"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट नवम्बर 2013": अवतरणों में अंतर
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; दिनांक- 25 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Sanyans-hi-palayan.jpg|250px|right]] | |||
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मैंने कहा " | मैंने कहा "सन्न्यास ही एकमात्र ऐसा 'पलायन' है जिसे समाज ने प्रतिष्ठा दी हुई है।" | ||
कुछ पाठकों ने शंका की और कुछ ने मुझे शिक्षित-दीक्षित करने की कृपा भी की... | कुछ पाठकों ने शंका की और कुछ ने मुझे शिक्षित-दीक्षित करने की कृपा भी की... | ||
सन्न्यास पर मेरा विचार- | |||
जो व्यक्ति, | जो व्यक्ति, संन्यासी के रूप में, समाज में अपनी पहचान या प्रतिष्ठा चाहता है, तो उसका सन्न्यास उसी क्षण अर्थहीन हाे जाता है। सन्न्यास एक मन:स्थिति है न कि जीवनशैली, एक दृष्टिकोण है न कि विचारधारा, एक अंतरचेतना है न कि बाह्य इंद्रियों द्वारा अर्जित ज्ञान। | ||
यह मन:स्थिति मूल रूप से 'सहजता' है। इसे यूँ भी कह सकते हैं कि मनुष्य यदि सहजता को प्राप्त हो जाता है तो वह | यह मन:स्थिति मूल रूप से 'सहजता' है। इसे यूँ भी कह सकते हैं कि मनुष्य यदि सहजता को प्राप्त हो जाता है तो वह संन्यासी होता है। ध्यान रहे कि स्वयं सिद्ध सहजता, सन्न्यास नहीं वरना तो सब जानवर संन्यासी होते... यह वह सहजता है जो कोई व्यक्ति अपने विचार, विवेक और ज्ञान के अनुभवों के बाद धारण करता है लेकिन ऐसा होने की संभावना बहुत कम ही होती है। | ||
पलायन पर मेरा विचार- | पलायन पर मेरा विचार- | ||
अपनी-अपनी समझ से, हम मनुष्य के निर्माण के लिए उत्तरदायी प्रकृति को माने या ईश्वर को लेकिन निश्चित रूप से मनुष्य का निर्माण अपनी ज़िम्मेदारियों से भागने के लिए नहीं हुआ। न ही ईश्वर किसी पलायनवादी से प्रसन्न हो सकता है। | अपनी-अपनी समझ से, हम मनुष्य के निर्माण के लिए उत्तरदायी प्रकृति को माने या ईश्वर को लेकिन निश्चित रूप से मनुष्य का निर्माण अपनी ज़िम्मेदारियों से भागने के लिए नहीं हुआ। न ही ईश्वर किसी पलायनवादी से प्रसन्न हो सकता है। | ||
भारत को आवश्यकता है स्वामी विवेकानंद जी द्वारा प्रचारित प्रसिद्ध मंत्र 'उत्तिष्ठ जाग्रत' या 'उत्तिष्ठ भारत' की न कि किसी छद्म त्याग की। ऐसे | भारत को आवश्यकता है स्वामी विवेकानंद जी द्वारा प्रचारित प्रसिद्ध मंत्र 'उत्तिष्ठ जाग्रत' या 'उत्तिष्ठ भारत' की न कि किसी छद्म त्याग की। ऐसे संन्यासी का क्या अर्थ जो अपने पड़ोस में रोते बच्चे की आवाज़ को अनसुना करके अपने अपने ज्ञान-ध्यान में व्यस्त हो... | ||
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; दिनांक- 24 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Sanyans-facebook-post-2.jpg|250px|right]] | |||
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' | 'सन्न्यास' ही एकमात्र | ||
ऐसा 'पलायन' है | ऐसा 'पलायन' है | ||
जिसे समाज ने प्रतिष्ठा दी हुई है | जिसे समाज ने प्रतिष्ठा दी हुई है | ||
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; दिनांक- 24 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Hame-jivant-aur-urjavan -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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हमें जीवंत और ऊर्जावान बने रहने के लिए जो ऊर्जा के स्रोत अनिवार्यत: चाहिए उसमें | |||
चुनौती (Challenge), | |||
विस्मय (Surprise), | |||
रचनात्मकता (Creativity) और | |||
जिज्ञासा (Curiosity) | |||
मुख्य हैं। | |||
हमें कुछ न कुछ ऐसा करते रहना चाहिए कि जिससे ये ऊर्जा के स्रोत बने रहें। | |||
इनके बिना, जीवन पूर्णत: नीरस और उदासीन होता है। | |||
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; दिनांक- 24 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Updesh-marate-nahi -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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उपदेश मरते नहीं | |||
