"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 69: पंक्ति 69:


{कर्ण वध के उपरान्त किसके कहने पर दुर्योधन ने शल्य को सेनापति नियुक्त किया?
{कर्ण वध के उपरान्त किसके कहने पर दुर्योधन ने शल्य को सेनापति नियुक्त किया?
|type="()"}
|type="()"}
-कृपाचार्य
-कृपाचार्य
-कृतवर्मा
-कृतवर्मा
+अश्वत्थामा
+अश्वत्थामा
-धृतराष्ट्र
-धृतराष्ट्र
||कर्ण-वध के उपरान्त दुर्योधन ने अश्वत्थामा के कहने से शल्य को सेनापति बनाया। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को शल्य-वध के लिए उत्साहित करते हुए कहा कि इस समय यह बात भूल जानी चाहिए कि शल्य पांडवों के मामा हैं। कौरवों ने परस्पर विचार कर यह नियम बनाया कि कोई भी एक योद्धा अकेला पांडवों से युद्ध नहीं करेगा। शल्य का प्रत्येक पांडव से युद्ध हुआ। कभी वह पराजित हुआ, कभी पांडवगण। अंत में युधिष्ठिर ने उस पर शक्ति से प्रहार किया, जिसके कारण शल्य वीरगति को प्राप्त हो गये। दुर्योधन ने अपने योद्धाओं को बहुत कोसा कि जब यह निश्चित हो गया था कि कोई भी अकेला योद्धा शत्रुओं से लड़ने नहीं जायेगा, शल्य पांडवों की ओर क्यों बढ़ा?{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शल्य]]
||कर्ण-वध के उपरान्त दुर्योधन ने अश्वत्थामा के कहने से शल्य को सेनापति बनाया। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को शल्य-वध के लिए उत्साहित करते हुए कहा कि इस समय यह बात भूल जानी चाहिए कि शल्य पांडवों के मामा हैं। कौरवों ने परस्पर विचार कर यह नियम बनाया कि कोई भी एक योद्धा अकेला पांडवों से युद्ध नहीं करेगा। शल्य का प्रत्येक पांडव से युद्ध हुआ। कभी वह पराजित हुआ, कभी पांडवगण। अंत में युधिष्ठिर ने उस पर शक्ति से प्रहार किया, जिसके कारण शल्य वीरगति को प्राप्त हो गये। दुर्योधन ने अपने योद्धाओं को बहुत कोसा कि जब यह निश्चित हो गया था कि कोई भी अकेला योद्धा शत्रुओं से लड़ने नहीं जायेगा, शल्य पांडवों की ओर क्यों बढ़ा?{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शल्य]]


{कर्ण के वध के पश्चात किसने दुर्योधन को पाण्डवों से संधि का विचार दिया?
{कर्ण के वध के पश्चात किसने दुर्योधन को पाण्डवों से संधि का विचार दिया?
|type="()"}
|type="()"}
-शल्य
-शल्य
+कृपाचार्य
+कृपाचार्य
-अश्वत्थामा
-अश्वत्थामा
-संजय
-संजय
||कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धँस जाने पर, वह पहिये को निकालने के लिये रथ से नीचे उतरा। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया और उससे कहा कि यही समय है, कर्ण पर बाण चलाओ, नहीं तो कर्ण का वध नहीं कर पाओगे। अर्जुन ने वैसा ही किया। कर्ण का सिर धड़ से अलग हो गया। कर्ण के मरते ही कौरवों में हाहाकार मच गया। रात को दुर्योधन चिंताग्रस्त था। कृपाचार्य ने समझाया कि अब पांडवों से संधि कर ली जाए, किन्तु दुर्योधन अभी भी युद्ध के पक्ष में था। दुर्योधन ने कहा कि अभी आप हैं, अश्वत्थामा हैं और सेनापति शल्य भी हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कर्ण पर्व महाभारत|कर्ण पर्व]]
||कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धँस जाने पर, वह पहिये को निकालने के लिये रथ से नीचे उतरा। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया और उससे कहा कि यही समय है, कर्ण पर बाण चलाओ, नहीं तो कर्ण का वध नहीं कर पाओगे। अर्जुन ने वैसा ही किया। कर्ण का सिर धड़ से अलग हो गया। कर्ण के मरते ही कौरवों में हाहाकार मच गया। रात को दुर्योधन चिंताग्रस्त था। कृपाचार्य ने समझाया कि अब पांडवों से संधि कर ली जाए, किन्तु दुर्योधन अभी भी युद्ध के पक्ष में था। दुर्योधन ने कहा कि अभी आप हैं, अश्वत्थामा हैं और सेनापति शल्य भी हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कर्ण पर्व महाभारत|कर्ण पर्व]]


