"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर

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{'[[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]]' के संदर्भ में [[16 अक्टूबर]], [[1905]] निम्नलिखित कारणों में से किसके लिए प्रसिद्ध है? (पृ. सं. 15)
|type="()"}
-[[कलकत्ता]] के टाउन हॉल में [[स्वदेशी आंदोलन]] की औपचारिक घोषणा की गई थी।
+[[बंगाल का विभाजन]] हुआ।
-[[दादाभाई नौरोजी]] ने घोषणा की कि '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' का लक्ष्य स्वराज है।
-[[लोकमान्य तिलक]] ने [[पूना]] में [[स्वदेशी आंदोलन]] प्रारंभ किया।
||[[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]], कुष्ण कुमार मिश्र, पृथ्वीशचन्द्र राय जैसे [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के नेताओं ने 'बंगाली', 'हितवादी' एवं 'संजीवनी' जैसे [[अख़बार|अख़बारों]] द्वारा '[[बंगाल विभाजन]]' के प्रस्ताव की आलोचना की। विरोध के बावजूद [[लॉर्ड कर्ज़न]] ने [[19 जुलाई]], [[1905]] ई, को 'बंगाल विभाजन' के निर्णय की घोषणा की, जिसके परिणामस्वरूप [[7 अगस्त]], [[1905]] को [[कलकत्ता]] (वर्तमान कोलकाता) के 'टाउन हाल' में '[[स्वदेशी आंदोलन]]' की घोषणा की गई तथा ऐतिहासिक 'बहिष्कार प्रस्ताव' पास किया गया। [[16 अक्टूबर]], [[1905]] को 'बंगाल विभाजन' के लागू होने के साथ ही विभाजन प्रभावी हो गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बंगाल विभाजन]]


{प्रसिद्ध [[विरुपाक्ष मंदिर]] कहाँ अवस्थित है? (पृ. सं. 15)
|type="()"}
-[[भद्राचलम]]
-[[चिदम्बरम]]
+[[हम्पी]]
-श्रीकालहस्ति
||[[चित्र:Virupraksha-Temple-Hampi.jpg|right|120px|विरुपाक्ष मंदिर, हम्पी]]'हम्पी' [[मध्यकालीन भारत|मध्यकालीन]] [[हिन्दू]] राज्य [[विजयनगर साम्राज्य]] की राजधानी था। अब इस नगर के केवल [[खंडहर]] ही [[अवशेष]] रूप में शेष हैं। इन्हें देखने से प्रतीत होता है कि किसी समय में यहाँ एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती होगी। [[भारत]] के [[कर्नाटक]] राज्य में स्थित [[हम्पी]] को यूनेस्को द्वारा [[विश्व विरासत स्थल|विश्व विरासत स्थलों]] की सूची में भी शामिल किया गया है। यहाँ स्थित '[[विरुपाक्ष मन्दिर]]' को 'पंपापटी मंदिर' भी कहा जाता है। यह हेमकुटा पहाड़ियों के निचले हिस्से में स्थित है। [[हम्पी]] के कई आकर्षणों में से यह मुख्य है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हम्पी]]
{विख्यात [[पुराण|पुराणों]] के आधार पर निम्नलिखित में से कौन-सा स्थान भगवान [[शिव]] द्वारा अपने '[[लकुलीश|लकुलीश अवतार]]' के लिए चुना गया था? (पृ. सं. 18
|type="()"}
-श्रीशैल
-[[काशी]]
-[[उज्जयिनी]]
+[[कायावरोहन]]
||[[चित्र:Statue-Shiva-Bangalore.jpg|right|100px|शिव]]'कायावरोहन' [[गुजरात]] में स्थित एक [[ऐतिहासिक स्थान]] है, जिसका सम्बन्ध भगवान [[शिव]] से बताया गया है। यह स्थान [[गुजरात]] के [[बड़ौदा]] नगर से 16 मील (लगभग 25.6 कि.मी.) दक्षिण-पूर्व में स्थित एक प्रसिद्ध नगर [[दभोई]] में स्थित है। [[गाँधीनगर]] से यह स्थान लगभग 100 किलोमीटर दूर पड़ता है। [[कायावरोहन]] का आधुनिक नाम 'कारवण' है। माना गया है कि भगवान शिव का [[लकुलीश|लकुलीश अवतार]] इसी स्थान पर हुआ था। लकुलीश [[हिन्दू धर्म]] के प्रमुख [[देवता|देवताओं]] में से एक भगवान [[शिव]] के 24वें [[अवतार]] माने गये हैं। इन्होंने [[पाशुपत संप्रदाय|पाशुपत शैव धर्म]] की स्थापना की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कायावरोहन]]
