घड़ीयंत्र नियंत्रण

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घड़ीयंत्र नियंत्रण पृथ्वी के घूर्णन के कारण समस्त आकाशीय पिंड पूर्व से पश्चिम की ओर गमन करते हुए प्रतीत होते हैं। इस कारण यदि किसी आकाशीय पिंड का फोटो लेते समय कैमरे को लक्ष्यपिंड की ओर निर्दिष्ट करके छोड़ दिया जाय, तो उक्त पिंड के आभासी स्थानांतरण के कारण उसका फोटो चित्र स्पष्ट नहीं प्राप्त होगा, वरन्‌ वह बिंदु सदृश पिंड एक छोटी और मोटी रेखा के रूप में फोटो पट्टिका पर दृष्ट होगा और इस रेखा की विमितियाँ भी स्पष्ट अथवा तीक्ष्ण नहीं होंगी। इस कठिनाई को दूर करने के लिये ऐसी व्यवस्था की गई है कि खगोलीय पिंडों का फोटो लेने वाला कैमरा एक विद्युत्‌ संचालित घड़ीयंत्र नियंत्रण व्यवस्था द्वारा तारों की आभासी गति की ही दिशा में तथा उनके आभासी कोणीय वेग के समान वेग से घुमाया जा सके, ताकि लक्ष्य पिंड का बिंब फोटो पट्टिका के एक ही स्थान पर 'जमा', अर्थात्‌ 'स्थितर', रहे।

घड़ीयंत्र-नियंत्रण

व्यवस्था में सामान्य रूप से एक विशाल, दाँतेदार पहिया या चक्र होता है, जो एक ध्रुवीय या घटीअक्ष पर आरोपित होता है। इस अक्ष को एक स्पर्शीय सर्पिल (tangential worm), या निरंत पेच, द्वारा एक समान घूर्णनगति प्रदान की जाति है। यह स्पर्शीय सर्पिल या निरंत पेच स्वयं विद्युन्मोटर द्वारा परिचालित होता है। साधारण खगोलीय यंत्रों में इस विद्युन्मोटर की चाल अत्यंत परिशुद्ध लोलक घड़ी द्वारा नियंत्रित की जाती है। लोलक घड़ी विद्युन्मोटर में वांछित प्रबलता की विद्युद्धारा को ही प्रवेश करने देती है, ताकि ध्रुवीय अक्ष का घूर्णन एकरूप रहे। अधिक परिष्कृत और विशेषकर विशाल यंत्रों में, जिन्हें अभी केवल कुछ बड़ी वेधशालाओं में ही प्रतिष्ठित किया गया है, ध्रुवीय अक्ष की घूर्णन गति को जटिल यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा नियंत्रित करने की व्यवस्था की गई है। लोलक-घड़ी-नियंत्रित विर्द्युन्मोटर के स्थान पर इसमें समकालिक मोटर का प्रयोग किया जाता है, जिसके विद्युदादान की आवृत्ति का नियमन एवं नियंत्रण मानक कंपित्र यथा क्वार्ट्ज़ मणिभ द्वारा होता है।

खगोलीय यंत्रों के अतिरिक्त अन्य वैज्ञानिक परिमापन क्रियाओं में भी घड़ीयंत्र नियंत्रण प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। ऊपर के विवेचन से यह स्पष्ट हो गया हो कि घड़ीयंत्र नियंत्रण प्रणालियों में कालिक युक्ति (timing device) का प्रायोग नियंत्रण फलन उत्पन्न करने के लिये किया जाता है। इस प्रणाली का साधारण दृष्टांत घरेलू चेतावनी (अलार्म) घड़ियाँ हैं, जिनमें घंटी बजने का समय घड़ीयंत्र द्वारा ही नियंत्रित होता है। वैज्ञानिक परिमापन कार्यो में प्रयोजनीय घड़ीयंत्र नियंत्रण-व्यवस्था के मुख्यत: दो अंग होते हैं, एक तो कालिक युक्ति और दूसरा नियंत्रण प्रक्रियाएँ या युक्तियाँ। इन नियंत्रण प्रणालियों का व्यवहारक्षेत्र सामान्य चेतावनी घड़ियों से लेकर नियंत्रित क्षेप्यास्रों और कृत्रिम ग्रहों एवं उपग्रहों के प्रक्षेपकों में घटनाओं के जटिल क्रमों को नियंत्रित करने तक, विस्तृत है। घड़ीयंत्र नियंत्रण प्रणालियाँ साधारणतया खुले पाश-नियंत्रण-प्रणालियों पर निर्भर होती हैं, क्योंकि नियंत्रण क्रिया इस संबंध में केवल निकाय आदान (system input) और व्यतीत काल पर ही निर्भर करती है।

