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| {अमेरिकी संविधान द्वारा किसकी शक्तियां निश्चित कर दी गयी हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-193,प्रश्न-7 | | {[[भारतीय संविधान]] को निम्नलिखित में से कौन-सी अनुसूची राज्यसभा में स्थानों के आवंटन से संबंधित है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +संघ की | | -[[भारत का संविधान- तीसरी अनुसूची |तीसरी अनुसूची]] |
| -राज्यों की | | +[[भारत का संविधान- चौथी अनुसूची|चौथी अनुसूची]] |
| -उपर्युक्त दोनों | | -[[भारत का संविधान- पांचवीं अनुसूची|पांचवीं अनुसूची]] |
| -उपर्युक्त में से कोई नहीं | | -[[भारत का संविधान- छठी अनुसूची|छठीं अनुसूची]] |
| ||अमेरिकी संविधान [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] का सर्वोच्च कानून है। इसकी आधारशिला संघवाद है। अमेरिकी संविधान में संघीय सरकार की शक्तियां निश्चित कर दी गई हैं तथा अन्य शक्तियां राज्यों को प्रदान कर दी गई हैं। | | ||[[भारतीय संविधान]] की चौथी अनुसूची [[राज्य सभा]] में स्थानों के आवंटन से संबंधित है। |
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| {'लॉ ऑफ़ दी कांस्टीट्यूशन' का प्रख्यात लेखक कौन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-201,प्रश्न-4
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| +ए.वी. डायसी
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| -हरमन फाइनर
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| -आर.जी. गेटेल
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| -एफ. डब्ल्यू. विलोबी
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| ||'एन इंट्रोडक्शन ऑफ़ दि लॉ ऑफ़ दि कांस्टीट्यूशन (1885)' के लेखक ए. वी. डायसी है।
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| {"सबसे निकृष्ट [[राज्य]] भी सबसे उत्कृष्ट अराजकता से अच्छा है।" यह मत किसने व्यक्त किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-8,प्रश्न-26
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| -हीगल
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| -रूसो
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| -लॉक
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| +हॉब्स
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| ||हॉब्स के अनुसार, प्रभुसत्ता के अबाध अधिकार के फलस्वरूप ही एक वास्तविक सुदृढ़ शासन (Commonwealth) की स्थापना हो सकती है। किसी प्रकार की शर्तें लगाने से अनिश्चय और अविश्वास की संभावना हो सकती थी, जिससे इस प्रकार के झगड़े उत्पन्न हो जाते, जिनका हल संभव नहीं होता और तब पुन: अराजकता फैल जाती। इसका परिणाम यह रहा कि सबसे निकृष्ट राज्य में भी प्रजा को शासक के विरुद्ध बोलने का अधिकार नहीं रहा, क्योंकि शासन के विरुद्ध जाने का अभिप्राय प्राकृतिक अवस्था की ओर लौटना अर्थात उत्कृष्ट अराजकता के माहौल में लौटना था। इसलिए हॉब्स का कथन है कि "सबसे निकृष्ट राज्य भी सबसे उत्कृष्ट अराजकता से अच्छा है"।
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| {'[[राज्य]] की उत्पत्ति का दैवी सिद्धांत' कितने प्रतिपादित किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-20,प्रश्न-24
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| -[[कार्ल मार्क्स]] ने
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| -गिल क्राइस्ट ने
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| +जेम्स प्रथम ने
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| -एच.जे. लास्की ने
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| ||राज्य की उत्पत्ति का दैवी सिद्धांत का सबसे प्रबल समर्थन 17वीं सदी में स्टुअर्ट राजा जेम्स प्रथम द्वारा अपनी पुस्तक 'Law of Monarchy' में किया गया। जेम्स प्रथम के अनुसार, "राजा लोग पृथ्वी पर ईश्वर की जीवित प्रतिमाएं हैं"। दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत सबसे प्राचीन है, इसके अनुसार, राज्य मानवीय नहीं वरन् ईश्वर द्वारा स्थापित एक दैवीय संस्था है। इसलिए विविध धर्मग्रंथों में भी इसी सिद्धांत का समर्थन किया गया है। [[यहूदी धर्म]] की प्रसिद्ध पुस्तक 'Old Testament',[[महाभारत]], [[मनुस्मृति]] सभी में इसका उल्लेख है। सेंट आगस्टाइन और पोप ग्रेगरी द्वारा भी इस सिद्धांत का समर्थन किया गया है।