{मगध नरेश जरासंध ने मथुरा पर कितनी बार चढ़ाई की थी?
{मगध नरेश जरासंध ने मथुरा पर कितनी बार चढ़ाई की थी?
|type="()"}
|type="()"}
-16
-16
-17
-17
+18
+18
-15
-15
||जरासंध अत्यन्त पराक्रमी एवं साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का शासक था। हरिवंश पुराण से ज्ञात होता है कि उसने काशी, कोशल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, पांडय, सौबिर, मद्र, काश्मीर और गांधार के राजाओं को परास्त किया था। इसी कारण पुराणों में जरासंध को महाबाहु, महाबली और देवेन्द्र के समान तेज़ वाला कहा गया है। पुराणों के अनुसार जरासंध ने अठारह बार मथुरा पर चढ़ाई की। अपने इस अभियान में वह सत्रह बार असफल रहा था। अंतिम चढ़ाई में उसने एक विदेशी शक्तिशाली शासक कालयवन को भी मथुरा पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जरासंध]]
||जरासंध अत्यन्त पराक्रमी एवं साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का शासक था। हरिवंश पुराण से ज्ञात होता है कि उसने काशी, कोशल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, पांडय, सौबिर, मद्र, काश्मीर और गांधार के राजाओं को परास्त किया था। इसी कारण पुराणों में जरासंध को महाबाहु, महाबली और देवेन्द्र के समान तेज़ वाला कहा गया है। पुराणों के अनुसार जरासंध ने अठारह बार मथुरा पर चढ़ाई की। अपने इस अभियान में वह सत्रह बार असफल रहा था। अंतिम चढ़ाई में उसने एक विदेशी शक्तिशाली शासक कालयवन को भी मथुरा पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जरासंध]]
{महाभारत युद्ध के कौन-से दिन पितामह भीष्म शर-शेय्या को प्राप्त हुए?
|type="()"}
-13वें दिन
-12वें दिन
-11वें दिन
+10वें दिन
||भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु का रहस्य पाण्डवों को बताते हुए कहा कि द्रुपद का बेटा शिखंडी पूर्वजन्म का स्त्री है। मेरे वध के लिए उसने शिव की तपस्या की थी। द्रुपद के घर वह कन्या के रूप में पैदा हुआ, लेकिन दानव के वर से फिर पुरुष बन गया। यदि उसे सामने करके अर्जुन मुझ पर तीर बरसाएगा, तो मैं अस्त्र नहीं चलाऊँगा। दसवें दिन के युद्ध में शिखंडी पांडवों की ओर से भीष्म पितामह के सामने आकर डट गया, जिसे देखते ही भीष्म ने अस्त्र त्याग दिये। कृष्ण के कहने पर शिखंडी की आड़ लेकर अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को जर्जर कर दिया। वे रथ से नीचे गिर पड़े। इस प्रकार वह तीरों की शय्या पर ही पड़े रहे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म पर्व]]
{पितामह भीष्म ने कितने दिनों तक शर शेय्या पर पड़े रहने के बाद अपने प्राण त्यागे?
|type="()"}
-55
-56
-57
+58
||युधिष्ठिर तथा शेष पाण्डवों ने भी शेय्या पर पड़े हुए पितामह भीष्म के चरण-स्पर्श किए। भीष्म ने युधिष्ठिर को तरह-तरह के उपदेश दिए। अगले दिन जब सूर्य उत्तरायण हो गया, उचित समय जानकर युधिष्ठिर सभी भाइयों, धृतराष्ट्र, गांधारी एवं कुंती को साथ लेकर भीष्म के पास पहुँचे। भीष्म ने सबको उपदेश दिया तथा अट्ठावन दिन तक शर शय्या पर पड़े रहने के बाद महाप्रयाण किया। सभी लोग भीष्म को याद कर रोने लगे। युधिष्ठिर तथा पांडवों ने पितामह के शरविद्ध शव को चंदन की चिता पर रखा तथा अंतिम संस्कार किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]]
{रणभूमि में श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप के दर्शन अर्जुन के अतिरिक्त और किसने किये?
|type="()"}
+संजय
-भीष्म
-युधिष्ठिर
-विदुर
||संजय को श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास द्वारा दिव्य-दृष्टि का वरदान दिया गया था। जिसके कारण महाभारत युद्ध में होने वाली प्रत्येक घटना का आँखों देखा हाल बताने में संजय सक्षम था। श्रीमद्भागवत गीता का उपदेश, जो रणभूमि में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया, वह संजय द्वारा भी देखा और सुना गया। श्री कृष्ण का विराट स्वरूप, जो कि केवल अर्जुन को ही दिखाई दे रहा था, संजय ने भी दिव्य-दृष्टि से देख लिया था। संजय को दिव्य-दृष्टि मिलने का कारण, संजय का ईश्वर में नि:स्वार्थ विश्वास था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[संजय]]
{महाभारत में सुषेण किसका पुत्र था?
|type="()"}
+कर्ण
-सहदेव
-शिशुपाल
-भीम
</quiz>
</quiz>
|}
|}
|}
|}
__NOTOC__
__NOTOC__

