"कोटदीजी (सिंध प्रांत)": अवतरणों में अंतर
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*सर्वप्रथम इसकी खोज 'धुर्ये' ने 1935 ई. में की । | *सर्वप्रथम इसकी खोज 'धुर्ये' ने 1935 ई. में की । | ||
*नियमित खुदाई 1953 ई. में फज़ल अहमद ख़ान द्वारा सम्पन्न करायी गयी। | *नियमित खुदाई 1953 ई. में फज़ल अहमद ख़ान द्वारा सम्पन्न करायी गयी। | ||
* | *इस की खुदाई 20 वीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में हुई और आरंभिक हड़प्पा काल के [[अवशेष|अवशेषों]] के रूप में इसकी पहचान हुई। | ||
* इस बस्ती के चारों तरफ़ पत्थर से बनी दीवार थी, जो लगभग 3000ई. पू. की प्रतीत होती है। | |||
*कोटदीजी में एक आदि-हड़प्पा स्तर मिला है। इस स्तर के मृद् भाण्डों में [[मोर]], मृग, [[मत्स्य]][शल्क और गेंदों की जुड़ी हुई आकृतियों का अपरिष्कृत चित्रण हुआ है। | |||
*सम्भवतः यहाँ पर पत्थरों का उपयोग घर बनाने में किया जाता था, इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि [[भारत का इतिहास पाषाण काल|पाषाणयुगीन]] सभ्यता का अंत यही पर हुआ था। | *सम्भवतः यहाँ पर पत्थरों का उपयोग घर बनाने में किया जाता था, इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि [[भारत का इतिहास पाषाण काल|पाषाणयुगीन]] सभ्यता का अंत यही पर हुआ था। | ||
*यहाँ से [[उत्खनन]] में कई ऐतिहासिक महत्त्व की वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। | *यहाँ से [[उत्खनन]] में कई ऐतिहासिक महत्त्व की वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। | ||
*कोटदीजी के विस्तृत स्तर में कांस्य की चपटे फलक वाली कुल्हाड़ी, तीराग्र ,छेनी, अंगूठी व दोहरी एवं इकहरी चूड़ियाँ आदि वस्तुएँ मिली हैं। | *कोटदीजी के विस्तृत स्तर में कांस्य की चपटे फलक वाली [[कुल्हाड़ी]], तीराग्र ,छेनी, अंगूठी व दोहरी एवं इकहरी चूड़ियाँ आदि वस्तुएँ मिली हैं। | ||
*इसके अतिरिक्त यहाँ से मृत्पिण्ड भी मिले हैं। | *इसके अतिरिक्त यहाँ से मृत्पिण्ड भी मिले हैं। | ||
*यह उल्लेखनीय है कि कोटदीजी के इन स्तरों में जो संस्कृति मिलती है, वह थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ सैंधव सभ्यता में चलती रही| | *यह उल्लेखनीय है कि कोटदीजी के इन स्तरों में जो संस्कृति मिलती है, वह थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ सैंधव सभ्यता में चलती रही| | ||
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06:46, 15 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण

कोटदीजी सिंध प्रांत आधुनिक पाकिस्तान के 'खैरपुर' नामक स्थान पर स्थित प्राचीन सैंधव सभ्यता का एक केन्द्र था।
- सर्वप्रथम इसकी खोज 'धुर्ये' ने 1935 ई. में की ।
- नियमित खुदाई 1953 ई. में फज़ल अहमद ख़ान द्वारा सम्पन्न करायी गयी।
- इस की खुदाई 20 वीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में हुई और आरंभिक हड़प्पा काल के अवशेषों के रूप में इसकी पहचान हुई।
- इस बस्ती के चारों तरफ़ पत्थर से बनी दीवार थी, जो लगभग 3000ई. पू. की प्रतीत होती है।
- कोटदीजी में एक आदि-हड़प्पा स्तर मिला है। इस स्तर के मृद् भाण्डों में मोर, मृग, मत्स्य[शल्क और गेंदों की जुड़ी हुई आकृतियों का अपरिष्कृत चित्रण हुआ है।
- सम्भवतः यहाँ पर पत्थरों का उपयोग घर बनाने में किया जाता था, इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि पाषाणयुगीन सभ्यता का अंत यही पर हुआ था।
- यहाँ से उत्खनन में कई ऐतिहासिक महत्त्व की वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं।
- कोटदीजी के विस्तृत स्तर में कांस्य की चपटे फलक वाली कुल्हाड़ी, तीराग्र ,छेनी, अंगूठी व दोहरी एवं इकहरी चूड़ियाँ आदि वस्तुएँ मिली हैं।
- इसके अतिरिक्त यहाँ से मृत्पिण्ड भी मिले हैं।
- यह उल्लेखनीय है कि कोटदीजी के इन स्तरों में जो संस्कृति मिलती है, वह थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ सैंधव सभ्यता में चलती रही|
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