उपदेश अमर हैं | |||
उपदेश हमेशा रहेंगे | |||
उपदेशों की सँख्या में कोई कमी भी नहीं होती | |||
यदि कोई उपदेशों को मान लेता तो | |||
रोज़ाना ये उपदेश दिए ही क्यों जाते ? | |||
सँख्या में भी एक-आध तो कम होता... | |||
पर एक भी कम नहीं हुआ... | |||
ध्यान देने की बात यह है कि | |||
जो उपदेश देता है उसे भी मालूम होता है कि | |||
सुनने वाला, उपदेश को मानेगा नहीं और | |||
सुनने वाला भी यही सोचता है कि | |||
वाह ! उपदेश तो बहुत अच्छा है पर क्या करें... | |||
अगर मान लिया तो फिर उपदेश ही काहे का ? | |||
मानने पर तो उपदेश का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा | |||
इसलिए उपदेशक और श्रोता दोनों ही उपदेश की रक्षा करते हैं | |||
उपदेश देने वाले और सुनने वाले दोनों ही धन्य हैं... | |||
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; दिनांक- 24 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Hamare-desh-me -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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हमारे देश में जो क़ानून, | |||
व्यावहारिक तर्कों को आधार लेकर बनाए जाते हैं | |||
वही क़ानून, पुलिस द्वारा | |||
अव्यावहारिक तर्कों का सहारा लेकर लागू किए जाते हैं। | |||
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; दिनांक- 24 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Bharat-ratna-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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भारत का सर्वोच्च पद्म सम्मान, भारतरत्न से सम्मानित व्यक्ति, सम्मान देने वालों को यदि मूर्ख बता रहा है तो और कुछ हो न हो यह तो निर्विवाद ही है कि जिस व्यक्ति को यह सम्मान दिया गया है वह इस सम्मान से बड़ा है। निश्चित ही वैज्ञानिक श्री राव की गंभीर प्रतिष्ठा को किसी पद्म पुरस्कार की अपेक्षा नहीं है। | भारत का सर्वोच्च पद्म सम्मान, भारतरत्न से सम्मानित व्यक्ति, सम्मान देने वालों को यदि मूर्ख बता रहा है तो और कुछ हो न हो यह तो निर्विवाद ही है कि जिस व्यक्ति को यह सम्मान दिया गया है वह इस सम्मान से बड़ा है। निश्चित ही वैज्ञानिक श्री राव की गंभीर प्रतिष्ठा को किसी पद्म पुरस्कार की अपेक्षा नहीं है। | ||
कोई भी सम्मान या पुरस्कार यदि किसी कुपात्र को दिया जाता है तो उन व्यक्तियों की प्रतिष्ठा को बहुत धक्का पहुँचता है जिनको कि वास्तविक योग्यता के आधार पर पुरस्कृत या सम्मानित किया जाता है। यहाँ उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है पर सभी जानते हैं कि भारतरत्न मिलने वालों की सूची में कुछ नाम ऐसे भी हैं जो इस सम्मान के योग्य नहीं हैं। | कोई भी सम्मान या पुरस्कार यदि किसी कुपात्र को दिया जाता है तो उन व्यक्तियों की प्रतिष्ठा को बहुत धक्का पहुँचता है जिनको कि वास्तविक योग्यता के आधार पर पुरस्कृत या सम्मानित किया जाता है। यहाँ उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है पर सभी जानते हैं कि भारतरत्न मिलने वालों की सूची में कुछ नाम ऐसे भी हैं जो इस सम्मान के योग्य नहीं हैं। | ||
सचिन तेन्दुलकर नि:संदेह हमारे देश की शान हैं। उनका क्रिकेट के मैदान में आना ही हमें स्फूर्ति से भर देता था। सचिन को सम्मानित या पुरस्कृत करना हम सभी के लिए अपार हर्ष का विषय है लेकिन हॉकी के | सचिन तेन्दुलकर नि:संदेह हमारे देश की शान हैं। उनका क्रिकेट के मैदान में आना ही हमें स्फूर्ति से भर देता था। सचिन को सम्मानित या पुरस्कृत करना हम सभी के लिए अपार हर्ष का विषय है लेकिन हॉकी के महान् खिलाड़ी ध्यानचंद जी से सचिन की तुलना करना व्यर्थ है। मेजर ध्यानचंद को भारतरत्न सम्मान से सम्मानित किया जाना तो एक बहुत ही सामान्य सी बात है। सही मायने में तो मेजर ध्यानचंद की प्रतिमा, संसद, राजपथ, इंडियागेट आदि पर लगनी चाहिए। | ||
