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'''श्री नारायण चतुर्वेदी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shri Narayan Chaturvedi'', जन्म: [[28 सितंबर]], [[1895]], [[इटावा]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु: [[18 अगस्त]], [[1990]]) [[हिन्दी]] के साहित्यकार, प्रचारक, सर्जक तथा पत्रकार थे जो आजीवन हिन्दी के लिये समर्पित रहे। ये | '''श्री नारायण चतुर्वेदी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shri Narayan Chaturvedi'', जन्म: [[28 सितंबर]], [[1895]], [[इटावा]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु: [[18 अगस्त]], [[1990]]) [[हिन्दी]] के साहित्यकार, प्रचारक, सर्जक तथा पत्रकार थे जो आजीवन हिन्दी के लिये समर्पित रहे। ये [[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती पत्रिका]] के सम्पादक भी थे। इन्होंने राष्ट्र को हिन्दीमय बनाने के लिये जनता में भाषा की जीवन्त चेतना को उकसाया। अपनी अमूल्य [[हिन्दी]] सेवा द्वारा इन्होंने [[भारतरत्न]] [[मदन मोहन मालवीय]] तथा [[पुरुषोत्तम दास टंडन]] की योजनाओं और लक्ष्यों को आगे बढ़ाया। | ||
==जन्म एवं शिक्षा== | ==जन्म एवं शिक्षा== | ||
श्री नारायण चतुर्वेदी का जन्म उत्तर-प्रदेश के इटावा जनपद में सन् 1895 ई॰ में हुआ माना जाता है तथा श्रीनारायण जी इसी जन्मतिथि के हिसाब से ही भारत सरकार की राजकीय सेवा से सेवानिवृत भी हुये। (हाँलांकि इनकी मृत्यु के उपरांत प्रकाशित आत्मकथा 'परिवेश की कथ' में इन्होने अपना जन्म आश्विन कृष्ण तृतीया, अर्थात् 28 दिसम्बर 1893 ई. की मध्यरात्रि को होना अवगत कराया है)। इनके पिता श्री द्वारिका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी उस क्षेत्र में अपने समय के [[संस्कृत भाषा]] के नामी विद्वान थे तथा उन्होंने सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की थी। पिता की विद्धता का सीधा प्रभाव श्रीनारायण चतुर्वेदी जी पर पड़ा। इनकी शिक्षा [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से हुई। [[इतिहास]] विषय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया। फिर [[1925]] में [[उत्तर प्रदेश]] सरकार की छात्रवृति मिलने पर शिक्षा शास्त्र में उच्च अध्ययन के लिए ये [[इंग्लैण्ड]] गये वहां लंदन विश्वविद्यालय से शिक्षा शास्त्र में एम.ए. करने के बाद [[1928]] में उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में अधिकारी नियुक्त किए गए।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=870|url=}}</ref> | श्री नारायण चतुर्वेदी का जन्म उत्तर-प्रदेश के इटावा जनपद में सन् 1895 ई॰ में हुआ माना जाता है तथा श्रीनारायण जी इसी जन्मतिथि के हिसाब से ही भारत सरकार की राजकीय सेवा से सेवानिवृत भी हुये। (हाँलांकि इनकी मृत्यु के उपरांत प्रकाशित आत्मकथा 'परिवेश की कथ' में इन्होने अपना जन्म आश्विन कृष्ण तृतीया, अर्थात् 28 दिसम्बर 1893 ई. की मध्यरात्रि को होना अवगत कराया है)। इनके पिता श्री द्वारिका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी उस क्षेत्र में अपने समय के [[संस्कृत भाषा]] के नामी विद्वान थे तथा उन्होंने सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की थी। पिता की विद्धता का सीधा प्रभाव श्रीनारायण चतुर्वेदी जी पर पड़ा। इनकी शिक्षा [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से हुई। [[इतिहास]] विषय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया। फिर [[1925]] में [[उत्तर प्रदेश]] सरकार की छात्रवृति मिलने पर शिक्षा शास्त्र में उच्च अध्ययन के लिए ये [[इंग्लैण्ड]] गये वहां लंदन विश्वविद्यालय से शिक्षा शास्त्र में एम.ए. करने के बाद [[1928]] में उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में अधिकारी नियुक्त किए गए।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=870|url=}}</ref> | ||
==हिंदी का प्रचार== | ==हिंदी का प्रचार== | ||
श्री नारायण चतुर्वेदी अपने सेवाकाल से ही [[हिन्दी]] के प्रचार-प्रसार के लिए विशेष रूप से सक्रिय थे। ये जहाँ भी रहे, वहाँ कवि सम्मेलनों की धूम रहती थीं। इनकी हिन्दी के प्रति निष्ठा देख कर ही [[पुरुषोत्तम दास टंडन|राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन]] का सुझाव मान कर [[सरदार पटेल]] के सूचना मंत्री काल में चतुर्वेदी जी को आल इंडिया रेडियो में उप महानिदेशक ([[भाषा]]) के रूप में तैनात किया गया था। इनके प्रयत्नों से रेडियों की भाषा के अरब-फारसीकरण पर रोक लगी। रेडियों की सेवा से निवृत्त होने पर ये 4 वर्ष तक मध्यभारत के शिक्षा और पुरातत्व विभाग के निदेशक रहे। | श्री नारायण चतुर्वेदी अपने सेवाकाल से ही [[हिन्दी]] के प्रचार-प्रसार के लिए विशेष रूप से सक्रिय थे। ये जहाँ भी रहे, वहाँ कवि सम्मेलनों की धूम रहती थीं। इनकी हिन्दी के प्रति निष्ठा देख कर ही [[पुरुषोत्तम दास टंडन|राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन]] का सुझाव मान कर [[सरदार पटेल]] के सूचना मंत्री काल में चतुर्वेदी जी को आल इंडिया रेडियो में उप महानिदेशक ([[भाषा]]) के रूप में तैनात किया गया था। इनके प्रयत्नों से रेडियों की भाषा के अरब-फारसीकरण पर रोक लगी। रेडियों की सेवा से निवृत्त होने पर ये 4 वर्ष तक मध्यभारत के शिक्षा और पुरातत्व विभाग के निदेशक रहे। | ||
== | ==लेखन कार्य== | ||
श्री नारायण चतुर्वेदी की ख्याति एक कवि, पत्रकार, भाषा-विज्ञानी तथा लेखक के रूप में है। इन्होंने अपनी कवितायें 'श्रीवर' नाम से लिखकर दो कविता संग्रह तैयार किये | श्री नारायण चतुर्वेदी की ख्याति एक [[कवि]], पत्रकार, भाषा-विज्ञानी तथा लेखक के रूप में है। इन्होंने अपनी [[कविता|कवितायें]] 'श्रीवर' नाम से लिखकर दो कविता संग्रह तैयार किये- | ||
इनके द्वारा [[अंग्रेजी भाषा]] से किया गया अनुवाद 'विश्व का इतिहास' तथा 'शासक' महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। ये हिन्दी भाषा में प्रकाशित संग्राहक कोश 'विश्वभारती' के संपादक रहे। [[1955]] से 20 वर्षों तक इन्होंने हिन्दी की ऐतिहासिक मासिक पात्रिका 'सरस्वती' का सफलतापूर्वक संपादन किया। साहित्य रचना के स्तर पर इनके द्वारा रचित और अनुवादित 36 ग्रंथ प्रकाशित है। 'विनोद शर्मा' के नाम से ये व्यंग्य रचनाएं करते थे। | #रत्नदीप | ||
#जीवन कण | |||
इनके द्वारा [[अंग्रेजी भाषा]] से किया गया अनुवाद 'विश्व का इतिहास' तथा 'शासक' महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। ये [[हिन्दी|हिन्दी भाषा]] में प्रकाशित संग्राहक कोश 'विश्वभारती' के संपादक रहे। [[1955]] से 20 वर्षों तक इन्होंने हिन्दी की ऐतिहासिक मासिक पात्रिका '[[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]]' का सफलतापूर्वक संपादन किया। साहित्य रचना के स्तर पर इनके द्वारा रचित और अनुवादित 36 ग्रंथ प्रकाशित है। 'विनोद शर्मा' के नाम से ये व्यंग्य रचनाएं करते थे। [[पुरातत्त्व]] और [[कला]] मे भी इनकी इतनी ही रुचि थी। | |||
==पुरस्कार== | ==पुरस्कार== | ||
श्री नारायण चतुर्वेदी का हिन्दी की प्रगति के मार्ग में कहीं से भी रोड़ा अटकाया जाए, यह इनके लिए असह्य था। | श्री नारायण चतुर्वेदी का हिन्दी की प्रगति के मार्ग में कहीं से भी रोड़ा अटकाया जाए, यह इनके लिए असह्य था। उत्तर प्रदेश सरकार ने इनको एक लाख [[रुपया|रुपये]] का '[[भारत भारती]]' पुरस्कार देने का निश्चय किया था, परंतु इसी बीच जब सरकार ने प्रदेश की दूसरी सरकारी भाषा का दर्जा [[उर्दू]] को देने का निश्चय किया तो चतुर्वेदी जी ने सरकार का यह पुरस्कार अस्वीकार कर दिया। उनके इस निर्णय का प्रदेश की जनता पर यह प्रभाव पड़ा कि हिन्दी प्रेमी जनता की ओर से उन्हें एक लाख ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह रुपयों का 'जनता भारत भारती' पुरस्कार प्रदान करके सम्मनित किया गया था। | ||
==निधन== | ==निधन== | ||
श्री नारायण चतुर्वेदी का लम्बी बीमारी के बाद [[18 अगस्त]], [[1990]] ई को निधन हो गया। | श्री नारायण चतुर्वेदी का लम्बी बीमारी के बाद [[18 अगस्त]], [[1990]] ई को निधन हो गया। |
11:43, 10 दिसम्बर 2016 का अवतरण
कविता बघेल 2
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पूरा नाम | श्री नारायण चतुर्वेदी |
अन्य नाम | श्रीवर, |
जन्म | 28 सितंबर, 1895 |
जन्म भूमि | इटावा, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 18 अगस्त, 1990 |
अभिभावक | श्री द्वारिका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | रत्नदीप तथा जीवन कण |
भाषा | संस्कृत भाषा |
विद्यालय | लंदन विश्वविद्यालय |
शिक्षा | एम.ए. |
प्रसिद्धि | कवि, पत्रकार, भाषा-विज्ञानी तथा लेखक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | श्री नारायण चतुर्वेदी ने 1955 से 20 वर्षों तक हिन्दी की ऐतिहासिक मासिक पात्रिका 'सरस्वती' का सफलतापूर्वक संपादन किया। साहित्य रचना के स्तर पर इनके द्वारा रचित और अनुवादित 36 ग्रंथ प्रकाशित है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
श्री नारायण चतुर्वेदी (अंग्रेज़ी: Shri Narayan Chaturvedi, जन्म: 28 सितंबर, 1895, इटावा, उत्तर प्रदेश; मृत्यु: 18 अगस्त, 1990) हिन्दी के साहित्यकार, प्रचारक, सर्जक तथा पत्रकार थे जो आजीवन हिन्दी के लिये समर्पित रहे। ये सरस्वती पत्रिका के सम्पादक भी थे। इन्होंने राष्ट्र को हिन्दीमय बनाने के लिये जनता में भाषा की जीवन्त चेतना को उकसाया। अपनी अमूल्य हिन्दी सेवा द्वारा इन्होंने भारतरत्न मदन मोहन मालवीय तथा पुरुषोत्तम दास टंडन की योजनाओं और लक्ष्यों को आगे बढ़ाया।
जन्म एवं शिक्षा