12:24, 9 फ़रवरी 2012 का अवतरण

1 युधिष्ठिर के लिए सभा-भवन का निर्माण किसने किया था?

गन्धर्वों ने
मय दानव ने
अश्विनी कुमारों ने
लोकपालों ने

2 युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में ब्राह्मणों के चरण धोने का कार्य किसने किया?

नकुल ने
सहदेव ने
धृष्टद्युम्न ने
श्रीकृष्ण ने

3 दुशासन की छाती का रक्त पीने का प्रण किस पाण्डव ने किया था?

अर्जुन
सहदेव
भीम
युधिष्ठिर

4 महाभारत वन पर्व के अंतर्गत कितने अध्याय हैं?

315
316
321
311

5 भीम द्वारा मारा गया अश्वत्थामा नाम का हाथी किस राजा का था?

विराट
इन्द्रवर्मा
प्रद्युम्न
अभिमन्यु

6 यह ज्ञात हो जाने पर कि कर्ण पाण्डवों का भाई था, युधिष्ठिर ने किसे शाप दिया?

कुंती को
नारी जाति को
गांधारी को
द्रौपदी को

7 द्रौपदी के पिता द्रुपद का वध किसके हाथों हुआ?

दुर्योधन
जयद्रथ
कर्ण
द्रोणाचार्य

8 निम्न में से कौन अर्जुन के पुत्र इरावत की माता थीं?

उलूपी
सुभद्रा
चित्रांगदा
द्रौपदी

9 कर्ण वध के उपरान्त किसके कहने पर दुर्योधन ने शल्य को सेनापति नियुक्त किया?

कृपाचार्य
कृतवर्मा
अश्वत्थामा
धृतराष्ट्र

10 कर्ण के वध के पश्चात किसने दुर्योधन को पाण्डवों से संधि का विचार दिया?

शल्य
कृपाचार्य
अश्वत्थामा
संजय

11 मगध नरेश जरासंध ने मथुरा पर कितनी बार चढ़ाई की थी?

16
17
18
15

12 महाभारत युद्ध के कौन-से दिन पितामह भीष्म शर-शेय्या को प्राप्त हुए?

13वें दिन
12वें दिन
11वें दिन
10वें दिन

13 पितामह भीष्म ने कितने दिनों तक शर शेय्या पर पड़े रहने के बाद अपने प्राण त्यागे?

55
56
57
58

14 रणभूमि में श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप के दर्शन अर्जुन के अतिरिक्त और किसने किये?

संजय
भीष्म
युधिष्ठिर
विदुर

15 महाभारत में सुषेण किसका पुत्र था?

कर्ण
सहदेव
शिशुपाल
भीम