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'''गीता कपूर''' ([[अंग्रेज़ी]]: '''Geeta Kapur''', जन्म- [[1943]]) [[भारत]] की अग्रणी कला समीक्षक, इतिहासकार और क्यूरेटर हैं। वह भारत में कला आलोचनात्मक लेखन के अग्रदूतों में से एक हैं।
'''पुतलीबाई''' (जन्म- 1839, दात्राल गाँव, [[जूनागढ़]]; मृत्यु- 1891)<ref>{{cite web |url=https://www.geni.com/people/Putlibai-Gandhi/6000000009016607497 |title=पुतलीबाई |accessmonthday= 14 अक्टूबर|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.geni.com |language=हिंदी }}</ref> [[मोहनदास करमचंद गाँधी|महात्मा गाँधी]] की माता तथा करमचंद गाँधी, जिन्हें कबा गाँधी के नाम से भी जाना जाता था, की चौथी पत्नी थीं।
==परिचय==
==जीवन परिचय==
गीता कपूर का जन्म [[1943]] को एम. एन कपूर, जोकि मॉडर्न स्कूल, [[नई दिल्ली]] के प्रिंसिपल थे, के यहाँ हुआ था। गीता उनकी बड़ी पुत्री हैं।
पुतलीबाई का जन्म सन् 1839 में जूनागढ़ के पास दात्राल गाँव में हुआ था। वे एक निर्धन परिवार से सम्बंधित थीं। उनका विवाह करमचंद गाँधी के साथ हुआ था। पुतलीबाई उनकी चौथी पत्नी थीं।
====शिक्षा====
==वैवाहिक जीवन==
गीता ने 1947 से 1959 तक आधुनिक विद्यालय में अध्ययन करते हुए कला में श्रेष्ठता प्राप्त की। तत्पश्चात उन्होंने न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय से 1963 में आर्ट्स में एम. ए. और रॉयल कॉलेज ऑफ़ आर्ट, लंदन से आर्ट्स में पुन: एम. ए. है। वह 1967 से 1973 तक आई. आई. टी., दिल्ली के मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग में पढ़ा चुकी हैं।
कबा और पुतलीबाई की आयु में दुगुने से भी अधिक का अंतर था, लेकिन जल्दी ही उन्होनें घर की पूरी ज़िम्मेदारी सँभाल ली। कबा का परिवार बहुत बड़ा था। दीवान होने के कारण उनके घर मेहमानों और रिश्तेदारों का आना-जाना लगा ही रहता था। घर में हर शाम 40-50 लोगों का भोजन बनता था। पुतलीबाई घर की अन्य महिलाओं के साथ स्वंय रसोई का काम सँभालती थीं। पुतलीबाई ने सौतेली संतानों से कभी भेदभाव नहीं किया। वास्तव में उनकी सौतेली संताने उम्र में उनसे बड़ी थीं, जिनके साथे उन्होंने सद्भावपूर्ण व्यवहार किया, उनकी सुख- सुविधाओं का बेहतर ख्याल रखा। बड़े सवेरे उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर वे पूजा-आराधना करतीं फिर रसोई के कार्य में जुट जातीं।


उनकी सादगी और निस्स्वार्थ सेवा की लोग प्रशंसा करते थे। कहते थे कि दीवान की पत्नी होकर भी उनमें लेशमात्र गर्व नहीं है। ऐसी पत्नी को पाकर कबा गर्व से फूले नहीं समाते थे।
==संतान==
पुतलीबाई के तीन पुत्र थे। सबसे बड़े लक्ष्मीदास उर्फ़ कालदास सन [[1861]] में पैदा हुए। उनके बाद सन् [[1862]] में एक पुत्री रलियातबेन उर्फ़ गोकीबेन पैदा हुई। सन् [[1866]] करसनदास (कृष्णदास) और [[2 अक्टूबर]], [[1869]] में मोहनदास का जन्म हुआ।


*20वीं सदी के दौरान उन्होंने इस उपमहाद्वीप में समकालीन कला के उद्भव के दस्तावेज़ तैयार किए हैं। [[कला]], फ़िल्म, सांस्कृतिक सिद्धांत पर उनका निबंध व्यापक रूप से पसंद किया गया है।
सबसे छोटे मोहनदास सभी के लाड़ले थे। पुतलीबाई भी उनसे बहुत लाड़ करती थीं। अपने सारे संस्कारों, अभिलाषाओं और भावनाओं का सिंचन उन्होंने मोहनदास में ही किया था। वस्तुत: गांधी जी का भक्तिभाव, नम्रता, मेहनत, सेवा-परायणता और अखंड धर्मनिष्ठा उनकी माँ की ही देन थे।
 
