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'''संजय लीला भंसाली''' ([[अंग्रेजी]]: Sanjay Leela Bhansali, जन्म: [[24 फ़रवरी]], [[1963]], [[मुबंई]]) भारतीय फिल्म निर्देशक, निर्माता, स्क्रीनराइटर और संगीत निर्माता हैं। [[2015]] में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
'''ज्यां द्रेज''' ([[अंग्रेजी]]: Jean Dreze) बेल्जियम में जनमें [[1979]] से [[भारत]] में हैं। [[2002]] में इन्हें भारत की नागरिकता मिली। अर्थशास्‍त्र पर डा ज्यां द्रेज की 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता [[अमर्त्य सेन]] के साथ मिलकर कई पुस्तकें लिखीं। ज्यां द्वारा तैयार डेढ सौ से अधिक एकैडमिक पेपर्स, रिव्यू और अर्थशास्त्र पर लेख इकोनॉमिक्स के छात्रों, शोधकर्ताओं और सरकारी नीति निर्धारकों की पसंदीदा माने जाते हैं।




===परिचय===
==संक्षिप्त परिचय==
संजय लीला भंसाली भारतीय फिल्म निर्देशक, निर्माता, स्क्रीनराइटर और संगीत निर्माता हैं। वे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया के अल्युमिनाई रहे हैं। उनका बीच का नाम लीला अपनी मां को ट्रिब्यूट देने के लिए रखा। उन्होंने 1999 में एसएलबी फिल्मस नाम से प्रोडक्शन हाउस शुरू किया। उनकी फिल्मों की खास बात यह होती है कि उनकी फिल्मों के सेट बेहद शानदार और महंगे होते हैं। 2015 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें कई बार फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है जिसमेें से फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘देवदास’, ‘ब्लैक’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार भी शामिल है। उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
ज्यां द्रेज ने इकोनॉमिक्स के विद्यार्थी ज्यां ने इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिच्यूट (नई दिल्ली) से पीएचडी किया। दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित दुनिया के कई ख्यात विश्वविद्यालयों में वह पिछले कई दशक से विजिटिंग लेक्चरर के तौर पर काम करते रहे हैं।
===कॅरियर===
भंसाली ने अपनंे करियर की शुरूआत विधु विनोद चोपड़ा के साथ असिस्टेंट के रूप में की थी और वे फिल्म ‘परिंदा’, [[1942]]  ए लव स्टोरी और करीब के लिए भी काम कर चुके हैं। उन्होंने फिल्म करीब को निर्देशित करने से मना कर दिया और निर्देशक के रूप में अपने करियर की शुरूआत फिल्म ‘खामोशीः द म्यूजिकल’ से की। यह फिल्म कोई खास कमाई तो नहीं कर पाई लेकिन आलोचकों ने इसे काफी सराहा।
उनकी दूसरी फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ प्रेम त्रिकोण पर आधारित थी जिसमें ऐश्वर्या राॅय, सलमान खान, अजय देवगन मुख्य भूमिका में थे। इस फिल्म ने भंसाली को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने का काम किया और इस फिल्म के जरिए उन्होंने अपने निर्देशन क्षमता की काबिलियत दिखाई। फिल्म काफी सफल हुई और इसने कई पुरस्कार भी जीते। उनकी अगली फिल्म ‘देवदास’ जिसमें शाहरूख खान, [[ऐश्वर्या राय|ऐश्वर्या राॅय]] और [[माधुरी दीक्षित]] मुख्य भूमिका में थे, [[2002]] की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी। भारत की तरफ से यह फिल्म बेस्ट फाॅरेन लैंग्वेज फिल्म के अकेडमी अवार्ड के लिए गई। टाइम मैग्जीन ने इसे दशक की 10 बेहतरीन फिल्मों में आठवें स्थान पर रखा। इसके बाद आई [[अमिताभ बच्चन]] और रानी मुखर्जी की ‘ब्लैक’ टाइम के यूरोप संस्करण में 2005 की 10 बेहतरीन फिल्मों में पांचवे स्थान पर रही। इसके बाद आई फिल्म ‘सांवरिया’ कोई खास कमाल नहीं कर सकी।