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| {राजनीतिक समानता की सर्वश्रेष्ठ गांरटी है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-47,प्रश्न-16
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| +लोकतंत्र में
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| -तानाशाही में
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| -अल्पतंत्र में
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| -अभिजाततंत्र में
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| ||राजनीतिक समानता की सर्वश्रेष्ठ गारंटी लोकतंत्र में होती है क्योंकि लोकतंत्र में सभी नागरिकों को समान राजनीतिक शक्ति प्राप्त होती है। सभी व्यक्तियों को मताधिकार राजनीतिक समानता का सूचक है तथा कानून के समक्ष सबकी समानता भी लोकतंत्र का मूल्य है। वर्तमान समय में लोकतंत्र राजनीतिक समानता से आगे बढ़कर आर्थिक एवं सामाजिक समानता की ओर अग्रसर है।
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| {"वैधानिक संप्रभुता के पीछे एक राजनीतिक संप्रभु की खोज की कोशिश संप्रभुता की समूची धारणा को खत्म कर देती है और संप्रभुता को प्रभावों की सूचीमात्र बना देती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-23,प्रश्न-4
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| -डायसी
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| -गिलक्राइस्ट
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| -लीकॉक
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| +गेटेल
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| ||राजनीतिक विद्वानों के अनुसार वैधानिक संप्रभुता का विचार एक प्रमाणिक सत्य है और इसे आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन राजनीतिक संप्रभुता संबंधी विचार एक कल्पना है। निर्वाचकों (राजनीतिक संप्रभु) की इच्छाएं दलीय राजनीति, लोकमत, प्रचार, अशिक्षा आदि के कारण बदलती रहती है जिससे राजनीतिक संप्रभुता की धारणा स्पष्ट नहीं हो पाती है। इसी के संदर्भ में गैटल ने टिप्पणी की है कि "वैधानिक संप्रभु के पीछे राजनीतिक संप्रभु को खोजने का कोई प्रयास संप्रभुता की संपूर्ण धारणा के मूल्य को नष्ट कर देता है और संप्रभुता को प्रभावों की सूची मात्र बना देता है।"
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| {"मेरा प्रोग्राम (कार्यक्रम) कार्य है बात नहीं" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-14 | | {'पैकेज डील' का संबंध है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-121,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] | | -[[भारत]]-[[चीन]] वार्ता से |
| -स्टालिन | | -[[भारत]]-[[पाक]] वार्ता से |
| +मुसोलिनी | | +[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सदस्यता से |
| -[[महात्मा गांधी]]
| | -कॉमनवेल्थ की सदस्यता से |
| ||फॉसीवाद एक सुनिश्चित एवं स्पष्ट सिद्धांत के रूप में 'नहीं' उभरा। यह एक कार्यक्रम के रूप में सामने आया। मुसोलिनी ने स्वयं कहा है कि "हम निश्चित सिद्धांतों में विश्वास नहीं रखते। फॉसीवाद वास्तविकता पर आधारित है। हम निश्चित तथा वास्तविक उद्देश्य प्राप्त करना चाहते हैं। हमारा उद्देश्य काम करना है, बात करना नहीं। देश काल की परिस्थितियों के अनुसार हम कुलीनतंत्रीय और जनतंत्रीय, रूढ़िवादी और प्रगतिवादी, प्रतिक्रियावादी और क्रांतिवादी तथा कानूनी और गैरकानूनी बन सकते हैं। इस प्रकार फॉसीवाद का कोई निश्चित सिद्धांत नहीं है। | | ||पैकेज डील का संबंध संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से था। |
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| {"कानून संप्रभु का आदेश है।" यह किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-68,प्रश्न-25
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| |type="()"}
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| +जॉन ऑस्टिन का
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| -सालमंड का
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| -हालैंड का
