"प्रयोग:रिंकू10": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
{ | {तटस्थता वक्र विश्लेषण में वस्तु X तथा Y के विभिन्न संयोगों में संबंध होता है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-20,प्रश्न-56 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ | +वस्तु X बढ़ेगी तथा वस्तु Yघटेगी | ||
- | -वस्तु Yबढ़ेगी तथा वस्तु X घटेगी | ||
- | -वस्तु X बढ़ेगी तथा वस्तु Y वस्तु स्थित रहेगी | ||
- | -वस्तु Y बढ़ेगी तथा वस्तु X भी बढ़ेगी | ||
|| | ||दो या दो से अधिक वस्तुओं के ऐसे संयोगों या युग्मो को प्रदर्शित करने वाला वक्र जिससे उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्राप्त हो, 'सम संतुष्टि वक्र', अनधिमान वक्र' या 'तटस्थता वक्र' कहलाता है। तटस्थता वक्र विश्लेषण पर सभी संयोगों के प्रति उदासीनता के लिए उपभोक्ता वस्तु X की अधिक इकाइयों के लिए Y वस्तु की कम इकाइयों का त्याग करेगा। | ||
{ | {निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-20,प्रश्न-57 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -यदि वस्तु की मांग अधिक है तो साधन की मांग कम होगी | ||
+यदि वस्तु की मांग अधिक है तो साधन की मांग भी अधिक होगी | |||
+ | -यदि वस्तु की मांग कम है तो साधन की मांग अधिक होगी | ||
- | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
||एक वस्तु की मांग तथा एक साधन की मांग की प्रकृति में अंक्षर होता है। एक वस्तु की मांग प्रत्यक्ष होती है जो उसकी सीमांत उपयोगिता पर आधारित होती है, जबकि एक साधन की मांग व्युत्पन्न मांग होती है। यदि वस्तु की मांग अधिक है तो साधन की मांग भी अधिक होगी | |||
एक वस्तु की पूर्ति उसकी मुद्रा उत्पादन लागत पर निर्भर करती है जबकि एक साधन की पूर्ति उसकी अवसर लागत पर निर्भर करती है। | |||
{ | {उस बिंदु पर उपभोक्ता साम्य में होता है, जब बजट रेखा- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-20,प्रश्न-58 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -एक उदासीन क्रम से ऊपर होती है | ||
+ | -उदासीन वक्र की स्पर्श रेखा होती है | ||
+उदासीन वक्र की स्पर्श रेखा होती है | |||
- | -एक उदासीन वक्र को कटती है | ||
|| | ||चित्र से स्पष्ट है कि IC2 उपभोक्ता की क्रय सीमा के बाहर है। PL ढाल OP/OL दोनों वस्तुओं के बीच मूल्य अनुपात प्रदर्शित करता है। IC1 वक्र पर उपभोक्ताम की उपयोगिता अधिकतम नहीं है। बिंदु E पर उपभोक्ता संस्थिति की स्थिति में है, वहां बजट रेखा, अनधिमान वक्र की स्पर्श रेखा है, अन्य सभी बिंदुओं पर बजट रेखा अनधिमान वक्रों को काटती है। बिंदु E पर वह x की OB तथा y की OA मात्रा क्रय करेगा। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.हिक्स के अनुसार, उपभोक्ता संस्थिति की स्थिति में वहां होगा जहां मूल्य रेखा का ढाल, तटस्थता वक्र की ढाल के बराबर हो। | |||
.मार्शल के अनुसार, उपभोक्ता संस्थिति की स्थिति में वहां होगा जहां वस्तुओं की सीमांत उपयोगिता तथा उनके मूल का अनुपात परस्पर बताबर हो। | |||
{ | {MRSxy व्यक्त करता है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-21,प्रश्न-59 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | +उपभोक्ता X की एक अतिरिक्त इकाई के लिई Y की कितनी मात्रा का त्याग करता है और उसी उदासीनता-वक्र पर रहता है। | ||
- | -उपभोक्त y की एक अतिरिक्त इकाई के लिए x की कितनी इकाइयों का त्याग करता है और उसी उदासीनता-वक्र पर रहता है। | ||
- | -उपभोक्ता x की एक इकाई के लिए y की कितनी इकाइयों का त्याग करता है और ऊंचे उदासीनता-वक्र पर चढ़ जाता है | ||
-उपभोक्ता निचले उदासीनता-वक्र पर उत्तर काता है। | |||
