इस्सस का युद्ध
इस्सस का युद्ध ईरान के दारा तृतीय और सिकन्दर के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध ईरान के विरुद्ध सिकन्दर महान् का प्रथम अभियान था। इस्सस के युद्ध में सिकन्दर की विजयी हुई थी। युद्ध में ईरान की राजधानी पर्सिपोलिस को जलाकर सिकन्दर ने एथेंस का प्रतिशोध लिया। इस युद्ध में ईरान के दारा के पास बहुत बड़ी सेना थी, फिर भी सिकन्दर के सैन्य संचालन और उसकी रणकौशलता के आगे दारा को पराजय का सामना करना पड़ा।[1]
सैन्य बल
सीरिया में फ़रात नदी से थोड़ी दूर पर मिरियांद्रस के पास अलेग्ज़ांद्रिया था। यहीं पर उत्तर की ओर इस्सस के मैदान में दारा तृतीय की फौजें खड़ी थीं और दक्खिन की ओर अपने रिसालों और पैदलों के साथ मकदूनिया का राजा सिकन्दर डटा हुआ था। दारा की सेनाएँ देली की धारा के दोनों ओर चलकर ग्रीक सेना पर हमले के लिए बढ़ीं। इधर सिकन्दर ने दारा की हरावल पर हमला किया। हरावल टूट गई। ईरानी सेना बड़ी संख्या में मारी गई। दियोदोरस और प्लूतार्क ने यह संख्या एक लाख, दस हज़ार बताई है। मृत मकदूनियाई सैनिकों की संख्या साढ़े चार सौ ही बताई जाती है, जिसे सहीं नहीं माना जा सकता। इस्सस का युद्ध 333 ई. पू. के अक्टूबर में हुआ था।
सिकन्दर की विजय
'इस्सस का युद्ध' ईरान के विरुद्ध सिकन्दर का यह पहला अभियान था। उसका अंतिम अभियान 331 ई. पू. में हुआ था। ईरान के दारा के पूर्वजों ने कभी ग्रीस पर चढ़ाई कर एथेंस को जला डाला था और ईरान की विजय करते समय सिकन्दर इस बात को भूला नहीं था कि उसे ईरान और उसके सम्राट् के प्रतिनिधि दारा तृतीय से बदला लेना है। ईरान की राजधानी पर्सिपोलिस को जलाकर उसने एथेंस का बदला लिया, पर वह अरबला की लड़ाई के बाद हुआ, जो बाख्त्री पर उसके हमले के पहले ईरान के विरुद्ध अंतिम अभियान था।[1]
'इस्सस का युद्ध' ईरान के विध्वंस का आरंभ था, जिसके परिणाम में सीरिया से हिन्दुकुश और आमू दरिया तक एशिया की जमीन सिकन्दर के अधिकार में आ गई। इस्सस के युद्ध ने प्रमाणित कर दिया था कि शत्रु की सेना की संख्या चाहे जितनी बड़ी हो, विजय संख्या से नहीं, सैन्य संचालन के कौशल से होती है। दारा के पास भले ही सैन्य संख्या ज़्यादा थी, किंतु सिकन्दर के पास रणकौशल और बेहतर सैन्य संचालन था, जिसके बल पर उसने इस्सस के युद्ध में विजय पाई।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 इस्सस का युद्ध (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 11 जुलाई, 2014।
- ↑ औंकारनाथ उपाध्याय, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 20