[[2006]] में भंसाली ने छोटे पर्दे पर दस्तक दी और फराह खान और शिल्पा शेट्टी के साथ रियलटी टीवी शो झलक दिखला जा में जज की भूमिका में दिखाई दिए। वे अपने काम के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आलोचकों से तारीफें बटोर चुके हैं।
आदिम जनजातियों की विनाशलीला का मूक गवाह बनते झारखंड में ज्यां द्रेज की बातें अब तो यहाँ के शासकों को नागवार नहीं लगनी चाहिए। सरल-शालीन लहजे में द्रेज ने उस जमीनी हकीकत की बानगी भर दी है, जिसे कल तक आम लोगों का शिगुफा बताकर अफसर-नेता कन्नी काटते रहे। राज्य में नरेगा की बदहाली के पीछे अफसर-नेता-बिचौलियों की भ्रष्ट तिकडी की फजीहत करने की बजाय, महज उनका हवाला देकर इस अर्थशास्त्री ने विकास के धंसे पहियों को गति देने वाली चुनौतियां बताने की कोशिश की। वैसे भी पुते चेहरों पर और कालिख कोई क्यों खर्चे! लेकिन आम और खास में शायद यही अंतर होता है.. झारखंड की बदहाली ही नहीं, डा ज्यां द्रेज ने समाधान भी सुझाये हैं। नोबेल विजेता अमर्त्य सेन के साथ दर्जन भर पुस्तकों की रचना करने वाले, लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स सहित विश्व के कई ख्यात विश्वविद्यालयों में आख्यान देते रहे आर्थिक विकास विशेषज्ञ डा ज्यां द्रेज ने प्रशासनिक सुधार से लेकर कठोर राजनीतिक निर्णय तक की अनिवार्यता बतायी। सवालों का जवाब देते हुए ज्यां कहते हैं: एक राज्य जो भ्रष्टाचार और हिंसा पर सवारी कर रहा हो, जैसा झारखंड, उसके लिये ये कठिन राजनीतिक चुनौतियां हैं।
वे इंडियन म्यूजिक टैलेंट शो एक्स फैक्टर के पहले सीजन में जज भी रह चुके हैं।  


प्रसिद्ध फिल्में-
हिंदी राज्यों में नरेगा फेल हो जाने के सवाल पर डा ज्यां अफसरशाही के आचरण को चिह्नित करते हैं। वह नक्सलियों को बाधा नहीं मानते। वह कहते हैं कि नक्सली-उपद्रव के बहाने सरकारी अफसर सुदूर आबादी की उपेक्षा करते हैं। और इधर, कानून के वही रखवाले भ्रष्टाचार और हिंसा में लिप्त पाये जा रहे हैं। शायद यही कारण है कि गांवों में अबतक शासन का ‘दमनकारी’ चेहरा ही काबिज है। ज्यां कहते हैं कि भ्रष्टाचार को परास्त करना है तो राजस्थान से सीखो!
खामोशीः द म्यूजिकल, हम दिल दे चुके सनम, देवदास, ब्लैक, सांवरिया, गुजारिश, गोलियों की रासलीला रामलीला।
नरेगा के आर्किटेक्‍ट कहे जाने वाले ज्यां द्रेज ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की मनमानी और राज्य में नरेगा काउंसिल की अकर्मण्यता पर बेबाक टिप्पणी की है। ज्यां स्वयं केंद्रीय नरेगा काउंसिल के सदस्य भी हैं। उन्होंने मीडिया के एक खास वर्ग को भी चिह्नित किया और यह सलाह देने से नहीं चूके कि उन्हें गहराई में जाकर खोजपरक रिपोर्टिंग करके ही निष्कर्ष प्रकाशित करना चाहिए, वही होगा समाज हित।
 
टेलीविजन पर निर्माता के रूप में उन्होनंे सरस्वतीचंद्र को प्रोड्यूस किया तो वहीं 2008 में स्टेज ओपेरा पद्मावती के वे निर्देशक भी रहे।

