इब्नुल अरबी

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इब्नुल अरबी अरबी के प्रसिद्ध सूफी कवि, साधक और विचारक। इनका पूरा नाम अबू बक्र मुहम्मद इब्नेअली मुहीउद्दीन था। जन्म स्पेन में 1165 ई. में और मृत्यु दमिश्क में 1240 ई. में हुई। 1194 ई. में ये मक्का चले गए। वहाँ कुछ समय रहने के बाद इन्होंने इराक, सीरिया और एशिया माइनर की यात्राएँ कीं और अंत में दमिश्क में आकर बस गए। ये 'शेखेअकबर' नाम से विख्यात थे। इनकी रचनाएँ हैं: इस्तेलहात, फुतूहातेमक्किया, मवाकीअलनुजूम, तर्जुमानुल अश्वाक आदि। फुतूहातेमक्किया एक विश्वकोशीय ग्रंथ है जिसमें सूक्ष्म विरोधाभासपरक शैली में अद्वैतपरक दर्शन का विवेचन किया गया है। इन्होंने अपनी रहस्यवादी कविताओं में दिव्य प्रेम की अभिव्यक्ति की है। कुरान की रहस्यात्मक टीका के अतिरिक्त इन्होंने साहित्यिक एवं ऐतिहासिक ग्रंथ भी लिखे। इन्होंने प्रेमकाव्य की भी रचना की है।

सूफी मत एवं इस्लामी दर्शन पर इनके सिद्धांतों का व्यापक प्रभाव पड़ा। एक भी समकालीन या परवर्ती कवि इनके प्रभाव से अछूता न रहा। कुछ लोग ईसाई रहस्यवाद पर भी इनके प्रभाव को स्वीकार करते हैं। ये अद्वैतवादी थे, यद्यपि बहुदेववादी मानकर इनकी अनेक लोगों ने आलोचना भी की है। इन्होंने अपने आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर वहदतुल वजूद नाम के सिद्धांत का प्रवर्तन किया। कुरान और हदीस के आधार पर अपने सिद्धांत की इस्लाम के साथ इन्होंने संगति भी बैठाई है जिसके अनुसार वास्तविक सत्ता एक है और वह सत्ता एकमात्र परमात्मा है। दृश्यमान जगत्‌ उसकी आभिव्यक्ति है, उसका दर्पण है और दोनों में साम्य भी है। यह जगत्‌ उसके तज्जली (गुणों) की अभिव्यक्ति मात्र है। इसी आधार पर अरबी ने 'हमाअस्‌' (सब कुछ वही है) सिद्धांत की प्रतिष्ठा की जिसके अनुसार संपूर्ण सृष्टि का एक ही उद्गम है और उसी में वह लय हो जाती है। नित्य ओर अनित्य दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। अरबी परमात्मा को सर्वगत और सर्वातीत नहीं मानते। उनके अनुसार अल्लाह ही अस्ल (सत्य) है और संसार उसका ज़िलन (छाया) है, अत: वह उसके अनुरूप है।

ईरानी और तुर्की सूफी प्रचारकों पर इब्नुल अरबी के विचारों का अमित प्रभाव पड़ा इसी कारण उनको कुतुबुद्दीन (द पोल ऑव रिलिजन) का खिताब प्रदान किया गया। इब्नुल अरबी की इतनी प्रसिद्धि का एक और कारण उनकी अल-अजवेबह अन अल असएलह अससिकीलियह भी है जिसमें पदार्थ (मैटर) की प्राचीनता और आत्मा की अमरता पर फ्रेडरिक द्वितीय के प्रश्नों का उत्तर दिया गया है। इब्नुल अरबी की एक और प्रसिद्ध रचना दूसरा एला मक़ामिल असरा है, जिसमें हज़रत मुहम्मद साहब की मेराज (आसमानों की सैर) पर प्रकाश डाला गया है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 531-32 |

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