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'''आधर्षण''' अटेंडर; अंग्रेजी विधि प्रणाली में सामान्य कानून के अंतर्गत, मृत्यु दंडोदश के पश्चात् जब यह प्रत्यक्ष हो जाता था कि अपराधी जीवित रहने योग्य नहीं है तब उसको (अटेंड) कहा जाता था और इस | '''आधर्षण''' अटेंडर; अंग्रेजी विधि प्रणाली में सामान्य कानून के अंतर्गत, मृत्यु दंडोदश के पश्चात् जब यह प्रत्यक्ष हो जाता था कि अपराधी जीवित रहने योग्य नहीं है तब उसको (अटेंड) कहा जाता था और इस कार्रवाई को अटेंडर कहते थे। अटेंडर का अर्थ है आर्धषण। आर्धषण की कार्रवाई मृत्युदंडादेश के पश्चात् अथवा मृत्युदंडादेशतुल्य परिस्थिति में हुआ करती थी। निर्णय के बिना, केवल दोषसिद्धि के आधार पर, आधार्षण नहीं हो सकता था। | ||
आधर्षण के परिणामस्वरूप अपराधी की समस्त चल या अचल संपति का राज्य द्वारा अपहरण हो जाता था; वह संपति के उत्तराधिकार से स्वयं तो वंचित हो ही जाता था, उसके उत्तराधिकारी भी उसकी संपति नहीं पा सकते थे। इसको रक्तभ्रष्टता कहते थे। परंतु सन् 1870 के 'फॉरफीचर ऐक्ट' के अंतर्गत आधर्षण अथवा संपतिअपहार या रक्तभ्रष्टता वर्जित हो गई और अब अटेंडर सिद्धांत का कोई विशेष महत्व नहीं रहा। | आधर्षण के परिणामस्वरूप अपराधी की समस्त चल या अचल संपति का राज्य द्वारा अपहरण हो जाता था; वह संपति के उत्तराधिकार से स्वयं तो वंचित हो ही जाता था, उसके उत्तराधिकारी भी उसकी संपति नहीं पा सकते थे। इसको रक्तभ्रष्टता कहते थे। परंतु सन् 1870 के 'फॉरफीचर ऐक्ट' के अंतर्गत आधर्षण अथवा संपतिअपहार या रक्तभ्रष्टता वर्जित हो गई और अब अटेंडर सिद्धांत का कोई विशेष महत्व नहीं रहा। | ||
'''विल्स ऑव अटेंडर -''' आधर्षण विधेयक द्वारा संसद् न्यायप्रशासन का कार्य करता था। | '''विल्स ऑव अटेंडर -''' आधर्षण विधेयक द्वारा संसद् न्यायप्रशासन का कार्य करता था। कार्रवाई अन्य विधेयको के समान ही होती थी। अतंर इतना था कि इसमें वे पक्ष, जिनके विरुद्ध विधेयक होता था, संसद् के समक्ष वकील द्वारा उपस्थ्ति हो सकते तथा साक्ष्य प्रस्तुत कर सकते थे। प्रथम आधर्षण विधेयक सन् 1459 ई. में परित हुआ था और अंतिम विधेयक सन् 1798 ई. में।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=372 |url=}}</ref> | ||
09:00, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
आधर्षण अटेंडर; अंग्रेजी विधि प्रणाली में सामान्य कानून के अंतर्गत, मृत्यु दंडोदश के पश्चात् जब यह प्रत्यक्ष हो जाता था कि अपराधी जीवित रहने योग्य नहीं है तब उसको (अटेंड) कहा जाता था और इस कार्रवाई को अटेंडर कहते थे। अटेंडर का अर्थ है आर्धषण। आर्धषण की कार्रवाई मृत्युदंडादेश के पश्चात् अथवा मृत्युदंडादेशतुल्य परिस्थिति में हुआ करती थी। निर्णय के बिना, केवल दोषसिद्धि के आधार पर, आधार्षण नहीं हो सकता था।
आधर्षण के परिणामस्वरूप अपराधी की समस्त चल या अचल संपति का राज्य द्वारा अपहरण हो जाता था; वह संपति के उत्तराधिकार से स्वयं तो वंचित हो ही जाता था, उसके उत्तराधिकारी भी उसकी संपति नहीं पा सकते थे। इसको रक्तभ्रष्टता कहते थे। परंतु सन् 1870 के 'फॉरफीचर ऐक्ट' के अंतर्गत आधर्षण अथवा संपतिअपहार या रक्तभ्रष्टता वर्जित हो गई और अब अटेंडर सिद्धांत का कोई विशेष महत्व नहीं रहा।
विल्स ऑव अटेंडर - आधर्षण विधेयक द्वारा संसद् न्यायप्रशासन का कार्य करता था। कार्रवाई अन्य विधेयको के समान ही होती थी। अतंर इतना था कि इसमें वे पक्ष, जिनके विरुद्ध विधेयक होता था, संसद् के समक्ष वकील द्वारा उपस्थ्ति हो सकते तथा साक्ष्य प्रस्तुत कर सकते थे। प्रथम आधर्षण विधेयक सन् 1459 ई. में परित हुआ था और अंतिम विधेयक सन् 1798 ई. में।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 372 |