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| {{सूचना बक्सा साहित्यकार
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| |चित्र=Blankimage.gif
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| |पूरा नाम=रामकुमार वर्मा
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| |अन्य नाम=कुमार
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| |जन्म=[[15 सितंबर]], [[1905]]
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| |जन्म भूमि=सागर ज़िला [[मध्यप्रदेश]]
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| |अविभावक=श्री लक्ष्मी प्रसाद वर्मा, श्रीमती राजरानी देवी
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| |पति/पत्नी=
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| |संतान=
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| |कर्म भूमि=[[मध्य प्रदेश]]
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| |कर्म-क्षेत्र=
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| |मृत्यु=[[1990]] ई.
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| |मृत्यु स्थान=
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| |मुख्य रचनाएँ=अंजलि, अभिशाप, निशीथ, जौहर, चित्तौड़ की चिता।
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| |विषय=एकांकीकार, आलोचक और कवि
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| |भाषा=[[हिन्दी]]
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| |विद्यालय=प्रयाग विश्वविद्यालय, नागपुर विश्वविद्यालय
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| |शिक्षा=
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| |पुरस्कार-उपाधि=देव पुरस्कार, [[पद्म भूषण]], डीलिट
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| |प्रसिद्धि=
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| |विशेष योगदान=
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| |नागरिकता=भारतीय
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| |संबंधित लेख=
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| |शीर्षक 1=
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| |पाठ 1=
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| |शीर्षक 2=
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| |पाठ 2=
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| |अन्य जानकारी=
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| |बाहरी कड़ियाँ=
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| |अद्यतन={{अद्यतन|22:25, 2 अप्रॅल 2011 (IST)}}
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| डॉ. रामकुमार वर्मा (जन्म- [[15 सितंबर]], [[1905]] - मृत्यु- [[1990]]) आधुनिक [[हिन्दी]] साहित्य में 'एकांकी सम्राट' के रूप में जाने जाते हैं। डॉ. रामकुमार वर्मा हिन्दी भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, व्यंग्यकार और हास्य कवि के रूप में जाने जाते हैं। रामकुमार वर्मा की हास्य और व्यंग्य दोनो विधाओ में समान रूप से पकड़ है। उन्होंने हिन्दी नाटक को एक नया संरचनात्मक आदर्श सौंपा और नाट्य कला के विकास की संभावनाओं के नए पाठ खोलते हुए नाट्य साहित्य को जन- जीवन के निकट पहुँचा दिया। नाटककार और कवि के साथ-साथ उन्होंने समीक्षक, अध्यापक तथा हिन्दी-साहित्य के इतिहास-लेखक के रूप में भी हिन्दी साहित्य-सर्जन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रामकुमार वर्मा एकांकीकार, आलोचक और कवि हैं। इनके काव्य में रहस्यवाद और छायावाद की झलक है।
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| ==जीवन परिचय==
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| डॉ. रामकुमार वर्मा का जन्म [[मध्यप्रदेश]] के सागर ज़िले में [[15 सितंबर]] सन [[1950]] ई. में हुआ। इनके पिता लक्ष्मी प्रसाद वर्मा डिप्टी कलक्टर थे। वर्माजी की प्रारम्भिक शिक्षा इनकी माता श्रीमती राजरानी देवी ने अपने घर पर ही दी, जो उस समय की हिन्दी कवयित्रियों में विशेष स्थान रखती थीं। बचपन में इन्हें "कुमार" के नाम से पुकारा जाता था। रामकुमार वर्मा में प्रारम्भ से ही प्रतिभा के स्पष्ट चिह्न दिखाई देते थे। ये सदैव अपनी कक्षा में प्रथम आया करते थे। पठन-पाठन की प्रतिभा के साथ ही साथ रामकुमार वर्मा शाला के अन्य कार्यों में भी काफ़ी सहयोग देते थे। अभिनेता बनने की रामकुमार वर्मा की बड़ी प्रबल इच्छा थी। अतएव इन्होंने अपने विद्यार्थी जीवन में कई नाटकों में एक सफल अभिनेता का कार्य किया है। रामकुमार वर्मा सन [[1922]] ई. में दसवीं कक्षा में पहुँचे। इसी समय प्रबल वेग से असहयोग की आँधी उठी और रामकुमार वर्मा राष्ट्र सेवा में हाथ बँटाने लगे तथा एक राष्ट्रीय कार्यकर्ता के रूप में जनता के सम्मुख आये। इसके बाद वर्माजी ने पुनः अध्ययन प्रारम्भ किया और सब परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करते हुए प्रयाग विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय में एम. ए. में सर्वप्रथम आये। रामकुमार वर्मा ने नागपुर विश्वविद्यालय की ओर से 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। अनेक वर्षों तक रामकुमार वर्मा प्रयाग विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक तथा फिर अध्यक्ष रहे हैं।
