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| *युइशि लोग शकों से भिन्न थे।
| | #REDIRECT [[कुन्तल सातकर्णि]] |
| *[[भारत]] की प्राचीन ऐतिहासिक अनुश्रुति में उन्हें स्थूल रूप से [[शक]] ही कह दिया गया है।
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| *[[सातवाहन वंश|सातवाहन]] राजाओं ने देर तक शकों के इन नवीन आक्रमणों को सहन नहीं कियां, शीघ्र ही उनमें एक द्वितीय विक्रमादित्य का प्रादुर्भाव हुआ, जिसने इन अभिनव शकों को परास्त कर दूसरी बार '''शकारि''' की उपाधि ग्रहण की। इस प्रतापशाली राजा का नाम '''कुन्तल सातकर्णि''' था। इसने मुलतान के समीप युइशि राजा विम की सेनाओं को परास्त कर एक बार फिर [[सातवाहन साम्राज्य]] का गौरव स्थापित किया।
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| *विक्रमादित्य द्वितीय बड़ा ही प्रतापी राजा था। उसकी रानी का नाम मलयवती था।
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| *[[वात्स्यायन]] के कामसूत्र में उसका उल्लेख आया है। कुन्तल सातकर्णि (विक्रमादित्य द्वितीय) के राजदरबार में गुणाढ्य नाम का प्रसिद्ध लेखक व कवि रहता था। जिसने [[प्राकृत भाषा]] का प्रसिद्ध ग्रंथ 'बृहत्कथा' लिखा था।
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| *सातवाहन राजा प्राकृत भाषा बोलते थे, पर कुन्तल सातकर्णि की रानी मलयवती की भाषा [[संस्कृत]] थी। राजा सातकर्णि उसे भली-भाँति नहीं समझ सकता था। परिणाम यह हुआ कि, उसने संस्कृत सीखनी प्रारम्भ की, और उसके अमात्य सर्ववर्मा ने सरल रीति से उसे संस्कृत सिखाने के लिए 'कातन्त्र व्याकरण' की रचना की। इस व्याकरण से राजा विक्रमादित्य इतना प्रसन्न हुआ, कि उसने पुरस्कार के रूप में भरुकच्छ प्रदेश का शासन सर्ववर्मा को दे दिया।
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| *गुणाढ्यलिखित 'बृहत्कथा' इस समय उपलब्ध नहीं होती, पर सोमदेव द्वारा किया हुआ उसका संस्कृत रूपान्तर 'कथासरित्सागर' इस समय प्राप्तव्य है। यह बहत्कथा का अक्षरानुवाद न होकर साररूप से अनुवाद है।
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| *'कथासरित्सागर' प्राचीन संस्कृत साहित्य का एक अनुपम रत्न है, जिसमें प्राचीन समय की बहुत सी कथाएँ संग्रहीत हैं। बृहत्कथा के आधार पर लिखा हुआ एक और ग्रंथ 'क्षेमेन्द्र' - विरचित 'बृहत्कथा-मंजरी' भी इस समय उपलब्ध है। बृहत्कथा का एक तमिल अनुवाद दक्षिण भारत में भी मिलता है। कथासरित्सागर और बृहत्कथामंजरी के लेखक काश्मीर के निवासी थे, और सोमदेव ने अपना ग्रंथ काश्मीर की रानी सूर्यमती की प्रेरणा से लिखा था। इस प्रकार सातवाहन सम्राट के आश्रय में कवि गुणाढ्य द्वारा लिखी हुई बृहत्कथा उत्तर में काश्मीर से लगाकर दक्षिण में तमिल संस्कृति के केन्द्र मदुरा तक प्रचलित हो गई। यह सातवाहन साम्राज्य के वैभव का ही परिणाम था, कि उसके केन्द्र में लिखी गई इस बृहत्कथा की कीर्ति सारे भारत में विस्तीर्ण हुई।
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| गुणाढ्यरचित बृहत्कथा के आधार पर लिखे गए संस्कृत ग्रंथ कथासरित्सागर के अनुसार विक्रमादित्य द्वितीय का साम्राज्य सम्पूर्ण दक्खन, [[काठियावाड़]], [[मध्य प्रदेश]], [[बंगाल|बंग]], [[अंग]] और [[कलिंग]] तक विस्तृत था, तथा उत्तर के सब राजा, यहाँ तक कि काश्मीर के राजा भी उसके करद थे। अनेक दुर्गों को जीतकर म्लेच्छों (शक व युइशि) का उसने संहार किया था। म्लेच्छों के संहार के बाद [[उज्जयिनी]] में एक बड़ा उत्सव किया गया, जिसमें गौड़, कर्नाटक, लाट, काश्मीर, सिन्ध आदि के अधीनस्थ राजा सम्मिलित हुए। विक्रमादित्य का एक बहुत शानदार जुलूस निकला, जिसमें इन सब राजाओं ने भाग लिया।
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| *निसन्देह, कुन्तल सातकर्णि एक बड़ा प्रतापी राजा था। युइशियों को परास्त कर उसने प्रायः सारे भारत में अपना अखण्ड साम्राज्य क़ायम किया।
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| *कुन्तल सातकर्णि के बाद '''सुन्दर सातकर्णि''' ने एक वर्ष, और फिर '''वासिष्ठी पुत्र पुलोमावि द्वितीय''' ने चार वर्ष तक राज्य किया।
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| *सम्भवतः इनके समय में सातवाहन साम्राज्य की शक्ति क्षीण होनी आरम्भ हो गई थी, और उसके दिगन्त में विपत्ति के बादल फिर से घिरने शुरू हो गए थे। इन राजाओं ने बहुत थोड़े समय तक राज्य किया था। इससे यह भी सूचित होता है कि इस समय सातवाहन राजकुल की आन्तरिक दशा भी बहुत सुरक्षित नहीं थी।
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| *विक्रमादित्य द्वितीय ने युइशि विम को परास्त तो कर दिया था, पर [[सातवाहन वंश]] की स्थिति देर तक सुरक्षित नहीं रह सकी। युइशि साम्राज्य में [[विम तक्षम|विम]] का उत्तराधिकारी [[कनिष्क]] था, जो बड़ा प्रतापी और महत्त्वकांक्षी राजा था। उसने युइशि शक्ति को पुनः संगठित कर [[सातवाहन साम्राज्य]] पर आक्रमण किया।
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==संबंधित लेख==
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| {{सातवाहन वंश}}
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| [[Category:इतिहास_कोश]]
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| [[Category:दक्षिण भारत के साम्राज्य]]
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| [[Category:सातवाहन साम्राज्य]]
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