{निम्नलिखित में से कौन [[नाना साहब|नाना साहब पेशवा]] का मंत्री तथा प्रमुख सलाहकार था? (पृ. सं. 25
|type="()"}
+[[अज़ीमुल्लाह ख़ाँ]]
-मौलवी अहमद ख़ान
-अमीरूल्लाह ख़ान
-उपरोक्त में से कोई नहीं
||अज़ीमुल्लाह ख़ाँ [[मराठा]] [[पेशवा]] [[बाजीराव द्वितीय]] के पुत्र [[नाना साहब]] के वेतन भोगी कर्मचारी थे। उन्होंने [[1857]] ई. का '[[सिपाही क्रांति 1857|सिपाही विद्रोह]]' कराने में गुप्त रूप से भाग लिया था। 1857 ई. के महासमर के महान राजनितिक प्रतिनिधि और प्रथम राष्ट्रगीत के रचनाकार अज़ीमुल्लाह ख़ाँ का सम्पूर्ण जीवन ब्रिटिश राज के विरुद्ध संघर्ष करते हुए व्यतीत हुआ था। इसका सबूत उनके द्वारा रचित देश के प्रथम राष्ट्रगीत के रूप में भी उपलब्ध है। नाना साहब के प्रथम सलाहकार नियुक्त किए जाने के बाद उन्हें 'दीवान अज़ीमुल्लाह ख़ाँ' के नाम से जाना गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अज़ीमुल्लाह ख़ाँ]]
{'अपधर्मी को अपधर्म, परम्परावादी को [[धर्म]] किंतु इत्र विक्रेता के [[हृदय]] को [[गुलाब]] पंखुड़ी का पराग प्रिय होता है।' यह कवित्र किस मध्यकालीन लेखक द्वारा रचा गया है? (पृ. सं. 20
|type="()"}
+[[अमीर ख़ुसरो]]
-अबू फौजी
-[[अबुल फ़ज़ल]]
-लाहोरी
||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|right|100px|अमीर ख़ुसरो और हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया]]अमीर ख़ुसरो मध्य एशिया की 'लाचन जाति' के तुर्क सैफ़द्दीन के पुत्र थे। लाचन जाति के [[तुर्क]] [[चंगेज़ ख़ाँ]] के आक्रमणों से पीड़ित होकर [[बलबन]] (1266-1286 ई.) के राज्य काल में शरणार्थी के रूप में [[भारत]] आ गये और फिर यहीं पर बस गए थे। [[अमीर ख़ुसरो]] का जन्म सन 1253 ई. में [[एटा]], [[उत्तर प्रदेश]] के पटियाली नामक क़स्बे में [[गंगा]] के किनारे हुआ था। [[हिन्दी]] की [[खड़ी बोली]] के पहले लोकप्रिय कवि अमीर ख़ुसरो ने कई गज़ल, [[ख़याल]], [[कव्वाली]], [[रुबाई]] और तराना आदि की रचना की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अमीर ख़ुसरो]]
{निम्नलिखित में से किसने 'एज ऑफ़ कन्सेक्ट एक्ट-1891' में प्रस्तावित बालिकाओं की [[विवाह]] योग्य आयु की सीमा को 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष करने का विरोध किया? (पृ. सं. 22
|type="()"}
-[[महादेव गोविंद रानाडे]]
-[[स्वामी विवेकानन्द]]
+[[बाल गंगाधर तिलक]]
-[[गोपाल कृष्ण गोखले]]
