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'''समोसा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Samosa'') तला हुआ या बेक किया हुआ भरवां अल्पाहार व्यंजन तथा दक्षिण एशिया का एक लोकप्रिय व्यंजन है। 


{{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व
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'''गंगाप्रसाद अग्निहोत्री''' (जन्म- [[श्रावण]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] 7 सन [[1870]] ई.,[[नागपुर]], [[मध्यप्रदेश]]; मृत्यु [[1931]] ई.) [[हिन्दी भाषा]] के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। गंगाप्रसाद हिन्दी के प्रबल समर्थक थे और उसे ही राष्ट्रभाषा के लिए सर्वथा उपयुक्त समझते थे। इन्होंने चिपलूणकर शास्त्री की पूरी पुस्तक 'निबन्धमालादर्श' का अनुवाद किया था। गंगाप्रसाद जी ने समीक्षा-सिद्धांतों का प्रतिपादन करने वाली पद्धति का सूत्रपात करके महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
== परिचय ==
गंगाप्रसाद अग्निहोत्री का जन्म [[श्रावण]] मास के [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] 7 सन [[1870]] ई. को [[नागपुर]], [[मध्यप्रदेश]] में हुआ था। गंगाप्रसाद [[हिन्दी भाषा]] में पाश्चात्य समीक्षा सिद्धांतों का सूत्रपात करने वालों में अग्रणी हैं। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण इनकी शिक्षा का उचित प्रबन्ध न हो सका। गंगाप्रसाद जी ज्यों-त्यों एण्ट्रेंस की परीक्षा में सम्मिलित हुए और अनुत्तीर्ण होकर रह गये। इन्होंने वैकल्पिक विषय के रूप में [[मराठी]] और [[संस्कृत]] का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
==== जगन्नाथ प्रसाद भानु से सम्पर्क ====
गंगाप्रसाद सन [[1892]] ई. में आप असिस्टेंट सेटिलमेंट आफिसर जगन्नाथ प्रसाद भानु के सम्पर्क में आये। जीविका के लिए नकलनवीसी का काम मिल गया और सहित्यिक विकास के लिए निरंतर प्रेरणा मिलती रही।
== रचानाएँ ==
सबसे पहले गंगाप्रसाद ने चिपलूणकर शास्त्री के 'समालोचना' शीर्षक निबन्ध का अनुवाद [[मराठी]] से [[हिन्दी]] में किया, जो [[नागरी प्रचारिणी पत्रिका]] के पहले वर्ष<ref>2896 ई.</ref> में पहले अंक में प्रकाशित हुआ। गंगाप्रसाद को ख्याति मिली और उत्साहित होकर आपने चिपलूणकर शास्त्री की पूरी पुस्तक 'निबन्धमालादर्श' का अनुवाद किया। फिर तो ये बराबर लिखते रहे 'रसवारिका' संवत [[1964]] ई. में वेकटेश्वर प्रेम बम्बई से मद्रित हो चुका है। 'राष्ट्रभाषा'<ref>1899 ई.</ref><ref>मराठी से हिन्दी में अनुवाद</ref>, 'प्रणयीमाधव' <ref>मराठी से अनुवाद</ref>, 'संस्कृत कविपंचल', 'मेघदूत', 'निबन्धमालादर्श', 'डाँ. जानसन की जीवनी' <ref>अप्रकाशित</ref>, 'नर्मदा विहार', 'संसार सुख साधन' <ref>1917 ई.</ref>, 'किसानों की कामधेनु' आपकी प्रसिद्ध अनूदित और मौलिक कृतियाँ हैं।
== भाषाओं का ज्ञान ==
गंगाप्रसाद की भाषा तत्समप्रधान है। उसमें प्राय: [[उर्दू]] शब्दों का अभाव है। [[अंग्रेज़ी]] के बहुप्रचलित शब्दों को आपने ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया है। गंगाप्रसाद [[हिन्दी]] के प्रबल समर्थक थे और उसे ही [[राष्ट्रभाषा]] के लिए सर्वथा उपयुक्त समझते थे।


आपकी सबसे बड़ी देन हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में है। जिस समय [[हिन्दी]] में आलोचना के नाम पर या तो पुस्तक-परिचय लिखे जाते थे या रीतिकालीन मानदंडों के आधार पर गुण-देष विवेचना किया जाता था, उस समय पाश्चात्य समीक्षा-सिद्धांतों का प्रतिपादन करने वाली पद्धति का सूत्रपात करके आपने महत्त्वपूर्ण कार्य किया।
 
