"प्रयोग:गोविन्द 5": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{कहावत लोकोक्ति मुहावरे}} | {{कहावत लोकोक्ति मुहावरे}} | ||
* अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर | |||
* अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई | |||
* अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे। | |||
* अंत भला तो सब भला। | |||
* अंत भले का भला। | |||
* अंधा क्या जाने बसंत बहार। | |||
* अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर फिर अपनों को दे। | |||
* अंधी पीसे कुत्ता खाए। | |||
* अंधे की लाठी। | |||
*<poem>अंधेर नगरी चौपट राजा | |||
टके सेर भाजी टके सेर खाजा।</poem> | |||
* अंधों का हाथी | |||
* अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। | |||
अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर | * अकेला हँसता भला न रोता भला। | ||
अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई | * अक्ल बड़ी या भैंस। | ||
अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे। | * अक्ल का अंधा। | ||
अंत भला तो सब भला। | * अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना। | ||
अंधा क्या जाने बसंत बहार। | * अक्ल पर पत्थर/परदा पड़ना। | ||
अंधी पीसे कुत्ता खाए। | * <poem>अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत। | ||
अंधे की लाठी। | तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।</poem> | ||
* अगर मगर करना। | |||
अंधेर नगरी चौपट राजा | * अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ। | ||
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। | * अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम<br /> | ||
अकेला हँसता भला न रोता भला। | दास मलूका कह गए सब के दाता राम | ||
अक्ल बड़ी या भैंस। | * अटकलें भिड़ाना। | ||
अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ। | * अटकेगा सो भटकेगा। | ||
* अठखेलियाँ सूझना। | |||
अटकेगा सो भटकेगा। | * अडियल टट्टू। | ||
अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज। | * अड्डे पर चहकना। | ||
अनजान सुजान, सदा कल्याण। | * अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना। | ||
अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना। | * अढ़ाई दिन की बादशाहत। | ||
अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे। | * अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज। | ||
अपना मकान कोट (क़िले) समान। | * अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान <br /> | ||
अपना रख पराया चख। | तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान। | ||
अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख। | * अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। <br /> | ||
अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या | चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।। | ||
* अधजल गगरी छलकत जाय। | |||
अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग। | * अधर में लटकना या झूलना। | ||
अपनी करनी पार उतरनी। | * अनजान सुजान, सदा कल्याण। | ||
अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं। | * अन्न जल उठ जाना। | ||
* अन्न न लगना। | |||
अपनी गली में कुत्ता भी शेर। | * अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना। | ||
अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा। | * अपना अपना राग अलापना। | ||
अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो। | * अपना उल्लू सीधा करना। | ||
अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता। | * अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे। | ||
अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज। | * अपना मकान कोट (क़िले) समान। | ||
* अपना रख पराया चख। | |||
अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े। | * अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख। | ||
अपनी पगड़ी अपने हाथ, | * अपना सा मुँह लेकर रह जाना। | ||
अपने किए का क्या इलाज। | * अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या दोष। | ||
अपने झोपड़े की खैर मनाओ। | * अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग। | ||
अपने पूत को कोई काना नहीं कहता। | * अपनी करनी पार उतरनी। | ||
अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना। | * अपनी खाल में मस्त रहना। | ||
अब की अब के साथ, जब की जब के साथ। | * अपनी खिचड़ी अलग पकाना। | ||
अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार। | * अपनी गरज बावली। | ||
अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे। | * अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं। | ||
अभी दिल्ली दूर है। | * अपनी गली में कुत्ता भी शेर। | ||
अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी। | * अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा। | ||
अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला। | * अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो। | ||
अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया। | * अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता। | ||
अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर। | * अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज। | ||
* अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े। | |||
* अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना। | |||
* अपनी पगड़ी अपने हाथ, | |||
* अपनी–अपनी खाल में सब मस्त। | |||
* अपने किए का क्या इलाज। | |||
* अपने झोपड़े की खैर मनाओ। | |||
* अपने पांव पर आप कुल्हाड़ी मारना। | |||
* अपने पूत को कोई काना नहीं कहता। | |||
* अपने पैरों पर खड़ा होना। | |||
* अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना। | |||
* अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना। | |||
* अब की अब के साथ, जब की जब के साथ। | |||
* अब के बनिया देय उधार। | |||
* अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत। | |||
* अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार। | |||
* अबे-तबे करना। | |||
* अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे। | |||
* अभी दिल्ली दूर है। | |||
* अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी। | |||
* अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला। | |||
* अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया। | |||
* अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर। | |||
</ | * असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है। <br /> | ||
क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे। | |||
* असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।। <br /> | |||
चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।। | |||
* असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र। <br /> | |||
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।। | |||
* असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।। <br /> | |||
भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।। | |||
{{Theme pink}} | {{Theme pink}} |
08:17, 23 मई 2011 का अवतरण
कहावत लोकोक्ति मुहावरे वर्णमाला क्रमानुसार खोजें
- अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर
- अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई
- अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।
- अंत भला तो सब भला।
- अंत भले का भला।
- अंधा क्या जाने बसंत बहार।
- अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर फिर अपनों को दे।
- अंधी पीसे कुत्ता खाए।
- अंधे की लाठी।
अंधेर नगरी चौपट राजा
टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
- अंधों का हाथी
- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
- अकेला हँसता भला न रोता भला।
- अक्ल बड़ी या भैंस।
- अक्ल का अंधा।
- अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
- अक्ल पर पत्थर/परदा पड़ना।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
- अगर मगर करना।
- अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
- अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम
दास मलूका कह गए सब के दाता राम
- अटकलें भिड़ाना।
- अटकेगा सो भटकेगा।
- अठखेलियाँ सूझना।
- अडियल टट्टू।
- अड्डे पर चहकना।
- अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
- अढ़ाई दिन की बादशाहत।
- अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
- अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान
तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।
- अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
- अधजल गगरी छलकत जाय।
- अधर में लटकना या झूलना।
- अनजान सुजान, सदा कल्याण।
- अन्न जल उठ जाना।
- अन्न न लगना।
- अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना।
- अपना अपना राग अलापना।
- अपना उल्लू सीधा करना।
- अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
- अपना मकान कोट (क़िले) समान।
- अपना रख पराया चख।
- अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख।
- अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
- अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या दोष।
- अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग।
- अपनी करनी पार उतरनी।
- अपनी खाल में मस्त रहना।
- अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
- अपनी गरज बावली।
- अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
- अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
- अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
- अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
- अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
- अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
- अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
- अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
- अपनी पगड़ी अपने हाथ,
- अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
- अपने किए का क्या इलाज।
- अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
- अपने पांव पर आप कुल्हाड़ी मारना।
- अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
- अपने पैरों पर खड़ा होना।
- अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
- अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
- अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
- अब के बनिया देय उधार।
- अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
- अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
- अबे-तबे करना।
- अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
- अभी दिल्ली दूर है।
- अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
- अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
- अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
- अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
- असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है।
क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।
- असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।।
चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
- असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
- असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।
भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।