"प्रयोग:दीपिका": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
(पृष्ठ को खाली किया)
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 48 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व
|चित्र=Blankimage.png
|चित्र का नाम=
|पूरा नाम=चतुर्भुज औदीच्य
|अन्य नाम=
|जन्म=
|जन्म भूमि=
|मृत्यु=
|मृत्यु स्थान=
|अभिभावक=
|पति/पत्नी=
|संतान=
|गुरु=
|कर्म भूमि=
|कर्म-क्षेत्र=
|मुख्य रचनाएँ=औदीच्य जी का 'कवित्व' नामक निबन्ध बहुप्रशंसित है।
|विषय=
|खोज=
|भाषा=
|शिक्षा=
|विद्यालय=
|पुरस्कार-उपाधि=
|प्रसिद्धि=लेखक, निबन्धकार
|विशेष योगदान=
|नागरिकता=भारतीय
|संबंधित लेख=[[द्विवेदी युग|द्विवेदी-युग]], [[साहित्य]], [[रामचन्द्र शुक्ल]], [[भाषा]]
|शीर्षक 1=रचना-काल
|पाठ 1=[[1904]] ई.
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|शीर्षक 3=
|पाठ 3=
|शीर्षक 4=
|पाठ 4=
|शीर्षक 5=
|पाठ 5=
|अन्य जानकारी=ऐसा लगता है कि ये उन लेखकों में-से थे, जो [[साहित्य]] को जीवन का अनिवार्य अंग या व्यापार न बनाकर कभी-कभी लिखते हैं।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}


'''चतुर्भुज औदीच्य''' [[द्विवेदी युग|द्विवेदी-युग]] के निबन्धकार थे। औदीच्य जी का 'कवित्व' नामक निबन्ध बहुप्रशंसित है। प्रथम अध्याय में कवित्व की प्रशंसा, द्वितीय में कवित्व का जन्म, तृतीय में कवीत्व का भाषा से [[विवाह]] तथा चतुर्थ में मिथ्या (कल्पना) का कवित्व से सम्बन्ध स्थापन किया गया है।
=== परिचय ===
चतुर्भुज औदीच्य का रचना-काल [[1904]] ई. है। यह [[द्विवेदी युग|द्विवेदी-युग]] के निबन्धकार थे। ऐसा लगता है कि ये उन लेखकों में-से थे, जो [[साहित्य]] को जीवन का अनिवार्य अंग या व्यापार न बनाकर कभी-कभी लिखते हैं। ऐसे लेखक गौण होते हुए भी [[साहित्य]] के लिए अपेक्षित वातावरण बनाने में सहायक होते हैं।
=== लेखन शैली ===
औदीच्य जी का 'कवित्व' नामक [[निबन्ध]] बहुप्रशंसित है। 'कवित्व' निबन्ध में भाव, उपादान और शैली सभी महत्त्वपूर्ण थे <ref>श्रीकृष्णलाल: 'आधुनिक हिन्दी साहित्य का विकास', पृ. 354</ref>। इस निबन्ध का मूलाधर बंगला के पंचानन तर्करत्न का 'कवित्व' शीर्षक निबन्ध है। यह रूप और शैली में खण्ड-काव्य के निकट पहुँचता है। यह चार अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में कवित्व की प्रशंसा, द्वितीय में कवित्व का जन्म, तृतीय में कवीत्व का [[भाषा]] से [[विवाह]] तथा चतुर्थ में मिथ्या <ref>कल्पना</ref>का कवित्व से सम्बन्ध स्थापन किया गया है। "इस प्रकार लेखक ने एक बहुत ही कवित्वपूर्ण रूपात्मक कहानी की सृष्टि की, जिसमें कवित्व,भाषा, मिथ्या और कल्पना का मानवीयकरण हुआ है।"
=== भाषा शैली ===
सम्भवत: ऐसी ही निबन्धों को ध्यान में रखकर [[रामचन्द्र शुक्ल]] ने कविता की [[भाषा]] का प्रयोग आलोचना के क्षेत्र में अनुचित माना है।<ref>'हिन्दी साहित्य का इतिहास', सप्तम संस्करण, पृ. 595-596</ref> वस्तुत: इस [[निबन्ध]] को आलोचना के क्षेत्र से अलग कर शुद्ध कलात्मक निबन्ध के अंतर्गत परिगणित करना चाहिए।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश भाग-2|लेखक=डॉ. धीरेन्द्र वर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=181|url=}}</ref>
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
{{साहित्यकार}}
__INDEX__
__NOTOC__
{{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व
|चित्र=Blankimage.png
|चित्र का नाम=
|पूरा नाम=चर्पटीनाथ
|अन्य नाम=
|जन्म=
|जन्म भूमि=
|मृत्यु=
|मृत्यु स्थान=
|अभिभावक=
|पति/पत्नी=
|संतान=
|गुरु=
|कर्म भूमि=
|कर्म-क्षेत्र=
|मुख्य रचनाएँ= [[हजारीप्रसाद द्विवेदी|डा. हजारीप्रसाद द्विवेदी]] ने चर्पटीनाथ जी की एक तिब्बती भाषा में लिखी कृति 'चतुर्भवाभिशन' का उल्लेख किया है।
|विषय=
|खोज=
|भाषा= तिब्बती भाषा,
|शिक्षा=
|विद्यालय=
