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{{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व
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'''सी. विजय राघवा चारियर'''([[अंग्रेज़ी]]: ''C. Vijaya Raghava Chariar'',  जन्म- [[18 जून]],1852, सेलम ज़िला, [[तमिलनाडु]]; मृत्यु- [[19 अप्रैल]], [[1943]]) प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता थे। [[1885]] से [[1901]] तक वे लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य रहे थे। विजय राघवा चारियर [[नागपुर]] में[[1920]] में हुए  [[काँग्रेस]] के वार्षिक अधिवेशन के [[अध्यक्ष]] रहे थे। इस अधिवेशन में [[गाँधी जी]] के [[असहयोग आंदोलन]] के प्रस्ताव पर विचार हुआ था। लेकिन उनके विरोध के बाद भी काँग्रेस ने असहयोग का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=922|url=}}</ref>
==जन्म एवं परिचय==
सी. विजय राघवा चारियर का जन्म [[18 जून]],1852 ई. में सेलम ज़िला, तमिलनाडु में हुआ था। सार्वजनिक कार्यों के प्रति आरंभ से ही उनकी रुचि थी। देश पर [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] का शासन विजय राघवा चारियर को अखरता था। [[1885]] में [[कांग्रेस]] की स्थापना के लिए [[मुंबई]] में जो पहला अधिवेशन हुआ उस में विजय राघवा चारियर ने भी भाग लिया। तब से अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण समय उन्होंने इस संस्था के माध्यम से देश की सेवा में ही लगाया था।
==लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य==
काँग्रेस की स्थापना के बाद जब उसका [[संविधान]] बनाने की आवश्यकता पड़ी तो विजय राघवा चारियर की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की समिति ने इसका निर्माण किया। [[मद्रास]] के सार्वजनिक जीवन में भी सी. विजय राघवा चारियर का महत्त्वपूर्ण स्थान था। [[1885]] से [[1901]] तक वे लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य रहे थे। काँग्रेस के [[1907]] के [[कांग्रेस अधिवेशन सूरत|सूरत अधिवेशन]] में जब 'नरम' और 'गरम' दलों में मतभेद उत्पन्न हुआ तो विजय राघवा चारियर की सहानुभूति 'गरम' दल वालों के साथ थी। जब [[काँग्रेस]] के [[संविधान]] में संशोधन करके [[लोकमान्य तिलक]] आदि का काँग्रेस में प्रवेश रोक दिया गया तो वे भी काँग्रेस से अलग हो गए थे। लेकिन [[1916]] की [[कांग्रेस अधिवेशन लखनऊ|लखनऊ काँग्रेस]] में तिलक के साथ वे पुन: काँग्रेस में आ गए।
==काँग्रेस के वार्षिक अधिवेशन के अध्यक्ष==
[[नागपुर]] में [[1920]]  में हुए काँग्रेस के वार्षिक अधिवेशन के अध्यक्ष विजय राघवा चारियर को चुने गये थे। उस समय श्री राज गोपालाचारी, [[मोतीलाल नेहरू]] और [[एम.ए. अंसारी]] जैसे लोग काँग्रेस के महामंत्री थे। इस अधिवेशन में [[गाँधी जी]] के [[असहयोग आंदोलन]] के प्रस्ताव पर विचार हुआ था। सी. विजय राघवा चारियर असहयोग के पक्ष में नहीं थे। लेकिन उनके विरोध के बाद भी काँग्रेस ने असहयोग का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस विचार-भेद के कारण वे 35 [[वर्ष]] के बाद [[काँग्रेस]] से अलग हो गए। फिर उनका झुकाव हिंदू महासभा की ओर हुआ। उसके एक अधिवेशन का उन्होंने सभापतित्व भी किया।
==निधन==
[[19 अप्रैल]], [[1943]] ई. में सी. विजय राघवा चारियर का निधन हो गया।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
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{{सूचना बक्सा स्वतन्त्रता सेनानी
|चित्र=Blankimage.png
|पूरा नाम=सुधाताई जोशी
|अन्य नाम=
|जन्म=[[14 जनवरी]], [[1918]]
|जन्म भूमि=[[गोवा]]
|मृत्यु=
|मृत्यु स्थान=
|मृत्यु कारण=
|अभिभावक=
|पति/पत्नी=महादेव शास्त्री जोशी
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|स्मारक=
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|नागरिकता=भारतीय
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|धर्म=[[हिन्दू धर्म|हिन्दू]]
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|अन्य जानकारी=पुर्तगाली सरकार ने सुधाताई जोशी के [[गोवा]] प्रवेश की सूचना देने वाले को भारी इनाम की घोषणा कर रखी थी।
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|अद्यतन=04:31, [[18 दिसम्बर]]-[[2016]] (IST)
}}
'''सुधाताई जोशी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sudhatai Joshi'', जन्म- [[14 जनवरी]], [[1918]], [[गोवा]]) पुर्तगाली साम्राज्यवादियों से गोवा की मुक्ति के [[स्वतंत्रता संग्राम]] की प्रमुख नेता थीं। ये [[सत्याग्रह आंदोलन]] में भाग लेती थीं। सुधाताई  ने 2 [[वर्ष]] तक कारागार की सजा भी भोगी। सुधाताई जोशी वीरांगना के साहस की उस समय सारे देश में बड़ी प्रशंसा हुई थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=928|url=}}</ref>
==जन्म एवं परिचय==
श्रीमती सुधाताई जोशी का जन्म 14 जनवरी, 1918 ई. को गोवा के प्रियोल नामक गांव में हुआ था। यद्यपि उन्हें औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी, किंतु [[पिता]] की सहायता और अपने प्रयत्न से उन्होंने पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था। '[[संस्कृति कोश]]' के प्रसिद्ध संपादक महादेव शास्त्री जोशी से [[विवाह]] के बाद [[पूना]] आने पर सुधाताई जोशी के जीवन में और भी परिवर्तन आये। महादेव शास्त्री जोशी स्वयं गोवा के मुक्ति संग्राम से जुड़े हुई थे। उन्होंने 'गोवा राष्ट्रीय काँग्रेस' द्वारा संचालित सत्याग्रह आंदोलन में सत्याग्रहियों का नेतृत्व करने का निश्चय किया। सुधाताई इस आंदोलन का महत्त्व समझती थीं। पर वे नहीं चाहती थीं कि उतने ही महत्त्व के काम '[[संस्कृति कोश]]' का संपादन उनके पति छोड़ दें।
==आंदोलनों में भागिदारी==
बड़े आग्रह के बाद जब पति ने उनका परामर्श स्वीकार कर लिया। तो सुधाताई स्वयं 'गोवा राष्ट्रीय काँग्रेस' द्वारा संचालित [[सत्याग्रह आंदोलन]] में भाग लेने के लिए गोवा की ओर चल पड़ीं। पुर्तगाली सरकार ने उनके गोवा प्रवेश की सूचना देने वाले के लिए भारी इनाम की घोषणा कर रखी थी। पर लोगों ने सुधाताई का स्वागत किया और उनके गुप्त रूप से गोवा में प्रवेश में सहायता पहुंचाई। [[5 अप्रैल]], [[1955]] को सुधाताई को महाप्सा नामक स्थान में एक सभा को संबोधित करनी था। पर पुलिस ने वह स्थान पहले ही घेर लिया और अपने भाषण के दो-चार शब्द पढ़ते ही सुधाताई जोशी को गिरस्तार कर लिया गया। अपने आंदोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए सुधाताई ने पुर्तगाल को स्मरण दिलाया था कि वह स्वयं 1580 से 1640 तक स्पेन का गुलाम था। पुर्तगाल सरकार ने ताई पर मुकदमा चलाया और 2 [[वर्ष]] के कारागार की सजा दे दी। बाद में सारे देश में आंदोलन होने और जेल में स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण [[मई]], [[1959]] में उन्हें रिहा करना पड़ा था। इस वीरांगना के साहस की उस समय सारे देश में बड़ी प्रशंसा हुई थी।
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
[[Category:प्रसिद्ध_व्यक्तित्व]][[Category:राजनेता]][[Category:स्वतन्त्रता_सेनानी]][[Category:जीवनी_साहित्य]][[Category:राजनीति_कोश]][[Category:चरित कोश]]
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
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12:41, 20 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण