सरस्वती राजामणि

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सरस्वती राजामणि
सरस्वती राजामणि
पूरा नाम सरस्वती राजामणि
जन्म 11 जनवरी, 1927
जन्म भूमि म्यांमार
मृत्यु 13 जनवरी, 2018
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि महिला गुप्तचर
संबंधित लेख आज़ाद हिन्द फौज, सुभाष चंद्र बोस
अन्य जानकारी सरस्वती राजामणि अपनी साथी दुर्गा के साथ ब्रिटिश सिपाहियों के खेमे में घुसीं। मिशन के लिए उन्होंने अपने केश काट लिए और लड़का बनकर खेमे में ही रहने लगी थीं।

सरस्वती राजामणि (अंग्रेज़ी: Saraswathi Rajamani, 11 जनवरी, 1927; मृत्यु- 13 जनवरी, 2018) भारत की सबसे कम उम्र की महिला जासूस थीं। समृद्ध परिवार से आने वाली सरस्वती राजामणि ने सिंगापुर में आज़ाद हिन्द फौज जॉइन किया। 16 साल की उम्र में ही वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के ओजस्वी शब्दों से प्रेरित हो गईं और आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़ीं। सरस्वती राजामणि अपनी साथी दुर्गा के साथ ब्रिटिश सिपाहियों के खेमे में घुसीं। मिशन के लिए उन्होंने अपने केश काट लिए थे। वह लड़का बनकर खेमे में ही रहने लगीं। अंग्रेज़ सिपाहियों के कपड़े धोतीं, जूते पॉलिश करतीं और ये करते हुए उन्होंने कई अहम जानकारियां जुटाईं।

परिचय

इतिहास ने महिलाओं को वो स्थान नहीं दिया है जिसकी वो हक़दार हैं। जब भी इतिहास के पन्न पलटो यही एहसास होता है कि इतिहास पुरुषों ने लिखा है। दुनियाभर में न जाने कितनी महिलाओं ने अपने देश के लिये क़ुर्बानियां दीं लेकिन कम के बारे में ही आज जानते हैं। भारत के इतिहास में भी कुछ ऐसा ही हुआ है, कई वीरांगनायें क़ुर्बानी देकर बीते वक़्त में कहीं ग़ुम हो गईं। आज़ाद हिन्द फ़ौज में नेताजी ने महिलाओं को भी शामिल किया था। इस फ़ौज में ही एक बहुत कम उम्र की जासूस थीं, नाम था सरस्वती राजमणि।[1]

प्रारंभिक जीवन

सरस्वती राजमणि का जन्म 1927 में म्यांमार के एक समृद्ध परिवार में हुआ। उस ज़माने के हिसाब से राजमणि का घर-परिवार काफ़ी देशप्रेमी, प्रगतिशील और लिबरल था। राजमणि को पढ़ने और दुनिया को जानने के मौक़े मिले जिससे कई महिलाएं वंचित थीं।

गांधीजी से भेंट

फेमिनिज्म इन इंडिया के एक लेख के अनुसार, एक बार महात्मा गांधी सरस्वती राजामणि के घर गये थे और तब राजमणि बंदूक से निशानेबाज़ी का अभ्यास कर रही थीं। गांधीजी ने उनसे पूछा कि एक बच्चे को बंदूक चलाना सीखने की क्या ज़रूरत है। इस पर राजमणि ने कहा था, 'अंग्रेज़ों को मारने के लिये और किसलिये?' गांधीजी अहिंसावादी थे और राजमणि को अहिंसा का मार्ग समझाने लगे; लेकिन राजमणि बचपन से यही मानती थीं कि हिंसा का मार्ग ज़्यादा प्रभावशाली होता है।

आज़ाद हिन्द फ़ौज का सफ़र

16 वर्ष की आयु में ही सरस्वती राजामणि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के शब्दों और ओजस्वी भाषण से इतना प्रभावित हुईं कि अपने सारे गहने आज़ाद हिन्द फ़ौज को दान कर दिये। नेताजी को 16 साल की लड़की की बात पर यक़ीन नहीं हुआ और वो राजमणि के घर पहुंच गये। राजमणि के घर पर उनके पिता ने भी उनका उत्साह बढ़ाया। राजमणि के जज़्बे को देखकर नेताजी ने उन्हें फ़ौज का हिस्सा बना लिया और उन्हें सबसे कम उम्र की और पहली महिला जासूस बनाया।

अंग्रेज़ों के शिविर में

लाइव हिस्ट्री इंडिया के एक लेख के अनुसार, जब आज़ाद हिन्द फ़ौज, इम्फ़ाल और कोहिमा के उत्तर-पूर्वी हिस्से की तरफ़ बढ़ रही थी; तब फ़ौज की रानी झांसी रेजिमेंट को उत्तरी बर्मा के क्षेत्र में भेजा गया। इस टुकड़ी में सरस्वती राजामणि और उनकी साथी दुर्गा भी थीं। इन दोनों को ब्रिटिश सिपाहियों के कैम्प में सिक्रेट जासूसी मिशन पर जाना था। राजमणि और दुर्गा ने अपने केश काटे और कैम्प पहुंच गईं। अंग्रेज़ सिपाहियों के कपड़े धोती, जूते पॉलिश करती और अन्य काम करते हुये दोनों को कई अहम जानकारियां मिलीं।[1]

एक वक़्त ऐसा आया, जब सरस्वती राजामणि अंग्रेज़ों के पकड़ में आते-आते बचीं, हालांकि उन्हें अपनी दोस्त को छोड़कर निकलना पड़ा। राजमणि ने हार नहीं मानी और एक 'डांसिंग गर्ल' का रूप बनाकर अंग्रेज़ कैम्प में घुसीं। अंग्रेज़ को बेहोश कर अपने पार्टनर को छुड़ाया। गोली लगने की वजह से राजमणि का एक पैर पूरी तरह ठीक तरह से काम नहीं कर रहा था लेकिन राजमणि ने इसे बतौर सम्मान स्वीकारा। नेताजी ने उन्हें ख़ुद शाबाशी देते हुये चिट्ठी लिखी थी और उन्हें 'भारत की पहली महिला जासूस' कहा था।

नहीं मिला उचित सम्मान

सन 1957 में सरस्वती राजामणि भारत लौटीं और त्रिची में बस गईं। राजमणि का जीवन यहां आसान नहीं था और उन्हें भारत सरकार से पेंशन पाने के लिये काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी। इसी वजह से सरस्वती राजामणि को चेन्नई जाकर बसना पड़ा। बर्मा में पैतृक संपत्ति बेचकर जो पैसे मिले थे, उससे अपना गुज़ारा चलाने लगीं। सन 1971 में आज़ादी के 25 साल बाद सरस्वती राजामणि और फ़ौज के बाक़ी सिपाहियों को पेंशन मिलने लगी, लेकिन राजमणि का जीवन फिर भी मुश्किल भरा था। 2005 तक राजमणि एक कमरे के मकान में रहती थीं, 2005 में तमिलनाडु सरकार ने उन्हें चेन्नई में एक घर दिया।[1]

मृत्यु

13 जनवरी, 2018 देश की इस वीरांगना सरस्वती राजामणि ने आख़िरी सांस ली।


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