"पंजासाहब": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==") |
No edit summary |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चित्र:Punja-Sahib.jpg|thumb|पंजासाहब]] | |||
* | '''पंजासाहब''' [[सिक्ख धर्म]] के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह तीर्थ स्थान पेशावर जाने वाले मार्ग पर [[तक्षशिला]] से एक स्टेशन आगे तथा हसन अब्दाल से दो मील दक्षिण में स्थित है। | ||
*पंजासाहब नाम की एक विचित्र [[कहानी]] है। एक समय वली कन्धारी नामक फ़कीर ने इस जगह के आसपास के सारे [[जल]] को अपनी शक्ति से खींचकर पहाड़ के ऊपर अपने क़ब्ज़े में कर लिया। यह कष्ट [[गुरु नानक]] से न सहा गया। अन्त में उन्होंने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जल खींच लिया। जल को जाता देखकर वली कन्धार पीर ने एक विशाल पर्वतखण्ड ऊपर से गिरा दिया। [[पर्वत]] को आता देखकर गुरु नानक ने अपने हाथ का पंजा लगाकर उस पर्वतखण्ड को वहीं पर रोक दिया। आज भी वह हाथ के पंजे का निशान इस तीर्थ में विद्यमान है। | |||
*[[वैशाख]] की [[प्रतिपदा]] को यहाँ पर मेला लगता है। | *[[वैशाख]] की [[प्रतिपदा]] को यहाँ पर मेला लगता है। | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | ||
|आधार= | ==संबंधित लेख== | ||
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 | {{सिक्ख धर्म}} | ||
|माध्यमिक= | [[Category:सिक्ख धर्म]][[Category:सिक्ख_धर्म_कोश]][[Category:सिक्ख_धार्मिक_स्थल]][[Category:गुरुद्वारा]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]] | ||
|पूर्णता= | |||
|शोध= | |||
== | |||
[[Category: | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
13:49, 7 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

पंजासाहब सिक्ख धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह तीर्थ स्थान पेशावर जाने वाले मार्ग पर तक्षशिला से एक स्टेशन आगे तथा हसन अब्दाल से दो मील दक्षिण में स्थित है।
- पंजासाहब नाम की एक विचित्र कहानी है। एक समय वली कन्धारी नामक फ़कीर ने इस जगह के आसपास के सारे जल को अपनी शक्ति से खींचकर पहाड़ के ऊपर अपने क़ब्ज़े में कर लिया। यह कष्ट गुरु नानक से न सहा गया। अन्त में उन्होंने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जल खींच लिया। जल को जाता देखकर वली कन्धार पीर ने एक विशाल पर्वतखण्ड ऊपर से गिरा दिया। पर्वत को आता देखकर गुरु नानक ने अपने हाथ का पंजा लगाकर उस पर्वतखण्ड को वहीं पर रोक दिया। आज भी वह हाथ के पंजे का निशान इस तीर्थ में विद्यमान है।
- वैशाख की प्रतिपदा को यहाँ पर मेला लगता है।
|
|
|
|
|