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| ====<u>सुप्रसिद्ध कवि</u>====
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| रामकुमार वर्मा आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि, एकांकी नाटक-लेखक और आलोचक हैं। "चित्ररेखा" काव्य-संग्रह पर इन्हें हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ "देव पुरस्कार" मिला है। साथ ही "सप्त किरण" एकांकी संग्रह पर अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन पुरस्कार और [[मध्यप्रदेश]] शासन परिषद से "विजयपर्व" नाटक पर प्रथम पुरस्कार मिला है। रामकुमार वर्मा रूसी सरकार के विशेष आमंत्रण पर मास्को विश्वविद्यालय के अंतर्गत प्रायः एक वर्ष तक शिक्षा कार्य कर चुके हैं। हिंदी एकांकी के जनक रामकुमार वर्मा ने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और साहित्यिक विषयों पर 150 से अधिक एकांकी लिखीं। [[भगवतीचरण वर्मा]] ने कहा था, "डॉ. रामकुमार वर्मा रहस्यवाद के पंडित हैं। उन्होंने रहस्यवाद के हर पहलू का अध्ययन किया है। उस पर मनन किया है। उसको समझना हो और उसका वास्तविक और वैज्ञानिक रूप देखना हो तो उसके लिए श्री वर्मा की ‘चित्ररेखा’ सर्वश्रेष्ठ काव्य ग्रंथ होगा।"
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| ====रुचि====
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| डॉ. रामकुमार वर्मा की कविता, संगीत और कलाओं में गहरी रुचि थी। [[1921]] तक आते-आते युवक रामकुमार गाँधी जी के उनके असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए। उन्होंने 17 वर्ष की आयु में एक कविता प्रतियोगिता में 51 रुपए का पुरस्कार जीता था। यही से उनकी साहित्यिक यात्रा आरंभ हुई थी। डॉ रामकुमार वर्मा ने देश ही नहीं विदेशों में भी हिंदी का परचम लहराया। [[1957]] में वे मास्को विश्वविद्यालय के अध्यक्ष के रूप में सोवियत संघ की यात्रा पर गए। [[1963]] में उन्हें [[नेपाल]] के त्रिभुवन विश्वविद्यालय ने शिक्षा सहायक के रूप में आमंत्रित किया। [[1967]] में वे [[श्रीलंका]] में भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष के रूप में भेजे गए।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2006/09/060908_magazine_ramkumar.shtml |title=डॉ. रामकुमार वर्मा की जन्मशताब्दी |accessmonthday=[[31 मार्च]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एल.एल. |publisher=बीबीसी हिन्दी |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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| {{दाँयाबक्सा}}डॉ. रामकुमार वर्मा रहस्यवाद के पंडित हैं। उन्होंने रहस्यवाद के हर पहलू का अध्ययन किया है। उस पर मनन किया है। उसको समझना हो और उसका वास्तविक और वैज्ञानिक रूप देखना हो तो उसके लिए श्री वर्मा की ‘चित्ररेखा’ सर्वश्रेष्ठ काव्य ग्रंथ होगा। - [[भगवतीचरण वर्मा]]{{बक्साबन्द}}
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| ;कृतियाँ
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| रूस में रामकुमार वर्मा की रचनाएँ सन [[1922]] ई. से प्रारम्भ हुईं। इनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं:-
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| *'वीर हमीर' (काव्य-सन [[1922]] ई.)
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| *'चित्तौड़ की चिता' (काव्य सन [[1929]] ई.)
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| *'साहित्य समालोचना' (सन [[1929]] ई.)
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| *'अंजलि' (काव्य-सन [[1930]] ई.)
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| *'अभिशाप' (कविता-सन [[1931]] ई.)
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| *'हिन्दी गीतिकाव्य' (संग्रह-सन [[1931]] ई.)
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| *'निशीथ' (कविता-सन [[1935]] ई.)
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| *'चित्ररेखा' (कविता-सन [[1936]] ई.)
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| *'पृथ्वीराज की आँखें' (एकांकी संग्रह-सन [[1938]] ई.)
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| *'कबीर पदावली' (संग्रह सम्पादन-सन [[1938]] ई.)
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| *'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' (सन [[1939]] ई.)
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| *'आधुनिक हिन्दी काव्य' (संग्रह सम्पादन-सन [[1939]] ई.)
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| *'जौहर' (कविता संग्रह- [[1941]] ई.)
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| *'रेशमी टाई' (एकांकी संग्रह-सन [[1941]] ई.)
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| *'शिवाजी' (सन [[1943]] ई.)
