|
|
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के 21 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
| '''विशेष वक्तव्य'''
| |
|
| |
|
| छात्रों की आवश्यकता का विशेष ध्यान रखकर इस कोश को और भी अधिक उपादेय बनाने के लिए प्रायः सभी मूल शब्दों के साथ उनकी संक्षिप्त व्युत्पत्ति दे दी गई है। शब्दों की रचना में [[उपसर्ग]] और [[प्रत्यय|प्रत्ययों]] का बड़ा महत्त्व है। इनकी पूरी जानकारी तो [[व्याकरण]] के पढ़ने से ही होगी। फिर भी इनका यहाँ दिग्दर्शन अत्यंत लाभदायक होगा।
| |
|
| |
| '''उपसर्ग''' - “उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते । प्रहाराहार संहारविहारपरिहारवत् ।”
| |
|
| |
| '''उपसर्ग''' धातुओं के पूर्व लगकर उनके अर्थों में विभिन्नता ला देते हैं-
| |
| {| width="70%" class="bharattable-pink"
| |
| |+
| |
| |-
| |
| !उपसर्ग !! उदाहरण !! उपसर्ग !! उदाहरण
| |
| |-
| |
| |अति || अत्यधिकम् || दुस् || दुस्तरणम्
| |
| |-
| |
| |अधि || अधिष्ठानम् || दुर् || दुर्भाग्यम्
| |
| |-
| |
| |अनु || अनुगमनम् || नि || निदेश:
| |
| |-
| |
| |अप || अपयश: || निस् || निस्तारणम्
| |
| |-
| |
| |अपि || पिंघानम् || निर् || निर्धन
| |
| |-
| |
| |अभि || अभिभाषणम् || परा || पराजय:
| |
| |-
| |
| |अव || अवतरणम् || परि || परिव्राजक:
| |
| |-
| |
| |आ || आगमनम् || प्र || प्रबल
| |
| |-
| |
| |उत् || उत्थाय, उद्गमनम् || प्रति || प्रतिक्रिया
| |
| |-
| |
| |उप || उपगमनम् || वि || विज्ञानम्
| |
| |-
| |
| | || || सु || सुकर
| |
| |}
| |
|
| |
| '''प्रत्यय''' - धातुओं के पश्चात् लगने वाले [[प्रत्यय]] कृत् प्रत्यय कहलाते हैं। शब्दों के पश्चात् लगने वाले प्रत्यय तद्धित कहलाते हैं।
| |
| {| width="70%" class="bharattable-pink"
| |
| |+
| |
| |-
| |
| !कृत्प्रत्यय !! उदाहरण !! कृत्प्रत्यय !! उदाहरण
| |
| |-
| |
| |अ, अङ || पिपठिषा|| इत्नु|| स्तनयित्नु
| |
| |-
| |
| | - || छिदा || इष्णुच् || रोचिष्ण
| |
| |-
| |
| |अच्, अप् || पचः, सरः || उ || जिगमिषुः
| |
| |-
| |
| | - || कर: || उण् || कारू:
| |
| |-
| |
| |अण् || कुम्भकार: || ऊक || जागरूक
| |
| |-
| |
| |अथुच् || वेपथु: || क (अ) || ज्ञ:, द:
| |
| |-
| |
| |अनीयर् || करणीय, दर्शनीय || कि (इ) || चक्रि
| |
| |-
| |
| |आलुच् || स्पृहयालु || कुरच् || विदुर
| |
| |-
| |
| |इक् || पचिः || क्त (त, न) || हत, छिन्न
| |
| |-
| |
| |क्तवत् (तवत्) || उक्तवत् || ण्वुल् (अक) || पाठक
| |
| |-
| |
| |क्तिन् (ति) || कृति: || तृच् || कर्त्
| |
| |-
| |
| |क्त्वा (त्वा) || पठित्वा || तुमुन् (तुम्) ||
| |
| |-
| |
| |कु (नु) || गृघ्नु || नङ् ||
| |
| |-
| |
| |क्यच् || पुत्रीयति || यत् ||
| |
| |-
| |
| |क्यप् (य) || कृत्य || र ||
| |
| |-
| |
| |क्रु (रु) || भीरु|| ल्यप् (य) ||
| |
| |-
| |
| |क्वरप् (वर) || नश्वर || लयुट् (अन) ||
| |
| |-
| |
| |क्विप् || स्पृक्, वाक् || वनिप् ||
| |
| |-
| |
| |खच् (अ) || स्तनंधय: || वरच् ||
| |
| |-
| |
| |घञ् (अ) || त्याग:, पाक: || वुञ् (अक) ||
| |
| |-
| |
| |थिनुण् (इन्) || योगिन्, त्यागिन् || वुन् (अक) ||
| |
| |-
| |
| |घुरच् (उर) || भङ्गुर || श (अ) ||
| |
| |-
| |
| |ड (अ) || दूरग: || शतृ (अत्) ||
| |
| |-
| |
| |डु (उ) || प्रभु: || शानच् (आन या मान) ||
| |
| |-
| |
| |ण (अ) || ग्राह: || ष्ट्रन् (त्र) ||
| |
| |-
| |
| |णिनि (इन्) || स्थायिन् || तद्धित तथा उणादि प्र ||
| |
| |-
| |
| |णमुल (अम्) || स्मारं स्मारं || अञ् (अ) ||
| |
| |-
| |
| |ण्यत् (य) || कार्य || अण् (अ) ||
| |
| |-
| |
| |असुन् (अस्) || सरस्, तपस् ||
| |
| |}
| |