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{{सूचना बक्सा साहित्यकार
'''कमलादास गुप्ता''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kamaladas Gupta'', जन्म: [[11 मार्च]], [[1907]] ढाका ज़िला [[बंगलादेश]]; मृत्यु: [[19 जुलाई]], [[2000]]) [[बंगाल]] की प्रसिद्ध क्रांतिकारी थी। यह [[गांधीजी]] के विचारों से प्रभावित थी [[1933]] से [[1936]] तक का समय इन्हें जेल या नजरबंदी में बिताना पड़ा।
|चित्र=Blank-Image-2.jpg
==परिचय==
|चित्र का नाम=श्री नारायण चतुर्वेदी
कमलादास गुप्ता का जन्म 11 मार्च, 1907 ई. को ढाका ज़िले में हुआ था, पर बाद में इनके पत्रकार पिता सुरेन्द्रनाथ दास गुप्ता [[कोलकाता]] आकर रहने लगे थे। बी.ए.की परीक्षा पास करने तक कमलादास गुप्ता का व्यवहार अपनी वय की सामान्य लड़कियों के समान ही था। परंतु इसके बाद उनके अंदर देशभक्ति की भावना जागृत हो गई।
|पूरा नाम=श्री नारायण चतुर्वेदी
==क्रांतिकारी जीवन==
|अन्य नाम=श्रीवर,
कमलादास गुप्ता [[गांधीजी]] के विचारों से प्रभावित थी और उनके [[साबरमती आश्रम]] में जाना चाहती थी। परंतु [[माता]]-[[पिता]] ने इसकी अनुमति नहीं दी लेकिन तभी इनका संपर्क बंगाल के क्रांतिकारीयों से हो गया। यह 'युगांतर पार्टी' में सम्मिलित हो गयी। कमलादास गुप्ता घर में रहकर पार्टी की गुप्त गतिविधियों में संलग्न होना कठिन देखकर [[1930]] में घर छोड़कर चली गई। इसके बाद इनका गिरफ्तारी और छूटने का सिलसिला शुरू हो गया। 1930 में कमला गिरफ्तार की गई परंतु पुष्ट प्रमाण न होने के कारण रिहा हो गई। बंगाल के गवर्नर पर गोली चलाने वाली [[बीना दास]] को पिस्तौल कमला ने ही उपलब्ध कराई थी। पक्के प्रमाण न मिलने के कारण गिरफ्तार करने के बाद फिर से इन्हें छोड़ दिया गया। [[1933]] से [[1936]] तक का समय इन्हें जेल या नजरबंदी में बिताने पड़े। [[1938]] में जब दासता के विरुद्ध आंदोलन में क्रांतिकारी भी [[कांग्रेस]] के साथ मिल गए तो कमलादास गुप्ता भी कांग्रेस में सम्मिलित हो गई। '[[भारत छोड़ो आंदोलन]]' में भी यह जेल गई।
|जन्म=[[28 सितंबर]], [[1895]]
==समाज सेवा==
|जन्म भूमि=[[इटावा]], [[उत्तर प्रदेश]]
कमलादास गुप्ता राजनीति के साथ-साथ समाज सेवा के कार्यों में भी बहुत रुचि थी। सांप्रदायिक दंगों से पीड़ितों की इन्होंने बहुत सहायता की। [[1946]] में जिस समय गांधीजी ने दंगा पीड़ित नोआखाली की पैदल यात्रा की वहां सहायता कार्य की प्रमुख कार्यकर्ता कमला ही थी। महिलाओं को आजीविका की सुविधा प्रदान करने के उद्देध्य से इन्होंने महिला शिल्प कला केंद्रों की स्थापना की थीं। इन सब कामों के अतिरिक्त कमलादास गुप्ता को पत्रकारिता और साहित्य में भी रुचि थी।
|मृत्यु=[[18 अगस्त]], [[1990]]
|मृत्यु स्थान=
|अभिभावक=श्री द्वारिका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी
|पालक माता-पिता=
|पति/पत्नी=
|संतान=
|कर्म भूमि=[[भारत]]
|कर्म-क्षेत्र=
|मुख्य रचनाएँ=रत्नदीप तथा जीवन कण
|विषय=
|भाषा=[[संस्कृत भाषा]]
|विद्यालय=लंदन विश्वविद्यालय
|शिक्षा=एम.ए.
|पुरस्कार-उपाधि=
|प्रसिद्धि=[[कवि]], पत्रकार, भाषा-विज्ञानी तथा लेखक
|विशेष योगदान=
|नागरिकता=भारतीय
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=श्री नारायण चतुर्वेदी ने [[1955]] से 20 वर्षों तक हिन्दी की ऐतिहासिक मासिक पात्रिका 'सरस्वती' का सफलतापूर्वक संपादन किया। साहित्य रचना के स्तर पर इनके द्वारा रचित और अनुवादित 36 ग्रंथ प्रकाशित है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
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'''श्री नारायण चतुर्वेदी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shri Narayan Chaturvedi'', जन्म: [[28 सितंबर]], [[1895]], [[इटावा]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु: [[18 अगस्त]], [[1990]]) [[हिन्दी]] के साहित्यकार, प्रचारक, सर्जक तथा पत्रकार थे जो आजीवन हिन्दी के लिये समर्पित रहे। ये [[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती पत्रिका]] के सम्पादक भी थे। इन्होंने राष्ट्र को हिन्दीमय बनाने के लिये जनता में भाषा की जीवन्त चेतना को उकसाया। अपनी अमूल्य [[हिन्दी]] सेवा द्वारा इन्होंने [[भारतरत्न]] [[मदन मोहन मालवीय]] तथा [[पुरुषोत्तम दास टंडन]] की योजनाओं और लक्ष्यों को आगे बढ़ाया।
==जन्म एवं शिक्षा==
श्री नारायण चतुर्वेदी का जन्म उत्तर-प्रदेश के इटावा जनपद में सन्‌ 1895 ई॰ में हुआ माना जाता है तथा श्रीनारायण जी इसी जन्मतिथि के हिसाब से ही भारत सरकार की राजकीय सेवा से सेवानिवृत भी हुये। (हाँलांकि इनकी मृत्यु के उपरांत प्रकाशित आत्मकथा 'परिवेश की कथ' में इन्होने अपना जन्म आश्विन कृष्ण तृतीया, अर्थात्‌ 28 दिसम्बर 1893 ई. की मध्यरात्रि को होना अवगत कराया है)। इनके पिता श्री द्वारिका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी उस क्षेत्र में अपने समय के [[संस्कृत भाषा]] के नामी विद्वान थे तथा उन्होंने सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की थी। पिता की विद्धता का सीधा प्रभाव श्रीनारायण चतुर्वेदी जी पर पड़ा। इनकी शिक्षा [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से हुई। [[इतिहास]] विषय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया। फिर [[1925]] में [[उत्तर प्रदेश]] सरकार की छात्रवृति मिलने पर शिक्षा शास्त्र में उच्च अध्ययन के लिए ये [[इंग्लैण्ड]] गये वहां लंदन विश्वविद्यालय से शिक्षा शास्त्र में एम.ए. करने के बाद [[1928]] में उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में अधिकारी नियुक्त किए गए।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=870|url=}}</ref>
==हिंदी का प्रचार==
श्री नारायण चतुर्वेदी अपने सेवाकाल से ही [[हिन्दी]] के प्रचार-प्रसार के लिए विशेष रूप से सक्रिय थे। ये जहाँ भी रहे, वहाँ कवि सम्मेलनों की धूम रहती थीं। इनकी हिन्दी के प्रति निष्ठा देख कर ही [[पुरुषोत्तम दास टंडन|राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन]] का सुझाव मान कर [[सरदार पटेल]] के सूचना मंत्री काल में चतुर्वेदी जी को आल इंडिया रेडियो में उप महानिदेशक ([[भाषा]]) के रूप में तैनात किया गया था। इनके प्रयत्नों से रेडियों की भाषा के अरब-फारसीकरण पर रोक लगी। रेडियों की सेवा से निवृत्त होने पर ये 4 वर्ष तक मध्यभारत के शिक्षा और पुरातत्व विभाग के निदेशक रहे।
==लेखन कार्य==
श्री नारायण चतुर्वेदी की ख्याति एक [[कवि]], पत्रकार, भाषा-विज्ञानी तथा लेखक के रूप में है। इन्होंने अपनी [[कविता|कवितायें]] 'श्रीवर' नाम से लिखकर दो कविता संग्रह तैयार किये-
#रत्नदीप
#जीवन कण
 
