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| {निम्न में से कौन वॉश चित्रकला शैली से संबंधित नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-10
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| -बद्रीनाथ आर्य
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| -हरिहर लाल मेढ़
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| +एस.जी. श्रीखंडे
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| -सुखबीर सिंह सिंघल
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| ||एस.जी. श्रीखंडे वॉश चित्रकला शैली से संबंधित नहीं हैं बल्कि वे ग्राफ थियरी से संबंधित हैं जबकि बद्रीनाथ आर्य, हरिहर लाल मेढ़ तथा सुखवीर सिंह सिंघल लखनऊ वाश-चित्रकला से संबंधित हैं।
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| {'फोन्त-द-गॉम' क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-368
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| -दृश्य चित्र
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| +गुफ़ाएं
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| -मूर्ति
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| -रेखांकन
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| ||फोन्त-द-गॉम (Font The Gaume) [[फ़्राँस]] के दक्षिण-पश्चिम में स्थित गुफ़ाएं हैं। यह फ़्राँस की भूमि पर सर्वाधिक अलंकृत गुफ़ाएं ब्यून घाटी में स्थित हैं। इनमें मुख्य गैलरी की ऊंचाई 23 से 26 फ़ीट तक है। यहां लगभग 200 चित्र हैं।
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| {सुमेरियन सभ्यता किस नदी के तट पर विकसित हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-21
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| -[[नील नदी]]
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| -यांगस्तजे नदी
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| -[[सिंधु नदी]]
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| +यूफेट्स नदी
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| ||सुमेरियन सभ्यता यूफ्रेट्स नदी के तट पर विकसित हुई।
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| {[[भीमबेटका गुफ़ाएँ|भीमबेटका गुफ़ा]] के चित्रों की खोज सर्वप्रथम किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-5
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| -राय कृष्ण दास
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| - [[रामचंद्र शुक्ल]]
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| + वी.एस. वाकड़कण
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| -[[नंदलाल बोस|श्री नंदलाल बोस]]
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| ||विष्णु श्रीधर वाकड़कण ने भीमबेटका के प्रागैतिहासिक चित्रों का सर्वप्रथम वर्ष [[1958]] में पता लगाया। यहां 500 वर्गमील के क्षेत्र में 30 पर्वत श्रेणियां अवस्थित हैं जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई 1365 फ़ीट (410 मी.) से 2000 फ़ीट (600 मी.) तक है। इन्हीं के ऊपर एक ट्रिगनोमेट्रिक स्टेशन स्थापित किया गया था,जहां गत शताब्दी में सर्वेक्षण किए गए थे। इन पर्वत श्रेणियों की शिलाएं बलुआ पत्थर की हैं।
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| {[[पाल चित्रकला|पाल शैली]] के चित्रों का प्रमुख विषय क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-8
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| +[[बौद्ध]]
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| -बारहमासा
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| -रागमाला
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| -श्रृंगार
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| ||पाल शैली एक प्रमुख [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों [[धर्मपाल]] और [[देवपाल]] के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं। (2) पाल शैली के समस्त चित्र [[बौद्ध धर्म]] एवं दर्शन तथा [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, [[महात्मा बुद्ध]] के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा [[जातक कथा|जातक कथाओं]] से संबंधित हैं। (3) धर्मपाल ने [[गंगा]] के किनारे 'भागलपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया। (4) [[महीपाल प्रथम|महीपाल]], पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ। (5) इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं। (6) स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं। इन चित्रों की शैली में [[अजंता]] की परंपरा विद्यमान है। (7) इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण महात्मा बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है। (8) पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करन देवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'।
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| {कौन-सा केंद्र [[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]] का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-21
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| -[[बसौली]]
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| -[[गढ़वाल]]
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| +[[बीकानेर]]
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| -[[अहमदनगर]]