||[[चित्र:Lokmanya-Bal-Gangadhar-Tilak.jpg|right|100px|बाल गंगाधर तिलक]]बाल गंगाधर तिलक एक विद्वान, गणितज्ञ, दार्शनिक और उग्र राष्ट्रवादी व्यक्ति थे, जिन्होंने [[भारत]] की स्वतंत्रता की नींव रखने में सहायता की। [[बाल गंगाधर तिलक]] ने स्कूल के भार से स्वयं को मुक्त करने के बाद अपना अधिकांश समय सार्वजनिक सेवा में लगाने का निश्चय किया था। लड़कियों के [[विवाह]] के लिए सहमति की आयु बढ़ाने का विधेयक [[वाइसराय]] की परिषद के सामने लाया जा रहा था। तिलक पूरे उत्साह से इस विवाद में कूद पड़े, इसलिए नहीं कि वे समाज-सुधार के सिद्धांतों के विरोधी थे, बल्कि इसलिए कि वे इस क्षेत्र में ज़ोर-जबरदस्ती करने के विरुद्ध थे। सहमति की आयु का विधेयक, चाहे इसके उद्देश्य कितने ही प्रशंसनीय क्यों न रहे हों, वास्तव में [[हिन्दू]] समाज में सरकारी हस्तक्षेप से सुधार लाने का प्रयास था। अत: समाज-सुधार के कुछ कट्टर समर्थक इसके विरुद्ध थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बाल गंगाधर तिलक]]
{निम्नलिखित में से किसने [[बरेली]] में [[1857]] के विद्रोह का नेतृत्व किया? (पृ. सं. 24
|type="()"}
-ख़ान बहादुर ख़ान
+मौलवी अहमदउल्लाह
-[[अबुलकलाम आज़ाद]]
-[[अज़ीमुल्लाह ख़ाँ]]
||[[चित्र:Mausoleum-Of-Hafiz-Rahmat-Khan-Bareilly.jpg|right|100px|हाफिज़ रहमत ख़ान का मकबरा, बरेली]][[बरेली]] [[उत्तरी भारत]] में मध्य [[उत्तर प्रदेश]] में [[रामगंगा नदी|रामगंगा]] के तट पर स्थित है। बरेली को 'बाँसबरेली' भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ लकड़ी, [[बाँस]] आदि का कारोबार बड़े पैमाने पर काफ़ी लम्बे समय से हो रहा है। एक कहावत 'उल्टे बाँस बरेली' भी इस स्थान पर बाँसों की प्रचुरता को सिद्ध करती है। 1537 में स्थापित इस शहर का निर्माण मुख्यत: [[मुग़ल]] प्रशासक 'मकरंद राय' ने करवाया था। प्राचीन काल में [[बरेली]] का क्षेत्र [[पंचाल जनपद]] का एक भाग था। [[महाभारत]] काल में पंचाल की राजधानी '[[अहिच्छत्र]]' थी, जो [[बरेली ज़िला|ज़िला बरेली]] की तहसील [[आंवला उत्तर प्रदेश|आंवला]] के निकट स्थित थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बरेली]]
{'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' के प्रथम अध्यक्ष कौन थे? (पृ. सं. 25
|type="()"}
-[[एस. ए. डांगे]]
+[[लाला लाजपत राय]]
-जेड. ए. अहमद
-[[एन. एम. जोशी]]
||[[चित्र:Lala-Lajpat-Rai.jpg|right|100px|लाला लाजपत राय]]'लाला लाजपत राय' को [[भारत]] के महान क्रांतिकारियों में गिना जाता है। आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना करते हुए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले [[लाला लाजपत राय]] 'पंजाब केसरी' भी कहे जाते हैं। ये '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के 'गरम दल' के प्रमुख नेता तथा पूरे [[पंजाब]] के प्रतिनिधि थे। लालाजी को 'पंजाब के शेर' की उपाधि भी मिली थी। उन्होंने देशभर में स्वदेशी वस्तुएँ अपनाने के लिए अभियान चलाया। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने जब [[1905]]] में '[[बंगाल का विभाजन]]' कर दिया तो लालाजी ने [[सुरेंद्रनाथ बैनर्जी]] और [[विपिनचंद्र पाल]] जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेज़ों के इस फैसले का जमकर विरोध किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लाला लाजपत राय]]
{[[भारत]] में पूर्व प्रस्तर युग के अधिकांश औज़ार किसके बने थे? (पृ. सं. 25
|type="()"}
+[[स्फटिक]]
-[[सेलखड़ी रत्न|सेलखड़ी]]
-[[गोमेद]]
-इन्द्रगोप मणि
