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# अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम, दास मलूका कह गए सब के दाता राम ..।
<poem> अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम,
# असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है। क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।
दास मलूका कह गए सब के दाता राम ..।</poem>
# अधजल गगरी छलकत जाय।
<poem> असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है।  
# अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान, तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।
क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।</poem>
# अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
अधजल गगरी छलकत जाय।
# अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत। तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
<poem>अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान,  
# <poem>असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।
तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।</poem>
<poem>अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।  
चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।</poem>
<poem>अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।  
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।</poem>
<poem>असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।
भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।</poem>
भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।</poem>
# असाढ़ मास आठें अंधियारी।<br />
<poem>असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।।
जो निकले बादर जल धारी।।<br />
चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।</poem>
# चन्दा निकले बादर फोड़।<br />
<poem>असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।
साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।</poem>
# असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।<br />
अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर फिर अपनों को दे।  
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
[[अंधों का हाथी]]
# अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर फिर अपनों को दे।  
अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
#[[अंधों का हाथी]]
अंडा सिखावे बच्चे को चीं चीं मत क…
# अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
  अंडे सेवे कोई, बच्चे  लेवे कोई
# अंडा सिखावे बच्चे को चीं चीं मत क…
  अंडे सेवे कोई, बच्चे  लेवे को॥
अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।
अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।
# अंत भला तो सब भला।
अंत भला तो सब भला।
# अंधा क्या चाहे, दो आँखें।
अंधा क्या चाहे, दो आँखें।
अंधा क्या जाने बसंत बहार।
  अंधा क्या जाने बसंत बहार।
अंधा पीसे कुत्ता‍ खाए।
  अंधा पीसे कुत्ता‍ खाए।
अंधा बगुला कीचड़ खाए।  
  अंधा बगुला कीचड़ खाए।  
अंधा राजा चौपट नगरी।
  अंधा राजा चौपट नगरी।
अंधा सिपाही कानी घोड़ी,<br />
  अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने ख़ूब मिलाई जोड़ी।  
विधि ने ख़ूब मिलाई जोड़ी।  
अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पंडित।
# अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पंडित।
अंधे की लकड़ी।
# अंधे की लकड़ी।
अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना।
# अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना।
अंधे के हाथ बटेर।
# अंधे के हाथ बटेर।
अंत भले का भला।
# अंत भले का भला।
अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है।
# अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है।
अंधे को अँधेरे में बड़े दूर की सूझी।
# अंधे को अँधेरे में बड़े दूर की सूझी।
अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
# अंधेर नगरी चौपट राजा, <br />
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
अकेला हँसता भला न रोता भला।
# अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
अक्ल बड़ी या भैंस।
# अकेला हँसता भला न रोता भला।
अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
# अक्ल बड़ी या भैंस।
अब के बनिया देय उधार।
# अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
अटकेगा सो भटकेगा।
# अब के बनिया देय उधार।
अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
# अटकेगा सो भटकेगा।
अनजान सुजान, सदा कल्याण।
# अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना।
# अनजान सुजान, सदा कल्याण।
अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
# अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना।
अपना मकान कोट (क़िले) समान।
# अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
अपना रख पराया चख।
# अपना मकान कोट (क़िले) समान।
अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख।
# अपना रख पराया चख।
अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या  दोष।
# अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख।
अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
# अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या  दोष।
अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग।
# अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
अपनी करनी पार उतरनी।
# अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग।
अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
# अपनी करनी पार उतरनी।
अपनी गरज बावली।
# अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
# अपनी गरज बावली।
अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
# अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
# अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
# अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
# अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
# अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
# अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
  अपनी पगड़ी अपने हाथ,
# अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
  अपने किए का क्या इलाज।
अपनी पगड़ी अपने हाथ,
  अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
अपने किए का क्या इलाज।
  अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
  अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
  अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
  अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
  अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
  अभी दिल्ली दूर है।
अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
  अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
अभी दिल्ली दूर है।
  अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
  अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
  अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
  अक्‍ल का अंधा।
अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
  अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
अक्‍ल का अंधा।
  अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना।   
अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
  अगर मगर करना।
अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना।   
  अटकलें भिड़ाना।
अगर मगर करना।
  अठखेलियाँ सूझना।
अटकलें भिड़ाना।
  अडियल टट्टू।
अठखेलियाँ सूझना।
  अड्डे पर चहकना।
अडियल टट्टू।
  अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
अड्डे पर चहकना।
  अढ़ाई दिन की बादशाहत।
अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
  अधर में लटकना या झूलना।
अढ़ाई दिन की बादशाहत।
  अन्‍न जल उठ जाना।
अधर में लटकना या झूलना।
  अन्‍न न लगना।
अन्‍न जल उठ जाना।
  अपना अपना राग अलापना।
अन्‍न न लगना।
  अपना उल्‍लू सीधा करना।
अपना अपना राग अलापना।
  अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
अपना उल्‍लू सीधा करना।
  अपनी खाल में मस्‍त रहना।
अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
  अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
अपनी खाल में मस्‍त रहना।
  अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना।
अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
  अपने पैरों पर खड़ा होना।
अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना।
  अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
अपने पैरों पर खड़ा होना।
अबे-तबे करना।
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
# अबे-तबे करना।
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[[Category:कहावत लोकोक्ति मुहावरे]]
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06:30, 23 मई 2011 का अवतरण