12:57, 19 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण

ज्यां द्रेज (अंग्रेजी: Jean Dreze) बेल्जियम में जनमें 1979 से भारत में हैं। 2002 में इन्हें भारत की नागरिकता मिली। अर्थशास्‍त्र पर डा ज्यां द्रेज की 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के साथ मिलकर कई पुस्तकें लिखीं। ज्यां द्वारा तैयार डेढ सौ से अधिक एकैडमिक पेपर्स, रिव्यू और अर्थशास्त्र पर लेख इकोनॉमिक्स के छात्रों, शोधकर्ताओं और सरकारी नीति निर्धारकों की पसंदीदा माने जाते हैं।


संक्षिप्त परिचय

ज्यां द्रेज ने इकोनॉमिक्स के विद्यार्थी ज्यां ने इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिच्यूट (नई दिल्ली) से पीएचडी किया। दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित दुनिया के कई ख्यात विश्वविद्यालयों में वह पिछले कई दशक से विजिटिंग लेक्चरर के तौर पर काम करते रहे हैं।

आदिम जनजातियों की विनाशलीला का मूक गवाह बनते झारखंड में ज्यां द्रेज की बातें अब तो यहाँ के शासकों को नागवार नहीं लगनी चाहिए। सरल-शालीन लहजे में द्रेज ने उस जमीनी हकीकत की बानगी भर दी है, जिसे कल तक आम लोगों का शिगुफा बताकर अफसर-नेता कन्नी काटते रहे। राज्य में नरेगा की बदहाली के पीछे अफसर-नेता-बिचौलियों की भ्रष्ट तिकडी की फजीहत करने की बजाय, महज उनका हवाला देकर इस अर्थशास्त्री ने विकास के धंसे पहियों को गति देने वाली चुनौतियां बताने की कोशिश की। वैसे भी पुते चेहरों पर और कालिख कोई क्यों खर्चे! लेकिन आम और खास में शायद यही अंतर होता है.. झारखंड की बदहाली ही नहीं, डा ज्यां द्रेज ने समाधान भी सुझाये हैं। नोबेल विजेता अमर्त्य सेन के साथ दर्जन भर पुस्तकों की रचना करने वाले, लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स सहित विश्व के कई ख्यात विश्वविद्यालयों में आख्यान देते रहे आर्थिक विकास विशेषज्ञ डा ज्यां द्रेज ने प्रशासनिक सुधार से लेकर कठोर राजनीतिक निर्णय तक की अनिवार्यता बतायी। सवालों का जवाब देते हुए ज्यां कहते हैं: एक राज्य जो भ्रष्टाचार और हिंसा पर सवारी कर रहा हो, जैसा झारखंड, उसके लिये ये कठिन राजनीतिक चुनौतियां हैं।

हिंदी राज्यों में नरेगा फेल हो जाने के सवाल पर डा ज्यां अफसरशाही के आचरण को चिह्नित करते हैं। वह नक्सलियों को बाधा नहीं मानते। वह कहते हैं कि नक्सली-उपद्रव के बहाने सरकारी अफसर सुदूर आबादी की उपेक्षा करते हैं। और इधर, कानून के वही रखवाले भ्रष्टाचार और हिंसा में लिप्त पाये जा रहे हैं। शायद यही कारण है कि गांवों में अबतक शासन का ‘दमनकारी’ चेहरा ही काबिज है। ज्यां कहते हैं कि भ्रष्टाचार को परास्त करना है तो राजस्थान से सीखो! नरेगा के आर्किटेक्‍ट कहे जाने वाले ज्यां द्रेज ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की मनमानी और राज्य में नरेगा काउंसिल की अकर्मण्यता पर बेबाक टिप्पणी की है। ज्यां स्वयं केंद्रीय नरेगा काउंसिल के सदस्य भी हैं। उन्होंने मीडिया के एक खास वर्ग को भी चिह्नित किया और यह सलाह देने से नहीं चूके कि उन्हें गहराई में जाकर खोजपरक रिपोर्टिंग करके ही निष्कर्ष प्रकाशित करना चाहिए, वही होगा समाज हित।