|| | ||MRSxy से तात्पर्य x की एक अतिरिक्त इकाई के लिए y की छोड़ी गई मात्रा से है जिससे उपभोक्त संतुष्टि के उसी पर बना रहे। अत: x की मात्रा की वृद्धि के लिए y की छोड़ी गई मात्रा में उत्तरोत्तर कमी, घटती प्रतिस्थापन की सीमांत दर व्यक्ति करता है। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.घटती हुई प्रतिस्थापना की सीमांत दर (MRSxy=; Diminishing marginal rate of substitution) का सिद्धांत क्रमागत उपयोगिता ह्नास नियम के सिद्धांत पर आधारित है। | |||
.क्रमागत उपयोगिता ह्लास नियम के अनुसार, जैसे-जैसे x के मात्रा बढ़ती जाती है उससे मिलने वाली सीमांत उपयोगिता क्रमश: घटती जाती है, दूसरी ओर जैसे-जैसे y के स्टॉक में कमी होती जाती है, y की उपयोगीता बढ़ती जाती है। अत: संतुष्टि के उसी स्तर पर बने रहने के लिए यह आवश्यक है कि x के कारण उपयोगिता में वृद्धि, y के कारण उपयोगिता में कमी के बराबर होनी चाहिए। | |||
{ | {प्रतिस्थापन प्रभाव हमेशा होगा- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-21,प्रश्न-60 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ऋणात्मक | |||
+ | -धनात्मक | ||
- | -ऋणात्मक या धनात्मक | ||
- | -आय प्रभाव के बराबर | ||
||प्रतिस्थापन प्रभाव से आशय x वस्तु के मूल्य में सापेक्षिक परिवर्तन के कारण x वस्तु की मांगी गई मात्रा में परिवर्तन से है जबकि उपभोक्ता की वास्तुविक आय पूर्ववत रखी गई है। | |||
प्रतिस्थापन प्रभाव मूल्य में कमी के कारण उत्पन्न होता है। मूल्य में कमी परिवर्तन हमेशा विपरीत दिशा में होगा। अत: प्रतिस्थापन प्रभाव हमेशा ऋणात्मक होगा। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.आय प्रभाव धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों हो सकता है। | |||
.गिफेन वस्तु के संदर्भ में आय प्रभाव इतना अधिक धनात्मक होता है कि वह ऋणात्मक प्रतिस्थापन प्रभाव को समाप्त कर देता है और मूल्य प्रभाव के धनात्मक कर देता है। | |||
{ | |||
{एक व्यक्तिगत मांग वक्र इस मान्यता पर आधारित होता है कि निम्न तत्व को छोड़कर बाकी सब निर्धारक तत्व स्थिर रहते हैं- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-34,प्रश्न-128 | |||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -उपभोक्ता की आय | ||
- | -संबंधित वस्तुओं की कीमत | ||
- | +वस्तु की कीमत | ||
-उपभोक्ता की रुचि | |||
|| | ||एक व्यक्तिगत मांग वक्र इस मान्यता पर आधारित होता है कि वस्तु की कीमत को छोड़कर शेष सभी निर्धारक तत्व स्थित रहते हैं, क्योंकि मांग वक्र का विश्लेषण वस्तु की कीमत और उसकी मात्रा द्वारा किया जाता है। | ||
{ | {मांग वक्र प्रदर्शित है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-35,प्रश्न-129 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -उत्पादन लागत और वस्तु की मांग के विपरीत संबंध को। | ||
+ | +वस्तु की कीमत और वस्तु की मांग के विपरीत संबंध को। | ||
- | -वस्तु की कीमत और वस्तु की मांग के प्रत्यक्ष संबंध को। | ||
- | -मांग की मात्रा में परिवर्तन के विपरीत संबंध को। | ||
|| | ||किसी वस्तु के मांग वक्र की सामान्य प्रकृति बाएं से दाएं नीचे की ओर ढाल के रूप में होती है और यह किसी वस्तु की कीमत और उस वस्तु की मांग मात्रा के बीच विपरीत संबंध को व्यक्त करता है। इसका अर्थ है कि किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उस वस्तु की मांग घट जाएगी। | ||
{ | {जब मांग की रेखा सदैव आधार रेखा के समानांतर रहती है, ऐसी स्थिति में मांग की लोच होगी- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-35,प्रश्न-130 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ | -शून्य | ||