 
इनके द्वारा [[अंग्रेजी भाषा]] से किया गया अनुवाद 'विश्व का इतिहास' तथा 'शासक' महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। ये [[हिन्दी|हिन्दी भाषा]] में प्रकाशित संग्राहक कोश 'विश्वभारती' के संपादक रहे। [[1955]] से 20 वर्षों तक इन्होंने हिन्दी की ऐतिहासिक मासिक पात्रिका '[[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]]' का सफलतापूर्वक संपादन किया। साहित्य रचना के स्तर पर इनके द्वारा रचित और अनुवादित 36 ग्रंथ प्रकाशित है। 'विनोद शर्मा' के नाम से ये व्यंग्य रचनाएं करते थे। [[पुरातत्त्व]] और [[कला]] मे भी इनकी इतनी ही रुचि थी।
==पुरस्कार==
श्री नारायण चतुर्वेदी का हिन्दी की प्रगति के मार्ग में कहीं से भी रोड़ा अटकाया जाए, यह इनके लिए असह्य था। उत्तर प्रदेश सरकार ने इनको एक लाख [[रुपया|रुपये]] का '[[भारत भारती]]' पुरस्कार देने का निश्चय किया था, परंतु इसी बीच जब सरकार ने प्रदेश की दूसरी सरकारी भाषा का दर्जा [[उर्दू]] को देने का निश्चय किया तो चतुर्वेदी जी ने सरकार का यह पुरस्कार अस्वीकार कर दिया। उनके इस निर्णय का प्रदेश की जनता पर यह प्रभाव पड़ा कि हिन्दी प्रेमी जनता की ओर से उन्हें एक लाख ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह रुपयों का 'जनता भारत भारती' पुरस्कार प्रदान करके सम्मनित किया गया था।
==निधन==
==निधन==
श्री नारायण चतुर्वेदी का लम्बी बीमारी के बाद [[18 अगस्त]], [[1990]] को निधन हो गया।
कमलादास गुप्ता का निधन [[19 जुलाई]], [[2000]] को हो गया।