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| ||राजस्थान चित्रकला शैली की उपशाखा बीकानेर शैली के उद्भव का काल निर्धारण तो निश्चित नहीं हो पाया है परंतु संभवत: 16वीं-17वीं शताब्दी के आस-पास बीकानेर शैली का उद्भव हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) बीकानेर शैली के उद्भव का श्रेय यहां के 'उस्ताओं' को दिया जाता है। (2) चित्रों में सुनहरे रंग के अत्यधिक प्रयोग से बीकानेर शैली पर दक्षिण की बीजापुर शैली का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। (3) [[मारवाड़]] के शासक राव जोधा के द्वितीय पुत्र 'बीकाजी' द्वारा 1488 ई. में [[बीकानेर|बीकानेर राज्य]] की स्थापना हुई थी। (4) यह क्षेत्र [[महाभारत|महाभारत काल]] में 'जांगम देश' के नाम से जाना जाता था।
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| {[[एम. एफ. हुसैन]] [[मध्य प्रदेश]] के किस शहर के हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-98,प्रश्न-1
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| -[[भोपाल]]
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| +[[इंदौर]]
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| -[[ग्वालियर]]
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| -[[सतना ज़िला|सतना]]
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| ||[[एम. एफ. हुसैन]] का पूरा नाम मक़बूल फ़िदा हुसैन है। इनका जन्म पंढ़रपुर, [[महाराष्ट्र]] में [[17 सितंबर]], [[1915]] को हुआ था। बचपन में हुसैन की मां का देहांत हो गया। इसके बाद [[एम. एफ. हुसैन]] अपने पिता के साथ [[इंदौर]] चले गए, जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई, आगे की शिक्षा उन्होंने [[बंबई]] के जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में ली। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) [[भारत सरकार]] ने एम. एस. हुसैन को [[पद्मश्री |पद्मश्री]], [[पद्म भूषण]] और [[पद्म विभूषण]] से सम्मानित किया। (2) इनके द्वारा बनाई गई पहली फिल्म 'थ्रू द आइज़ ऑफ़ ए पेंटर' (चित्रकार की दृष्टि से) को बर्लिन उत्सव में दिखाया गया और उसे 'गोल्डन बियर' पुरस्कार प्राप्त हुआ। (3) इनके द्वारा बनाई भारतीय देवी-देवताओं की विवादित पेंटिंग के विरोध की वजह से उन्होंने वर्ष [[2006]] में [[भारत]] छोड़ दिया। (4) वर्ष [[2010]] में उन्हें कतर की नागरिकता प्राप्त हो गयी। वर्ष [[2011]] में इनकी मृत्यु [[लंदन]] में हो गई। (5) [[17 सितंबर]], [[2015]] को एम. एफ. हुसैन का 100वां जन्म दिन मनाया गया।
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| {सैंड्रो बोत्तिचेल्ली कहाँ का प्रसिद्ध कलाकार था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-112,प्रश्न-71
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| -फ्लोरेंस
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| -[[रोम]]
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| +[[इटली]]
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| -स्पेन
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| ||'द बर्थ ऑफ़ वीनस' (वीनस का जन्म) 1486 ई. में [[इटली]] के चित्रकार सैंड्रो बोत्तिचेल्ली द्वारा चित्रित प्रसिद्ध चित्र है। यह कैनवास पर टेम्परा शैली का चित्र है। वर्तमान में यह चित्र [[इटली]] के उफीजी गैलरी में सुरक्षित है।
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| {किस प्रभाववादी चित्रकार के चित्रों को विज्ञापन में प्रयुक्त किया गया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-116,प्रश्न-1
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| -पॉल सेजां
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| -आगस्ते रेन्वार
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| +तूलू लॉत्रेक
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| -एडगर डेगा
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| ||तूलू लॉत्रेक के चित्रों विशेषकर लिथोग्राफ्स को विज्ञापन में प्रयुक्त किया गया था। वह उत्तर प्रभाववाद के श्रेष्ठ चित्रकार थे। [[1890]] के दशक के मध्य में 'Le Rite' नामक मैगज़ीन में उन्होंने अनेक चित्रण किए। उन्हें 'आधुनिक विज्ञापन का पितामह' भी कहा गया है।
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| {निम्न में से कौन असंबद्ध है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-21
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| -मंसूर
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| -मनोहर
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| +बिहजाद
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| -मिस्किन
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| ||बिहजाद एक प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार था जिसका उल्लेख [[बाबर]] ने अपनी आत्मकथा [[तुजुक-ए-बाबरी]] में किया है जबकि मंसूर, मनोहर एवं मिस्किन मुग़लकालीन दरबारी चित्रकार थे। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) मंसूर एवं मनोहर [[जहांगीर]] के दरबार से संबद्ध चित्रकार थे। (2) मिस्किन अकबर कालीन यूरोपीय शैली का चित्रकार था। (3) [[अबुल फ़ज़ल]] ने अपनी पुस्तक '[[आइना-ए-अकबरी|आइने अकबरी]]' में मिस्किन का उल्लेख किया है।
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| {[[ललित कला अकादमी|राष्ट्रीय ललित कला अकादमी]] 'रबीन्द्र भवन' किस शहर में स्थित है?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-197,प्रश्न-91
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| |type="()"}
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| -[[मुंबई]]
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| +[[दिल्ली]]
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| -[[लखनऊ]]
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| -[[कलकत्ता|कोलकाता]]