- | +अनंत | ||
- | -इकाई से कम | ||
- | -इकाई से अधिक | ||
|| | ||जब मांग की रेखा सदैव आधार रेखा (X-अक्ष) के समानांतर रहती है तो ऐसी स्थिति में मांग की लोच अनंत होती है। इसका अर्थ है कि किसे वस्तु की मांग मात्रा पर्याप्त परिवर्तन होने के बावजूद उस वस्तु की कीमत अपरिवर्तित रहती है। | ||
{सैम्युएल्सन के अनुसार मांग के तार्किक सिद्धांत का तीसरा सूत्र है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-35,प्रश्न-132 | |||
|type="()"} | |||
-तटस्थ वक्र विश्लेषण | |||
-मांग की लोच | |||
+उद्घाटित अधिमान सिद्धांत | |||
-उपयोगिता विश्लेषण | |||
||सैम्युएल्सन के अनुसार मांग के तार्किक सिद्धांत का तीसरा सूत्र उद्घाटित अधिमान सिद्धांत है, जिसे सैम्युएल्सन ने वर्ष 1958 में अपनी पुस्तक 'Economics' में प्रस्तुत किया था। यह बाजार में उपभोक्ता के अवलोकित व्यवहार के आधार पर दो वस्तुओं के एक संयोग के लिए उपभोक्ता के अधिमान का विश्लेषण करता है। | |||
{एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप जब दोनों वस्तुओं की मांग घटती या बढ़ती है तो मांग की तिरछी लोच होगी- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-35,प्रश्न-133 | |||
|type="()"} | |||
+ऋणात्मक | |||
-धनात्मक | |||
-शून्य | |||
-इकाई के बराबर | |||
||एक वस्तु की मांग-मात्रा में प्रकाशित परिवर्तन का एक संबंधित वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन का आनुपारिक संबंध मांग की तिरछी लोच होती है। ऐसा दो प्रकार की वस्तुओं स्थानापन्न और पूरक के संबंध में होता है। जब एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप दोनों वस्तुओं की मांग घटती या बढ़ती है तो मांग की तिरछी लोच ऋणात्मक होती हैं, क्योंकि ऐसी वस्तुएं पूरक होती हैं। | |||
{पूर्ण प्रतियोगिता की वह कौन-सी विशेषता है, जो एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता पर लागू नहीं होती? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-68,प्रश्न-107 | |||
|type="()"} | |||
-अधिक क्रेता व विक्रेता | |||
-स्वतंत्र प्रवेश व निकास | |||
+एकरूप उत्पादन | |||
-उपर्युक्त सभी | |||
||पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता की सभी मान्यताएं समान होती हैं, सिर्फ 'एक रूप उत्पादन' की मान्यता को छोड़कर। पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता दोनों में 'समरूप' वस्तुएं उत्पादित होती हैं, लेकिन एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में 'पैकेजिंग' आदि करके वस्तुओं को भिन्न कर दिया जाता है। | |||
{दीर्घकालीन साम्य की अवस्था में सभी पूर्ण प्रतियोगी फर्में केवल- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-69,प्रश्न-109 | |||
|type="()"} | |||
+सामान्य लाभ प्राप्त करती है। | |||
-हानि सहन करती हैं। | |||
-लाभ अर्जित करती हैं। | |||
-उपरोक्त सभी। | |||
||दीर्घकालीन साम्य की अवस्था में सभी पूर्ण प्रतियोगी फर्में केवल सामान्य लाभ प्राप्त करती हैं, क्योंकि दीर्घकाल में फर्में इस प्रकार समायोगित होती हैं कि वे अपने औसत लागत वक्र के न्यूनतम बिंदु पर उत्पादन कर रही होती है और इस बिंदु पर औसत आय रेखा स्पर्श करती है, जिससे फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है। | |||
{अपूर्ण प्रतियोगिता से यह संबंधित नहीं है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-69,प्रश्न-111 | |||
|type="()"} | |||
-फर्मों की अधिक संख्या | |||
+समरूप पदार्थ | |||
-मांग लोचपूर्ण | |||
-कीमत पर कुछ नियंत्रण | |||
||अपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता फर्मों के उत्पाद सहजातीय या समरूप नहीं होते हैं, बल्कि वे परस्पर नजदीकी स्थानापन्न होते हैं। | |||