11:07, 11 दिसम्बर 2016 का अवतरण

कमलादास गुप्ता (अंग्रेज़ी: Kamaladas Gupta, जन्म: 11 मार्च, 1907 ढाका ज़िला बंगलादेश; मृत्यु: 19 जुलाई, 2000) बंगाल की प्रसिद्ध क्रांतिकारी थी। यह गांधीजी के विचारों से प्रभावित थी 1933 से 1936 तक का समय इन्हें जेल या नजरबंदी में बिताना पड़ा।

परिचय

कमलादास गुप्ता का जन्म 11 मार्च, 1907 ई. को ढाका ज़िले में हुआ था, पर बाद में इनके पत्रकार पिता सुरेन्द्रनाथ दास गुप्ता कोलकाता आकर रहने लगे थे। बी.ए.की परीक्षा पास करने तक कमलादास गुप्ता का व्यवहार अपनी वय की सामान्य लड़कियों के समान ही था। परंतु इसके बाद उनके अंदर देशभक्ति की भावना जागृत हो गई।

क्रांतिकारी जीवन

कमलादास गुप्ता गांधीजी के विचारों से प्रभावित थी और उनके साबरमती आश्रम में जाना चाहती थी। परंतु माता-पिता ने इसकी अनुमति नहीं दी लेकिन तभी इनका संपर्क बंगाल के क्रांतिकारीयों से हो गया। यह 'युगांतर पार्टी' में सम्मिलित हो गयी। कमलादास गुप्ता घर में रहकर पार्टी की गुप्त गतिविधियों में संलग्न होना कठिन देखकर 1930 में घर छोड़कर चली गई। इसके बाद इनका गिरफ्तारी और छूटने का सिलसिला शुरू हो गया। 1930 में कमला गिरफ्तार की गई परंतु पुष्ट प्रमाण न होने के कारण रिहा हो गई। बंगाल के गवर्नर पर गोली चलाने वाली बीना दास को पिस्तौल कमला ने ही उपलब्ध कराई थी। पक्के प्रमाण न मिलने के कारण गिरफ्तार करने के बाद फिर से इन्हें छोड़ दिया गया। 1933 से 1936 तक का समय इन्हें जेल या नजरबंदी में बिताने पड़े। 1938 में जब दासता के विरुद्ध आंदोलन में क्रांतिकारी भी कांग्रेस के साथ मिल गए तो कमलादास गुप्ता भी कांग्रेस में सम्मिलित हो गई। 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भी यह जेल गई।

समाज सेवा

कमलादास गुप्ता राजनीति के साथ-साथ समाज सेवा के कार्यों में भी बहुत रुचि थी। सांप्रदायिक दंगों से पीड़ितों की इन्होंने बहुत सहायता की। 1946 में जिस समय गांधीजी ने दंगा पीड़ित नोआखाली की पैदल यात्रा की वहां सहायता कार्य की प्रमुख कार्यकर्ता कमला ही थी। महिलाओं को आजीविका की सुविधा प्रदान करने के उद्देध्य से इन्होंने महिला शिल्प कला केंद्रों की स्थापना की थीं। इन सब कामों के अतिरिक्त कमलादास गुप्ता को पत्रकारिता और साहित्य में भी रुचि थी।

निधन

कमलादास गुप्ता का निधन 19 जुलाई, 2000 को हो गया।