इंजन
इंजन (ऊष्मा) उस यंत्र या मशीन को कहते हैं जिसकी सहायता से ऊष्मा का याँत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है। इंजन की इस याँत्रिक ऊर्जा का उपयोग कार्य करने के लिए किया जाता है। उष्मा इंजन दो प्रकार के हाते हैं :
1. बाह्य दहन इंजन-इसमें इंजन को चलानेवाला पदार्थ इंजन के बाहर अलग पात्र में तप्त किया जाता है। जैसे भाप इंजन में इंजन से अलग बायलर में पानी से भाप बनती है जो सिलिंडर में जाकर पिस्टन को चलाती है।
2. आंतरिक दहन इंजन-इसमें ऊष्मा इंजन के भीतर ही दहन द्वारा किसी तेल या पेट्रोल या किसी गैस को जलाकर उत्पन्न करते हैं। मोटरकार, हवाई जहाज इत्यादि में आंतरिक दहन इंजन का ही उपयोग होता है। भाप इंजन की तरह इनमें ईधंन जलाने के लिए अलग बायलर नहीं होता, इसी कारण इन इंजनों को आंतरिक दहन इंजन कहते हैं।
बाह्य दहन इंजन का सर्वोत्तम उदाहरण 'भाप इंजन' है। इसलिए इसका यहाँ सविस्तार वर्णन किया जा रहा है।
भाप इंजन बनाने के यत्न का सबसे प्राचीन उल्लेख अलेक्जैंड्रिया के हीरो के लेखों में मिलता है। हीरो उस विख्यात अलैक्जैंड्रीय संप्रदाय (300 ई.पू.-400 ई. सन्) का सदस्य था जिसमें टोलेमी, यूक्लिड, इरेटोस्थनीज जैसे तत्कालीन विज्ञान के महारथी सम्मिलित थे। हीरो ने अपने लेख में एक ऐसी युक्ति का वर्णन किया है जिसमें एक बंद बाक्स में वायु गर्म की जाती थी और एक नली के मार्ग से नीचे पानी भरे बर्तन की ओर फैलती थी। इसमें बर्तन का पानी दूसरी नली में चढ़ता था और एक नकली फुहारा बन जाता था। फिर इसके बाद इस संबंध में कहीं कोई विवरण नहीं मिलता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 485-95 |
- ↑ सं.ग्रं.-साहा ऐंड श्रीवास्तव: ए टेक्स्ट बुक आफ हीट; डी.आर. पाई: दि इंटर्नल कंबश्चन एंजिन (1931); एच.आर. रिचर्ड्स: दि इंटर्नल कंबश्चन एंजिन (1923)।