|
|
(6 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 947 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
| {| class="bharattable-green" width="100%"
| |
| |-
| |
| | valign="top"|
| |
| {| width="100%"
| |
| |
| |
| <quiz display=simple>
| |
| {[[महाभारत]] में [[कौरव]] तथा [[पाण्डव]] सेनाओं का सम्मिलित संख्याबल कितना था?
| |
| |type="()"}
| |
| +18 अक्षौहिणी
| |
| -21 अक्षौहिणी
| |
| -11 अक्षौहिणी
| |
| -16 अक्षौहिणी
| |
| ||[[महाभारत]] की मूल अभिकल्पना में 18 की संख्या का विशिष्ट योग है। [[कौरव]] और [[पाण्डव]] पक्षों के मध्य हुए युद्ध की अवधि 18 दिन थी। दोनों पक्षों की सेनाओं का सम्मिलित संख्याबल भी '18 अक्षौहिणी' था। इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे। महाभारत की प्रबन्ध योजना में सम्पूर्ण [[ग्रन्थ]] को 18 पर्वों में विभक्त किया गया है और महाभारत में [[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म पर्व]] के अन्तर्गत वर्णित [[श्रीमद्भगवद गीता]] में भी 18 अध्याय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]]
| |
|
| |
|
| {[[अश्वत्थामा]] के [[ब्रह्मास्त्र]] से [[श्रीकृष्ण]] ने [[उत्तरा]] के गर्भ में जिस बालक की रक्षा की, उसका नाम क्या था?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[इरावत]]
| |
| -वभ्रुवाहन
| |
| +[[परीक्षित]]
| |
| -श्रुतकर्मा
| |
| ||[[उत्तरा]] को शोक करते हुए देखकर [[श्रीकृष्ण]] ने कहा- 'बेटी! शोक न करो। तुम्हारा यह पुत्र अभी जीवित होता है। मैंने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला है। सबके सामने मैंने प्रतिज्ञा की है, वह अवश्य पूर्ण होगी। मैंने तुम्हारे इस बालक की रक्षा गर्भ में की है, तो भला अब कैसे मरने दूँगा।' इतना कहकर भगवान श्रीकृष्ण ने उस बालक पर अपनी अमृतमयी दृष्टि डाली और बोले- 'यदि मैंने कभी झूठ नहीं बोला है, सदा ब्रह्मचर्य व्रत का नियम से पालन किया है, युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाई है, कभी भूल से भी अधर्म नहीं किया है, तो [[अभिमन्यु]] का यह मृत बालक जीवित हो जाये।'{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]]
| |
|
| |
| {[[महाभारत]] के रचयिता महर्षि [[व्यास]] के [[पिता]] कौन थे?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[गौतम ऋषि|गौतम]]
| |
| -[[कपिल मुनि|कपिल]]
| |
| -[[दुर्वासा ऋषि|दुर्वासा]]
| |
| +[[पराशर]]
| |
| ||'[[वेदव्यास]]' भगवान [[नारायण]] के ही कलावतार थे। व्यास जी के पिता का नाम [[पराशर|ऋषि पराशर]] तथा माता का नाम [[सत्यवती]] था। जन्म लेते ही इन्होंने अपने [[पिता]]-[[माता]] से जंगल में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की। प्रारम्भ में इनकी माता सत्यवती ने इन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु अन्त में इनके माता के स्मरण करते ही लौट आने का वचन देने पर उन्होंने इनको वन जाने की आज्ञा दे दी। प्रत्येक [[द्वापर युग]] में [[विष्णु]] व्यास के रूप में अवतरित होकर [[वेद|वेदों]] के विभाग प्रस्तुत करते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[व्यास]]
| |
|
| |
| {[[धृतराष्ट्र]] का जन्म किसके गर्भ से हुआ था?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[अम्बालिका |अम्बालिका]]
| |
| +[[अम्बिका]]
| |
| -[[अम्बा]]
| |
| -[[देवयानी]]
| |
| ||[[चित्र:Sanjaya-Dhritarashtra.jpg|right|100px|धृतराष्ट्र और संजय]][[वेदव्यास]] अपनी [[माता]] [[सत्यवती]] की आज्ञा मानकर बोले, 'माता! आप दोनों रानियों से कह दें कि वे एक वर्ष तक नियम व्रत का पालन करती रहें, तभी उनको गर्भ धारण होगा।' एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर वेदव्यास सबसे पहले रानी [[अम्बिका]] के पास गये। अम्बिका ने उनके तेज़ से डरकर अपने नेत्र बन्द कर लिये। वेदव्यास लौटकर [[माता]] से बोले, 'माता! अम्बिका का बड़ा ही तेजस्वी पुत्र होगा, किन्तु नेत्र बन्द करने के दोष के कारण वह अंधा होगा। सत्यवती को यह सुनकर अत्यन्त दुःख हुआ। अत: अब उन्होंने वेदव्यास को रानी [[अम्बालिका]] के पास भेजा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[धृतराष्ट्र]]
| |
|
| |
| {निम्न में से कौन [[निषाद]] जाति से सम्बन्धित था?
| |
| |type="()"}
| |
| +[[एकलव्य]]
| |
| -[[युयुत्सु]]
| |
| -[[अंजनपर्वा]]
| |
| -[[सुषेण]]
| |
| ||[[चित्र:Ekalavya.jpg|right|100px|एकलव्य और द्रोणाचार्य]]हिरण्यधनु नामक [[निषाद|निषादों]] के राजा का पुत्र [[एकलव्य]] भी धनुर्विद्या सीखने के उद्देश्य से [[कौरव|कौरवों]] और [[पाण्डव|पाण्डवों]] के गुरु [[द्रोणाचार्य]] के आश्रम में आया था, किन्तु निम्न वर्ण का होने के कारण द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया। निराश होकर एकलव्य वन में चला गया। उसने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को ही गुरु मानकर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। एकाग्रचित्त से साधना करते हुये अल्पकाल में ही वह धनुर्विद्या में अत्यन्त निपुण हो गया। धनुर्विद्या में वह [[अर्जुन]] से आगे न निकल जाये, इसीलिए द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा में एकलव्य से उसका दाहिने हाथ का अंगूठा माँग लिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[एकलव्य]]
| |
|
| |
| {निम्नलिखित में से कौन [[पाण्डव|पाण्डवों]] के महाप्रयाण के बाद राजगद्दी पर बैठा?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[जनमेजय]]
| |
| +[[परीक्षित]]
| |
| -[[इरावत]]
| |
| -[[प्रद्युम्न]]
| |
| ||ज्योतिषियों ने [[युधिष्ठिर]] को बताया कि बालक [[परीक्षित]] अति प्रतापी, यशस्वी तथा [[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु]] समान प्रजापालक, दानी, धर्मी, पराक्रमी और भगवान [[श्रीकृष्ण]] का [[भक्त]] होगा। एक [[ऋषि]] के शाप से [[तक्षक नाग|तक्षक]] द्वारा मृत्यु से पहले संसार के माया-मोह को त्यागकर [[गंगा]] के तट पर [[शुकदेव|शुकदेव जी]] से आत्मज्ञान प्राप्त करेगा। [[पाण्डव|पाण्डवों]] के महाप्रयाण के बाद भगवान के परम भक्त महाराज परीक्षित श्रेष्ठ [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] की शिक्षा के अनुसार [[पृथ्वी]] का शासन करने लगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[परीक्षित]]
| |
|
| |
| {राजा [[परीक्षित]] के पुत्र का नाम क्या था?
| |
| |type="()"}
| |
| -श्रुतकर्मा
| |
| -[[इरावत]]
| |
| -[[संवरण]]
| |
| +[[जनमेजय]]
| |
|
| |
| {[[लाक्षागृह]] से जीवित बच निकलने के बाद [[पाण्डव]] किस नगरी में जाकर रहे?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[विराट नगर|विराट]]
| |
| +[[एकचक्रा]]
| |
| -[[मगध]]
| |
| -[[वैशाली]]
| |
| ||[[दुर्योधन]] बड़ी खोटी बुद्धि का मनुष्य था। उसने लाक्षा के बने हुए घर में पाण्डवों को रखकर [[आग]] लगाकर उन्हें जलाने का प्रयत्न किया, किन्तु पाँचों [[पाण्डव]] अपनी [[माता]] [[कुन्ती]] के साथ उस जलते हुए घर से बाहर निकल गये। वहाँ से वे '[[एकचक्रा]]' नगरी में जाकर [[मुनि]] के वेष में एक [[ब्राह्मण]] के घर में निवास करने लगे। उन्हीं दिनों वे [[पांचाल]] राज्य में, जहाँ [[द्रौपदी]] का स्वयंवर होने वाला था, चले गये। वहाँ [[अर्जुन]] के बाहुबल से 'मत्स्यभेद' होने पर पाँचों पाण्डवों ने द्रौपदी को पत्नी रूप में प्राप्त किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]]
| |
|
| |
| {[[एकचक्रा]] नगरी में [[भीम]] ने किस राक्षस का वध किया था?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[हिडिम्ब]]
| |
| -[[वृषभासुर]]
| |
| -[[वज्रनाभ राक्षस|वज्रनाभ]]
| |
| +[[बकासुर]]
| |
|
| |
| {[[भूरिश्रवा]] का दाहिना हाथ किसने काटा?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[युधिष्ठिर]] ने
| |
| -[[भीम]] ने
| |
| +[[अर्जुन]] ने
| |
| -[[सहदेव]] ने
| |
| ||[[महाभारत]] युद्ध में जिस समय [[भूरिश्रवा]] [[सात्यकि]] का वध करने वाला था, तभी [[अर्जुन]] ने [[कृष्ण]] की प्रेरणा से भूरिश्रवा की दायीं बांह पर ऐसा प्रहार किया कि वह कटकर, तलवार सहित अलग जा गिरी। भूरिश्रवा ने कहा कि यह न्यायसंगत नहीं था कि जब वह अर्जुन से नहीं लड़ रहा था, तब अर्जुन ने उसकी बांह काटी। अर्जुन ने प्रत्युत्तर में कहा कि भूरिश्रवा अकेले ही अनेक योद्धाओं से लड़ रहा था, वह यह नहीं देख सकता था कि कौन उससे लड़ने के लिए उद्यत है और कौन नहीं। अपने बायें हाथ से कटा हुआ दायां हाथ उठाकर भूरिश्रवा ने अर्जुन की ओर फेंका, [[पृथ्वी]] पर माथा टेककर प्रणाम किया तथा युद्धक्षेत्र में ही समाधि लेकर आमरण अनशन की घोषणा कर दी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भूरिश्रवा]]
| |
|
| |
| {निम्न में से किस अप्सरा ने अर्जुन को नपुंसक होने का शाप दिया?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[रम्भा]]
| |
| +[[उर्वशी]]
| |
| -[[मेनका]]
| |
| -इनमें से कोई नहीं
| |
| ||[[महाभारत]] में [[पांडव|पांडवों]] के वनवास में एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी शामिल था, जो उन्होंने [[विराट नगर]] में बिताया। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहते रहे। उन्होंने राजा विराट के यहाँ सेवक बनकर एक वर्ष बिताया। दिव्यास्त्रों की खोज में इन्द्रपुरी गये हुए [[अर्जुन]] पर [[अप्सरा]] [[उर्वशी]] मोहित हो गई थी, किन्तु उसकी इच्छा पूर्ति न करने के कारण उर्वशी ने अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसक रहने का शाप दिया। इसी शाप के फलस्वरूप अर्जुन को '[[बृहन्नला]]' के रूप में विराट की कन्या [[उत्तरा]] को [[नृत्य]] की शिक्षा देनी पड़ी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहन्नला]]
| |
|
| |
| {निम्न में से कौन राजा [[विराट]] की पत्नी थीं?
