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| *भर्तुहरि का नाम भी यामुनाचार्य के ग्रन्थ में उल्लिखित हुआ है।
| | #REDIRECT [[भर्तृहरि]] |
| *इनको वाक्यपदीयकार से अभिन्न मानने में कोई अनुपपत्ति नहीं प्रतीत होती। परन्तु इनका कोई अन्य ग्रन्थ अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है।
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| *वाक्यपदीय [[व्याकरण]] विषयक ग्रन्थ होने पर भी प्रसिद्ध दार्शनिक ग्रन्थ है। अद्वैत सिद्धान्त ही इसका उपजीव्य है, इसमें संदेह नहीं है।
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| *किसी-किसी आचार्य का मत है कि भर्तुहरि के 'शब्दब्रह्मवाद' का ही अवलम्बन करके आचार्य मण्डनमिश्र ने ब्रह्मासिद्धि नामक ग्रन्थ का निर्माण किया था। इस पर वाचस्पति मिश्र की ब्रह्मतत्त्वसमीक्षा नामक टीका है।
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| *उत्पलाचार्य के गुरु, कश्मीरीय शिवदृष्टि' ग्रन्थ में भर्तुहरि के शब्दाद्वैतवाद को विषेश रूप से समालोचना की है।
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| *शान्तरक्षित कृत तत्त्वसंग्रह, अविमुक्तात्मा कृत इष्टसिद्धि तथा जयन्त कृत न्यायमंजरी में भी शब्दाद्वैतवाद के वचनों से ज्ञात होता है कि भर्तुहरि तथा तदनुसारी शब्दब्रह्मवादी दार्शनिक गण 'पश्यन्ति' वाक् को ही शब्दब्रह्मारूप मानते हैं।
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| *यह भी प्रतीत होता है कि इस मत में पश्यन्ती परा वाकरूप में व्यवहृत होती थी। यह वाक् विश्व जगत की नियामक तथा अन्तर्यामी चित्-तत्त्व से अभिन्न है।
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| ==संबंधित लेख==
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