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महमूद तुग़लक़ (1399-1413 ई.) [[दिल्ली]] के [[तुग़लक़ वंश]] का अंतिम सुल्तान था। उसके राज्यकाल में अनवरत संघर्ष चलते रहे और दुरवस्था चरम सीमा पर पहुँच गयी। उसके राज्य काल के पूर्वार्द्ध में लम्बा उत्तराधिकार युद्ध 1399 ई. तक चलता रहा। जब उसका प्रतिद्वन्द्वी सुल्तान नसरत शाह पराजित हुआ और मारा गया। तब उसके राज्य काल के उत्तरार्द्ध में [[दिल्ली सल्तनत]] टूटने लगी। [[जौनपुर]], [[गुजरात]], [[मालवा]] और [[ख़ानदेश]] स्वतंत्र मुस्लिम राज्य बने। दूसरी ओर [[ग्वालियर]] में एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य की स्थापना हुई। [[दोआब]] के हिन्दुओं में बराबर विद्रोह होता रहा। इन्हीं परिस्थितियों में 1398 ई. में [[तैमूर लंग|तैमूर]] ने [[भारत]] पर चढ़ाई कर दी। सुल्तान महमूद तुग़लक़ के राज्य में इतनी अव्यवस्था थी कि आक्रमणकारी [[दिल्ली]] की सीमाओं तक पहुँच गये और उसका कोई प्रतिरोध नहीं किया गया। तैमूर की सेनाओं ने सुल्तान की सेना को गहरी शिकस्त दी और महमूद गुजरात भाग गया। तैमूर की विजयी सेना दिल्ली में घुस आयी और पन्द्रह दिन तक निर्दयतापूर्वक लूटपाट करती रही। तैमूर के वापस लौट जाने के बाद सुल्तान महमूद तुग़लक़ वापस दिल्ली लौट आया और वह सल्तनत को विनाश से नहीं बचा सका। 1413 ई. में उसकी मृत्यु होने पर तुग़लक़ वंश का अंत हो गया।
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'''महमूद तुग़लक़''' (1399-1413 ई.) [[दिल्ली]] के [[तुग़लक़ वंश]] का अंतिम सुल्तान था। उसके राज्यकाल में अनवरत संघर्ष चलते रहे और दुरावस्था अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी। महमूद तुग़लक़ के समय तक [[दिल्ली सल्तनत]] से [[दक्षिण भारत]], [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]], [[ख़ानदेश]], [[गुजरात]], [[मालवा]], [[राजस्थान]], [[बुन्देलखण्ड]] आदि प्रान्त स्वतन्त्र गये थे।
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महमूद तुग़लक़ के समय में मलिक सरवर नाम के एक हिजड़े ने सुल्तान से ‘मलिक-उस-र्शक’ (पूर्वाधिपति) की उपाधि ग्रहण कर [[जौनपुर]] में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की। महमूद तुग़लक़ का शासन इस समय [[दिल्ली]] से पालम (निकटवर्ती कुछ ज़िलों) तक ही सीमित रह गया था। इस समय [[नसरत शाह तुग़लक़]] एवं महमूद तुग़लक़ ने एक साथ शासन किया। महमूद तुग़लक़ ने दिल्ली से तथा नुसरत शाह ने [[फ़िरोजाबाद]] से अपने शासन का संचालन किया। महमूद तुग़लक़ के समय में [[तैमूर लंग]] ने 1398 ई. में दिल्ली पर आक्रमण किया। एक पैर से लंगड़ा होने के कारण उसका नाम ‘तैमूर लंग’ पड़ गया था। तैमूर के आक्रमण से डरकर दोनों सुल्तान राजधानी से भाग गये। 15 दिन तक दिल्ली में रहने के पश्चात् तैमूर वापस चला गया और [[ख़िज़्र ख़ाँ]] को अपने विजित प्रदेशों का राज्यपाल नियुक्त किया।
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एक मान्यता के अनुसार तैमूर आक्रमण के बाद [[दिल्ली सल्तनत]] का विस्तार सिमट कर पालम तक ही रह गया था। तैमूर के वापस जाने के पश्चात् महमूद तुग़लक़ ने अपने वजीर मल्लू इमबार की सहायता से पुन: दिल्ली सिंहासन पर अधिकार कर लिया, पर कालान्तर में मल्लू इक़बाल मुल्तान के सूबेदार ख़िज़्र ख़ाँ से युद्ध करते हुए मारा गया। मल्लू इक़बाल के मरने के बाद सुल्तान ने दिल्ली की सत्ता एक [[अफ़ग़ान]] सरदार दौलत ख़ाँ लोदी को सौंप दी।
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1412 ई. में महमूद तुग़लक़ की मृत्यु हो गई। 1413 ई. में दिल्ली सिंहासन के लिए दौलत ख़ाँ लोदी एवं ख़िज़्र ख़ाँ ने दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर एक नये राजवंश ‘[[सैय्यद वंश]]’ की स्थापना की।
  
