"गोलू-मोलू और भालू": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "Category:पंचतंत्र_की_कहानियां" to "Category:पंचतंत्र की कहानियाँCategory:कहानीCategory:साहित्य कोश") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "==संबंधित लेख== Category:नया पन्ना दिसंबर-2011" to "==संबंधित लेख== {{पंचतंत्र की कहानियाँ}}") |
||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{पंचतंत्र की कहानियाँ}} | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
[[Category:पंचतंत्र की कहानियाँ]][[Category:कहानी]][[Category:साहित्य कोश]] | [[Category:पंचतंत्र की कहानियाँ]][[Category:कहानी]][[Category:साहित्य कोश]] |
07:56, 20 दिसम्बर 2011 का अवतरण
![]() |
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
- गोलू-मोलू और भालू
गोलू-मोलू और पक्के दोस्त थे। गोलू जहां दुबला-पतला था, वहीं मोलू मोटा गोल-मटोल। दोनों एक-दूसरे पर जान देने का दम भरते थे, लेकिन उनकी जोड़ी देखकर लोगों की हंसी छूट जाती। एक बार उन्हें किसी दूसरे गांव में रहने वाले मित्र का निमंत्रण मिला। उसने उन्हें अपनी बहन के विवाह के अवसर पर बुलाया था।
उनके मित्र का गांव कोई बहुत दूर तो नहीं था लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए जंगल से होकर गुजरना पड़ता था। और उस जंगल में जंगली जानवरों की भरमार थी।
दोनों चल दिए…जब वे जंगल से होकर गुजर रहे थे तो उन्हें सामने से एक भालू आता दिखा। उसे देखकर दोनों भय से थर-थर कांपने लगे। तभी दुबला-पतला गोलू तेजी से दौड़कर एक पेड़ पर जा चढ़ा, लेकिन मोटा होने के कारण मोलू उतना तेज नहीं दौड़ सकता था। उधर भालू भी निकट आ चुका था, फिर भी मोलू ने साहस नहीं खोया। उसने सुन रखा था कि भालू मृत शरीर को नहीं खाते। वह तुरंत जमीन पर लेट गये और सांस रोक ली। ऐसा अभिनय किया कि मानो शरीर में प्राण हैं ही नहीं। भालू घुरघुराता हुआ मोलू के पास आया, उसके चेहरे व शरीर को सूंघा और उसे मृत समझकर आगे बढ़ गया।
जब भालू काफी दूर निकल गया तो गोलू पेड़ से उतरकर मोलू के निकट आया और बोला, ‘‘मित्र, मैंने देखा था….भालू तुमसे कुछ कह रहा था। क्या कहा उसने ?’’
मोलू ने गुस्से में भरकर जवाब दिया, ‘‘मुझे मित्र कहकर न बुलाओ…और ऐसा ही कुछ भालू ने भी मुझसे कहा। उसने कहा, गोलू पर विश्वास न करना, वह तुम्हारा मित्र नहीं है।’’
सुनकर गोलू शर्मिन्दा हो गया। उसे अभ्यास हो गया था कि उससे कितनी भारी भूल हो गई थी। उसकी मित्रता भी सदैव के लिए समाप्त हो गई।
शिक्षा — सच्चा मित्र वही है जो संकट के काम आए।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