सामान्यतया कालिक युक्ति के रूप में निम्नलिखित व्यवस्थाएँ व्यवहृत होती हैं:-

समय स्विच

यह पूर्वनियोजित क्षणों पर विद्युत्‌संपर्को को स्थापित एवं भंग करता रहता है। इसका प्रयोग औद्योगिक प्रतिष्ठानों में, प्रकाश एवं उष्मा-उत्पादक-प्रणालियों में तथा टांका पात्रों, चूल्हों तथा अन्य उपकरणों को, उनके कार्यारंम करने के पूर्व, गरम करने के लिये किया जाता है। यातायात प्रणालियों में भी इसका प्रयोग होता है।

समय-विलम्ब-रिले

इस विधि में समय-विलम्ब युक्ति को ऊर्जायुक्त या ऊर्जाविहीन करने तथा भारवाही विद्युत्‌ संपर्को के तदोत्तर क्रमण्यन के बीच पूर्वनियोजित समयविलम्बन, अथवा समयपश्चता (time lag), प्रदान करने की व्यवस्था होती है। इस विधि का प्रयोग इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों में प्लेट वोल्टेज के आरोपण में विलम्ब करने के निमित्त किया जाता है, ताकि वह हीटर-वोल्टेज के आरोपण के पश्चात्‌ ही आरोपित होे सके। इससे निर्वात नलिकाओं की आयु में वृद्धि होती है।

अंतराल समयांकक

इस प्रणाली का कार्य पूर्वनिश्चित समयावधि में विद्युतसंपर्कों के कुलक सक्रिय करना होता है और उक्त अवधि के अंत में वे उन सपर्को को उनकी सामान्य स्थिति में वापस ले आते हैं। इस विधि का कार्य बहुत कुछ समय-विलम्ब-रिले के समान ही होता है। अंतर इतना मात्र होता है कि इस विधि से समयांतराल का नियंत्रण अधिक यथार्थता से होता है, और इससे प्राप्त समयांतराल अधिक दीर्घ रहता है। इस विधि का व्यवहार फोटोग्राफिक पुनरुत्पादन प्रक्रियाओं तथा स्थल-संधान-परिचालन में कालावधि के लिये तथा अन्य तत्सदृश कार्यों में किया जाता है।

समय-चक्र-नियंत्रक

यह विधि पूर्वनिश्चित समयांतरालों से संपर्कों के कुलक का इस प्रकार क्रियान्वयन करती है कि उक्त अंतराल में संबद्ध प्रस्तावित घटनाओं की श्रृंखला अभीष्ट क्रम में ही घटित हो।

कालनिर्धारण नियंत्रक

इस नियंत्रक प्रणाली का प्रयोग किसी प्रक्रिया में चर तत्वों (variable factors), यथा दाब, ताप इत्यादि के मानों को पूर्वनिर्धारित समयक्रम के अनुसार समंयोजित करने के हेतु किया जाता है। इस नियंत्रक का प्रयोग तापानुशीलन भ्राष्टों में किया जाता है, जहाँ भ्राष्टों के ताप में समय के साथ परिवर्तन अत्यंत सतर्कतापूर्वक नियोजित कार्यक्रम के अनुसार वांछित होता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. घड़ीयंत्र नियंत्रण (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 19 अक्टूबर, 2014।

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