छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 खण्ड-5 से 6

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 खण्ड-5 से 6
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय छठा
कुल खण्ड 16 (सोलह)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय छठे का यह पांचवें से छठा खण्ड है। इन खण्डों में 'तेज,' 'जल' और 'अन्न' का त्रिगुणात्मक विवेचन किया गया है।

  • तेज - जो तेज ग्रहण किया जाता है, वह तीन रूपों में विभाजित हो जाता है। उस तेज का स्थूल भाग 'हड्डी' के रूप में, मध्यम भाग 'मज्जा' के रूप में और अत्यन्त सूक्ष्म अंश 'वाणी' रूप में परिणत हो जाता है।


  • जल - ग्रहण किये गये जल की परिणति भी तीन प्रकार से विभक्त होती है। जल का स्थूल भाग 'मूत्र', मध्यम अंश 'रक्त' और सूक्ष्म अंश 'प्राण' बन जाता है।


  • अन्न - ग्रहण किया गया अन्न भी तीन भागों में बंट जाता है। अन्न का स्थूल भाग 'मल,' मध्यम अंश 'मांस' और जो अतिसूक्ष्म है, वह 'मन' के रूप में परिवर्तित हो जाता है।


उद्दालक ने अपने पुत्र श्वेतकेतु को समझाया कि 'तेज' का कार्य 'वाणी' है, जल का कार्य 'प्राण' है और 'अन्न' का कार्य 'मन' है। जिस प्रकार दही के मथने से उसका सूक्ष्म भाव [[मक्खन]] के रूप में एकत्र हो जाता है, वही प्रवृत्ति ऊर्ध्व की ओर गमन करने की है। इसी प्रकार तेज, जल और अन्न का सूक्ष्म भाग, मन्थन के उपरान्त क्रमश: 'वाणी', 'प्राण' और 'मन' के रूप में परिवर्तित हो जाता है। तात्पर्य यही है कि तेज से 'वाणी, जल से 'प्राण' और अन्न से 'मन' का निर्माण होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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