| |
| |type="()"}
| |
| +सुदेष्णा
| |
| -[[सैरन्ध्री]]
| |
| -[[रेणुका]]
| |
| -[[दमयंती]]
| |
|
| |
| {[[विराट नगर]] में [[पाण्डव]] [[नकुल]] ने क्या नाम ग्रहण किया था?
| |
| |type="()"}
| |
| -तंत्रिपाल
| |
| -[[बृहन्नला]]
| |
| +ग्रंथिक
| |
| -[[कंक]]
| |
| ||पांडवों को 12 वर्ष के वनवास की अवधि की समाप्ति पर एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी करना था। [[विराट नगर]] के पास पहुँचकर वे सभी एक पेड़ के नीचे बैठ गए। [[युधिष्ठिर]] ने बताया कि मैं राजा [[विराट]] के यहाँ '[[कंक]]' नाम धारण कर [[ब्राह्मण]] के वेश में आश्रय लूँगा। उन्होंने [[भीम]] से कहा कि तुम 'वल्लभ' नाम से विराट के यहाँ रसोईए का काम माँग लेना, [[अर्जुन]] से उन्होंने कहा कि तुम '[[बृहन्नला]]' नाम धारण कर स्त्री भूषणों से सुसज्जित होकर विराट की राजकुमारी को [[संगीत]] और [[नृत्य]] की शिक्षा देने की प्रार्थना करना तथा [[नकुल]] 'ग्रंथिक' नाम से घोड़ों की रखवाली करने का तथा [[सहदेव]] 'तंत्रिपाल' नाम से चरवाहे का काम करना माँग ले।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहन्नला]]
| |
|
| |
| {[[महाभारत]] में [[कीचक]] वध किस पर्व के अंतर्गत आता है?
| |
| |type="()"}
| |
| +[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]]
| |
| -[[आदि पर्व महाभारत|आदि पर्व]]
| |
| -[[शांतिपर्व महाभारत|शांति पर्व]]
| |
| -[[आश्रमवासिक पर्व महाभारत|आश्रमवासिक पर्व]]
| |
|
| |
| {[[महाभारत]] युद्ध में कौन-से दिन [[श्रीकृष्ण]] ने [[अस्त्र शस्त्र|शस्त्र]] न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा?
| |
| |type="()"}
| |
| -7वें दिन
| |
| -8वें दिन
| |
| +9वें दिन
| |
| -11वें दिन
| |
| ||आठवें दिन का युद्ध समाप्त हो जाने के बाद [[दुर्योधन]] पितामह [[भीष्म]] के पास आया और बोला- 'पितामह!, लगता है आप जी लगाकर नहीं लड़ रहे। यदि आप भीतर-ही-भीतर [[पांडव|पांडवों]] का समर्थन कर रहे हैं तो आज्ञा दीजिए, मैं [[कर्ण]] को सेनापति बना दूँ। पितामह ने दुर्योधन से कहा- 'योद्धा अंत तक युद्ध करता है। कर्ण की वीरता तुम [[विराट नगर]] में देख चुके हो। कल के युद्ध में मैं कुछ कसर न छोडूँगा।' नौवें दिन के युद्ध में भीष्म के बाणों से [[अर्जुन]] भी घायल हो गए। [[कृष्ण]] के अंग भी जर्जर हो गए। श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े और उन्हें रोका।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म पर्व]]
| |
| </quiz>
| |
| |}
| |
| |}
| |
| __NOTOC__
| |