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| ||ललित कला अकादमी स्वतंत्र [[भारत]] में गठित एक स्वायत्त संस्था है जो [[5 अगस्त]], [[1954]] को [[भारत सरकार]] द्वारा स्थापित की गई। यह एक केंद्रीय संगठन है जो [[भारत सरकार]] द्वारा ललित कलाओं के क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था। इसका मुख्यालय [[नई दिल्ली]] के रबीन्द्र भवन में है। इसके अतिरिक्त [[भुवनेश्वर]], [[चेन्नई]], गढ़ी (दिल्ली), [[कलकत्ता|कोलकत्ता]], [[लखनऊ]] एवं [[शिमला]] में क्षेत्रीय कार्यालय है। वर्तमान में डॉ. अशोक वाजपेयी ([[अप्रैल]], [[2008]]-[[दिसंबर]], [[2011]]) इसके अध्यक्ष थे। वर्तमान में कल्याण कुमार चक्रवर्ती ([[12 फरवरी]], [[2012]] से) इसके अध्यक्ष हैं।
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| {[[अजंता]] की चैत्य गुफ़ा क्या थी?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-365
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| +पूजा-उपासना का स्थान
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| -[[भिक्कु|बौद्ध भिक्षुओं]] का निवास स्थान
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| -स्नान स्थल
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| -आमोद-प्रमोद का स्थान
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| ||'चैत्य' का शाब्दिक अर्थ है- 'चिता संबंधी'। शवदाह के पश्चात बचे हुए अवशेषों को भूमि में गाड़कर उनके ऊपर जो समाधियां बनाई गईं, उन्हीं को प्रारंभ में 'चैत्य' या '[[स्तूप]]' कहा गया इन समाधियों में महापुरुषों के धातु अवशेष सुरक्षित थे, अत: चैत्य उपासना के केंद्र बन गए। कालांतर में [[बौद्ध|बौद्धों]] ने इन्हें अपनी उपासना का केंद्र बना लिया। चैत्यगृहों के समीप ही [[भिक्कु|भिक्षुओं]] के रहने के लिए आवास बनाए गए जिन्हे 'विहार' कहा गया।
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| {[[नील नदी]] की घाटी में कौन-सी सभ्यता पनपी है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-18
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| -[[सिंधु सभ्यता]]
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| -चीनी सभ्यता
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| +मिस्त्र की सभ्यता
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| -मेसोपोटामिया की सभ्यता
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| ||मिस्त्र की सभ्यता का विकास [[नील नदी]] की द्रोणि में हुआ। नील नदी विश्व की इस प्राचीन सभ्यता का आधार थी। मिस्त्र को 'नील नदी का उपहार' भी कहा जाता है क्योंकि इस नदी के अभाव में यह भू-भाग [[रेगिस्तान]] होता। मिस्त्र [[अफ्रीका महाद्वीप]] में स्थित है। इसकी समकालीन सभ्यताएं सिंधु घाटी सभ्यता ([[भारत]]) तथा मेसोपोटामिया की सभ्यता (इराक) थी।
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| {'[[भीमबेटका गुफ़ाएँ|भीमबेटका]]' नामक पहाड़ी में कितनी गुफ़ाएं प्राप्त हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-18,प्रश्न-2
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| -30
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| +600
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| -285
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| -135
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| ||भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की वेबसाइट के अनुसार [[मध्य प्रदेश]] में स्थित 'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में लगभग 700 प्राचीन गुफ़ाएं प्राप्त हुई हैं। इन गुफ़ाओं में प्रस्तर सामग्री भी प्राप्त हुई है। जो 30,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू. की है। यहां पर लगभग 400 गुफ़ाओं में चित्रों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां पर बने चित्रों का समय लगभग 10,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. माना जाता है।
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| {पाल पोथी चित्रों का विषय क्या हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-40,प्रश्न-5
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| |type="()"}
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| -[[पाल वंश|पाल]] राजाओं का जीवन चरित
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| -[[नवाब|नवाबों]] का दरबार
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| +[[बुद्ध]] का जीवन चरित
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| -[[चैतन्य महाप्रभु]] का जीवन चरित
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| ||पाल शैली एक प्रमुख [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों [[धर्मपाल]] और [[देवपाल]] के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला '[[पाल चित्रकला|पाल शैली]]' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं। (2) पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, [[महात्मा बुद्ध]] के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा [[जातक कथा|जातक कथाओं]] से संबंधित हैं। (3) धर्मपाल ने [[गंगा]] के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया। (4) महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ। (5) इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं। (6) स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं। इन चित्रों की शैली में [[अजंता]] की परंपरा विद्यमान है। (7) इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण महात्मा बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है। (8) पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करन देवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'।
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| {[[राजस्थानी चित्रकला]] किस अवधि में विकसित हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-17
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| |type="()"}