{एकाधिकारी- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-69,प्रश्न-113 | |||
|type="()"} | |||
-अपनी बिक्री तथा उत्पादन को बढ़ाकर वस्तु की कीमत को घटा सकता है। | |||
-अपनी बिक्री तथा उत्पादन को घटाकर कीमत को बढ़ा सकता है। | |||
+उपरोक्त दोनों। | |||
-उपरोक्त में कोई भी नहीं। | |||
||एकाधिकारी बाजार में फर्म उस स्थिति में होती है कि वह या तो पूर्ति पर नियंत्रण कर ले या फिर कीमत पर, अर्थात वह दोनों पर एक साथ नियंत्रण स्थापित नहीं कर सकती है, अत: एकाधिकारी चाहे तो अपने उत्पादन तथा बिक्री को बढ़ाकर वस्तु की कीमत घटा सकता है या फिर उत्पादन तथा बिक्री को घटाकर कीमत को बढ़ा सकता है। | |||
{एकादिकारी प्रतियोगिता के अल्पकालीन साम्य की अवस्था में- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-68,प्रश्न-114 | |||
|type="()"} | |||
-फर्म को लाभ प्राप्त हो सकते हैं। | |||
-फर्म को हानि सहन करनी पड़ सकती है। | |||
-फर्म को न लाभ न हाँइ की स्थिति से गुजरना पड़ सकता है। | |||
+उपरोक्त सभी। | |||
||एकाधिकारी प्रतियोगिता के अंतर्गत कोई फर्म असामान्य लाभ, असामान्य हानि या सामान्य लाभ किसी भी स्थिति से गुजर सकती है, अत: अल्पकालीन साम्य की अवस्था में फर्म को प्रश्नगत तीनों स्थितियों से गुजरना पड़ सकता है। | |||
{ | {सही कथन क्या है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-50 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -लगान में वृद्धि से भूमि की कीमत बढ़ती है। | ||
- | +हस्तांतरण भुगतान का अर्थ न्यूनतम पूर्ति कीमत से है। | ||
-एक विशिष्ट साधन लगान का उपार्जन नहीं करता। | |||
- | -सीमांत भूमि सर्वाधिक लगान का उपार्जन करती है। | ||
|| | ||रिकार्डो के अनुसार, "लगान भूमि की उपज का वह भाग है जो भूमि के मालिक को भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियों के उपयोग के लिए दिया जाता है। अत: स्पष्ट है कि लगान का कारण भूमि में उपलब्ध भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियां हैं जिनके कारण भूमि पर निरंतर उत्पादन होता है। लगान में वृद्धि का भूमि की कीमत से कोई संबंध नहीं होता है बल्कि यदि भूमि पर उत्पादित उपक या अनाज का मूल्य बढ़ता है तो लगान में भी वृद्धि होगी। 'हस्तांतर्ण भुगतान' (Transfer Earning) या 'अवसर आय' वह मूल्य है जो किसी साधन की एक इकाई को किसी उद्योग में बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है। अत: कथन "हस्तांतरण भुगतान का अर्थ न्यूनतम पूर्ति कीमत है", सही है। | ||
एक विशिष्ट साधन लगान का उपार्जन करता है जबकि अविशिष्ट साधन को लगान विशिष्ट साधन लगान प्राप्त नहीं होती है। रिकार्डो के अनुसार, 'लगान अधि-सीमांत तथा सीमांत भूमि के उत्पादनों का अंतर है। सीमांत भूमि से आशव भूमि के ऐसे टुकड़े से है जिस पर उत्पादित वस्तुओं से प्राप्त आय उत्पादन लागात के ठीक-ठीक बराबर होती है। इस प्रकार की भूमि पर कृषि करने वाले को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होगा। उसे कोई अतिरिक्त बचत नहीं प्राप्त होगी। इस प्रकार सीमांत भूमि से लगान प्राप्त नहीं होता है। अत: केवल विकल्प (b) ही सही है, शेष गलत हैं। | |||
{ | {मजदूरी के जीवन-निर्वाह सिद्धांत का प्रतिपादन किया था: (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-51 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+जेक्स | |||
+ | -मार्क्स | ||
- | -मार्शल | ||
- | -सेम्युएल्सन | ||
||मजदूरी के जीवन-निर्वाह सिद्धांत का प्रतिपादन 18वीं सदी में जैक्स, रिकार्डों और टोरेन्स ने किया था। | |||