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सारी दुनिया हिटलर से दहशत खाती थी। जर्मनी में किसी की हिम्मत नहीं थी कि हिटलर का प्रस्ताव ठुकरा दे। जर्मनी में, हिटलर के सामने, हिटलर के प्रस्ताव को ठुकराने वाले मेजर ध्यानचंद ही थे? | द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सारी दुनिया हिटलर से दहशत खाती थी। जर्मनी में किसी की हिम्मत नहीं थी कि हिटलर का प्रस्ताव ठुकरा दे। जर्मनी में, हिटलर के सामने, हिटलर के प्रस्ताव को ठुकराने वाले मेजर ध्यानचंद ही थे? | ||
ध्यानचंद जी भारत के एकमात्र खिलाड़ी हैं जो भारत में ही नहीं पूरे विश्व में, अपने जीवनकाल में ही किंवदन्ती ('मिथ') बन गए थे। यह सौभाग्य अभी तक किसी खिलाड़ी को प्राप्त नहीं है। | ध्यानचंद जी भारत के एकमात्र खिलाड़ी हैं जो भारत में ही नहीं पूरे विश्व में, अपने जीवनकाल में ही किंवदन्ती ('मिथ') बन गए थे। यह सौभाग्य अभी तक किसी खिलाड़ी को प्राप्त नहीं है। | ||
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; दिनांक- 21 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Jo-kisi-ka-ehsan -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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जो किसी का एहसान लेने से बचते हैं | |||
वो किसी पर एहसान करने से भी बचते हैं | |||
ऐसे लोग शायद किसी के निकट भी नहीं होते... | |||
कुछ यूँ कहें कि- | |||
समंदर नदियों से जल लेकर ही | |||
बादल बनकर दोबारा बरसता है। | |||
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; दिनांक- 21 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Koi-mar-jaye -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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कोई मर जाए | कोई मर जाए | ||
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दो यारो | दो यारो | ||
जिनको | जिनको | ||
जीने का | |||
ज़रा भी | |||
शऊर नहीं | |||
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; दिनांक- 21 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Mere-kathan-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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मेरे एक पूर्व कथन पर पाठकों ने प्रश्न किए हैं कि कैसे पता चले किसी की नीयत का ? | मेरे एक पूर्व कथन पर पाठकों ने प्रश्न किए हैं कि कैसे पता चले किसी की नीयत का ? | ||
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/) और अंत में एक बात और... कि यह सरासर झूठ होता है कि हमें फ़लां की ख़राब नीयत का पता नहीं था। असल में हम जानते हुए भी अनदेखा करते हैं। | /) और अंत में एक बात और... कि यह सरासर झूठ होता है कि हमें फ़लां की ख़राब नीयत का पता नहीं था। असल में हम जानते हुए भी अनदेखा करते हैं। | ||
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; दिनांक- 16 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Buddhiman-vyakti -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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बुद्धिमान व्यक्ति, अपनी सफलता, बुद्धि के बल पर प्राप्त करना पसंद करता है, चालाकी के बल पर नहीं। | |||
यदि आप चालाकी से सफल होना चाह रहे हैं तो बहुत अच्छी तरह जान लीजिए कि आप कुछ भी हो सकते हैं लेकिन बुद्धिमान नहीं। | |||
चालाकी, अनुभव का नतीजा है और समाज में यह बुद्धि के लिए सबसे बड़ी चुनौती भी है। बुद्धिमान व्यक्ति अक्सर चालाक व्यक्ति से परास्त हो जाता है। | |||
चालाकी, बुद्धिमत्ता का भ्रम मात्र पैदा कर सकती है स्वयं बुद्धि कभी नहीं बन सकती। | |||