||[[चित्र:Rock-Crystal.jpg|right|100px|स्फटिक]]'स्फटिक' एक रंगहीन, पारदर्शी, निर्मल और शीत प्रभाव वाला उपरत्न है। इसको कई नामों से जाना जाता है, जैसे- 'सफ़ेद बिल्लौर', [[अंग्रेज़ी]] में 'रॉक क्रिस्टल', [[संस्कृत]] में 'सितोपल', शिवप्रिय, कांचमणि और फिटक आदि। इसे फिटकरी भी कहा जाता है। सामान्यत: यह काँच जैसा प्रतीत होता है, परंतु यह काँच की अपेक्षा अधिक दीर्घजीवी होता है। कटाई में काँच के मुकाबले इसमें कोण अधिक उभरे होते हैं। इसकी प्रवृत्ति ठंडी होती है। अत: ज्वर, पित्त-विकार, निर्बलता तथा रक्त विकार जैसी व्याधियों में वैद्यजन इसकी भस्मी का प्रयोग करते हैं। स्फटिक को नग के बजाय माला के रूप में पहना जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[स्फटिक]]
{निम्नलिखित में से कौन-सा एक [[हड़प्पा]] स्थल [[हिन्दूकुश]] के उत्तर में स्थित है? (पृ. सं. 26
|type="()"}
-[[चन्हूदड़ों]]
-मांड़ा
+शोर्तुगाई
-सुतकागेंडोर
{निम्नलिखित में से कौन एक [[सिक्ख]] मिसल नहीं है? (पृ. सं. 26
|type="()"}
-अहलूवालिया
-दलेवालिया
-कन्हेया
+अलीवाल
||[[चित्र:Sikh-Symbol.jpg|right|100px|सिक्ख धर्म का प्रतीक]][[सिक्ख]] लोगों को [[गुरु नानक]] के अनुयायियों के रूप में जाना जाता है। मुख्य रूप से [[पंजाब]] ही इनका निवास स्थान है। 1773 ई. तक उनका अधिकार क्षेत्र पूर्व में [[सहारनपुर]] से पश्चिम में [[अटक]] तक तथा उत्तर में पहाड़ी भाग से लेकर दक्षिण में [[मुल्तान]] तक विस्तृत हो गया था। इस प्रकार सिक्ख अपने लिए एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करने में सफल हुए थे। किन्तु उनमें एक शासकीय ईकाई का अभाव था। वे बारह मिसलों (टुकड़ियों) में विभक्त थे, जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार थे- सिंहपुरिया, अहलूवालिया, रामगढ़िया, कनहिया, फुलकिया, भाँगी, सुकरचकिया, निशानवालिया, करोड़ सिंधिया, उल्लेवालिया, नकाई, और शहीदी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिक्ख]]
{[[कुमारिल भट्ट|कुमारिल]] निम्नलिखित में से किसके आचार्य थे? (पृ. सं. 26
|type="()"}
+[[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]]
-[[सांख्य दर्शन|सांख्य]]
-[[वैशेषिक दर्शन|वैशेषिक]]
-[[वेदान्त]]
||[[कुमारिल भट्ट]] या 'कुमारिल स्वामी' या 'कुमारिल मिश्र' का नाम [[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]] के इतिहास में मौलिक चिन्तन, विशद एवं स्पष्ट व्याख्या तथा अलौकिक प्रतिभा के कारण सदा स्मरणीय है। इन्होंने [[वैदिक धर्म]] का खंडन करने वाले [[बौद्ध|बौद्धों]] को परास्त कर वैदिक धर्म की पुन: स्थापना की थी। कुमारिल भट्ट मीमांसा दर्शन के दो प्रधान संप्रदायों में से एक 'भट्ट सम्प्रदाय' के संस्थापक थे। ईसा की सातवीं शताब्दी में पैदा हुए कुमारिल भट्ट ने मीमांसा दर्शन के 'भट्ट सम्प्रदाय' की स्थापना की थी। वे [[शंकराचार्य]] से और [[वाचस्पति मिश्र]] से पहले हुए थे। [[भवभूति]] इन्हीं के शिष्य थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुमारिल भट्ट]]
{'[[सूफ़ी मत|सूफ़ीवाद]]' की दस अवस्थाओं का वृतांत देने वाला 'दस मुकामी रेख्ता' की रचना किसने की थी? (पृ. सं. 26
