"चमचारथी -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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"नमस्कार सर !... सर ! हम आपके दादाजी पर रिसर्च कर रहे हैं, रिसर्च पूरी हो चुकी है... | "नमस्कार सर !... सर ! हम आपके दादाजी पर रिसर्च कर रहे हैं, रिसर्च पूरी हो चुकी है... | ||
"अच्छा ? क्या रिसर्च की है आपने ?" | "अच्छा ? क्या रिसर्च की है आपने ?" | ||
"सर ! आपके दादा जी एक | "सर ! आपके दादा जी एक महान् समाज सेवी, दार्शनिक और विचारक थे। सादा जीवन उच्च विचार उनका मूल मंत्र था। बहुत महान् व्यक्तित्व था उनका सर !" | ||
"लेकिन मेरे मदर-फ़ादर ने कभी बताया नहीं दादाजी के बारे में...लगता है आपने काफ़ी रिसर्च की है, दादाजी पर" वी.आई.पी. के चेहरे पर मासूमियत का वह भाव था जो कि नागरिक अभिनंदन के समय 'अभिनंदित' होने वाले 'नागरिक महोदय', अपनी उस प्रशंसा के समय इस्तेमाल करते हैं, जो कि प्रत्येक नागरिक अभिनंदन में, एक पुराने और पिटे हुए | "लेकिन मेरे मदर-फ़ादर ने कभी बताया नहीं दादाजी के बारे में...लगता है आपने काफ़ी रिसर्च की है, दादाजी पर" वी.आई.पी. के चेहरे पर मासूमियत का वह भाव था जो कि नागरिक अभिनंदन के समय 'अभिनंदित' होने वाले 'नागरिक महोदय', अपनी उस प्रशंसा के समय इस्तेमाल करते हैं, जो कि प्रत्येक नागरिक अभिनंदन में, एक पुराने और पिटे हुए रिवाज के चलते की जाती है। | ||
"बड़े लोग कहाँ कुछ बताते हैं सर ! ये तो औरों को ही खोजना होता है... उनकी मूर्ति भी बन चुकी है..." | "बड़े लोग कहाँ कुछ बताते हैं सर ! ये तो औरों को ही खोजना होता है... उनकी मूर्ति भी बन चुकी है..." | ||
"मूर्ति ? लेकिन उनका फ़ोटो या तस्वीर कहाँ से मिली आपको ? मैंने कभी देखी नहीं !" वी.आई.पी. ने आश्चर्य से पूछा | "मूर्ति ? लेकिन उनका फ़ोटो या तस्वीर कहाँ से मिली आपको ? मैंने कभी देखी नहीं !" वी.आई.पी. ने आश्चर्य से पूछा | ||
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आदि-आदि | आदि-आदि | ||
... तो समझ लीजिए कि अभी तक आपने कुछ भी उल्लेखनीय नहीं किया है। ये सभी सम्मान या तो झूठे हैं या अस्थाई। इन कारणों से होने वाली प्रशंसा में झूठ का तड़का भी होगा। जैसे ही प्रशंसा में झूठ का तड़का लगता है, वह चापलूसी बन जाती है। पैसा, पद, सौन्दर्य या आयु के कारण मिलने वाला सम्मान अर्थहीन है। | ... तो समझ लीजिए कि अभी तक आपने कुछ भी उल्लेखनीय नहीं किया है। ये सभी सम्मान या तो झूठे हैं या अस्थाई। इन कारणों से होने वाली प्रशंसा में झूठ का तड़का भी होगा। जैसे ही प्रशंसा में झूठ का तड़का लगता है, वह चापलूसी बन जाती है। पैसा, पद, सौन्दर्य या आयु के कारण मिलने वाला सम्मान अर्थहीन है। | ||
विद्वता, सृजन-शीलता, सहज-स्वभाव, साहस, त्याग, साधना, कर्मठता, सेवा आदि जैसे कारणों से मिलने वाला सम्मान सच्चा सम्मान होता है और इन गुणों की प्रशंसा वास्तविक होती है नक़ली या चापलूसी | विद्वता, सृजन-शीलता, सहज-स्वभाव, साहस, त्याग, साधना, कर्मठता, सेवा आदि जैसे कारणों से मिलने वाला सम्मान सच्चा सम्मान होता है और इन गुणों की प्रशंसा वास्तविक होती है नक़ली या चापलूसी नहीं। महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि आप सम्मानित हो रहे हैं, बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि आप क्यों सम्मानित हो रहे हैं और कौन कर रहा है। आपकी प्रशंसा किसने और क्यों की, यह बात महत्व रखती है। | ||
ऍम.ऍस. सुब्बालक्ष्मी के गायन का कार्यक्रम था। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी थे। जब नेहरू जी के दो शब्द कहने का समय आया तो वे बोले- | ऍम.ऍस. सुब्बालक्ष्मी के गायन का कार्यक्रम था। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी थे। जब नेहरू जी के दो शब्द कहने का समय आया तो वे बोले- | ||
"Who am I, a mere Prime Minister before a Queen, a Queen of Music" (मैं एक साधारण सा प्रधानमंत्री, एक साम्राज्ञी के सामने क्या हूँ, और साम्राज्ञी भी संगीत की...) | "Who am I, a mere Prime Minister before a Queen, a Queen of Music" (मैं एक साधारण सा प्रधानमंत्री, एक साम्राज्ञी के सामने क्या हूँ, और साम्राज्ञी भी संगीत की...) | ||
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इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | ||
-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
<small> | <small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> | ||
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14:12, 30 जून 2017 के समय का अवतरण