{ | {शब्द 'संभाव्य आश्चर्य' किस सिद्धांत से सम्बद्ध है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-52 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ | -लगान सिद्धांत | ||
- | +ब्याज सिद्धांत | ||
- | -मजदूरी सिद्धांत | ||
-लाभ सिद्धांत | |||
| | ||शब्द 'संभाव आश्चर्य' लाभ के सिद्धांत से संबंधित है जिसका प्रतिपादन शाकिल ने किया था। 'सामान्यतया आभ' से तात्पर्य कुल आय के उस भाग से है जो कुल खर्चों को निकाल देने के बाद बच जाती है। पर वास्तव में यह कुल लाभ है, अर्थशास्त्र में प्रयोग किया गया शुद्ध लाभ नहीं। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.लाभ के दो रूप हैं- सामान्य लाभ तथा असामान्य लाभ। | |||
.सामान्य लाभ, लाभ की न्यूनतम सीमा है जिससे कम मिलने पर साहसी जोखिम उठाना छोड़ देगा। | |||
.जब औसत आय वक्र (AR) औसत लागत वक्र को स्पर्श करती है तो फर्म को सामान्य लाभ होता है तथा जब यह AR वक्र से नीचे होती है तो फर्म को असामान्य लाभ होगा। | |||
.प्रो. नाइट ने सामान्य तथा असामान्य लाभ के बीच भेद जोखिम के विभिन्न प्रकारों के आधार पर किया है। | |||
{ | {जब किसी को क्षति पहुंचाए बिना किसी को अच्छा बनाना संभव न हो तो ऐसी स्थिति को कहते हैं- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-53 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -संभाविता अनुकूलतम | ||
+ | +पैरेटो अनुकूलतम | ||
- | -जनसंख्या अनुकूलतम | ||
- | -प्रदूषण अनुकूलतम | ||
|| | ||जब किसी को क्षति पहुंचाएं बिना किसी को अच्छा बनाना संभव न हो तो ऐसी स्थिति को "पैरेटो अनुकूलतम" कहते हैं। पैरेटो मापदण्ड यह बताता है कि हम उस समय यह कहते हैं कि कल्याण बढ़ (या घट) गया है, जब दूसरों की स्थिति में परिवर्तन किए बिना कम से कम एक व्यक्ति को पहले से अच्छी या (बुरी) स्थिति में ले आया जाए। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.कल्याण अर्थशास्त्र पर प्रथम मानक ग्रन्थ प्रो. ए.सी. पीगू का 'The Economics of Welfare' है। पीगू को 'कल्याण अर्थशास्त्र का पिता' माना जाता है। | |||
.समाज कल्याण फलन सिद्धांत की धारणा का प्रतिपादन प्रो. वर्गसन ने किया। | |||
.कालडर के अनुसार, समाज कल्याण में वृद्धि का परीक्षण यह है कि यदि कुछ व्यक्ति पहले से अच्छी और दूसरे पहले से बुरी स्थिति में आ जाते है, तो परिवर्तन से लाभ प्राप्त करने वाले हानि प्राप्त करने वालों की अप्रेक्षाकृत अधिक क्षतिपूर्ति कर सकते हैं और फिर भी स्वयं पहले से अच्छी स्थिति में हो सकते हैं। | |||
{ | {वालरस का 'सामान्य संतुलन का मॉडल' था- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-55 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | +एक स्थैतिक मॉडल | ||
- | -एक गत्यात्मक मॉडल | ||
- | -तुलनात्मक स्थैतिक मॉडल | ||
-उपरोक्त में से कोई नहीं नहीं | |||
|| | ||वालरस का सामान्य संतुलन का मॉडल एक स्थैतिक या अगत्यात्मक मॉडल है। इस मॉडल में सभी उपभोक्ता व उत्पादक, समय के किसी भी प्रकार के विलम्ब के बिना, दिन-प्रतिदिन वस्तुओं की उतनी ही मात्रा का उपभोग तथा उत्पादन करते हैं। उनकी रुचितां, अधिमान, आदतें, उत्पादन फलन, पूर्ति फलन तथा उद्देश्य वे ही रहते हैं और उनके आर्थिक निर्णय पूरी तरह एक-दूसरे के अनुरूप होते हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि ये सभी तत्व निरंतर बदलते रहते हैं। इसलिए वालरस मॉडल के संतुलन बिंदु की प्राप्ति केवल एक अल्पित अभिलाषा मात्र बनी रहती है। | ||
</quiz> | </quiz> | ||
|} | |} | ||
|} | |} |
11:29, 12 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
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