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 अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम,
 दास मलूका कह गए सब के दाता राम ..।

 असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है।
 क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।

अधजल गगरी छलकत जाय।

अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान,
तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।

अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।

अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।

असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।
भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।

असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।।
चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।

असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।

अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर फिर अपनों को दे। अंधों का हाथी

अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
अंडा सिखावे बच्चे को चीं चीं मत क…
अंडे सेवे कोई, बच्चे  लेवे कोई

अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।

अंत भला तो सब भला।
अंधा क्या चाहे, दो आँखें।
 अंधा क्या जाने बसंत बहार।
 अंधा पीसे कुत्ता‍ खाए।
 अंधा बगुला कीचड़ खाए। 
 अंधा राजा चौपट नगरी।
 अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने ख़ूब मिलाई जोड़ी। 
अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पंडित।
अंधे की लकड़ी।
अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना।
अंधे के हाथ बटेर।
अंत भले का भला।
अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है।
अंधे को अँधेरे में बड़े दूर की सूझी।
अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
अकेला हँसता भला न रोता भला।
अक्ल बड़ी या भैंस।
अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
अब के बनिया देय उधार।
अटकेगा सो भटकेगा।
अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
अनजान सुजान, सदा कल्याण।
अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना।
अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
अपना मकान कोट (क़िले) समान।
अपना रख पराया चख।
अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख।
अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या  दोष।
अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग।
अपनी करनी पार उतरनी।
अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
अपनी गरज बावली।
अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
 अपनी पगड़ी अपने हाथ,
 अपने किए का क्या इलाज।
 अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
 अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
 अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
 अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
 अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
  अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
 अभी दिल्ली दूर है।
 अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
 अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
 अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
 अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
 अक्‍ल का अंधा।
 अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
 अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना।  
 अगर मगर करना।
 अटकलें भिड़ाना।
 अठखेलियाँ सूझना।
 अडियल टट्टू।
 अड्डे पर चहकना।
 अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
 अढ़ाई दिन की बादशाहत।
 अधर में लटकना या झूलना।
 अन्‍न जल उठ जाना।
 अन्‍न न लगना।
 अपना अपना राग अलापना।
 अपना उल्‍लू सीधा करना।
 अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
 अपनी खाल में मस्‍त रहना।
 अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
 अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना।
 अपने पैरों पर खड़ा होना।
 अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
अबे-तबे करना।

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