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==परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
पुतलीबाई का जन्म सन् 1839 में जूनागढ़ के पास दात्राल गाँव में हुआ था। वे एक निर्धन परिवार से सम्बंधित थीं। उनका विवाह करमचंद गाँधी के साथ हुआ था। पुतलीबाई उनकी चौथी पत्नी थीं। | |||
== | ==वैवाहिक जीवन== | ||
कबा और पुतलीबाई की आयु में दुगुने से भी अधिक का अंतर था, लेकिन जल्दी ही उन्होनें घर की पूरी ज़िम्मेदारी सँभाल ली। कबा का परिवार बहुत बड़ा था। दीवान होने के कारण उनके घर मेहमानों और रिश्तेदारों का आना-जाना लगा ही रहता था। घर में हर शाम 40-50 लोगों का भोजन बनता था। पुतलीबाई घर की अन्य महिलाओं के साथ स्वंय रसोई का काम सँभालती थीं। पुतलीबाई ने सौतेली संतानों से कभी भेदभाव नहीं किया। वास्तव में उनकी सौतेली संताने उम्र में उनसे बड़ी थीं, जिनके साथे उन्होंने सद्भावपूर्ण व्यवहार किया, उनकी सुख- सुविधाओं का बेहतर ख्याल रखा। बड़े सवेरे उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर वे पूजा-आराधना करतीं फिर रसोई के कार्य में जुट जातीं। | |||
उनकी सादगी और निस्स्वार्थ सेवा की लोग प्रशंसा करते थे। कहते थे कि दीवान की पत्नी होकर भी उनमें लेशमात्र गर्व नहीं है। ऐसी पत्नी को पाकर कबा गर्व से फूले नहीं समाते थे। | |||
==संतान== | |||
पुतलीबाई के तीन पुत्र थे। सबसे बड़े लक्ष्मीदास उर्फ़ कालदास सन [[1861]] में पैदा हुए। उनके बाद सन् [[1862]] में एक पुत्री रलियातबेन उर्फ़ गोकीबेन पैदा हुई। सन् [[1866]] करसनदास (कृष्णदास) और [[2 अक्टूबर]], [[1869]] में मोहनदास का जन्म हुआ। | |||
सबसे छोटे मोहनदास सभी के लाड़ले थे। पुतलीबाई भी उनसे बहुत लाड़ करती थीं। अपने सारे संस्कारों, अभिलाषाओं और भावनाओं का सिंचन उन्होंने मोहनदास में ही किया था। वस्तुत: गांधी जी का भक्तिभाव, नम्रता, मेहनत, सेवा-परायणता और अखंड धर्मनिष्ठा उनकी माँ की ही देन थे। | |||
13:04, 14 अक्टूबर 2017 का अवतरण
पुतलीबाई (जन्म- 1839, दात्राल गाँव, जूनागढ़; मृत्यु- 1891)[1] महात्मा गाँधी की माता तथा करमचंद गाँधी, जिन्हें कबा गाँधी के नाम से भी जाना जाता था, की चौथी पत्नी थीं।
जीवन परिचय
पुतलीबाई का जन्म सन् 1839 में जूनागढ़ के पास दात्राल गाँव में हुआ था। वे एक निर्धन परिवार से सम्बंधित थीं। उनका विवाह करमचंद गाँधी के साथ हुआ था। पुतलीबाई उनकी चौथी पत्नी थीं।
वैवाहिक जीवन
कबा और पुतलीबाई की आयु में दुगुने से भी अधिक का अंतर था, लेकिन जल्दी ही उन्होनें घर की पूरी ज़िम्मेदारी सँभाल ली। कबा का परिवार बहुत बड़ा था। दीवान होने के कारण उनके घर मेहमानों और रिश्तेदारों का आना-जाना लगा ही रहता था। घर में हर शाम 40-50 लोगों का भोजन बनता था। पुतलीबाई घर की अन्य महिलाओं के साथ स्वंय रसोई का काम सँभालती थीं। पुतलीबाई ने सौतेली संतानों से कभी भेदभाव नहीं किया। वास्तव में उनकी सौतेली संताने उम्र में उनसे बड़ी थीं, जिनके साथे उन्होंने सद्भावपूर्ण व्यवहार किया, उनकी सुख- सुविधाओं का बेहतर ख्याल रखा। बड़े सवेरे उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर वे पूजा-आराधना करतीं फिर रसोई के कार्य में जुट जातीं।
उनकी सादगी और निस्स्वार्थ सेवा की लोग प्रशंसा करते थे। कहते थे कि दीवान की पत्नी होकर भी उनमें लेशमात्र गर्व नहीं है। ऐसी पत्नी को पाकर कबा गर्व से फूले नहीं समाते थे।
संतान
पुतलीबाई के तीन पुत्र थे। सबसे बड़े लक्ष्मीदास उर्फ़ कालदास सन 1861 में पैदा हुए। उनके बाद सन् 1862 में एक पुत्री रलियातबेन उर्फ़ गोकीबेन पैदा हुई। सन् 1866 करसनदास (कृष्णदास) और 2 अक्टूबर, 1869 में मोहनदास का जन्म हुआ।
सबसे छोटे मोहनदास सभी के लाड़ले थे। पुतलीबाई भी उनसे बहुत लाड़ करती थीं। अपने सारे संस्कारों, अभिलाषाओं और भावनाओं का सिंचन उन्होंने मोहनदास में ही किया था। वस्तुत: गांधी जी का भक्तिभाव, नम्रता, मेहनत, सेवा-परायणता और अखंड धर्मनिष्ठा उनकी माँ की ही देन थे।