|पुरस्कार-उपाधि=
|प्रसिद्धि=लेखक
|विशेष योगदान=
|नागरिकता=भारतीय
|संबंधित लेख=[[पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल|डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल]], [[हजारीप्रसाद द्विवेदी|डा. हजारीप्रसाद द्विवेदी]], [[गोरखनाथ]]
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|शीर्षक 3=
|पाठ 3=
|शीर्षक 4=
|पाठ 4=
|शीर्षक 5=
|पाठ 5=
|अन्य जानकारी=एक सबदी में "सत-सत भाषंत श्री चरपटराव" कहकर कदाचित् चर्पटीनाथ ने स्वयं राजवंश से अपने सम्बन्ध का संकेत किया है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''चर्पटीनाथ''' ने एक [[श्लोक]] में पारद का यशोगान किया गया है और इसी सन्दर्भ में स्वर्ण या स्वर्णभस्म बनाने की विधि का उल्लेख भी हुआ है। इसीलिए चर्पटीनाथ रसेश्वरसिद्ध कहे जाते हैं। चौरासी सिद्धों में से एक, जिन्हें राहुल सांकृत्यायन की सूची में 59 वाँ और 'वर्ण रत्नाकार' की सूची में 31 वाँ सिद्ध बताया गया है। रज्जब की सर्वागी इन्हें चारणी के गर्भ से उत्पन्न कहा गया है किंतु [[पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल|डा. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल]] ने इनका नाम चम्ब रियासत की राजवंशावली में खोज निकाला है।
=== परिचय ===
चर्पटीनाथ चौरासी सिद्धों में से एक, जिन्हें राहुल सांकृत्यायन की सूची में 59 वाँ और 'वर्ण रत्नाकार' की सूची में 31 वाँ सिद्ध बताया गया है। राहुल जी ने इन्हें [[गोरखनाथ]] का शिष्य मानकर इनका समय 11 वीं शती अनुमित किया है। 'नाथ सिद्धों की बानियाँ' में इनकी सबदी संकलित है। उसमें एक स्थल पर कहा गया है- "आई भी छोड़िये, लैन न जाइये। कुहे गोरष कूता विचारि-विचारि षाइये।।" सबदी में कई स्थलों पर अवधूत या शब्द का भी प्रयोग हुआ है। एक सबसी में नागार्जुन को सम्बोधित किया गया है- "कहै चर्पटी सोंण हो नागा अर्जुन।" इन उल्लेखों से विदित होता है कि चर्पटीनाथ गोरखनाथ के परवर्ती और नागार्जुन के समसामयिक सिद्ध थे, अत: अनुमान किया जा सकता है कि वे 11 वीं 12 वीं शताब्दी में हुए होंगे। रज्जब की सर्वागी इन्हे चारणी के गर्भ से उत्पन्न कहा गया है किंतु [[पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल|डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल]] ने इनका नाम चम्ब रियासत की राजवंशावली में खोज निकाला है। एक सबदी में "सत-सत भाषंत श्री चरपटराव" कहकर कदाचित् चर्पटीनाथ ने स्वयं राजवंश से अपने सम्बन्ध का संकेत किया है।
===लेखन शैली ===
चर्पटीनाथ की किसी स्वतंत्र रचना का प्रमाण नहीं मिला। [[हजारीप्रसाद द्विवेदी|डा. हजारीप्रसाद द्विवेदी]] ने उनकी एक तिब्बती भाषा में लिखी कृति 'चतुर्भवाभिशन' का उल्लेख किया है। 'नाथ सिद्धों की बानियाँ' में चर्पटीनाथ की 59 सवदियाँ और 5 श्लोक संकलित हैं। इनका वर्ण्य-विषय लौकिक पाखण्डों का खण्डन तथा कामिनी-कंचन की निन्दा आदि है। एक श्लोक में पारद का यशोगान किया गया है और इसी सन्दर्भ में स्वर्ण या स्वर्णभस्म बनाने की विधि का उल्लेख भी हुआ है। इसीलिए चर्पटीनाथ रसेश्वरसिद्ध कहे जाते हैं।<ref>[सहायक ग्रंथ-पुरातत्त्व निबन्धावली: महापण्डित राहिल सांकृत्यायन; हिन्दी काव्यधारा: महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन; नाथ सम्प्रदाय: डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी; नाथ सिद्धों की बानियाँ: डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी; योग प्रवाह: डा. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल।]</ref><ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश भाग-2|लेखक=डॉ. धीरेन्द्र वर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=183|url=}}</ref>
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
{{साहित्यकार}}
__INDEX__
__NOTOC__

11:40, 13 जनवरी 2018 के समय का अवतरण