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| *'चार ऐतिहासिक एकांकी' (संग्रह-सन [[1950]] ई.)
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| *'रूपरंग' (एकांकी संग्रह-सन [[1951]] ई.)
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| *'कौमुदी महोत्सव'
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| ====ऐतिहासिक नाटक====
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| *'एकलव्य'
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| *'उत्तरायण'
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| *'ओ अहल्या'
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| {| width=100% class="bharattable-purple" border="1"
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| |+'''रचनाऐं'''
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| ! '''ये गजरें तारों वाले'''
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| |<poem>इस सोते संसार बीच,
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| जग कर, सज कर रजनी बाले।
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| कहाँ बेचने ले जाती हो,
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| ये गजरे तारों वाले?
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| मोल करेगा कौन,
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| सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी।
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| मत कुम्हलाने दो,
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| सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी॥
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| निर्झर के निर्मल जल में,
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| ये गजरे हिला हिला धोना।
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| लहर हहर कर यदि चूमे तो,
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| किंचित् विचलित मत होना॥
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| होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित,
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| लहरों ही में लहराना।
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| 'लो मेरे तारों के गजरे'
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| निर्झर-स्वर में यह गाना॥
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| यदि प्रभात तक कोई आकर,
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| तुम से हाय! न मोल करे।
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| तो फूलों पर ओस-रूप में
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| बिखरा देना सब गजरे॥</poem>
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| |}
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| | valign="top"|
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| |-
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| ! '''एक दीपक किरण-कण हूँ'''
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| |-
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| |<poem>धूम्र जिसके क्रोड़ में है, उस अनल का हाथ हूँ मैं,
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| नव प्रभा लेकर चला हूँ, पर जलन के साथ हूँ मैं
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| सिद्धि पाकर भी, तुम्हारी साधना का..
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| ज्वलित क्षण हूँ।
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| एक दीपक किरण-कण हूँ
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| व्योम के उर में, अपार भरा हुआ है जो अँधेरा
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| और जिसने विश्व को, दो बार क्या सौ बार घेरा
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| उस तिमिर का नाश करने के लिए,
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| मैं अटल प्रण हूँ।
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| एक दीपक किरण-कण हूँ।
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| शलभ को अमरत्व देकर,प्रेम पर मरना सिखाया
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| सूर्य का संदेश लेकर,रात्रि के उर में समाया
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| पर तुम्हारा स्नेह खोकर भी
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| तुम्हारी ही शरण हूँ।
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| एक दीपक किरण-कण हूँ।</poem>
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| |}
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| | valign="top"|
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| {| width=100%
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| |-
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| ! '''खोलो प्रियतम खोलो द्वार...'''
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| |-
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| |<poem>शिशिर कणों से लदी हुई
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| कमली के भीगे हैं सब तार
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| चलता है पश्चिम का मारुत
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| ले कर शीतलता का भार
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| अरुण किरण सम कर से छू लो
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| खोलो प्रियतम खोलो द्वार....
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| डरो ना इतना धूल धूसरित
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| होगा नहीं तुम्हारा द्वार
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| धो डाले हैं इनको प्रियतम
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| इन आँखों से आँसू ढ़ार
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| अरुण किरण सम कर से छू लो
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| खोलो प्रियतम खोलो द्वार...<ref>{{cite web |url=http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2007/08/blog-post_07.html |title=डॉ. रामकुमार वर्मा |accessmonthday=[[2 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher=एक शाम मेरे नाम |language=[[हिन्दी]] }}</ref></poem>
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| |}
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| ====<u>छायावाद</u>====
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| डॉ. वर्मा का कवि-व्यक्तित्व द्विवेदीयुगीन प्रवृत्तियों से उदित होकर छायावाद क्षेत्र में मूल्यवान उपलब्धि सिद्ध हुआ। इनकी काव्यगत विशेषताओं में कल्पनावृत्ति, संगीतात्मकता, रहस्यमय सौन्दर्य-दृष्टि (रहस्यवाद) का स्थान अनन्य है। छायावादकाल की कविताएँ इनकी कवि प्रतिभा का सुन्दर प्रतिनिधित्व करती है।
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| ====<u>रहस्यवाद</u>====
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| हिन्दी रहस्यवाद क्षेत्र में इनकी अपनी विशेष देन है। अपनी रहस्यवादी कृतियों में इन्होंने प्रकृति और मानवीय हृदय के सूक्ष्म तत्त्वों, जिनमें अलौकिक सत्ता का अबाध प्रकाश है, बहुत बड़ा सहारा लिया है। इन्होंने प्रकृति की विराट सत्ता में सर्वत्र ईश्वरीय संकेत की अनुभूति की है। इस प्रकार जहाँ इन्होंने अपने इस धरातल के काव्य-जगत में एक ओर मानव आत्मा की सफल प्रेममय प्रवृत्तियों की थाह ली है, वहाँ उन्होंने प्रकृति के रहस्यों का भी सफल अंवेषण किया है। सर्वत्र भावना क्षेत्र में तद्विषयक अभिव्यक्ति के लिए प्रायः रूपकों का सहारा लिया है, जिनमें एक ओर आध्यात्मिक संकेत हैं और दूसरी ओर एक अलौकिक व्यंजना।
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| ====<u>नाटककार</u>====
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| नाटककार रामकुमार वर्मा का व्यक्तित्व कवि-व्यक्तित्व से अधिक शाक्तिशाली और लोकप्रिय सिद्ध हुआ है। नाटककार धरातल से उनका एकांकीकार स्वरूप ही उनकी विशेष महत्ता है और इस दिशा में वे आधुनिक हिन्दी एकांकी के जनक कहे जाते हैं, जो निर्विवाद सत्य है। प्रारम्भिक प्रभाव की दृष्टि से इन पर शा, इब्सन मैटरलिंक, चेखब आदि का विशेष प्रभाव पड़ा है किंतु यह सत्य है कि डॉ. वर्मा इस क्षेत्र में, विशेषकर मनोवेगों को अभिव्यक्ति और अपने दृष्टिकोण में सदा मौलिक और भारतीय रहे हैं। "बादल की मृत्यु" इनका सर्वप्रथम एकांकी नाटक था, जो [[1930]] ई. में "विश्वामित्र" में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद डॉ वर्मा ने क्रमशः दस मिनट, नहीं का रहस्य, पृथ्वीराज की आँखें, चम्पक और एक्ट्रेस आदि नाटकों (एकांकी) की रचना की तथा इस उदय के बाद इनका एकांकीकार व्यक्तित्व आधुनिक हिन्दी नाटय साहित्य का प्रकाश-स्तभ हो गया।
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| ====<u>कृतित्व</u>====
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| रेशमीटाई के उपरांत डॉ. वर्मा के कृतित्व में एक विशेष धारा ऐतिहासिक एकांकियों की विकसित हुई, जिसमें डॉ. रामकुमार एक ऐसे आदर्शवादी कलाकार के रूप में हिन्दी नाटय जगत के सामने आये, जिनमें उनके सांस्कृतिक और साहित्यिक मान्यताओं का सुन्दरतम समंवय स्थापित हुआ है। "वे कलुष के भीतर से पवित्रता, दैन्य के भीतर से शालीनता, वासना के भीतर से आत्मसंयम एवं क्षुद्रता से महानता का अंवेषण करने में समर्थ हुए हैं और यह सब उन्होंने पात्रों और परिस्थितियों के संघर्ष से स्वाभाविक रूप में प्रस्तुत किया है।"
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| ====<u>आलोचक</u>====
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| रामकुमार वर्मा एकांकीकार, आलोचक और कवि हैं। इनके काव्य में रहस्यवाद और छायावाद की झलक है। आलोचना के क्षेत्र में रामकुमार वर्मा की कबीरविषयक खोज और उनके पदों का प्रथम शुद्ध पाठ तथा कबीर के रहस्यवाद और योगसाधना की पद्धति की समालोचना विशेष उपलब्धि है। हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन क्षेत्र में उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास ([[1938]] ई.) का विशेष महत्त्व है। सामाजिक तथा शाक्तियों के अध्ययन परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य के आदि युग और मध्य युग को समग्र रूप में देखने का यह पहला सफल प्रयास है। इसके अतिरिक्त काव्य, कला और साहित्य के विभिन्न अंगों तथा माध्यमों पर ललित लेख डॉ वर्मा के निबन्धकार व्यक्तित्व के सुन्दरतम उदाहरण हैं।
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| ==पुरस्कार==
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| रामकुमार वर्मा उपन्यास चित्ररेखा पर इन्हें देव पुरस्कार एवं एकांकी संग्रह पर अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन पुरस्कार मिला। इनको [[भारत]] सरकार द्वारा [[पद्म भूषण]] अलंकरण से विभूषित किया गया। उनके कृतित्व से प्रभावित होकर स्विट्जरलैंड के मूर विश्वविद्यालय ने उन्हें डीलिट की उपाधि से सम्मानित किया।
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==बाहरी कड़ियाँ==
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| *[http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE रामकुमार वर्मा]
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| *[http://www.helloraipur.com/chhattisgarh/raipur/features/importantpersonalities/index_max.php?pid=88&cat=Literature श्री राम कुमार वर्मा]
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| *[http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE_/_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF कविता कोश]
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