*उन्होंने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शनी लगाई हैं।
 
*इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं- (1)Contemporary Indian artists, (2) When was Modernism: Essays on Contemporary Culturalce Practice in India, (3) Ends and Means: Critical inscription in contemporary art. इनके पति विवान सुंदरम भी एक कलाकार हैं।
 
* चित्रकला में में विशेष योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें [[2009]] में [[पद्म श्री]] पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
*उन्होंने भारतीय उन्नत शिक्षण संस्थान, शिमला और नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय, नई दिल्ली में सभा आयोजित की।
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'''गीता कपूर''' ([[अंग्रेज़ी]]: '''Geeta Kapur''', जन्म- [[1943]]) नई दिल्ली में एक प्रसिद्ध भारतीय कला आलोचक, कला इतिहासकार और क्यूरेटर हैं।
 
और जो इंडियन एक्सप्रेस ने उल्लेख किया था, ने "तीन दशकों के लिए भारतीय समकालीन कला सिद्धांत के क्षेत्र पर प्रभुत्व" किया है।
 
उनका पति इंस्टालेशन कलाकार विवन सुंदरम है।
 
2011 में, हांगकांग स्थित एशिया आर्ट आर्काइव (एएए) ने अपने संग्रह को डिजीटल किया और फ़रवरी 2011 में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली में एक और लाइफ नामक प्रदर्शनी का आयोजन किया।

13:04, 14 अक्टूबर 2017 का अवतरण

पुतलीबाई (जन्म- 1839, दात्राल गाँव, जूनागढ़; मृत्यु- 1891)[1] महात्मा गाँधी की माता तथा करमचंद गाँधी, जिन्हें कबा गाँधी के नाम से भी जाना जाता था, की चौथी पत्नी थीं।

जीवन परिचय

पुतलीबाई का जन्म सन् 1839 में जूनागढ़ के पास दात्राल गाँव में हुआ था। वे एक निर्धन परिवार से सम्बंधित थीं। उनका विवाह करमचंद गाँधी के साथ हुआ था। पुतलीबाई उनकी चौथी पत्नी थीं।

वैवाहिक जीवन

कबा और पुतलीबाई की आयु में दुगुने से भी अधिक का अंतर था, लेकिन जल्दी ही उन्होनें घर की पूरी ज़िम्मेदारी सँभाल ली। कबा का परिवार बहुत बड़ा था। दीवान होने के कारण उनके घर मेहमानों और रिश्तेदारों का आना-जाना लगा ही रहता था। घर में हर शाम 40-50 लोगों का भोजन बनता था। पुतलीबाई घर की अन्य महिलाओं के साथ स्वंय रसोई का काम सँभालती थीं। पुतलीबाई ने सौतेली संतानों से कभी भेदभाव नहीं किया। वास्तव में उनकी सौतेली संताने उम्र में उनसे बड़ी थीं, जिनके साथे उन्होंने सद्भावपूर्ण व्यवहार किया, उनकी सुख- सुविधाओं का बेहतर ख्याल रखा। बड़े सवेरे उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर वे पूजा-आराधना करतीं फिर रसोई के कार्य में जुट जातीं।

उनकी सादगी और निस्स्वार्थ सेवा की लोग प्रशंसा करते थे। कहते थे कि दीवान की पत्नी होकर भी उनमें लेशमात्र गर्व नहीं है। ऐसी पत्नी को पाकर कबा गर्व से फूले नहीं समाते थे।

संतान

पुतलीबाई के तीन पुत्र थे। सबसे बड़े लक्ष्मीदास उर्फ़ कालदास सन 1861 में पैदा हुए। उनके बाद सन् 1862 में एक पुत्री रलियातबेन उर्फ़ गोकीबेन पैदा हुई। सन् 1866 करसनदास (कृष्णदास) और 2 अक्टूबर, 1869 में मोहनदास का जन्म हुआ।

सबसे छोटे मोहनदास सभी के लाड़ले थे। पुतलीबाई भी उनसे बहुत लाड़ करती थीं। अपने सारे संस्कारों, अभिलाषाओं और भावनाओं का सिंचन उन्होंने मोहनदास में ही किया था। वस्तुत: गांधी जी का भक्तिभाव, नम्रता, मेहनत, सेवा-परायणता और अखंड धर्मनिष्ठा उनकी माँ की ही देन थे।

  1. पुतलीबाई (हिंदी) www.geni.com। अभिगमन तिथि: 14 अक्टूबर, 2017।