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| -ग्रीन का
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| ||जॉन ऑस्टिन के अनुसार "कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।" या "कानून संप्रभु की आज्ञा (आदेश) है।" ऑस्टिन के कानून को इस परिभाषा में तीन तत्व निहित है- (i) संप्रभुता (ii) आदेश (समादेश) (iii) शास्ति-अर्थात संप्रभु के आदेश की अवहेलना करने वाले को दण्ड देने की शक्ति। इस प्रकार ऑस्टिन ने कानून को संप्रभु आदेश (समादेश) माना है। ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक में संप्रभुता की एकलवादी अवधारणा का प्रतिपादन किया है।
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| {ओम्बुड्समैन की अवधारणा का प्रारम्भ हुआ- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-191,प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| -फिनलैंड में
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| +स्वीडन में
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| -नॉर्वे में
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| -[[इंग्लैंड]] में
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| {बहुल कार्यपालिका पायी जाती है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-200,प्रश्न-44 | | {सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखित पुस्तक कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-205,प्रश्न-34 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -[[अमेरिका]] में | | -सम कैरेक्टरस्टिक्स ऑफ़ दि इंडियन कांस्टीट्यूशन |
| -[[भारत]] में | | -दी लॉ एंड दी कांस्टीट्यूशन |
| -[[कनाडा]] में | | +माडर्न कांस्टीट्यूशन |
| +स्विट्जरलैंड में
| | -कैबिनेट गवर्नमेंट |
| ||संसार में जहां सभी देशों की कार्यपालिका शक्ति सम्राट या [[राष्ट्रपति]] में निहित होती है वहां स्विट्जरलैंड में कार्यपालिका शक्तियां सात सदस्यों की एक संघीय परिषद को प्रदान की गई है। इसीलिए इसे बहुल कार्यपालिका कहते है। इन सातों सदस्यों की शक्तियां समान होती है। इनका अध्यक्ष इन्हीं सात सदस्यों में से क्रमश: बनता रहता है। | | ||'मॉडर्न कांस्टीट्यूशन' नामक पुस्तक के.सी. व्हीयर द्वारा लिखी गई है। शेष पुस्तकों को सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखा गया है। |
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| {कौन-सा विचारक संविधान एवं संविधानवाद में अंतर नहीं मानता? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-193,प्रश्न-8 | | {यदि राज्य सभा किसी संविधान संशोधन विधेयक पर लोक सभा से असहमत हो तो ऐसी स्थिति में-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-141,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -ब्लैकस्टोन | | +संशोधन विधेयक पारित नहीं माना जाता |
| -लासवेल | | -दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा इसका निर्णय होगा |
| +सी.एफ.स्ट्रांग
| | -लोक सभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से यह विधेयक पारित कर दिया जाएगा |
| -के.सी. व्हीयर | | -लोक सभा राज्य सभा के मत को अस्वीकृत कर देगी |
| ||सी.एफ. स्ट्रांग संविधान एवं संविधानवाद में अंतर नहीं मानते हैं। इनके अनुसार संविधान पर आधारित शासन ही संविधानवाद तथा संविधान में कोई अंतर नहीं है। इनके विचार का समर्थन कोरी तथा अब्राहम जैसे विद्वान भी करते हैं। सी.एफ. स्ट्रांग के अनुसार "संविधान उन सिद्धांतों का समूह है जिसके अनुसार राज्य के अधिकारों, नागरिकों के अधिकारों, तथा दोनों के संबंधों में सामंजस्य स्थापित किया जाता है। कोरी एवं अब्राहम के अनुसार स्थापित संविधान के निर्देशों के अनुसार शासन को संविधानवाद माना जाता है।" | | ||संविधान संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग विशेष बहुमत से स्वीकृत किया जाना आवश्यक है। दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में विधेयक अंतिम रूप से समाप्त हो जाएगा क्योंकि संविधान संशोधन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की संविधान में कोई व्यवस्था नहीं हैं। |
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| </quiz> | | </quiz> |
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