सुनीथा कृष्णन

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सुनीथा कृष्णन
सुनीथा कृष्णन
पूरा नाम सुनीथा कृष्णन
जन्म 1972
जन्म भूमि बैंगलौर
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र समाजसेवा
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 2016

मदर टेरेसा पुरस्कार

प्रसिद्धि समाजसेविका
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सुनीथा कृष्णन का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। उन्होंने 22 हजार से ज्यादा महिला और बच्चियों को यौन तस्करी से मुक्त करवाया है।
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सुनीथा कृष्णन (अंग्रेज़ी: Sunitha Krishnan, जन्म- 1972, बैंगलौर) भारतीय समाज सेविका हैं। महज 12 वर्ष की उम्र में सुनीथा ने झुग्गियों में रहने वाले बच्चों के लिए स्कूल चलाना शुरू कर दिया था। हाल फिलहाल में वो एनजीओ प्रज्जवला की मुख्य अधिकारी और सह-संस्थापक भी हैं। वो यौन तस्करी की शिकार महिलाओं-लड़कियों के बचाव और उनके पुनर्वास के लिए काम करती हैं। समाज सेवा के क्षेत्र में सुनीथा कृष्णन के योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 2016 में 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया था।

परिचय

सुनीथा कृष्णन एक समाज सेविका हैं, जिनका जन्म 1972 में हुआ था। उनको बचपन से ही समाज सेवा करना पसंद था। बचपन से ही वह उनके घर के पास स्थित गरीब बच्चों की मदद करती थीं। महज 12 वर्ष की उम्र में सुनीथा ने झुग्गियों में रहने वाले बच्चों के लिए स्कूल चलाना शुरू कर दिया था। फिलहाल वह एनजीओ 'प्रज्जवला' की मुख्य अधिकारी और सह-संस्थापक हैं। वह यौन तस्करी की शिकार महिलाओं-लड़कियों के बचाव और उनके पुनर्वास के लिए काम करती हैं। सुनीथा कृष्णन ने 22 हजार से ज्यादा महिला और बच्चियों को यौन तस्करी से मुक्त करवाया है।

कम्युनिटी नव साक्षरता अभियान

वरिष्ठ समाजसेविका सुनीथा कृष्णन ने टेन न्यूज़ नेटवर्क के शो के माध्यम से बताया था कि- बचपन से ही गांव में रहने वाले गरीब बच्चों की सेवा करने का शौक था। जब 8 साल की थी, तब मैंने मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को डांस सिखाना शुरू कर दिया था। 12 साल की उम्र में वंचित बच्चों के लिए झुग्गियों में स्कूल चलाती थी, 15 साल की उम्र में दलित वर्ग के लोगों के लिए कम्युनिटी नव साक्षरता अभियान चलाया।[1]

मुश्किल वक्त

सुनीथा कृष्णन ने बताया कि एक दिन गांव में वह बच्चों को पढ़ाने के लिए सारे इंतजाम कर रही थीं, तब उस वक्त 8 लोगों के एक गैंग को यह पसंद नहीं आया और उन्होंने कहा कि यहाँ पुरुष प्रधानता है। इसके बाद इन सभी ने मिलकर मेरे साथ गैंगरेप किया। साथ ही बुरी तरह पिटाई की, जिससे मेरा एक कान खराब हो गया। इस भयानक घटना के बाद मेरी जिंदगी दहशत और दर्द से भर गई लेकिन मुश्किल वक्त में मैंने हार नहीं मानी, बल्कि एक संस्था बनाई जो महिलाओं और लड़कियों की तस्करी के खिलाफ आवाज बुलंद करती है।

साथ ही ऐसी पीड़ितों को शेल्टर भी मुहैया करवाती हूँ। उस वक्त जो ठानी आज यह एक मिसाल है। मैंने कॉलेज में दाखिला लिया ताकि समाजसेविका बन सकूँ। सुनीथा ने अपने साथ हुई घटना के बारे में खुलकर बताया कि जिस तरह से समाज में मेरे साथ भेदभाव हुआ और जिस तरह से लोगों ने मुझे देखा, मुझे इसका दु:ख है। किसी ने नहीं पूछा कि उन लोगों ने ऐसा क्यों किया। वह लोग मुझसे सवाल करते थे कि मैं वहां क्यों गई। मेरे माता पिता ने मुझे आजादी क्यों दी।[1]

सम्मान

गौरतलब है कि सुनीथा कृष्णन को साल 2016 में देश के सर्वोच्च चौथे सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही उनको 'मदर टेरेसा अवॉर्ड' भी मिल चुका है। सुनीथा कृष्णन का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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