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| -19वीं-20वीं शताब्दी
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| +16वीं-17वीं शताब्दी
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| -11वीं-12वीं शताब्दी
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| -16वीं शताब्दी
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| ||[[राजपूत चित्रकला|राजपूत शैली]] को '[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी]] और हिंदू शैली' के नाम से भी जाना जाता है। 16वीं शताब्दी की [[चित्रकला]] और साहित्य पर [[वैष्णव संप्रदाय]] का गहरा प्रभाव पड़ा। इस आंदोलन के कारण [[राजस्थानी कला]] में काव्य की अत्यधिक नवीन सुमधुर कल्पना, भावुकता और रहस्यात्मकता का समावेश हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) कार्ल खंडालवाला ने 17वीं और 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल को राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णयुग माना है। (2) 17वीं शताब्दी में राजपूत चित्रकला (राजस्थानी चित्रकला) नवीन दिशा में अग्रसर हुई। (3) 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में इस शैली के चित्रों में भाव-चित्रण की निर्जीविता आने लगी।
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| {[[मुग़ल चित्रकला]] किस [[मुग़ल]] के समय में विकसित हुई थी? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-17
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| |type="()"}
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| -[[बाबर]]
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| +[[अकबर]]
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| -[[औरंगजेब]]
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| -[[हुमायूं]]
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| ||[[मुग़ल साम्राज्य|मुग़ल सल्तनत]] का संस्थापक [[बाबर]] [[कला]] प्रेमी था। कला की अभिरुचि [[हुमायूं]] को पुश्तैनी रूप में मिली। वह स्वयं उच्चकोटि का कलाकार था और अपने दरबार में अनेक कलाकारों को आश्रय देकर कला की निरंतर सेवा करता आ रहा था। [[अकबर]] ने अपने पिता से पाया कला प्रेम और कलाकारों को और भी प्रोत्साहित किया। उसने बड़े-बड़े कलाकारों को दरबार में आश्रय दिया और उचित अर्थ एवं सम्मान प्रदान करके चित्रकला की उन्नति के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार लगभग सौ उच्चकोटि के चित्रकार अकबर के दरबार की शोभा बढ़ाते थे। अकबर के इन चित्रकारों की प्रसिद्धि [[ईरान]] तथा [[यूरोप]] तक फैली हुई थी। उनमें हिन्दू चित्रकार अधिक थे। कला के समुचित मूल्यांकन और कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए अकबर के दरबार में प्रति सप्ताह चित्रों की प्रदर्शनी लगा करती थी। अकबर के पुत्र [[जहांगीर]] ने वंश-परंपरा से प्राप्त कला की विरासत को बड़ी योग्यता के साथ संभाला तथा उसको समृद्ध भी किया किंतु उसके पुत्र [[शाहजहां]] ने अपने पूर्वजों की भांति उत्कट कलाप्रियता नहीं दिखाई। यद्यपि उसके दरबार में भी चित्रकारों का जमघट लगा रहता था, फिर भी उनमें न तो वैसा उत्साह था और न कला के प्रति वैसी स्वाभाविक अभिरुचि ही।
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| {महाराजा संसारचंद किस शैली की चित्रकला के महान संरक्षक थे?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| +[[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]]
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| -[[गढ़वाल चित्रकला|गढ़वाल शैली]]
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| -बसौली शैली
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| -[[गुलेरी चित्रकला|गुलेर शैली]]
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| ||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने [[पहाड़ी चित्रकला |पहाड़ी चित्रकला शैली]] को संरक्षण प्रदान किया। [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] (पहाड़ी शैली]]) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे।
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| {बंगाल शैली के शीर्षस्थ कलाकार कौन हैं?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-7
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| -यामिनी राय
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| -[[अमृता शेरगिल]]
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| +अबनीन्द्रनाथ ठाकुर
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| -एन.एस.बेंद्रे
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| ||अबनींद्रनाथ ठाकुर, बंगाल शैली के शीर्षस्थ कलाकार हैं। इन्हीं के नेतृत्व में ही बंगाल शैली का जन्म हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) द इन्ट्रोडक्शन टू इंडियन आर्टिस्टिक एनॉटॉमी अबनींद्रनाथ ठाकुर की पुस्तक है। (2) इनके प्रमुख चित्र हैं-ताजमहल का निर्माण, शाहजहां की मुत्यु, विरही यज्ञ, औरंगजेब का बुढ़ापा, दीनबन्धु एंडूज, स्वतंत्रता का स्वप्न, पद्मपत्र में अश्रुबिन्दु, बुद्ध चरित्र, कृष्ण चरित्र, सांध्यदीप, चंडी व कृष्ण मंगल, रबीन्द्रनाथ का महाप्रयाण, भारतमाता, उमरखय्याम, राधाकृष्ण, शकुंतला आदि।
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| {निम्न में से कौन बंगाल शैली का कलाकार नहीं हैं?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-89,प्रश्न-89
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| |type="()"}
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| -सुरेन्द्र कर
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| -शैलेंद्र
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| +रथिन मित्रा
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| -मुकुल डे
