माधव ब्राह्मण, उसका बालक, नेवला और साँप की कहानी

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माधव ब्राह्मण, उसका बालक, नेवला और साँप की कहानी हितोपदेश की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता नारायण पंडित हैं।

कहानी

उज्जयिनी नगरी में माधव नामक ब्राह्मण रहता था। उसकी ब्राह्मणी के एक बालक हुआ। वह उस बालक की रक्षा के लिये ब्राह्मण को बैठा कर नहाने के लिये गई। तब ब्राह्मण के लिए राजा का पावन श्राद्ध करने के लिए बुलावा आया। यह सुन कर ब्राह्मण ने जन्म के दरिद्री होने से सोचा कि "जो मैं शीघ्र न गया तो दूसरा कोई सुन कर श्राद्ध का आमंत्रण ग्रहण कर लेगा।

आदानस्त प्रदानस्त कर्तव्यस्य च कर्मणः।
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम्।।

शीघ्र न किये गये लेन- देन और करने के काम का रस समय पी लेता है।
परंतु बालक का यहाँ रक्षक नहीं है, इसलिये क्या कर्रूँ ? जो भी हो बहुत दिनों से पुत्र से भी अधिक पाले हुए इस नेवले को पुत्र की रक्षा के लिए रख कर जाता हूँ। ब्राह्मण वैसा करके चला गया, फिर वह नेवला बालक के पास आते हुए काले साँप को देखकर, उसे मार कोप से टुकड़े- टुकड़े करके खा गया। फिर वह नेवला ब्राह्मण को आता देख लहु से भरे हुए मुख औरपैर किये शीघ्र पास आ कर उसके चरणों पर लोट गया। फिर उस ब्राह्मण ने उसे वैसा देख कर सोचा कि इसने मेरे बालक को खा लिया है। ऐसा समझ कर नेवले को मार डाला। बाद में ब्राह्मण ने जब बालक के पास आ कर देखा तो बालक आनंद में है और सपं मरा हुआ पड़ा है। फिर उस उपकारी नेवले को देख कर मन में घबड़ा कर बड़ा दुखी हुआ।

कामः क्रोधस्तथा मोहो लोभो मानो मदस्तथा।
षड्वर्गमुत्सृजेदेनमर्जिंस्मस्त्यक्ते सुखी नृपः।।

काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार तथा मद इन छह बातों को छोड़ देना चाहिये, और इसके त्याग से ही राजा सुखी होता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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