सम्प्राप्ति द्वादशी

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • पौष कृष्ण पक्ष की द्वादशी पर सम्प्राप्ति द्वादशी व्रत किया जाता है।
  • अच्युत (कृष्ण) की पूजा की जाती है।
  • नास्तिकों आदि से नहीं बोलना चाहिए।
  • सम्प्राप्ति द्वादशी को वर्ष के दो भागों में विभाजित किया गया है।
  • पौष से 6 मासों में क्रमश: पुण्डरी काक्ष के रूप में, माधव रूप में माध में, विश्व रूप में फाल्गुन में, पुरुषोत्तम रूप में चैत्र में, अच्युत रूप में वैशाख में तथा जय रूप में ज्येष्ठ में सम्प्राप्ति द्वादशी व्रत किया जाता है।
  • प्रथम छ: मासों में स्नान एवं भोजन में तिल का प्रयोग करना चाहिए।
  • आषाढ़ से आगे के 6 मासों में पंचगव्य करना चाहिए।
  • इन 6 मासों में भी पूर्वोक्त नामों से ही पूजा करनी चाहिए।
  • एकादशी को व्रत तथा द्वादशी को नक्त या एकभक्त रहना चाहिए।
  • वर्ष के अन्त में एक गाय, वस्त्र, हिरण्य, अन्न, भोजन, आसन एवं पलंग का 'केशव प्रसन्न हों' के साथ में दान देना चाहिए।
  • ऐसी मान्यता है कि सम्प्राप्ति द्वादशी व्रत से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
  • इसी से व्रत का नाम 'सम्पाप्तिव्रत' है।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 1094-1095, विष्णुधर्मोत्तरपुराणसे उद्धरण

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