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| ||रथिन मित्रा कलकत्ता ग्रुप के प्रमुख कलाकार थे जबकि विकल्पों में दिए गए अन्य बंगाल शैली के कलाकार हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) कलकत्ता ग्रुप के प्रमुख कलाकार हैं- नीरोद मज़ूमदार, शुभो टैगोर, गोपाल धोष, परितोष सेन, रथिन मित्रा, प्राण कृष्ण पाल, प्रदोष दासगुप्ता और कमला दासगुप्ता आदि। (2) [[कलकत्ता]] के आठ कलाकारों ने मिलकर लगभग वर्ष [[1942]]-[[1943]] में कलकत्ता ग्रुप की स्थापना की। (3) इस ग्रुप के कलाकारों ने बंगाल शैली की 'नास्टेल्जिक' भावुकता से मुक्त होने की कोशिश की और एक नई विचारधारा का प्रचार किया तथा इसमें पूर्व-पश्चिम का संश्लेषण किया।
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| {ललित कला अकादमी की स्थापना कब हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-197,प्रश्न-92
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| |type="()"}
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| -[[1955]]
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| +[[1954]]
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| -[[1970]]
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| -[[1972]]
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| ||ललित कला अकादमी स्वतंत्र [[भारत]] में गठित एक स्वायत्त संस्था है जो [[5 अगस्त]], [[1954]] को [[भारत सरकार]] द्वारा स्थापित की गई। यह एक केंद्रीय संगठन है जो भारत सरकार द्वारा ललित कलाओं के क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था। इसका मुख्यालय [[नई दिल्ली]] के रबीन्द्र भवन में है। इसके अतिरिक्त [[भुवनेश्वर]], [[चेन्नई]], गढ़ी (दिल्ली), [[कलकत्ता|कोलकत्ता]], [[लखनऊ]] एवं [[शिमला]] में क्षेत्रीय कार्यालय है। वर्तमान में डॉ. अशोक वाजपेयी ([[अप्रैल]], [[2008]]-[[दिसंबर]], [[2011]]) इसके अध्यक्ष थे। वर्तमान में कल्याण कुमार चक्रवर्ती ([[12 फरवरी]], [[2012]] से) इसके अध्यक्ष हैं।
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| {[[भिक्कु|बौद्ध भिक्षु]] किसमें रहते थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-366
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| |type="()"}
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| +विहार
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| -स्तूप
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| -मंडप
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| -बस्तियों
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| ||'चैत्य' का शाब्दिक अर्थ है- 'चिता संबंधी'। शवदाह के पश्चात बचे हुए अवशेषों को भूमि में गाड़कर उनके ऊपर जो समाधियां बनाई गईं, उन्हीं को प्रारंभ में 'चैत्य' या '[[स्तूप]]' कहा गया इन समाधियों में महापुरुषों के धातु अवशेष सुरक्षित थे, अत: चैत्य उपासना के केंद्र बन गए। कालांतर में [[बौद्ध|बौद्धों]] ने इन्हें अपनी उपासना का केंद्र बना लिया। चैत्यगृहों के समीप ही [[भिक्कु|भिक्षुओं]] के रहने के लिए आवास बनाए गए जिन्हे 'विहार' कहा गया।
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| {तुलनखामेन का संबंध निम्न में से किस देश से रहा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-19
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| |type="()"}
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| -[[मेसोपोटामिया]]
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| -[[बगदाद]]
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| -[[इटली]]
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| +मिस्त्र
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| ||तुतनखामेन का संबंध मिस्त्र देश से रहा है। इनके पिता का नाम अखनाटेन था। तुतनखामेन की [[मृत्यु]] 19 वर्ष की [[आयु]] में 1324 ई.पू. के आस-पास हुई थी।
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| {भीमबेटका क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-3
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| -नगर
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| -जंगल
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| +पहाड़ी
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| -मंदिर
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| ||भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की वेबसाइट के अनुसार मध्य प्रदेश में स्थित 'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में लगभग 700 प्राचीन गुफ़ाएं प्राप्त हुई हैं। अत: निकटस्थ उत्तर विकल्प (b) है। इन गुफ़ाओं में प्रस्तर सामग्री भी प्राप्त हुई है। जो 30,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू. की है। यहां पर लगभग 400 गुफ़ाओं में चित्रों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां पर बनेचित्रों का समय लगभग 10,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. माना जाता है।
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| {पोथी चित्रण का प्रारंभ किस शैली से हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-6
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| +पाल शैली
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| -जैन शैली
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| -[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]]
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| -[[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]]
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| ||पाल शैली एक प्रमुख [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों [[धर्मपाल]] और [[देवपाल]] के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं। (2) पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, [[महात्मा बुद्ध]] के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा [[जातक कथा|जातक कथाओं]] से संबंधित हैं। (3) धर्मपाल ने [[गंगा]] के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया। (4) महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ। (5) इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं। (6) स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं। इन चित्रों की शैली में [[अजंता]] की परंपरा विद्यमान है। (7) इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण महात्मा बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है। (8) पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करन देवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'।
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| {राजस्थानी पेंटिंग के पसंदीदा विषय कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-19
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| -[[राम]]-[[सीता]]
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| -[[रावण]]-[[मंदोदरी]]
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| +[[राधा]]-[[कृष्ण]]
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| -[[अप्सरा|अप्सराएं]]
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| ||राजस्थानी चित्रशैली के पसंदीदा विषय [[राधा]]-[[कृष्ण]] के चित्रण थे। राजस्थानी चित्रकारों ने कवियों की रचनाओं पर आधारित चित्र भी बनाए, जिनमें 'नायिका भेद' को प्रमुखता दी गई और [[वैष्णव धर्म]] के प्रभाव के कारण इन चित्रों में नायक-नायिका साधारण पुरुष या स्त्री न होकर, कृष्ण और राधा हैं।
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| {[[भारत]] में [[मुग़ल चित्रकला]] का प्रारंभ किसके समय हुआ था?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-18
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| |type="()"}
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| -[[बाबर]]
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| +[[हुमायूं]]
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| -[[अकबर]]
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| -[[जहांगीर]]
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| ||[[मुग़ल साम्राज्य|मुग़ल सल्तनत]] का संस्थापक [[बाबर]] [[कला]] प्रेमी था। कला की अभिरुचि [[हुमायूं]] को पुश्तैनी रूप में मिली। वह स्वयं उच्चकोटि का कलाकार था और अपने दरबार में अनेक कलाकारों को आश्रय देकर कला की निरंतर सेवा करता आ रहा था। [[अकबर]] ने अपने पिता से पाया कला प्रेम और कलाकारों को और भी प्रोत्साहित किया। उसने बड़े-बड़े कलाकारों को दरबार में आश्रय दिया और उचित अर्थ एवं सम्मान प्रदान करके चित्रकला की उन्नति के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार लगभग सौ उच्चकोटि के चित्रकार अकबर के दरबार की शोभा बढ़ाते थे। अकबर के इन चित्रकारों की प्रसिद्धि [[ईरान]] तथा [[यूरोप]] तक फैली हुई थी। उनमें हिन्दू चित्रकार अधिक थे। कला के समुचित मूल्यांकन और कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए अकबर के दरबार में प्रति सप्ताह चित्रों की प्रदर्शनी लगा करती थी। अकबर के पुत्र [[जहांगीर]] ने वंश-परंपरा से प्राप्त कला की विरासत को बड़ी योग्यता के साथ संभाला तथा उसको समृद्ध भी किया किंतु उसके पुत्र [[शाहजहां]] ने अपने पूर्वजों की भांति उत्कट कलाप्रियता नहीं दिखाई। यद्यपि उसके दरबार में भी चित्रकारों का जमघट लगा रहता था, फिर भी उनमें न तो वैसा उत्साह था और न कला के प्रति वैसी स्वाभाविक अभिरुचि ही।
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| {[[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा चित्रशैली]] किस राजा के समय विकसित हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-7
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| -राजा गोवर्धन
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| +राजा संसारचंद
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| -राजा सावंत सिंह
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| -राजा हरि सिंह
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| ||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने [[पहाड़ी चित्रकला |पहाड़ी चित्रकला शैली]] को संरक्षण प्रदान किया। [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] (पहाड़ी शैली]]) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे।
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| {'औरंगजेब का बुढ़ापा' किसकी प्रसिद्ध कृति है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-8
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| -असित कुमार हल्दर
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| -जामिनी रॉय
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| -नंदलाल बसु
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| +अबनीन्द्रनाथ टेगोर
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| ||अबनींद्रनाथ ठाकुर, बंगाल शैली के शीर्षस्थ कलाकार हैं। इन्हीं के नेतृत्व में ही बंगाल शैली का जन्म हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) द इन्ट्रोडक्शन टू इंडियन आर्टिस्टिक एनॉटॉमी अबनींद्रनाथ ठाकुर की पुस्तक है। (2) इनके प्रमुख चित्र हैं-ताजमहल का निर्माण, शाहजहां की मुत्यु, विरही यज्ञ, औरंगजेब का बुढ़ापा, दीनबन्धु एंडूज, स्वतंत्रता का स्वप्न, पद्मपत्र में अश्रुबिन्दु, बुद्ध चरित्र, कृष्ण चरित्र, सांध्यदीप, चंडी व कृष्ण मंगल, रबीन्द्रनाथ का महाप्रयाण, भारतमाता, उमरखय्याम, राधाकृष्ण, शकुंतला आदि।