श्री नारायण चतुर्वेदी का जन्म उत्तर-प्रदेश के इटावा जनपद में सन् 1895 ई॰ में हुआ माना जाता है तथा श्रीनारायण जी इसी जन्मतिथि के हिसाब से ही भारत सरकार की राजकीय सेवा से सेवानिवृत भी हुये। (हाँलांकि इनकी मृत्यु के उपरांत प्रकाशित आत्मकथा 'परिवेश की कथ' में इन्होने अपना जन्म आश्विन कृष्ण तृतीया, अर्थात् 28 दिसम्बर 1893 ई. की मध्यरात्रि को होना अवगत कराया है)। इनके पिता श्री द्वारिका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी उस क्षेत्र में अपने समय के संस्कृत भाषा के नामी विद्वान थे तथा उन्होंने सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की थी। पिता की विद्धता का सीधा प्रभाव श्रीनारायण चतुर्वेदी जी पर पड़ा। इनकी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई। इतिहास विषय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया। फिर 1925 में उत्तर प्रदेश सरकार की छात्रवृति मिलने पर शिक्षा शास्त्र में उच्च अध्ययन के लिए ये इंग्लैण्ड गये वहां लंदन विश्वविद्यालय से शिक्षा शास्त्र में एम.ए. करने के बाद 1928 में उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में अधिकारी नियुक्त किए गए।[1]
हिंदी का प्रचार
श्री नारायण चतुर्वेदी अपने सेवाकाल से ही हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए विशेष रूप से सक्रिय थे। ये जहाँ भी रहे, वहाँ कवि सम्मेलनों की धूम रहती थीं। इनकी हिन्दी के प्रति निष्ठा देख कर ही राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन का सुझाव मान कर सरदार पटेल के सूचना मंत्री काल में चतुर्वेदी जी को आल इंडिया रेडियो में उप महानिदेशक (भाषा) के रूप में तैनात किया गया था। इनके प्रयत्नों से रेडियों की भाषा के अरब-फारसीकरण पर रोक लगी। रेडियों की सेवा से निवृत्त होने पर ये 4 वर्ष तक मध्यभारत के शिक्षा और पुरातत्व विभाग के निदेशक रहे।
लेखन कार्य
श्री नारायण चतुर्वेदी की ख्याति एक कवि, पत्रकार, भाषा-विज्ञानी तथा लेखक के रूप में है। इन्होंने अपनी कवितायें 'श्रीवर' नाम से लिखकर दो कविता संग्रह तैयार किये-
- रत्नदीप
- जीवन कण
इनके द्वारा अंग्रेजी भाषा से किया गया अनुवाद 'विश्व का इतिहास' तथा 'शासक' महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। ये हिन्दी भाषा में प्रकाशित संग्राहक कोश 'विश्वभारती' के संपादक रहे। 1955 से 20 वर्षों तक इन्होंने हिन्दी की ऐतिहासिक मासिक पात्रिका 'सरस्वती' का सफलतापूर्वक संपादन किया। साहित्य रचना के स्तर पर इनके द्वारा रचित और अनुवादित 36 ग्रंथ प्रकाशित है। 'विनोद शर्मा' के नाम से ये व्यंग्य रचनाएं करते थे। पुरातत्त्व और कला मे भी इनकी इतनी ही रुचि थी।
पुरस्कार
श्री नारायण चतुर्वेदी का हिन्दी की प्रगति के मार्ग में कहीं से भी रोड़ा अटकाया जाए, यह इनके लिए असह्य था। उत्तर प्रदेश सरकार ने इनको एक लाख रुपये का 'भारत भारती' पुरस्कार देने का निश्चय किया था, परंतु इसी बीच जब सरकार ने प्रदेश की दूसरी सरकारी भाषा का दर्जा उर्दू को देने का निश्चय किया तो चतुर्वेदी जी ने सरकार का यह पुरस्कार अस्वीकार कर दिया। उनके इस निर्णय का प्रदेश की जनता पर यह प्रभाव पड़ा कि हिन्दी प्रेमी जनता की ओर से उन्हें एक लाख ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह रुपयों का 'जनता भारत भारती' पुरस्कार प्रदान करके सम्मनित किया गया था।
निधन
श्री नारायण चतुर्वेदी का लम्बी बीमारी के बाद 18 अगस्त, 1990 ई को निधन हो गया।
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 870 |