अंत:पुर

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अंत:पुर या 'अंतपुर' प्राचीन काल में हिन्दू राजाओं के 'रनिवास' को कहा जाता था, जहाँ राजा आमोद-प्रमोद आदि का समय व्यतीत करते थे। यही अंत:पुर मुग़लों के जमाने में 'जनानखाना' या 'हरम' कहलाया।[1]

  • अंत:पुर के अन्य नाम भी थे, जो साधारणत उसके पर्याय की तरह प्रयुक्त होते थे, यथा- 'शुद्धांत' और 'अवरोध'।
  • 'शुद्धांत' शब्द से प्रकट है कि राजप्रासाद के उस भाग को, जिसमें नारियाँ रहती थीं, बड़ा पवित्र माना जाता था। दांपत्य वातावरण को आचरण की दृष्टि से नितांत शुद्ध रखने की परंपरा ने ही नि:संदेह अंत:पुर को यह विशिष्ट संज्ञा दी थी।
  • शुद्धांत नाम को सार्थक करने के लिए महल के उस भाग को बाहरी लोगों के प्रवेश से मुक्त रखते थे। इसीलिए उस भाग के अवरुद्ध होने के कारण अंत:पुर का तीसरा नाम 'अवरोध' पड़ा था।
  • अवरोध के अनेक रक्षक होते थे, जिन्हें 'प्रतिहारी' या 'प्रतिहाररक्षक' कहा जाता था।
  • नाटकों में राजा के अवरोध का अधिकारी अधिकतर वृद्ध ही होता था, जिससे अंत:पुर शुद्धांत बना रहे और उसकी पवित्रता में कोई विकार न आने पाए।
  • मुग़ल और चीनी सम्राटों के हरम या अंत:पुर में मर्द नहीं जा सकते थे और उनकी जगह खोजे या क्लीब रखे जाते थे। इन खोजों की शक्ति चीनी महलों में इतनी बढ़ गई थी कि वे रोमन सम्राटों के प्रीतोरियन शरीर रक्षकों और तुर्की जनीसरी शरीर रक्षकों की तरह ही चीनी सम्राटों को बनाने-बिगाड़ने में समर्थ हो गए थे। वे चीनी महलों के सारे षड्यंत्रों के मूल में होते थे। चीनी सम्राटों के समूचे महल को अवरोध अथवा अवरुद्ध नगर कहते थे और उसमें रात में सिवा सम्राट के कोई पुरुष नहीं सो सकता था। क्लीबों की सत्ता गुप्त राजप्रासादों में भी पर्याप्त थी।
  • जैसी की संस्कृत नाटकों से प्रकट होता है, राजप्रासाद के अंत:पुर वाले भाग में एक नजरबाग़ भी होता था, जिसे 'प्रमदवन' कहते थे और जहाँ राजा अपनी अनेक पत्नियों के साथ विहार करता था। संगीतशाला, चित्रशाला आदि भी वहाँ होती थीं, जहाँ राजकुल की नारियाँ ललित कलाएँ सीखती थीं। वहीं उनके लिए क्रीड़ा स्थल भी होता था।
  • संस्कृत नाटकों में वर्णित अधिकतर प्रणय षड्यंत्र अंत:पुर में ही चलते थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अंत:पुर (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 11 जुलाई, 2014।

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