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| {इनमें से कौन असंबद्ध है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-89,प्रश्न-90
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| |type="()"}
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| -के.एस.पन्निकर
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| +मुकुल डे
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| -एन.एस. बेन्द्रे
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| -[[अमृता शेरगिल]]
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| ||मुकुल डे अन्य तीनों चित्रकारों से असंबद्ध हैं क्योंकि विकल्प के अन्य तीनों चित्रकारों ने [[भारत]] में रहकर चित्रकला को बढ़ावा दिया जबकि मुकुल डे ने विदेशों में चित्रकला की शिक्षा प्राप्त की और वे शिक्षा के उद्देश्य से विदेश जाने वाले प्रथम [[चित्रकार|भारतीय चित्रकार]] थे। [[अमृता शेरगिल]] ने भी पेरिस में कला की शिक्षा ग्रहण की थी।
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| {शिकार के चित्र किस शैली में सबसे अधिक बने? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-19|type="()"}
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| -[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]]
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| +[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]]
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| -कंपनी शैली
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| -बूँदी शैली
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| ||[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] में आखेट (शिकार) के चित्र अधिक संख्या में बनाए गए। [[अकबर]] के समय भित्ति-चित्रों पर आखेट का चित्रांकन किया गया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) अकबर कालीन भित्ति-चित्रों में फतेहपुर सीकरी के महलों में बने हुए आखेट के चित्र विशेष उल्लेखनीय हैं। (2) [[जहांगीर]] एक सौन्दर्य प्रेमी बादशाह था। उसके शिकार के चित्रों में सजीवता दृष्टिगोचर होती हैं। (3) जहांगीर के काल की चित्रकला शैली, सूक्ष्मता में अकबर के काल की शैली से कहीं अधिक बढ़ गई।
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| {[[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] का इतिहास किसके शासन काल में हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-9
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| -भूपतपाल सिंह
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| +संसारचंद
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| -राम कृपाल सिंह
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| -सावंत सिंह
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| ||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने [[पहाड़ी चित्रकला |पहाड़ी चित्रकला शैली]] को संरक्षण प्रदान किया। [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] (पहाड़ी शैली]]) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे।
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| {'[[औरंगजेब]] की वृद्धावस्था' के चित्र कहाँ सुरक्षित रखे गए हैं?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-9
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| |type="()"}
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| +राज्य पुस्तकालय, [[रामपुर]]
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| -वोस्टन संग्रहालय
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| -शाही पुस्तकालय
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| -बौद्ध संग्रहालय
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| ||राज्य पुस्तकालय, [[रामपुर]] में '[[औरंगजेब]] की वृद्धावस्था' के चित्र सुरक्षित रखे गए हैं, जिसे [[बीजापुर]] के घेरे के समय पर चित्रित किया गया है।
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| {निफ्ट शैक्षणिक केंद्र किस क्षेत्र में कार्य कर रहा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-367
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| |type="()"}
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| -ललित कला प्रशिक्षण
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| -हस्त कौशल
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| +फैशन तकनीक
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| -सिरेमिक
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| ||निफ्ट शैक्षणिक केंद्र फैशन तकनीक के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। यह वर्ष [[1986]] में [[भारत सरकार]] के 'वस्त्र मंत्रालय' के तत्त्वावधान में इस संस्थान की स्थापना की गई थी। यह संस्थान डिज़ाइन प्रबंधन और प्रौद्योगिकी का एक शीर्ष संस्थान है।
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| {महारानी नेफेरतिती का संबंध निम्न में से किस काल से है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-20
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| -ओल्ड किंगडम
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| -मिडल किंगडम
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| +न्यू किंगडम
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| -मॉडर्न किंगडम
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| ||मरारानी नेफेरतिती का संबंध न्यू किंगडम (1570 ई.पू.- 1085 ई.पू.) काल से था। नेफेरतिती प्राचीन मिस्त्र के राजा अकेनतेन की पत्नी थीं। 'बस्ट ऑफ़ नेफेरतिति' वर्तमान में आइलैंड म्यूजियम बर्लिन में रखा गया है।
