठकर [[रंग]] दिया जाता है। यह वधु के मामा द्वारा उपहार में दी जाने वाली दुल्हन की साज-सज्जा सामग्री का एक भाग है। यद्यपि गुजरात में मिलने वाली पुरानी पटोला 18वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों से पहले की नहीं है, पर इसका [[भारत का इतिहास|इतिहास]] निश्चित रूप से 12वीं शताब्दी तक का है। | {{पुनरीक्षण}} | ||
'''पटोला''' [[गुजरात]] मूल की एक प्रकार की रेशमी साड़ी है जिसे बुनाई के पहले पूर्व निर्धारित नमूने के अनुसार ताने और बाने को गांठकर [[रंग]] दिया जाता है। यह वधु के मामा द्वारा उपहार में दी जाने वाली दुल्हन की साज-सज्जा सामग्री का एक भाग है। यद्यपि गुजरात में मिलने वाली पुरानी पटोला 18वीं शताब्दी के अंतिम [[वर्ष|वर्षों]] से पहले की नहीं है, पर इसका [[भारत का इतिहास|इतिहास]] निश्चित रूप से 12वीं शताब्दी तक का है। | |||
=====बुनाई की तकनीक===== | =====बुनाई की तकनीक===== | ||
पटोला में नर्तकी, [[हाथी]] , [[तोता]], पीपल की पत्ती, पुष्पीय रचना, जलीय पौधे, टोकरी सज्जा की आकृतियाँ, दुहरी बाहरी रेखाओं के साथ जालीदार चित्र (पूरी साड़ी पर सितारे की आकृतियां) तथा पुष्प गहरे [[लाल रंग]] की पृष्ठभूमि पर बनाए जाते हैं। इस कार्य में लगने वाली अत्यधिक मेहनत तथा उत्पादन की ऊंची लागत से इसकी मांग में कमी आई तथा इस महत्तपूर्ण कला का हास हुआ। पटोला बुनाई की तकनीक इंडोनेशिया में भी जानी जाती थी, जहां इसे इकत कहा जाता था। | पटोला में नर्तकी, [[हाथी]], [[तोता]], [[पीपल]] की पत्ती, पुष्पीय रचना, जलीय पौधे, टोकरी सज्जा की आकृतियाँ, दुहरी बाहरी रेखाओं के साथ जालीदार चित्र (पूरी साड़ी पर सितारे की आकृतियां) तथा [[पुष्प]] गहरे [[लाल रंग]] की पृष्ठभूमि पर बनाए जाते हैं। इस कार्य में लगने वाली अत्यधिक मेहनत तथा उत्पादन की ऊंची लागत से इसकी मांग में कमी आई तथा इस महत्तपूर्ण कला का हास हुआ। पटोला बुनाई की तकनीक इंडोनेशिया में भी जानी जाती थी, जहां इसे इकत कहा जाता था। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
पंक्ति 9: | पंक्ति 10: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{वेशभूषा}} | |||
[[Category:गुजरात]] | [[Category:गुजरात]] | ||
[[Category:गुजरात की संस्कृति]] | |||
[[Category:वेशभूषा]] | |||
[[Category:संस्कृति कोश]] | [[Category:संस्कृति कोश]] | ||
[[Category:नया पन्ना]] | [[Category:नया पन्ना]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
09:04, 20 फ़रवरी 2012 का अवतरण
![]() |
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
पटोला गुजरात मूल की एक प्रकार की रेशमी साड़ी है जिसे बुनाई के पहले पूर्व निर्धारित नमूने के अनुसार ताने और बाने को गांठकर रंग दिया जाता है। यह वधु के मामा द्वारा उपहार में दी जाने वाली दुल्हन की साज-सज्जा सामग्री का एक भाग है। यद्यपि गुजरात में मिलने वाली पुरानी पटोला 18वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों से पहले की नहीं है, पर इसका इतिहास निश्चित रूप से 12वीं शताब्दी तक का है।
बुनाई की तकनीक
पटोला में नर्तकी, हाथी, तोता, पीपल की पत्ती, पुष्पीय रचना, जलीय पौधे, टोकरी सज्जा की आकृतियाँ, दुहरी बाहरी रेखाओं के साथ जालीदार चित्र (पूरी साड़ी पर सितारे की आकृतियां) तथा पुष्प गहरे लाल रंग की पृष्ठभूमि पर बनाए जाते हैं। इस कार्य में लगने वाली अत्यधिक मेहनत तथा उत्पादन की ऊंची लागत से इसकी मांग में कमी आई तथा इस महत्तपूर्ण कला का हास हुआ। पटोला बुनाई की तकनीक इंडोनेशिया में भी जानी जाती थी, जहां इसे इकत कहा जाता था।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख