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मीर ज़ाफ़र [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] का 1757 से 1760 ई0 तक और फिर 1763 से 1765 ई0 तक नवाब था। वह बंगाल के नवाब [[अलीवर्दी ख़ाँ का बइनोई था और [[मुर्शिदाबाद]] के दरबार में बहुत अधिक प्रभाव रखता था। अलीवर्दी के पौत्र तथा उत्तराधिकारी नवाब सिराजुद्दौला को उसकी स्वामिभक्ति में सन्देह था और उसने उसे बख्शी के पद से हटा दिया। इससे मीर ज़ाफ़र और फिरंट हो गया और उसने [[सिराजुद्दौला]] को गद्दी से हटाने तथा खुद नवाब बनने के लिए असंतुष्ट दरबारियों के साथ षड्यंत्र रचा, जिसमें जगत सेठ भी सम्मिलित था।  
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मीर ज़ाफ़र [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] का 1757 से 1760 ई0 तक और फिर 1763 से 1765 ई0 तक नवाब था। वह बंगाल के नवाब [[अलीवर्दी ख़ाँ]] का बइनोई था और [[मुर्शिदाबाद]] के दरबार में बहुत अधिक प्रभाव रखता था। अलीवर्दी के पौत्र तथा उत्तराधिकारी नवाब सिराजुद्दौला को उसकी स्वामिभक्ति में सन्देह था और उसने उसे बख्शी के पद से हटा दिया। इससे मीर ज़ाफ़र और फिरंट हो गया और उसने [[सिराजुद्दौला]] को गद्दी से हटाने तथा खुद नवाब बनने के लिए असंतुष्ट दरबारियों के साथ षड्यंत्र रचा, जिसमें जगत सेठ भी सम्मिलित था।  
 
==अंग्रेज़ों से संधि==
 
==अंग्रेज़ों से संधि==
 
षड्यंत्रकारियों के नेता के रूप में मीर ज़ाफ़र ने 10 जून 1757 ई॰ को [[कलकत्ता]] में [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] से एक संधि की। इस संधि के द्वारा मीर ज़ाफ़र ने वचन दिया कि वह अंग्रेज़ों की सहायता से बंगाल का नवाब बन गया तो सिराजुद्दौला ने अलीनगर की संधि (9 फरवरी 1757 ई0) के द्वारा उन्हें जो सुविधाएँ रखी हैं, उनकी पुष्टि कर देगा, अंग्रेज़ों से रक्षात्मक संधि करेगा, [[फ़्राँसीसी|फ्रांसीसियों]] की बंगाल से निकाल देगा, 1756 ई॰ में कलकत्ता छीने जाने के बदले [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] को 10 लाख पौंड हर्जाना देगा और इसका आधा रुपया कलकत्ता के अंग्रेज़ निवासियों को देगा। मीर ज़ाफ़र ने गुप्त संधि करके अंग्रेज़ी सेना, नौसेना तथा कौंसिल के सदस्यों को काफी अधिक धन देने का वादा किया।  
 
षड्यंत्रकारियों के नेता के रूप में मीर ज़ाफ़र ने 10 जून 1757 ई॰ को [[कलकत्ता]] में [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] से एक संधि की। इस संधि के द्वारा मीर ज़ाफ़र ने वचन दिया कि वह अंग्रेज़ों की सहायता से बंगाल का नवाब बन गया तो सिराजुद्दौला ने अलीनगर की संधि (9 फरवरी 1757 ई0) के द्वारा उन्हें जो सुविधाएँ रखी हैं, उनकी पुष्टि कर देगा, अंग्रेज़ों से रक्षात्मक संधि करेगा, [[फ़्राँसीसी|फ्रांसीसियों]] की बंगाल से निकाल देगा, 1756 ई॰ में कलकत्ता छीने जाने के बदले [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] को 10 लाख पौंड हर्जाना देगा और इसका आधा रुपया कलकत्ता के अंग्रेज़ निवासियों को देगा। मीर ज़ाफ़र ने गुप्त संधि करके अंग्रेज़ी सेना, नौसेना तथा कौंसिल के सदस्यों को काफी अधिक धन देने का वादा किया।  

11:33, 13 अगस्त 2010 का अवतरण

मीर ज़ाफ़र बंगाल का 1757 से 1760 ई0 तक और फिर 1763 से 1765 ई0 तक नवाब था। वह बंगाल के नवाब अलीवर्दी ख़ाँ का बइनोई था और मुर्शिदाबाद के दरबार में बहुत अधिक प्रभाव रखता था। अलीवर्दी के पौत्र तथा उत्तराधिकारी नवाब सिराजुद्दौला को उसकी स्वामिभक्ति में सन्देह था और उसने उसे बख्शी के पद से हटा दिया। इससे मीर ज़ाफ़र और फिरंट हो गया और उसने सिराजुद्दौला को गद्दी से हटाने तथा खुद नवाब बनने के लिए असंतुष्ट दरबारियों के साथ षड्यंत्र रचा, जिसमें जगत सेठ भी सम्मिलित था।

अंग्रेज़ों से संधि

षड्यंत्रकारियों के नेता के रूप में मीर ज़ाफ़र ने 10 जून 1757 ई॰ को कलकत्ता में अंग्रेजों से एक संधि की। इस संधि के द्वारा मीर ज़ाफ़र ने वचन दिया कि वह अंग्रेज़ों की सहायता से बंगाल का नवाब बन गया तो सिराजुद्दौला ने अलीनगर की संधि (9 फरवरी 1757 ई0) के द्वारा उन्हें जो सुविधाएँ रखी हैं, उनकी पुष्टि कर देगा, अंग्रेज़ों से रक्षात्मक संधि करेगा, फ्रांसीसियों की बंगाल से निकाल देगा, 1756 ई॰ में कलकत्ता छीने जाने के बदले ईस्ट इंडिया कम्पनी को 10 लाख पौंड हर्जाना देगा और इसका आधा रुपया कलकत्ता के अंग्रेज़ निवासियों को देगा। मीर ज़ाफ़र ने गुप्त संधि करके अंग्रेज़ी सेना, नौसेना तथा कौंसिल के सदस्यों को काफी अधिक धन देने का वादा किया।

बंगाल का नया नवाब

इस संधि के अनुसार 23 जून 1757 ई0 को प्लासी की लड़ाई मे मीर ज़ाफ़र तथा उसके सहयोगी षड्यंत्रकारियों ने कोई हिस्सा नहीं लिया और अंग्रेज़ बड़ी आसानी से लड़ाई जीत गये। सिराजुद्दौला युद्ध-भूमि से भाग गया, परन्तु उसे शीघ्र बंदी बना लिया गया और मीर ज़ाफ़र के पुत्र मीरन ने उसका वध कर दिया। इसके बाद मीर ज़ाफ़र बंगाल का नया नवाब बना दिया गया। गद्दीनशीन होने पर उसने 10 जून 1757 ई॰ की संधि के द्वारा जितने भी वादे किये थे सब पूरे कर दिये। इसके अतिरिक्त उसने कम्पनी को चौबीस परगने की ज़मींदारी भी दे दी। उसने 15 जून 1757 ई॰ को कम्पनी के साथ एक और संधि की, जिसके द्वारा उसने दो नयी धाराओं से अपने को बाँध लिया। इन धाराओं में कहा गया था:-

  • अंग्रेजों के दुश्मन मेरे दुश्मन होंगे, चाहे भारतीय हों या यूरोपीय,
  • जब कभी मैं अंग्रेजों से सहायता की माँग करूँगा, उसका खर्च दूँगा।

अगौरवपूर्ण अध्याय

मीर ज़ाफ़र ने इस तरह बंगाल पर एक प्रकार से अंग्रेज़ों का राजनीतिक तथा सैनिक प्रभुत्व स्वीकार कर अपनी नवाबी का अगौरवपूर्ण अध्याय आरम्भ किया। उसने 1756 ई0 में कलकत्ता पर दखल करने से अंग्रेज़ों को जो क्षति उठानी पड़ी थी उसके लिए 1,77,00,000 रू॰ हर्जाना देकर, अंग्रेज़ी सेना, नौसेना तथा अधिकारियों को 1,12,50,000 रु0 देकर (जिसमें 23,40,000 रु0 सिर्फ क्लाइव को दिये गये) तथा चौबीस परगने की सारी माल-गुजारी कम्पनी को सौंप कर राज्य को दीवालिया बना दिया। वह अपनी फौज की तनख्वाहें देने में भी असमर्थ हो गया। इस प्रकार मीर ज़ाफ़र अंग्रेज़ों पर अधिकाधिक निर्भर होता गया और शीघ्र ही अपनी स्थिति से बेचैन हो उठा। अतएव उसने अंग्रेज़ों के विरुद्ध डच लोगों से षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया। परन्तु अंग्रेज़ों ने बिदर्रा में डच लोगों को हरा दिया। 1760 ई0 में मीर ज़ाफ़र का संरक्षक क्लाइव इंग्लैण्ड चला गया और इसके बाद मीर ज़ाफ़र का लड़का तथा भावी उत्तराधिकारी मीरन बिजली गिरने से मर गया। इसके फलस्वरूप मीर ज़ाफ़र के उत्तराधिकारी का प्रश्न उठ खड़ा हुआ। क्लाइव के उत्तराधिकारियों ने क्लाइव का ही अनुकरण किया और 1760 ई0 क्लाइव के गुड्डे मीर जाफर को गद्दी से हटा कर उसके दामाद मीर कासिम को नया नवाब बना दिया।

पुन: नवाबी प्राप्त

मीर ज़ाफ़र ने बिना कोई प्रतिरोध किये 1760 ई॰ में नवाबी छोड़ दी, परन्तु 1763 ई0 में अंग्रेज़ों और नवाब मीर कासिम में युद्ध छिड़ जाने पर उसे फिर नवाब बना दिया गया। पुन: नवाबी प्राप्त करने से पूर्व मीर ज़ाफ़र ने अंग्रेज़ों से एक संधि की, जिसके द्वारा उसने अपनी फौजों की संख्या सीमित करना, राजधानी मुर्शिदाबाद में स्थायी ब्रिटिश रेजिडेंट रखना, अंग्रेज़ों के नमक के व्यापार पर केवल 2 प्रतिशत चुँगी लेना, कम्पनी को युद्ध के खर्च के तौर पर 35 लाख रुपया देना, अंग्रेज़ी सेना तथा नौसेना के सदस्यों को भेंट के तौर पर 37 लाख रुपया देना तथा मीर कासिम से युद्ध में जिन लोगों को व्यक्तिगत रूप से क्षति उठानी पड़ी उन्हें हर्जाना देना स्वीकार कर लिया। अत एवं पुन: नवाबी मिलने पर मीर ज़ाफ़र की आर्थिक स्थिति पहले से भी अधिक शोचनीय हो गयी। उसका राजनीतिक भविष्य लगभग समाप्त हो गया। उसे अफीम की लत थी और कुष्ठ रोग से पीड़ित था। 1765 ई0 में उसकी कलंकपूर्ण मृत्यु हो गयी। बंगाल में मुसलमानी शासन के पतन के लिए जो भारतीय मुसलमान जिम्मेदार थे, उनमें मीर ज़ाफ़र प्रमुख था।


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