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| |+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"| <font color="#003366">एक आलेख</font>
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| <div style="padding:3px">[[चित्र:Kolaz-Holi.jpg|होली के विभिन्न दृश्य|right|100px|link=होली|border]]</div>
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| '''[[होली]]''' [[भारत]] का प्रमुख त्योहार है। [[पुराण|पुराणों]] में वर्णित है कि [[हिरण्यकशिपु]] की बहन [[होलिका]] वरदान के प्रभाव से नित्य अग्नि स्नान करती थी। हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से [[प्रह्लाद]] को गोद में लेकर अग्निस्नान करने को कहा। उसने समझा कि ऐसा करने से प्रह्लाद अग्नि में जल जाएगा तथा होलिका बच जाएगी। होलिका ने ऐसा ही किया, किंतु होलिका जल गयी, प्रह्लाद बच गये। इस पर्व को 'नवान्नेष्टि यज्ञपर्व' भी कहा जाता है, क्योंकि खेत से आये नवीन अन्न को इस दिन [[यज्ञ]] में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा भी है। उस अन्न को 'होला' कहते है। इसी से इसका नाम 'होलिकोत्सव' पड़ा। सभी लोग आपसी भेदभाव को भुलाकर इसे हर्ष व उल्लास के साथ मनाते हैं। होली पारस्परिक सौमनस्य एकता और समानता को बल देती है। [[लिंग पुराण]] में आया है- 'फाल्गुन पूर्णिमा को 'फाल्गुनिका' कहा जाता है, यह बाल-क्रीड़ाओं से पूर्ण है और लोगों को विभूति, ऐश्वर्य देने वाली है।' [[वराह पुराण]] में आया है कि यह 'पटवास-विलासिनी' है। [[होली|... और पढ़ें]]
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| | [[चयनित लेख|पिछले आलेख]] →
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| | [[सिंधु घाटी सभ्यता]] ·
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| | [[दीपावली]] ·
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| | [[रामलीला]] ·
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| | [[श्राद्ध]]
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| |}<noinclude>[[Category:विशेष आलेख के साँचे]]</noinclude>
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| |+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">एक व्यक्तित्व</font>
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| [[चित्र:Nazeer-Akbarabadi.jpg|right|80px|नज़ीर अकबराबादी|link=नज़ीर अकबराबादी|border]]
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| '''[[नज़ीर अकबराबादी]]''' [[उर्दू]] में नज़्म लिखने वाले पहले कवि माने जाते हैं। समाज की हर छोटी-बड़ी ख़ूबी को नज़ीर साहब ने कविता में तब्दील कर दिया। ककड़ी, [[जलेबी]] और तिल के लड्डू जैसी वस्तुओं पर लिखी गई कविताओं को आलोचक कविता मानने से इन्कार करते रहे। बाद में नज़ीर साहब की 'उत्कृष्ट शायरी' को पहचाना गया और आज वे उर्दू साहित्य के शिखर पर विराजमान चन्द नामों के साथ बाइज़्ज़त गिने जाते हैं। लगभग सौ वर्ष की आयु पाने पर भी इस शायर को जीते जी उतनी ख्याति नहीं प्राप्त हुई जितनी कि उन्हें आज मिल रही है। नज़ीर की शायरी से पता चलता है कि उन्होंने जीवन-रूपी पुस्तक का अध्ययन बहुत अच्छी तरह किया है। भाषा के क्षेत्र में भी वे उदार हैं, उन्होंने अपनी शायरी में जन-संस्कृति का, जिसमें हिन्दू संस्कृति भी शामिल है, दिग्दर्शन कराया है और हिन्दी के शब्दों से परहेज़ नहीं किया है। उनकी शैली सीधी असर डालने वाली है और अलंकारों से मुक्त है। शायद इसीलिए वे बहुत लोकप्रिय भी हुए। [[नज़ीर अकबराबादी|... और पढ़ें]]
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| | [[एक व्यक्तित्व|पिछले लेख]] →
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| | [[पांडुरंग वामन काणे]] ·
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| | [[बिस्मिल्लाह ख़ाँ]] ·
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| | [[लाला लाजपत राय]]
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| |}<noinclude>[[Category:एक व्यक्तित्व के साँचे]]</noinclude>
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