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; दिनांक- 16 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Jab-koi-vaykti -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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जब कोई व्यक्ति, किसी दूसरे की बुद्धि या प्रतिभा से प्रभावित या चमत्कृत हो जाने के बावजूद भी अपने किसी कुंठा या पूर्वाग्रह के कारण इसे छुपाता है या अनदेखा करता है तो उसकी इस ओछी हरक़त पर उसका आइना ही नहीं समूचा अस्तित्व उस पर हँसता है। | |||
जो व्यक्ति दूसरों की प्रतिभा, बुद्धि का लाभ उठाकर स्वयं तथाकथित सफलता प्राप्त कर लेता है और पात्र को श्रेय नहीं देता या नहीं मिलने देता वह न तो कभी आनंद से जी पाता है और न ही शांति से मृत्यु को प्राप्त होता है। | |||
मैंने बहुत पहले लिखा था कि जो दूसरों के कांधे पर रखकर बंदूक़ चलाते हैं उनके ख़ुद के काँधे कभी मज़बूत नहीं होते। | |||
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; दिनांक- 14 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Paise-se-zindagi -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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पैसे से ज़िंदगी गुज़ारी जा सकती है | पैसे से ज़िंदगी गुज़ारी जा सकती है | ||
पंक्ति 129: | पंक्ति 167: | ||
पैसे से नहीं ख़रीदा जा सकता | पैसे से नहीं ख़रीदा जा सकता | ||
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; दिनांक- 14 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Dost-ka-mulyankan -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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दोस्त का मूल्याँकन करना हो या जीवन साथी चुनना हो, | |||
तो... | |||
केवल और केवल उसकी 'नीयत' देखनी चाहिए। | |||
नीयत का स्थान सर्वोपरि है। | |||
बाक़ी सारी बातें तो महत्वहीन हैं। | |||
जैसे... | |||
रूप, रंग, गुण, शरीर, धन, प्रतिभा, शिक्षा, बुद्धि, ज्ञान आदि... | |||
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; दिनांक- 14 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Raajniti-ka-kshetra -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
<poem> | <poem> | ||
राजनीति का क्षेत्र, विचित्र है। यहाँ पूत के पाँव पालने में नहीं दिखते बल्कि तब दिखते हैं जब वह कुर्सी पर विराजमान होकर वहाँ से न हटने के लिए हाथ-पैर पटकता है। सत्ता की अपनी एक भाषा और संस्कृति होती है। जो सत्ता में आता है इसे अपनाता है। यदि नहीं अपनाता है तो सत्ता में नहीं रह पाता। | राजनीति का क्षेत्र, विचित्र है। यहाँ पूत के पाँव पालने में नहीं दिखते बल्कि तब दिखते हैं जब वह कुर्सी पर विराजमान होकर वहाँ से न हटने के लिए हाथ-पैर पटकता है। सत्ता की अपनी एक भाषा और संस्कृति होती है। जो सत्ता में आता है इसे अपनाता है। यदि नहीं अपनाता है तो सत्ता में नहीं रह पाता। | ||
पंक्ति 149: | पंक्ति 193: | ||
हमें अपने नेताओं का मूल्याँकन करते समय प्रजातंत्र की सीमाओं में विचरण करने वाली राजनैतिक परिस्थितियों का मूल्याँकन भी करना चाहिए अन्यथा हमारा मूल्याँकन निष्पक्ष नहीं होगा। | हमें अपने नेताओं का मूल्याँकन करते समय प्रजातंत्र की सीमाओं में विचरण करने वाली राजनैतिक परिस्थितियों का मूल्याँकन भी करना चाहिए अन्यथा हमारा मूल्याँकन निष्पक्ष नहीं होगा। | ||
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; दिनांक- 13 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Manushya-aur-jaanvar-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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यूँ तो बहुत से कारण हैं, जिनसे मनुष्य, जानवरों से भिन्न है- जैसे कि हँसना, अँगूठे का प्रयोग, सोचने की क्षमता आदि... लेकिन वह कुछ और ही है जिसने मनुष्य को हज़ारों वर्ष तक चले, दो-दो हिम युगों को सफलता पूर्वक सहन करने की क्षमता प्रदान की। | यूँ तो बहुत से कारण हैं, जिनसे मनुष्य, जानवरों से भिन्न है- जैसे कि हँसना, अँगूठे का प्रयोग, सोचने की क्षमता आदि... लेकिन वह कुछ और ही है जिसने मनुष्य को हज़ारों वर्ष तक चले, दो-दो हिम युगों को सफलता पूर्वक सहन करने की क्षमता प्रदान की। | ||
पंक्ति 160: | पंक्ति 204: | ||
इसलिए शिकार करने में, घोड़ा मनुष्य का साथी भी बना और वाहन भी। | इसलिए शिकार करने में, घोड़ा मनुष्य का साथी भी बना और वाहन भी। | ||
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; दिनांक- 11 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Fursat-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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जब बुद्धि थी तब अनुभव नहीं था अब अनुभव है तो बुद्धि नहीं है। | जब बुद्धि थी तब अनुभव नहीं था अब अनुभव है तो बुद्धि नहीं है। | ||
पंक्ति 178: | पंक्ति 222: | ||
जब फ़ुर्सत थी तो फ़ेसबुक नहीं था अब फ़ेसबुक है तो... | जब फ़ुर्सत थी तो फ़ेसबुक नहीं था अब फ़ेसबुक है तो... | ||
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; दिनांक- 9 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Fasane-bhar-ko -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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दिल को समझाया, बहाने भर को | दिल को समझाया, बहाने भर को | ||
पंक्ति 198: | पंक्ति 242: | ||
तूने चाहा था दिखाने भर को | तूने चाहा था दिखाने भर को | ||
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; दिनांक- 6 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Shraddha-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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'प्रेम' व्यक्ति से होता है और उसकी यथास्थिति में ही होता है | 'प्रेम' व्यक्ति से होता है और उसकी यथास्थिति में ही होता है | ||
पंक्ति 215: | पंक्ति 259: | ||
सदैव सशंकित और असमंजस से घिरे हुए... | सदैव सशंकित और असमंजस से घिरे हुए... | ||
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; दिनांक- 6 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Dosti-dushmani-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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दोस्ती 'हो' जाती | दोस्ती 'हो' जाती | ||
पंक्ति 224: | पंक्ति 268: | ||
दुश्मनी 'की' जाती है | दुश्मनी 'की' जाती है | ||
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; दिनांक- 6 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Asafalta-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
<poem> | <poem> | ||
अक्सर सुनने में आता है- | अक्सर सुनने में आता है- | ||
पंक्ति 237: | पंक्ति 281: | ||
शेष तो "संतोषी सदा सुखी" मंत्र को अपनाकर सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं। | शेष तो "संतोषी सदा सुखी" मंत्र को अपनाकर सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं। | ||
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; दिनांक- 5 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Sabhya-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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मनुष्य को सभ्यता की शिक्षा दी जाती है क्योंकि समाज को मात्र 'सभ्य' लोग चाहिए। | मनुष्य को सभ्यता की शिक्षा दी जाती है क्योंकि समाज को मात्र 'सभ्य' लोग चाहिए। | ||
वे 'भद्र' हैं या नहीं, इससे समाज को कोई लेना-देना नहीं है। जबकि भद्र होना ही सही मायने में इंसान होना है। 'सभ्य' होना आसान है लेकिन 'भद्र' होना मुश्किल है। हम अभ्यास से सभ्य हो सकते हैं भद्र तो विरले ही होते हैं। | वे 'भद्र' हैं या नहीं, इससे समाज को कोई लेना-देना नहीं है। जबकि भद्र होना ही सही मायने में इंसान होना है। 'सभ्य' होना आसान है लेकिन 'भद्र' होना मुश्किल है। हम अभ्यास से सभ्य हो सकते हैं भद्र तो विरले ही होते हैं। | ||
सभ्य जन वे हैं जो समाज के सामने सभ्यता से पेश आते हैं, सधा और सीखा हुआ एक ऐसा व्यवहार करते हैं, जिससे यह मान लिया जाता है कि 'हाँ यह व्यक्ति सभ्य है'। | सभ्य जन वे हैं जो समाज के सामने सभ्यता से पेश आते हैं, सधा और सीखा हुआ एक ऐसा व्यवहार करते हैं, जिससे यह मान लिया जाता है कि 'हाँ यह व्यक्ति सभ्य है'। | ||
'भद्र' वह है, जो एकान्त में भी सभ्य है, जो शक्तिशाली होने पर भी सभ्य है, जो आपातकाल में भी सभ्य है, जो अभाव में भी सभ्य है, जो भूख में भी सभ्य है, जो कृपा करते हुए भी सभ्य है, जो अपमानित होने पर भी सभ्य है, जो | 'भद्र' वह है, जो एकान्त में भी सभ्य है, जो शक्तिशाली होने पर भी सभ्य है, जो आपातकाल में भी सभ्य है, जो अभाव में भी सभ्य है, जो भूख में भी सभ्य है, जो कृपा करते हुए भी सभ्य है, जो अपमानित होने पर भी सभ्य है, जो विद्वान् होने पर भी सभ्य है, जो निरक्षर होने पर भी सभ्य है... | ||
जिस तरह धर्म और जाति किसी दूसरे की उपस्थिति में ही अस्तित्व में आते हैं उसी तरह सभ्यता भी किसी दूसरे के आने पर ही जन्म लेती है। भद्रता के लिए किसी की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है। | जिस तरह धर्म और जाति किसी दूसरे की उपस्थिति में ही अस्तित्व में आते हैं उसी तरह सभ्यता भी किसी दूसरे के आने पर ही जन्म लेती है। भद्रता के लिए किसी की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है। | ||
अभद्रता वह स्थिति है जहाँ हम सोचते हैं- 'यहाँ कौन देख रहा है मुझे... ऐसा करने में क्या बुराई है?' जैसे ही हम ऐसा सोचते हैं, वैसे ही हम अभद्र हो जाते हैं। | अभद्रता वह स्थिति है जहाँ हम सोचते हैं- 'यहाँ कौन देख रहा है मुझे... ऐसा करने में क्या बुराई है?' जैसे ही हम ऐसा सोचते हैं, वैसे ही हम अभद्र हो जाते हैं। | ||
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; दिनांक- 5 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Dharm-ke-anuyayi-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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प्रत्येक धर्म के अनुयायी, ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। | प्रत्येक धर्म के अनुयायी, ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। | ||
पंक्ति 264: | पंक्ति 308: | ||
ईश्वर पक्षपाती नहीं हो सकता और जो पक्षपाती है वह ईश्वर कैसे हो सकता है? | ईश्वर पक्षपाती नहीं हो सकता और जो पक्षपाती है वह ईश्वर कैसे हो सकता है? | ||
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; दिनांक- 1 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Manushya-ki-ichchhao-me-param-ichchha -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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मनुष्य की इच्छाओं में 'परम' इच्छा है, महत्त्वपूर्ण बनने की इच्छा, इस इच्छा की पूर्ति के उपक्रम को ही सुख कहते हैं। यह सुख, सुखों में सर्वोच्च सुख है। यही है, परम सुख, जिसे न्यूनाधिक रूप से कभी-कभी, आनंद के समकक्ष होने की सुविधा भी प्राप्त है। इस सुख को प्राप्त करने के लिए मनुष्य त्याग की प्रत्येक सीमा का उल्लंघन करने को तत्पर रहता है एवं अन्य सुखों को त्यागना अपना सौभाग्य समझता है। महत्त्वपूर्ण बनने की इच्छा की पूर्ति का प्रयास करना, एक ऐसा सुख है जिस सुख के लिए मनुष्य भोग-विलास, मनोरंजन, सुविधा, परिवार आदि सब कुछ त्याग देता है। | |||