|type="()"}
-मंसूर अल हल्लाज
-[[कबीर]]
+[[गुरु नानक]]
-[[मीर|मियाँ मीर]]
||[[चित्र:Guru-Nanak.jpg|right|100px|गुरु नानक]]'गुरु नानक' [[सिक्ख|सिक्खों]] के आदि गुरु हैं। इनके अनुयायी इन्हें 'गुरु नानक', 'बाबा नानक' और 'नानकशाह' नामों से संबोधित करते हैं। [[गुरु नानक]] की पहली 'उदासी' (विचरण यात्रा) [[अक्टूबर]], 1507 ई. से 1515 ई. तक रही। इस यात्रा में उन्होंने [[हरिद्वार]], [[अयोध्या]], [[प्रयाग]], [[काशी]], [[गया]], [[पटना]], [[असम]], [[जगन्नाथ पुरी]], [[रामेश्वर]], [[सोमनाथ]], [[द्वारिका]], [[नर्मदा नदी|नर्मदातट]], [[बीकानेर]], [[पुष्कर अजमेर|पुष्कर तीर्थ]], [[दिल्ली]], [[पानीपत]], [[कुरुक्षेत्र]], [[मुल्तान]], [[लाहौर]] आदि स्थानों में भ्रमण किया। उन्होंने बहुतों का [[हृदय]] परिवर्तन किया। ठगों को [[साधु]] बनाया, वेश्याओं का अन्त:करण शुद्ध कर नाम का दान दिया, कर्मकाण्डियों को आडम्बरों से निकालकर रागात्मिकता भक्ति में लगाकर मानवता का पाठ पढ़ाया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुरु नानक]]
{निम्नलिखित क़िलों में से ब्रिटिशों ने किसका सबसे पहले निर्माण किया? (पृ. सं. 29
|type="()"}
-[[फ़ोर्ट विलियम कोलकाता|फ़ोर्ट विलियम]]
+[[फ़ोर्ट सेंट जॉर्ज]]
-[[फ़ोर्ट सेंट डेविड]]
-फ़ोर्ट सेंट ऐंजेलो
||'फ़ोर्ट सेण्ट जॉर्ज' का निर्माण [[मसुलीपट्टम]] स्थित [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] की कौंसिल के एक सदस्य [[फ़्रांसिस डे]] ने 1640 ई. में चोलमंडल तट पर ज़मीन की एक पतली पट्टी के ऊपर करवाया था। यह ज़मीन पड़ोस के [[हिन्दू]] राज्य [[चन्द्रगिरि]] से पट्टे पर मिली थी। इसी क़िले के चारों ओर [[मद्रास]] (आधुनिक [[चेन्नई]]) नगर का विकास हुआ। क़िले का निर्माणकर्ता फ़्रांसिस डे अरमा गाँव स्थित ईस्ट इंडिया कम्पनी की फ़ैक्ट्री का मुखिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़ोर्ट सेंट जॉर्ज]]
{निम्नलिखित में से किसने 'सोम प्रकाश' नामक [[समाचार पत्र]] शुरू किया? (पृ. सं. 29
|type="()"}
-[[दयानन्द सरस्वती]]
+[[ईश्वरचन्द्र विद्यासागर]]
-[[राजा राममोहन राय]]
-[[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]]
||[[चित्र:Ishwar-Chandra-Vidyasagar.jpg|100px|right|ईश्वरचन्द्र विद्यासागर]]ईश्वरचन्द्र विद्यासागर [[भारत]] के प्रसिद्ध समाज सुधारक, शिक्षा शास्त्री व स्वाधीनता सेनानी थे। वे गरीबों व दलितों के संरक्षक माने जाते थे। उन्होंने स्त्री-शिक्षा और विधवा विवाह पर काफ़ी ज़ोर दिया था। [[ईश्वर चन्द्र विद्यासागर]] ने 'मेट्रोपोलिटन विद्यालय' सहित अनेक महिला विद्यालयों की स्थापना करवायी तथा वर्ष 1848 में 'वैताल पंचविशति' नामक [[बंगला भाषा]] की प्रथम गद्य रचना का भी प्रकाशन किया। नैतिक मूल्यों के संरक्षक और शिक्षाविद विद्यासागर जी का मानना था कि [[अंग्रेज़ी]] और [[संस्कृत भाषा]] के ज्ञान का समन्वय करके ही भारतीय और पाश्चात्य परंपराओं के श्रेष्ठ को हासिल किया जा सकता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ईश्वरचन्द्र विद्यासागर]]
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09:28, 18 अप्रैल 2024 के समय का अवतरण