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{[[ललित कला अकादमी]] की स्थापना कब हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-197,प्रश्न-92
|type="()"}
-[[1955]]
+[[1954]]
-[[1970]]
-[[1972]]
||ललित कला अकादमी स्वतंत्र [[भारत]] में गठित एक स्वायत्त संस्था है जो [[5 अगस्त]], [[1954]] को [[भारत सरकार]] द्वारा स्थापित की गई। यह एक केंद्रीय संगठन है जो भारत सरकार द्वारा ललित कलाओं के क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था। इसका मुख्यालय [[नई दिल्ली]] के रबीन्द्र भवन में है। इसके अतिरिक्त [[भुवनेश्वर]], [[चेन्नई]], गढ़ी (दिल्ली), [[कलकत्ता|कोलकत्ता]], [[लखनऊ]] एवं [[शिमला]] में क्षेत्रीय कार्यालय है। वर्तमान में डॉ. अशोक वाजपेयी ([[अप्रैल]], [[2008]]-[[दिसंबर]], [[2011]]) इसके अध्यक्ष थे। वर्तमान में कल्याण कुमार चक्रवर्ती ([[12 फरवरी]], [[2012]] से) इसके अध्यक्ष हैं।
{[[भिक्कु|बौद्ध भिक्षु]] किसमें रहते थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-366
|type="()"}
+विहार
-स्तूप
-मंडप
-बस्तियों
||'चैत्य' का शाब्दिक अर्थ है- 'चिता संबंधी'। शवदाह के पश्चात बचे हुए अवशेषों को भूमि में गाड़कर उनके ऊपर जो समाधियां बनाई गईं, उन्हीं को प्रारंभ में 'चैत्य' या '[[स्तूप]]' कहा गया इन समाधियों में महापुरुषों के धातु अवशेष सुरक्षित थे, अत: चैत्य उपासना के केंद्र बन गए। कालांतर में [[बौद्ध|बौद्धों]] ने इन्हें अपनी उपासना का केंद्र बना लिया। चैत्यगृहों के समीप ही [[भिक्कु|भिक्षुओं]] के रहने के लिए आवास बनाए गए जिन्हे 'विहार' कहा गया।
{तुलनखामेन का संबंध निम्न में से किस देश से रहा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-19
|type="()"}
-[[मेसोपोटामिया]]
-[[बगदाद]]
-[[इटली]]
+मिस्त्र
||तुतनखामेन का संबंध मिस्त्र देश से रहा है। इनके पिता का नाम अखनाटेन था। तुतनखामेन की [[मृत्यु]] 19 वर्ष की [[आयु]] में 1324 ई.पू. के आस-पास हुई थी।
{भीमबेटका क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-3
|type="()"}
-नगर
-जंगल
+पहाड़ी
-मंदिर
||भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की वेबसाइट के अनुसार मध्य प्रदेश में स्थित 'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में लगभग 700 प्राचीन गुफ़ाएं प्राप्त हुई हैं। अत: निकटस्थ उत्तर विकल्प (b) है। इन गुफ़ाओं में प्रस्तर सामग्री भी प्राप्त हुई है। जो 30,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू. की है। यहां पर लगभग 400 गुफ़ाओं में चित्रों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां पर बनेचित्रों का समय लगभग 10,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. माना जाता है।
{पोथी चित्रण का प्रारंभ किस शैली से हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-6
|type="()"}
+पाल शैली
-जैन शैली
-[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]]
-[[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]]
||पाल शैली एक प्रमुख [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों [[धर्मपाल]] और [[देवपाल]] के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं। (2) पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, [[महात्मा बुद्ध]] के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा [[जातक कथा|जातक कथाओं]] से संबंधित हैं। (3) धर्मपाल ने [[गंगा]] के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया। (4) महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ। (5) इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं। (6) स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं। इन चित्रों की शैली में [[अजंता]] की परंपरा विद्यमान है। (7) इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण महात्मा बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है। (8) पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करन देवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'।