  
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11:20, 1 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

महमूद तुग़लक़ (1399-1413 ई.) दिल्ली के तुग़लक़ वंश का अंतिम सुल्तान था। उसके राज्यकाल में अनवरत संघर्ष चलते रहे और दुरावस्था अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी। महमूद तुग़लक़ के समय तक दिल्ली सल्तनत से दक्षिण भारत, बंगाल, ख़ानदेश, गुजरात, मालवा, राजस्थान, बुन्देलखण्ड आदि प्रान्त स्वतन्त्र गये थे।

शासन

महमूद तुग़लक़ के समय में मलिक सरवर नाम के एक हिजड़े ने सुल्तान से ‘मलिक-उस-र्शक’ (पूर्वाधिपति) की उपाधि ग्रहण कर जौनपुर में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की। महमूद तुग़लक़ का शासन इस समय दिल्ली से पालम (निकटवर्ती कुछ ज़िलों) तक ही सीमित रह गया था। इस समय नसरत शाह तुग़लक़ एवं महमूद तुग़लक़ ने एक साथ शासन किया। महमूद तुग़लक़ ने दिल्ली से तथा नुसरत शाह ने फ़िरोजाबाद से अपने शासन का संचालन किया। महमूद तुग़लक़ के समय में तैमूर लंग ने 1398 ई. में दिल्ली पर आक्रमण किया। एक पैर से लंगड़ा होने के कारण उसका नाम ‘तैमूर लंग’ पड़ गया था। तैमूर के आक्रमण से डरकर दोनों सुल्तान राजधानी से भाग गये। 15 दिन तक दिल्ली में रहने के पश्चात् तैमूर वापस चला गया और ख़िज़्र ख़ाँ को अपने विजित प्रदेशों का राज्यपाल नियुक्त किया।

तैमूर आक्रमण के बाद सिमटा दिल्ली सल्तनत का विस्तार

एक मान्यता के अनुसार तैमूर आक्रमण के बाद दिल्ली सल्तनत का विस्तार सिमट कर पालम तक ही रह गया था। तैमूर के वापस जाने के पश्चात् महमूद तुग़लक़ ने अपने वजीर मल्लू इमबार की सहायता से पुन: दिल्ली सिंहासन पर अधिकार कर लिया, पर कालान्तर में मल्लू इक़बाल मुल्तान के सूबेदार ख़िज़्र ख़ाँ से युद्ध करते हुए मारा गया। मल्लू इक़बाल के मरने के बाद सुल्तान ने दिल्ली की सत्ता एक अफ़ग़ान सरदार दौलत ख़ाँ लोदी को सौंप दी।

मृत्यु

1412 ई. में महमूद तुग़लक़ की मृत्यु हो गई। 1413 ई. में दिल्ली सिंहासन के लिए दौलत ख़ाँ लोदी एवं ख़िज़्र ख़ाँ ने दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर एक नये राजवंश ‘सैय्यद वंश’ की स्थापना की।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख