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| * अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर
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| * अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई
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| * अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।
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| * अंत भला तो सब भला।
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| * अंत भले का भला।
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| * अंधा क्या जाने बसंत बहार।
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| * अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर फिर अपनों को दे।
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| * अंधी पीसे कुत्ता खाए।
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| * अंधे की लाठी।
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| *अंधेर नगरी चौपट राजा<br />
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| टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
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| * अंधों का हाथी
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| * अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
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| * अकेला हँसता भला न रोता भला।
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| * अक्ल बड़ी या भैंस।
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| * अक्ल का अंधा।
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| * अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
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| * अक्ल पर पत्थर/परदा पड़ना।
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| * अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत। <br />
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| तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
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| * अगर मगर करना।
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| * अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
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| * अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम।<br />
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| दास मलूका कह गए सब के दाता राम॥
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| * अटकलें भिड़ाना।
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| * अटकेगा सो भटकेगा।
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| * अठखेलियाँ सूझना।
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| * अडियल टट्टू।
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| * अड्डे पर चहकना।
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| * अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
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| * अढ़ाई दिन की बादशाहत।
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| * अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
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| * अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान। <br />
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| तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।।
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| * अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। <br />
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| चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
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| * अधजल गगरी छलकत जाय।
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| * अधर में लटकना या झूलना।
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| * अनजान सुजान, सदा कल्याण।
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| * अन्न जल उठ जाना।
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| * अन्न न लगना।
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| * अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना।
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| * अपना अपना राग अलापना।
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| * अपना उल्लू सीधा करना।
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| * अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
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| * अपना मकान कोट (क़िले) समान।
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| * अपना रख पराया चख।
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| * अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख।
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| * अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
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| * अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या दोष।
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| * अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग।
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| * अपनी करनी पार उतरनी।
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| * अपनी खाल में मस्त रहना।
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| * अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
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| * अपनी गरज बावली।
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| * अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
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| * अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
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| * अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
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| * अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
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| * अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
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| * अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
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| * अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
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| * अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
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| * अपनी पगड़ी अपने हाथ,
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| * अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
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| * अपने किए का क्या इलाज।
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| * अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
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| * अपने पांव पर आप कुल्हाड़ी मारना।
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| * अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
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| * अपने पैरों पर खड़ा होना।
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| * अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
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| * अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
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| * अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
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| * अब के बनिया देय उधार।
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| * अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
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| * अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
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| * अबे-तबे करना।
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| * अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
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| * अभी दिल्ली दूर है।
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| * अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
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| * अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
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| * अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
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| * अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
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| * असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है। <br />
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| क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।।
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| * असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।। <br />
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| चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
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| * असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र। <br />
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| तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
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| * असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।। <br />
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| भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
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