{राजस्थानी पेंटिंग के पसंदीदा विषय कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-19
|type="()"}
-[[राम]]-[[सीता]]
-[[रावण]]-[[मंदोदरी]]
+[[राधा]]-[[कृष्ण]]
-[[अप्सरा|अप्सराएं]]
||राजस्थानी चित्रशैली के पसंदीदा विषय [[राधा]]-[[कृष्ण]] के चित्रण थे। राजस्थानी चित्रकारों ने कवियों की रचनाओं पर आधारित चित्र भी बनाए, जिनमें 'नायिका भेद' को प्रमुखता दी गई और [[वैष्णव धर्म]] के प्रभाव के कारण इन चित्रों में नायक-नायिका साधारण पुरुष या स्त्री न होकर, कृष्ण और राधा हैं।
{[[भारत]] में [[मुग़ल चित्रकला]] का प्रारंभ किसके समय हुआ था?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-18
|type="()"}
-[[बाबर]]
+[[हुमायूं]]
-[[अकबर]]
-[[जहांगीर]]
||[[मुग़ल साम्राज्य|मुग़ल सल्तनत]] का संस्थापक [[बाबर]] [[कला]] प्रेमी था। कला की अभिरुचि [[हुमायूं]] को पुश्तैनी रूप में मिली। वह स्वयं उच्चकोटि का कलाकार था और अपने दरबार में अनेक कलाकारों को आश्रय देकर कला की निरंतर सेवा करता आ रहा था। [[अकबर]] ने अपने पिता से पाया कला प्रेम और कलाकारों को और भी प्रोत्साहित किया। उसने बड़े-बड़े कलाकारों को दरबार में आश्रय दिया और उचित अर्थ एवं सम्मान प्रदान करके चित्रकला की उन्नति के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार लगभग सौ उच्चकोटि के चित्रकार अकबर के दरबार की शोभा बढ़ाते थे। अकबर के इन चित्रकारों की प्रसिद्धि [[ईरान]] तथा [[यूरोप]] तक फैली हुई थी। उनमें हिन्दू चित्रकार अधिक थे। कला के समुचित मूल्यांकन और कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए अकबर के दरबार में प्रति सप्ताह चित्रों की प्रदर्शनी लगा करती थी। अकबर के पुत्र [[जहांगीर]] ने वंश-परंपरा से प्राप्त कला की विरासत को बड़ी योग्यता के साथ संभाला तथा उसको समृद्ध भी किया किंतु उसके पुत्र [[शाहजहां]] ने अपने पूर्वजों की भांति उत्कट कलाप्रियता नहीं दिखाई। यद्यपि उसके दरबार में भी चित्रकारों का जमघट लगा रहता था, फिर भी उनमें न तो वैसा उत्साह था और न कला के प्रति वैसी स्वाभाविक अभिरुचि ही।
{[[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा चित्रशैली]] किस राजा के समय विकसित हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-7
|type="()"}
-राजा गोवर्धन
+राजा संसारचंद
-राजा सावंत सिंह
-राजा हरि सिंह
||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने [[पहाड़ी चित्रकला |पहाड़ी चित्रकला शैली]] को संरक्षण प्रदान किया। [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] (पहाड़ी शैली]]) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे।
{'औरंगजेब का बुढ़ापा' किसकी प्रसिद्ध कृति है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-8
|type="()"}
-असित कुमार हल्दर
-जामिनी रॉय
-नंदलाल बसु
+अबनीन्द्रनाथ टेगोर
||अबनींद्रनाथ ठाकुर, बंगाल शैली के शीर्षस्थ कलाकार हैं। इन्हीं के नेतृत्व में ही बंगाल शैली का जन्म हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) द इन्ट्रोडक्शन टू इंडियन आर्टिस्टिक एनॉटॉमी अबनींद्रनाथ ठाकुर की पुस्तक है। (2) इनके प्रमुख चित्र हैं-ताजमहल का निर्माण, शाहजहां की मुत्यु, विरही यज्ञ, औरंगजेब का बुढ़ापा, दीनबन्धु एंडूज, स्वतंत्रता का स्वप्न, पद्मपत्र में अश्रुबिन्दु, बुद्ध चरित्र, कृष्ण चरित्र, सांध्यदीप, चंडी व कृष्ण मंगल, रबीन्द्रनाथ का महाप्रयाण, भारतमाता, उमरखय्याम, राधाकृष्ण, शकुंतला आदि।
{इनमें से कौन असंबद्ध है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-89,प्रश्न-90
