"विन्ध्येश्वरी माता की आरती": अवतरणों में अंतर
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धूप दीप नैवेद्य आरती मोहन भोग लगाया। | धूप दीप नैवेद्य आरती मोहन भोग लगाया। | ||
ध्यानू भगत मैया तेरे गुण गावैं मनवांछित फल पाया॥</poem></span></blockquote> | ध्यानू भगत मैया तेरे गुण गावैं मनवांछित फल पाया॥</poem></span></blockquote> | ||
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05:20, 21 फ़रवरी 2011 का अवतरण

सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी तेरा पार न पाया॥ टेक॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तरी भेंट चढ़ाया।
सुवा चोली तेरे अंग विराजे केसर तिलक लगाया।
नंगे पग अकबर आया सोने का छत्र चढ़ाया। सुन॥
उँचे उँचे पर्वत भयो दिवालो नीचे शहर बसाया।
कलियुग द्वापर त्रेता मध्ये कलियुग राज सबाया॥
धूप दीप नैवेद्य आरती मोहन भोग लगाया।
ध्यानू भगत मैया तेरे गुण गावैं मनवांछित फल पाया॥
इन्हें भी देखें: आरती संग्रह
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