मनुष्य की इच्छाओं में 'परम' इच्छा है, महत्त्वपूर्ण बनने की इच्छा, इस इच्छा की पूर्ति के उपक्रम को ही सुख कहते हैं। यह सुख, सुखों में सर्वोच्च सुख है। यही है, परम सुख, जिसे न्यूनाधिक रूप से कभी-कभी, आनंद के समकक्ष होने की सुविधा भी प्राप्त है। इस सुख को प्राप्त करने के लिए मनुष्य त्याग की प्रत्येक सीमा का उल्लंघन करने को तत्पर रहता है एवं अन्य सुखों को त्यागना अपना सौभाग्य समझता है। महत्त्वपूर्ण बनने की इच्छा की पूर्ति का प्रयास करना, एक ऐसा सुख है जिस सुख के लिए मनुष्य भोग-विलास, मनोरंजन, सुविधा, परिवार आदि सब कुछ त्याग देता है। | इससे भी, सुख की परिभाषा अस्तित्व में नहीं आती। जब तक यह न कहा जाए कि सुख प्रकृति प्रदत्त एक ऐसी अनुभूति है जिसका अनुभव प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वभाव और परिस्थितियों के वैविध्य के कारण भिन्न है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुख की परिभाषा उसके अपने अनुभव पर निर्भर करती है। सुख में भिन्न भिन्न लोगों के साथ- हँसने, रोने, मुग्ध होने, उत्साहित होने आदि जैसे अनेक क्रिया-कलाप होते हैं। | ||
इससे भी, सुख की परिभाषा अस्तित्व में नहीं आती। जब तक यह न कहा जाए कि सुख प्रकृति प्रदत्त एक ऐसी अनुभूति है जिसका अनुभव प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वभाव और परिस्थितियों के वैविध्य के कारण भिन्न है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुख की परिभाषा उसके अपने अनुभव पर निर्भर करती है। सुख में भिन्न भिन्न लोगों के साथ- हँसने, रोने, मुग्ध होने, उत्साहित होने आदि जैसे अनेक क्रिया-कलाप होते हैं। | कुछ अलग तरह से सुख को परिभाषित करने का प्रयास करें तो यूँ भी कह सकते हैं कि सुख प्राप्ति के लिए प्रयास और संघर्ष में जो अनुभूति होती है उसे 'सुख' कहते हैं। समाज द्वारा परिभाषित सुखों में से किसी एक अथवा एक से अधिक सुखों की प्राप्ति के लिए जो प्रयास और संघर्ष होता है उस समय होने वाली अनुभूति ही सुख है क्योंकि जिस सुख की प्राप्ति के प्रयास में हम लगे रहते हैं, वह प्राप्त होते ही, उसी क्षण समाप्त हो जाता है। लक्ष्य प्राप्ति हेतु किये जाने वाले संघर्ष में होने वाली अनुभूति ही 'सुख' है। लक्ष्य प्राप्ति का उपक्रम ही 'सुख' है लेकिन इसे 'आनंद' मानकर भ्रमित न हों, आनंद बिल्कुल अलग अनुभूति है। | ||
कुछ अलग तरह से सुख को परिभाषित करने का प्रयास करें तो यूँ भी कह सकते हैं कि सुख प्राप्ति के लिए प्रयास और संघर्ष में जो अनुभूति होती है उसे 'सुख' कहते हैं। समाज द्वारा परिभाषित सुखों में से किसी एक अथवा एक से अधिक सुखों की प्राप्ति के लिए जो प्रयास और संघर्ष होता है उस समय होने वाली अनुभूति ही सुख है क्योंकि जिस सुख की प्राप्ति के प्रयास में हम लगे रहते हैं, वह प्राप्त होते ही, उसी क्षण समाप्त हो जाता है। लक्ष्य प्राप्ति हेतु किये जाने वाले संघर्ष में होने वाली अनुभूति ही 'सुख' है। लक्ष्य प्राप्ति का उपक्रम ही 'सुख' है लेकिन इसे 'आनंद' मानकर भ्रमित न हों, आनंद बिल्कुल अलग अनुभूति है। | सुख के लिए अनेक लोकप्रचलित बातें भी कही जाती हैं जिनमें से दो मुझे पसंद आती है। एक तो यह कि 'स्वाधीनता से बड़ा सुख और पराधीनता से बड़ा दु:ख कोई नहीं' और दूसरा यह कि 'युवावस्था से बड़ा सुख और वृद्धावस्था से बड़ा दु:ख कोई नहीं' | ||
सुख के लिए अनेक लोकप्रचलित बातें भी कही जाती हैं जिनमें से दो मुझे पसंद आती है। एक तो यह कि 'स्वाधीनता से बड़ा सुख और पराधीनता से बड़ा दु:ख कोई नहीं' और दूसरा यह कि 'युवावस्था से बड़ा सुख और वृद्धावस्था से बड़ा दु:ख कोई नहीं' | |||
सुखी जीवन के कुछ सुख इस तरह भी गिनाए जाते रहे हैं- पहला सुख, निर्मल हो काया / दूजा सुख, घर में हो माया / तीजा सुख, सुलक्षण नारी / चौथा सुख, सुत आज्ञाकारी / पंचम सुख स्वदेश का वासा / छठा सुख, राज हो पासा / सातवाँ सुख, संतोषी हो मन / इन्ही सुखों से बनता जीवन | सुखी जीवन के कुछ सुख इस तरह भी गिनाए जाते रहे हैं- पहला सुख, निर्मल हो काया / दूजा सुख, घर में हो माया / तीजा सुख, सुलक्षण नारी / चौथा सुख, सुत आज्ञाकारी / पंचम सुख स्वदेश का वासा / छठा सुख, राज हो पासा / सातवाँ सुख, संतोषी हो मन / इन्ही सुखों से बनता जीवन | ||
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