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| {'भीमबेटका' गुफ़ाएं कहाँ अवस्थित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-4
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| -[[राजस्थान]]
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| -[[उत्तर प्रदेश]]
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| -[[बिहार]]
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| +[[मध्य प्रदेश]]
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| ||भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की वेबसाइट के अनुसार [[मध्य प्रदेश]] में स्थित 'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में लगभग 700 प्राचीन गुफ़ाएं प्राप्त हुई हैं। अत: निकटस्थ उत्तर विकल्प (d) है। इन गुफ़ाओं में प्रस्तर सामग्री भी प्राप्त हुई है। जो 30,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू. की है। यहां पर लगभग 400 गुफ़ाओं में चित्रों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां पर बने चित्रों का समय लगभग 10,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. माना जाता है।
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| {पाल युगीन पाण्डुलिपि चित्र अधिकांशत: किस धर्म पर आधारित हैं?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| +[[हिंदू धर्म|हिन्दुत्व]]
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| -[[जैन धर्म]]
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| -[[शैव मत]]
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| -[[बौद्ध धर्म]]
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| ||पाल शैली एक प्रमुख [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों [[धर्मपाल]] और [[देवपाल]] के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं। (2) पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, [[महात्मा बुद्ध]] के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा [[जातक कथा|जातक कथाओं]] से संबंधित हैं। (3) धर्मपाल ने [[गंगा]] के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया। (4) महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ। (5) इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं। (6) स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं। इन चित्रों की शैली में [[अजंता]] की परंपरा विद्यमान है। (7) इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण महात्मा बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है। (8) पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करन देवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'।
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| {हाथी दांत की पटरियों पर चित्रण किस शैली का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-20
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| |type="()"}
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| -पाल शैली
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| -अजंता शैली
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| -जैन शैली
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| +अलवर शैली
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| ||हाथी दांत की पटरियों पर चित्रण अलवर शैली में प्राप्त होता है। महाराजा मंगल सिंह के समय के प्रसिद्ध चित्रकार 'मूलचंद' तथा 'उदयराम' (अलवर शैली) ने हाथी दांत के फलकों पर सूक्ष्म चित्रण किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) नानक राम, बुद्धराम, जगन्नाथ, रामगोपाल, रामप्रसाद, जगमोहन, रामसहाय तथा नेपोलिया आदि अलवर चित्र शैली के प्रमुख चित्रकार थे। (2) बुद्धराम राजगढ़ क़िले के शीशमहल तथा अलवर गुणीजन खाने के दरोगा थे, जो पशु-पक्षियों के चित्रांकन में भी दक्ष थे।
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| {कौन-सा मुग़ल सम्राट चित्रकला को सबसे अच्छा समझता था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-20
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| -[[हुमायूं]]
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| -[[अकबर]]
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| -[[शाहजहां]]
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| +[[जहांगीर]]
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| ||मुग़ल बादशाह [[जहांगीर]] स्वयं चित्रकला में रुचि लेता था। वह इसका कुशल पारखी था। किसी चित्र को देखकर वह बता सकता था कि उसके विभिन्न भाग यदि अलग-अलग व्यक्ति के द्वारा बनाए गए हैं तो कौन-सा भाग किस चित्रकार ने बनाया है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) चित्रकारी में जहांगीर के उत्कृष्ट रुचि का वर्णन गिरीटो, [[विलियम हाकिंस]] और सर टामस रो सदृश यात्रियों ने भी किया है। (3) जहांगीर के शासनकाल में चित्रकला के क्षेत्र में भारतीय पद्धति का विकास हुआ।
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| {[[कांगड़ा चित्रकला]] की उन्नति निम्न में से किसके समय हुईं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| -राजा विधिचंद
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| -[[जयचंद|राजा जयचंद]]
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| +राजा संसारचंद
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| -[[रणजीत सिंह|राजा रणजीत सिंह]]
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| ||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने [[पहाड़ी चित्रकला |पहाड़ी चित्रकला शैली]] को संरक्षण प्रदान किया। [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] (पहाड़ी शैली]]) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे।
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