|type="()"}
-के.एस.पन्निकर
+मुकुल डे
-एन.एस. बेन्द्रे
-[[अमृता शेरगिल]]
||मुकुल डे अन्य तीनों चित्रकारों से असंबद्ध हैं क्योंकि विकल्प के अन्य तीनों चित्रकारों ने [[भारत]] में रहकर चित्रकला को बढ़ावा दिया जबकि मुकुल डे ने विदेशों में चित्रकला की शिक्षा प्राप्त की और वे शिक्षा के उद्देश्य से विदेश जाने वाले प्रथम [[चित्रकार|भारतीय चित्रकार]] थे। [[अमृता शेरगिल]] ने भी पेरिस में कला की शिक्षा ग्रहण की थी।
{शिकार के चित्र किस शैली में सबसे अधिक बने? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-19|type="()"}
-[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]]
+[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]]
-कंपनी शैली
-बूँदी शैली
||[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] में आखेट (शिकार) के चित्र अधिक संख्या में बनाए गए। [[अकबर]] के समय भित्ति-चित्रों पर आखेट का चित्रांकन किया गया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) अकबर कालीन भित्ति-चित्रों में फतेहपुर सीकरी के महलों में बने हुए आखेट के चित्र विशेष उल्लेखनीय हैं। (2) [[जहांगीर]] एक सौन्दर्य प्रेमी बादशाह था। उसके शिकार के चित्रों में सजीवता दृष्टिगोचर होती हैं। (3) जहांगीर के काल की चित्रकला शैली, सूक्ष्मता में अकबर के काल की शैली से कहीं अधिक बढ़ गई।
{[[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] का इतिहास किसके शासन काल में हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-9
|type="()"}
-भूपतपाल सिंह
+संसारचंद
-राम कृपाल सिंह
-सावंत सिंह
||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने [[पहाड़ी चित्रकला |पहाड़ी चित्रकला शैली]] को संरक्षण प्रदान किया। [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] (पहाड़ी शैली]]) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे।
{'[[औरंगजेब]] की वृद्धावस्था' के चित्र कहाँ सुरक्षित रखे गए हैं?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-9
|type="()"}
+राज्य पुस्तकालय, [[रामपुर]]
-वोस्टन संग्रहालय
-शाही पुस्तकालय
-बौद्ध संग्रहालय
||राज्य पुस्तकालय, [[रामपुर]] में '[[औरंगजेब]] की वृद्धावस्था' के चित्र सुरक्षित रखे गए हैं, जिसे [[बीजापुर]] के घेरे के समय पर चित्रित किया गया है।
{निफ्ट शैक्षणिक केंद्र किस क्षेत्र में कार्य कर रहा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-367
|type="()"}
-ललित कला प्रशिक्षण
-हस्त कौशल
+फैशन तकनीक
-सिरेमिक
||निफ्ट शैक्षणिक केंद्र फैशन तकनीक के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। यह वर्ष [[1986]] में [[भारत सरकार]] के 'वस्त्र मंत्रालय' के तत्त्वावधान में इस संस्थान की स्थापना की गई थी। यह संस्थान डिज़ाइन प्रबंधन और प्रौद्योगिकी का एक शीर्ष संस्थान है।
{महारानी नेफेरतिती का संबंध निम्न में से किस काल से है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-20
|type="()"}
-ओल्ड किंगडम
-मिडल किंगडम
+न्यू किंगडम
-मॉडर्न किंगडम
||मरारानी नेफेरतिती का संबंध न्यू किंगडम (1570 ई.पू.- 1085 ई.पू.) काल से था। नेफेरतिती प्राचीन मिस्त्र के राजा अकेनतेन की पत्नी थीं। 'बस्ट ऑफ़ नेफेरतिति' वर्तमान में आइलैंड म्यूजियम बर्लिन में रखा गया है।
{'भीमबेटका' गुफ़ाएं कहाँ अवस्थित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-4
|type="()"}
-[[राजस्थान]]
-[[उत्तर प्रदेश]]
-[[बिहार]]
+[[मध्य प्रदेश]]
||भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की वेबसाइट के अनुसार [[मध्य प्रदेश]] में स्थित 'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में लगभग 700 प्राचीन गुफ़ाएं प्राप्त हुई हैं। अत: निकटस्थ उत्तर विकल्प (d) है। इन गुफ़ाओं में प्रस्तर सामग्री भी प्राप्त हुई है। जो 30,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू. की है। यहां पर लगभग 400 गुफ़ाओं में चित्रों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां पर बने चित्रों का समय लगभग 10,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. माना जाता है।
{पाल युगीन पाण्डुलिपि चित्र अधिकांशत: किस धर्म पर आधारित हैं?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-7
|type="()"}
+[[हिंदू धर्म|हिन्दुत्व]]
-[[जैन धर्म]]
-[[शैव मत]]
-[[बौद्ध धर्म]]
||पाल शैली एक प्रमुख [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों [[धर्मपाल]] और [[देवपाल]] के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं। (2) पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, [[महात्मा बुद्ध]] के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा [[जातक कथा|जातक कथाओं]] से संबंधित हैं। (3) धर्मपाल ने [[गंगा]] के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया। (4) महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ। (5) इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं। (6) स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं। इन चित्रों की शैली में [[अजंता]] की परंपरा विद्यमान है। (7) इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण महात्मा बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है। (8) पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करन देवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'।
{हाथी दांत की पटरियों पर चित्रण किस शैली का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-20
|type="()"}
-पाल शैली
-अजंता शैली
-जैन शैली
+अलवर शैली
||हाथी दांत की पटरियों पर चित्रण अलवर शैली में प्राप्त होता है। महाराजा मंगल सिंह के समय के प्रसिद्ध चित्रकार 'मूलचंद' तथा 'उदयराम' (अलवर शैली) ने हाथी दांत के फलकों पर सूक्ष्म चित्रण किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) नानक राम, बुद्धराम, जगन्नाथ, रामगोपाल, रामप्रसाद, जगमोहन, रामसहाय तथा नेपोलिया आदि अलवर चित्र शैली के प्रमुख चित्रकार थे। (2) बुद्धराम राजगढ़ क़िले के शीशमहल तथा अलवर गुणीजन खाने के दरोगा थे, जो पशु-पक्षियों के चित्रांकन में भी दक्ष थे।
{कौन-सा मुग़ल सम्राट चित्रकला को सबसे अच्छा समझता था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-20
|type="()"}
-[[हुमायूं]]
-[[अकबर]]
-[[शाहजहां]]
+[[जहांगीर]]
||मुग़ल बादशाह [[जहांगीर]] स्वयं चित्रकला में रुचि लेता था। वह इसका कुशल पारखी था। किसी चित्र को देखकर वह बता सकता था कि उसके विभिन्न भाग यदि अलग-अलग व्यक्ति के द्वारा बनाए गए हैं तो कौन-सा भाग किस चित्रकार ने बनाया है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) चित्रकारी में जहांगीर के उत्कृष्ट रुचि का वर्णन गिरीटो, [[विलियम हाकिंस]] और सर टामस रो सदृश यात्रियों ने भी किया है। (3) जहांगीर के शासनकाल में चित्रकला के क्षेत्र में भारतीय पद्धति का विकास हुआ।
{[[कांगड़ा चित्रकला]] की उन्नति निम्न में से किसके समय हुईं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-8
|type="()"}
-राजा विधिचंद
-[[जयचंद|राजा जयचंद]]
+राजा संसारचंद
-[[रणजीत सिंह|राजा रणजीत सिंह]]
||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने [[पहाड़ी चित्रकला |पहाड़ी चित्रकला शैली]] को संरक्षण प्रदान किया। [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] (पहाड़ी शैली]]) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे।
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10:35, 21 जनवरी 2018 के समय का अवतरण