== निधन ==
समोसा एक तला हुआ या बेक किया हुआ भरवां अल्पाहार व्यंजन है। इसमें प्राय: मसालेदार भुने या पके हुए सूखे [[आलू]], या इसके अलावा मटर, प्याज, दाल, कहीं- कहीं मांसा भी भरा हो सकता है। इसका आकार प्राय: तिकोना होता है। अधिकतर ये चटनी के संग परोसे जाते हैं। ये अल्पाहार या नाश्ते के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया, दक्षिण पश्चिम एशिया, अरब प्रायद्वीप, भूमध्य सागर क्षेत्र, अफ्रीका का सींग, उत्तर अफ्रीका एवं दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित हैं। समोसा दक्षिण एशिया का एक लोकप्रिय व्यंजन है। 
गंगाप्रसाद  अग्निहोत्री का निधन सन [[1931]] ई. हुआ था। जीवन के अंतिम दिनों में उन्नति करते हुए कोरिया रियासर के नायब दीवान हो गये थे।
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि दसवीं शताब्दी में मध्य एशिया में समोसा एक व्यंजन के रूप में सामने आया था। 13-14वीं शताब्दी में व्यापारियों के माध्यम से समोसा भारत पहुंचा। महान कवि अमीर खुसरो (1253-1325) ने एक जगह जिक्र किया है कि दिल्ली सल्तनत में उस दौरान स्टड मीट वाला घी में डीप फ्राई समोसा शाही परिवार के सदस्यों व अमीरों का प्रिय व्यंजन था। 14 वीं शताब्दी में भारत यात्रा पर आये इब्नबतूता ने मो. बिन तुगलक के दरबार का वृतांत देते हुए लिखा कि दरबार में भोजन के दौरान मसालेदार मीट, मंूगफली और बादाम स्टफ करके तैयार किया गया लजीज समोसा परोसा गया, जिसे लोगों ने बड़े चाव से खाया। यही नहीं 16वीं शताब्दी के मुगलकालीन दस्तावेज आईने अकबरी में भी समोसे का जिक्र बकायदा मिलता है।
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
[[भारत]] में समोसे को स्ट्रीट फूड कहा जाता है, समोसे का इजाद न भारत ने किया है और समोसा वर्ड भी हिंदी नहीं है, बल्कि पर्शियन शब्द है। समोसा भारत में मध्य एशिया की पहाडिय़ों से गुजऱते हुए पहुंचा जिस क्षेत्र को आज ईरान कहते हैं।  इसका असली नाम सम्बुसक है। मध्य एशियाई देशों में इसे सोम्सा कहा जाता है। अफरिकन देशों में इसे सम्बुसा कहा जाता है।
{{साहित्यकार}}
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
समोसे का यह सफर बड़ा निराला रहा है। समोसे की उम्र भले ही बढ़ती गई पर पिछले एक हजार साल में उसकी तिकोनी आकृति में जरा भी परिवर्तन नहीं हुआ।

12:27, 5 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

समोसा (अंग्रेज़ी: Samosa) तला हुआ या बेक किया हुआ भरवां अल्पाहार व्यंजन तथा दक्षिण एशिया का एक लोकप्रिय व्यंजन है।


समोसा एक तला हुआ या बेक किया हुआ भरवां अल्पाहार व्यंजन है। इसमें प्राय: मसालेदार भुने या पके हुए सूखे आलू, या इसके अलावा मटर, प्याज, दाल, कहीं- कहीं मांसा भी भरा हो सकता है। इसका आकार प्राय: तिकोना होता है। अधिकतर ये चटनी के संग परोसे जाते हैं। ये अल्पाहार या नाश्ते के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया, दक्षिण पश्चिम एशिया, अरब प्रायद्वीप, भूमध्य सागर क्षेत्र, अफ्रीका का सींग, उत्तर अफ्रीका एवं दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित हैं। समोसा दक्षिण एशिया का एक लोकप्रिय व्यंजन है।

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि दसवीं शताब्दी में मध्य एशिया में समोसा एक व्यंजन के रूप में सामने आया था। 13-14वीं शताब्दी में व्यापारियों के माध्यम से समोसा भारत पहुंचा। महान कवि अमीर खुसरो (1253-1325) ने एक जगह जिक्र किया है कि दिल्ली सल्तनत में उस दौरान स्टड मीट वाला घी में डीप फ्राई समोसा शाही परिवार के सदस्यों व अमीरों का प्रिय व्यंजन था। 14 वीं शताब्दी में भारत यात्रा पर आये इब्नबतूता ने मो. बिन तुगलक के दरबार का वृतांत देते हुए लिखा कि दरबार में भोजन के दौरान मसालेदार मीट, मंूगफली और बादाम स्टफ करके तैयार किया गया लजीज समोसा परोसा गया, जिसे लोगों ने बड़े चाव से खाया। यही नहीं 16वीं शताब्दी के मुगलकालीन दस्तावेज आईने अकबरी में भी समोसे का जिक्र बकायदा मिलता है।


भारत में समोसे को स्ट्रीट फूड कहा जाता है, समोसे का इजाद न भारत ने किया है और समोसा वर्ड भी हिंदी नहीं है, बल्कि पर्शियन शब्द है। समोसा भारत में मध्य एशिया की पहाडिय़ों से गुजऱते हुए पहुंचा जिस क्षेत्र को आज ईरान कहते हैं। इसका असली नाम सम्बुसक है। मध्य एशियाई देशों में इसे सोम्सा कहा जाता है। अफरिकन देशों में इसे सम्बुसा कहा जाता है।


समोसे का यह सफर बड़ा निराला रहा है। समोसे की उम्र भले ही बढ़ती गई पर पिछले एक हजार साल में उसकी तिकोनी आकृति में जरा भी परिवर्तन नहीं हुआ।